Published on May 06, 2017 Updated 0 Hours ago

उत्तर प्रदेश 3,27,470 करोड़ रुपये के कर्ज बोझ के साथ देश का दूसरा सबसे ऋणग्रस्त राज्य है। इससे साफ जाहिर है कि ऋण माफी के बाद उत्तर प्रदेश का बजट घाटा और ज्‍यादा बढ़ जाएगा।

यूपी में ऋण माफी: किसानों को मानवीय राहत

राजनीतिक दृष्टि से, ऋण माफी चुनाव जीतने का एक महत्वपूर्ण जरिया साबित होती रही है और कांग्रेस सरकार ने तो अतीत में कई बार इसका इस्तेमाल किया है। हालांकि, उत्तर प्रदेश में ऋण माफी की जो घोषणा की गई है उसके केवल राजनीतिक मायने ही नहीं हैं। दरअसल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऋण माफी के जरिए बड़ी संख्या में ऐसे किसानों को राहत दी है जिनकी मुश्किलें खत्‍म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं। उत्तर प्रदेश के 1.5 करोड़ छोटे और सीमांत किसानों को कुल मिलाकर 36,359 करोड़ रुपये की ऋण माफी दी गई है जो किसी भी राज्य में दी गई अब तक की सबसे बड़ी माफी है। प्रत्येक किसान को 1 लाख रुपये की ऋण माफी दी गई है, लेकिन इसमें सहकारी बैंकों सहित किसी भी बैंक से लिए गए समस्‍त ऋण शामिल हैं। इस योजना के तहत ऐसे ऋणों को माफ किया जा रहा है जिनका वास्‍ता धान, गेहूं, उर्वरकों और कीटनाशकों से है। वहीं, दूसरी ओर उपभोग हेतु लिए गए ऋणों को माफ नहीं किया गया है। इसके तहत केवल उन्‍हीं ऋणों पर विचार किया जाएगा जो 31 मार्च 2016 से पहले लिए गए हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर और भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन पहले ही इस पर असंतोष व्यक्त कर चुके हैं। कारण यह है कि सरकार के स्वामित्व वाले बैंक पहले से ही भारी ऋण बोझ के तले दबे हुए हैं। ऐसे में इस तरह के लोकलुभावन कदम से यह समस्‍या और भी ज्‍यादा गंभीर हो जाएगी। हालांकि, मानवीय आधार पर और भारत के अनाज उत्पादकों को उचित अहमियत देते हुए इसे जायज ठहराया जा सकता है।

वैसे तो लोग किसानों की नैतिकता पर सवाल उठा रहे हैं जिसका मतलब यही है कि इस तरह की ऋण माफी की उम्‍मीद में किसान भविष्य में भी अधिक से अधिक उधार लेने का सिलसिला जारी रखेंगे, लेकिन यह मानना उचित होगा कि किसान लापरवाह होते हैं, जो अपनी ही भलाई के प्रति उदासीन रहते हैं। कारण यह है कि अत्‍यंत अमीर लोगों को छोड़कर किसी भी व्यक्ति द्वारा खर्च किया गया कोई भी ऋण दरअसल बोझ प्रतीत होता है। किसान निश्चित तौर पर ऋण अदा कर देते हैं और किसानों से ऋण वसूली का ट्रैक रिकॉर्ड उन फरार उद्योगपतियों से होने वाली कर्ज वसूली से बेहतर है जिन पर सार्वजनिक बैंकों का तकरीबन 7 लाख करोड़ रुपये का भारी-भरकम बकाया है। तो फिर आखिरकार लोग किसानों के बीच उधार लेने की होड़ और ऋण अदा नहीं करने को लेकर इतने चिंतित क्‍यों हैं?

उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में कृषि क्षेत्र की समस्याएं अत्‍यंत गंभीर इसलिए हैं क्‍योंकि जहां एक ओर ग्रामीण आबादी कृषि पर अत्यधिक निर्भर है, वहीं दूसरी ओर वहां सिंचाई संबंधी सुधारों का सख्‍त अभाव देखा जाता है। 

ब्रिटिश काल से ही ग्रामीणों की ऋणग्रस्तता की बड़ी समस्या ज्‍यों की त्‍यों मुंह बाए खड़ी है। सार्वजनिक बैंकों द्वारा ग्रामीण क्षेत्र को प्राथमिकता के तहत रियायती ऋण देने के बावजूद पिछले कुछ वर्षों में किसानों द्वारा आत्महत्या करने की संख्या घटने के बजाय बढ़ गई है।

किसानों को अपने पूंजीगत व्यय को पूरा करने के लिए अपनी फसलों के एवज में उधार लेना पड़ता है। हालांकि, कई मर्तबा वे उपभोग के उद्देश्‍य से उधार लेते हैं। ज्यादातर किसान तो साहूकारों से उधार लेते हैं जो आभूषणों, मवेशियों, जमीन के एवज में दिए जाने वाले ऋणों पर अत्‍यंत ज्‍यादा ब्‍याज वसूलते हैं। हालांकि, इसके बावजूद अब तक ऐसा कोई रास्ता नहीं निकल पाया है जिससे कि किसानों को साहूकारों के चंगुल से छुटकारा दिलाया जा सके।

एनएसएसओ के सर्वेक्षण से इसकी पुष्टि भी हो गई है। इस सर्वे से यह पता चला है कि उत्तर प्रदेश में आधे से भी कम छोटे और सीमांत किसानों ने बैंकों से ऋण लिए हैं। उत्तर प्रदेश में 1.7 करोड़ किसान हैं और एक एकड़ से कम जमीन वाले समस्‍त किसानों में से सिर्फ 28 प्रतिशत ने ही बैंकों से उधार लिया है, जबकि शेष 72 प्रतिशत किसानों ने गैर-औपचारिक स्रोतों मुख्यत: साहूकारों से ऋण ले रखे हैं। वहीं, एक से लेकर पांच एकड़ तक जमीन वाले किसानों में से 67 प्रतिशत किसानों ने बैंकों से उधार लिया है। जैसा कि पहले से होता आया है, उत्‍तर प्रदेश की ऋण माफी योजना से छोटे और सीमांत किसानों के बजाय बड़े किसान ही लाभान्वित होंगे।

ग्रामीणों की ऋणग्रस्तता में वृद्धि के लिए सबसे पहले जिम्मेदार कोई और नहीं, बल्कि अनिश्चित मानसून ही है। यदि बढि़या मानसून नसीब न हुआ तो किसान बर्बाद हो जाते हैं। किसी भी राज्य में फसल को बर्बाद होने से बचाने में सिंचाई नेटवर्क और जल संरक्षण संबंधी उपाय पर्याप्त नहीं हैं। अत: केंद्र सरकार की पहली प्राथमिकता बेहतर सिंचाई सुलभ कराना है और इसके लिए अधिक निवेश की जरूरत है। बजट 2017 के अनुसार, दीर्घकालिक सिंचाई कोष के लिए नाबार्ड को 20,000 करोड़ रुपये और एक समर्पित सूक्ष्म सिंचाई कोष बनाने के लिए 5,000 करोड़ रुपये दिए गए हैं। हालांकि, इस पर वास्‍तव में अमल कब होगा, यह अलग बात है।

उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु को जल संचयन और वाटरशेड विकास जैसी बेहतर सूक्ष्म-सिंचाई की जरूरत है। सीएमआईई के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सिंचित क्षेत्र वर्ष 2001 के 14.49 मिलियन हेक्टेयर से घटकर वर्ष 2010-11 में 13.43 मिलियन हेक्टेयर के स्‍तर पर आ गया है। फसलों के लिए बेशक बेहतर उर्वरक और बीज भी अत्‍यंत अहम हैं, लेकिन फसलों को बचाए रखने के लिए सबसे ज्‍यादा जरूरी पानी ही है। कम सिंचाई सुविधाओं वाले राज्यों में किसान नलकूप सिंचाई का सहारा लेने पर विवश हो गए हैं। हालांकि, इस वजह से भूजल स्‍तर काफी नीचे चला गया है।

ग्रामीण ऋणों का वितरण एक अन्‍य समस्या है। इसे ध्‍यान में रखते हुए किसान कार्ड एवं दूरदराज के क्षेत्रों में और अधिक बैंकिंग सुविधाएं जैसे विभिन्न सुधारों को लागू किया गया है। बजट 2017 में 10 ट्रिलियन रुपये के कृषि ऋणों के वितरण का प्रावधान किया गया है। चूंकि किसान बैंकों से संपर्क करने में काई खास उत्‍साह नहीं दिखाते हैं, इसलिए इंडिया पोस्‍ट पेमेंट बैंकों को और अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में फैल जाना चाहिए। इस तरह के पहले बैंक झारखंड एवं छत्तीसगढ़ में खोले गए हैं और यह उम्मीद जताई जा रही है कि 1.55 लाख डाकघर शाखाओं को इस वर्ष के उत्‍तरार्द्ध में उनसे लिंक कर दिया जाएगा। अन्य तरह के सू्क्ष्‍म ऋण संस्थान भी इसमें मददगार साबित होते हैं। हालांकि, जब भी बड़े ऋण की ज़रूरत होती है तो किसान हमेशा ही साहूकार की तलाश में निकल पड़ते हैं।

सरकार को अवश्‍य ही एक और हरित क्रांति को प्राथमिकता देनी चाहिए, अन्यथा कृषि क्षेत्र की दशा में सुधार संभव नहीं हो पाएगा।

खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों एवं छोटे उद्योगों में और ज्‍यादा गैर-कृषि नौकरियों के सृजन के लिए ग्रामीण बुनियादी ढांचे में भारी-भरकम निवेश करना होगा, ताकि उन ग्रामीण युवाओं को रोजगार दिया जा सके जो कृषि क्षेत्र में बने रहने के इच्छुक नहीं हैं। गैर कृषि क्षेत्र में रोजगार सृजन में धीमी गति से हो रही वृद्धि उत्तर प्रदेश के साथ-साथ अन्य राज्यों की भी एक बड़ी समस्या है। पशुधन क्षेत्र उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में गैर-कृषि आय के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में उभर कर सामने आया है। उत्तर प्रदेश भैंस मांस का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। हालांकि, बूचड़खानों से जुड़े नवीनतम विवाद के कारण इस मोर्चे पर करारा झटका लग सकता है।

आईटी के अधिक उपयोग और इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार के जरिए वायदा कारोबार से किसानों को अपनी उपज को और ज्‍यादा निपुणता से बेचने एवं बेहतर मूल्य अर्जित करने में मदद मिलेगी। इससे किसानों की बचत बढ़ने, उनकी ऋणग्रस्तता घटने और ज्‍यादा उत्पादकता के लिए निवेश में वृद्धि की उम्‍मीद की जा सकती है।

उत्तर प्रदेश 3,27,470 करोड़ रुपये के कर्ज बोझ के साथ दूसरा सबसे ऋणग्रस्त राज्य है। इससे साफ जाहिर है कि ऋण माफी के बाद उत्तर प्रदेश का बजट घाटा और ज्‍यादा बढ़ जाएगा जो किसी भी मुख्यमंत्री के लिए जोखिम भरा है। मुख्यमंत्री ऋण माफी के वित्तपोषण के लिए ‘राहत बांड’ जारी करने में जुट गए हैं और उन्‍होंने योजना तैयार करने के लिए आठ सदस्यीय समिति का गठन किया है। 6.5 प्रतिशत से लेकर 7.5 प्रतिशत तक की मौजूदा ब्याज दर को देखते हुए सरकार को सालाना तकरीबन 2,726.8 करोड़ रुपये मूल्‍य के बांडों पर भारी ब्याज बोझ को वहन करना होगा। हालांकि, इसके लिए केंद्र की ओर से वित्तीय सहायता (बेलआउट) मिलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

इसके साथ ही यह उम्‍मीद जताई जा रही है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाकर और प्रशासनिक दक्षता को बढ़ाकर मुख्‍यमंत्री अपने राज्‍य की माली हालत या राजकोष का बेहतर ढंग से प्रबंधन करने में समर्थ साबित होंगे। हालांकि, चाहे कुछ भी हो, ऋण माफ़ करने से केवल अस्थायी राहत ही मिल सकती है।

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