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समय पर किए गये उपायों से संक्रमित लोगों का जल्द इलाज हो सका तथा साथ ही इस संक्रमण को फैलने से रोका जा सका।
17 लोगों की मौत का सबब बनने वाले घातक निपाह वायरस के साथ हफ्तों तक तनावपूर्ण जंग के बाद केरल सरकार ने 30 जून 2018 को निपाह मुक्त केरल की घोषणा की। इसने केरलवासियों की चिंता तो मिटायी ही साथ ही उन्हें वीडियो “बाय बाय निपाह” में डान्स करने के लिए भी उत्साह से भर दिया। यह वीडियो राज्य भर के मोबाइल फोन्स पर बेहद लोकप्रिय हुआ।
निपाह वायरस — जिसमें अचानक हमला करने तथा संक्रमित पशुओं और मानवों में बचे रहने और संक्रमण के एक दिन के भीतर ही दिमाग़ी बुखार से ग्रसित करने की क्षमता है — से निपटने के लिए किए गए प्रयासों ने भारत को यह मौका दिया है कि वह केरल के अनुभवों से कुछ सीख सके। ऐसी जैविक बीमारियों के उभरते खतरे औऱ निपाह के दोबारा नहीं पनपने की निश्चितता के अभाव के बीच, महत्वपूर्ण यह है कि जनता, सरकार और सोशल मीडिया सहित अन्य स्टेकहोल्डर्स केरल के अनुभव पर विचार करें और उस सबक को भविष्य में याद रखें।
इससे पहले दक्षिण पूर्व एशिया (मलेशिया में 1999), भारत के पूर्वी हिस्से (पश्चिम बंगाल में 2001 और 2007) और बांग्लादेश को (2017) में निशाना बना चुका निपाह वायरस ऐसा दुर्लभ और घातक पशु रोग है, जिसमें मानवों को संक्रमित करने की क्षमता है और यह मुख्य रूप से फ्रूट बैट्स और कुछ हद तक सुअरों में मौजूद रहता है। यह वर्तमान में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) की उच्च प्राथमिकता वाली बीमारियों में से है, जो बहुत बड़े पैमाने पर सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी आपात स्थिति उत्पन्न कर सकता है। डब्ल्यू एच ओ और कोइलेशन फॉर एपीडेमिक प्रीपेयर्डनेस इनोवेशन्स(सीईपीआई) अगले 3-4 बरस तक इसका वैक्सीन तैयार करने और प्रभावी इलाज ढूंढने के प्रयास कर रहे हैं।
ऐसी जैविक बीमारियों के उभरते खतरे औऱ निपाह के दोबारा नहीं पनपने की निश्चितता के अभाव के बीच, महत्वपूर्ण यह है कि जनता, सरकार और सोशल मीडिया सहित अन्य स्टेकहोल्डर्स केरल के अनुभव पर विचार करें और उस सबक को भविष्य में याद रखें।
हालांकि जब तक इसके इलाज के लिए कोई वैक्सीन या आहार योजना की तलाश नहीं हो जाती, तब तक इस बारे में सचेत रहना महत्वपूर्ण होगा कि क्या किया जा सकता है और क्या करने की जरूरत है। केरल का निपाह का अनुभव उत्तरदाताओं के बीच समन्वय, स्वास्थ्य सूचनाएं प्राप्त करने, जोखिम के बारे में उचित जानकारी तथा जमीनी स्तर पर समय पर किए गए उपायों की दृष्टि से अन्य राज्यों के लिए सबक है।
त्वरित गति से समन्वय प्रकोष्ठ की स्थापना से लेकर प्रभावित जिलों में स्वास्थ्य और श्रम राज्य मंत्रियों के कैम्प करने तक, भारत सरकार के शीर्ष स्तर से लेकर जमीनी स्तर तक के स्वास्थ्य कर्मियों से एक साथ सम्पर्क रखने जैसे कार्यों के साथ यह संकट प्रबन्धन केरल की सुदृढ़ सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की झलक था। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात महज़ स्वास्थ्य सुविधाओं की मौजूदगी नहीं, बल्कि राज्य के स्वास्थ्य सम्बन्धी मामलों में प्रशासनिक और राजनीतिक पूंजी का दीर्घकालिक निवेश है।
इस तरह की स्वास्थ्य सम्बन्धी आपात स्थिति से निपटने की जरूरत से परे, महत्वपूर्ण यह है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में गैर आईएएस टेक्निकल लीड्स की पहचान, पोषण किया जाए उसका पोषण किया जाए और उसे मजबूती दी जाये, वह भी विशेष कर तब, जब स्वास्थ्य राजनीतिक प्राथमिकताओं में अपनी जगह तलाश रहा है। स्वास्थ्य सचिव रविन्द्र सदानन्दन के दृढ नेतृत्व ने अपने निजी समर्पण से आगे बढ़ते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों को व्यापक उत्तरदायित्व निभाने में सहायता दी। यह राज्य के स्वास्थ्य सेवा कैडर के निरन्तर तकनीकी क्षमता निर्माण के जरिए स्वास्थ्य प्रणालियों में लचीलापन लाने का सबक है।
21 मई 2018 को, मीडिया में कोझिकोड जिले में निपाह की मौजूदगी की खबर आने से काफी पहले, स्वास्थ्य प्रणालियों द्वारा इस वायरस की पहचान कर ली गई थी। कोझिकोड के बेबी मेमोरियल हॉस्पिटल के विशेषज्ञों के समय पर संदेह और बाद में महत्वपूर्ण देखरेख करने की बदौलत, राज्य ने इस पर नियंत्रण पाने की समन्वित कार्रवाइयां शुरु कर दीं। उपचार करने वाले डॉ. अनूप कुमार को अपने एक कमउम्र के मरीज के मस्तिष्क में त्वरित सूजन और रक्तचाप कम होने पर संदेह हुआ। उस मरीज के परिवार में उसी दौरान हुई दो मौतों के कारण डॅा. अनूप की टीम ने उस मरीज के नमूने मणिपाल सेंटर फॉर वायरल रिसर्च (एमसीवीआर)भेज दिए। कर्नाटक के मणिपाल विश्वविद्यालय का अंग एमसीवीआर, आईसीएमआर, भारत सरकार और सेंटर फॅार डिसीज कंट्रोल (सीडीसी,अटलांटा) द्वारा सहायता प्राप्त वायरल रिसर्च के लिए एक नोडल केंद्र है।
डॉ अरुण कुमार की अध्यक्षता वाले इस केंद्र को हाल ही में अद्यतन बनाया गया था और निगरानी अभियान चलाने के लिए तैयार किया गया था — जो किसी भी तरह की बीमारी से निपटने के लिए अग्नि परीक्षा जैसा है। घातक निपाह वायरस के फैलने की पुष्टि एमसीवीआर द्वारा एक दिन के भीतर ही कर दी गई जिसके कारण आनन-फानन में कार्रवाई की खाका तैयार कर लिया गया, जिससे इस बीमारी के जल्द खत्म होने की राह तैयार हो गई। स्वास्थ्य कर्मियों को अच्छी तरह से जानकारी दे दी गई, प्रयोगशालाओं को उपयुक्त तरीके से चाक-चौबंद कर दिया गया और तुरंत हस्तक्षेप के लिए स्वास्थ्य बल तैयार कर लिया गया। बीमारी का पता चलते ही उस पर काबू पाने के लिए ये सभी महत्वपूर्ण कड़ियां थीं।
21 मई 2018 को, मीडिया में कोझिकोड जिले में निपाह की मौजूदगी की खबर आने से काफी पहले, स्वास्थ्य प्रणालियों द्वारा इस वायरस की पहचान कर ली गई थी।
प्राइवेट यूनिवर्सिटी पर आधारित एमसीवीआर की सहायता के अलावा, मुख्यमंत्री द्वारा निजी अस्पतालों से की गई मदद की अपील से भी निजी क्षेत्र का महत्व साबित होता है। चेन्नई के विख्यात चिकित्सक डॉ. अब्दुल गफूर द्वारा कोझिकोड में स्वैच्छा से की गई सेवा भी सराहनीय है, जो उन अपार अवसरों को दर्शाती हैं, जिनका इस्तेमाल सबके लिए सेहत का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक और निजी — दोनों क्षेत्रों द्वारा एकजुट होकर किया जा सकता है। साथ ही निपाह के संक्रमितों की देखरेख करने वाली सरकारी अस्पताल की नर्स सुश्री लेनी की त्रासद मौत और मृतकों के शवों को हाथ लगाने से डरने वाले अर्ध चिकित्साकर्मियों की अज्ञानता ने इससे जुड़ी जागरूकता के अभाव और तैयारियों के तहत प्रशिक्षण से जुड़ी कमियों को उजागर कर दिया। आमतौर पर सभी तैयारियां डॉक्टरों के इर्द-गिर्द सीमित रहीं।
इस रोग की पुष्टि होने तथा 19 मई को पहले पीड़ित की मौत के फौरन बाद, राज्य ने सार्वजनिक स्वास्थ्य नियंत्रण संबंधी कार्रवाई तेज कर दी। राज्य ने फौरन इसकी इत्तिला केंद्र को दी, जिसने उसी समय डब्ल्यूएचओ को सर्तक कर दिया। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी), नई दिल्ली के विशेषज्ञों के एक दल ने इस रोग के कारणों की जड़ तक पहुंचने के राज्य के प्रयासों में सहायता की, साथ ही जनता तक भी पहुंच बनाए रखी। सरकार द्वारा 24 घंटे का नियंत्रण कक्ष बनाए जाने और विश्वसनीय सार्वजनिक सूचनाएं जारी किए जाने के बावजूद मीडिया का एक वर्ग अंधाधुंध रूप से अवैज्ञानिक खबरें बढ़ाचढ़ा कर देने लगा। सोशल मीडिया, खासतौर पर व्हाट्स एप्प पर अफवाहों का बाजार गर्म हो गया, जिससे समाज में दहशत फैल गई। यह अफवाह फैल गई कि निपाह फलों की वजह से हो रहा है, जिसके कारण केरल से दूर-दूर तक पूरी आपूर्ति श्रृंखला पर असर पड़ा।
कोझिकोड से 45 किलोमीटर दूर चांगरोथ गांव में फैल रही अफवाह के कारण लोग इस बीमारी की चपेट में आने आशंका से इस हद तक डर गए कि वे अपने संक्रमित परिजनों को घर पर ही छोड़कर रातोंरात इलाका खाली कर गए। पेरमबरा तालुका अस्पताल में, जहां आमतौर पर 100 मरीज तक होते हैं, रातों रात वीरान हो गया, क्योंकि बाकी मरीजों ने निपाह संक्रमण की चपेट में आने के डर की वजह से अस्पताल से छुट्टी ले ली।
आखिरकार, खतरे से निपटने के लिए तीन स्तरों पर किए गए कारगर उपायों के नतीजे सामने आए। दहशत के कारण बेवजह मास्क लगाकर घूम रहे गांववालों के डर को दूर करने के लिए उनकी पंचायत के नेताओं, डॉक्टरों और दिल्ली से आए कर्मियों की टीमों को घर-घर भेजा गया, जिन्होंने उन्हें तथ्यों की जानकारी और राज्य की स्थिति का आकलन उपलब्ध कराया। जिला स्तर पर सरकारी प्रशासन जहां एक ओर आम जनता को क्या करें और क्या न करें के बारे में शिक्षित कर रहा था, वहीं पीड़ित परिवारों की तमाम जरूरतें भी पूरी कर रहा था, इन जरूरतों में मरने वालों का सुरक्षित अंतिम संस्कार भी शामिल था। राज्य स्तर पर, राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व मीडिया को लगातार जानकारी दे रहा था और साथ ही लक्षित संदेशों के साथ जनता को बार-बार पूरे हालात के बारे में भरोसा दिला रहा था। स्वास्थ्य मंत्री स्वयं भी जनता का डर मिटाने के लिए सशक्त और प्रभावी उपाय के तहत नागरिकों से व्हॉट्स एप्प पर फैलायी जा रही अफवाहों पर ध्यान नहीं देने का अनुरोध कर रही थीं।
आखिरकार, खतरे से निपटने के लिए तीन स्तरों पर किए गए कारगर उपायों के नतीजे सामने आए। दहशत के कारण बेवजह मास्क लगाकर घूम रहे गांववालों के डर को दूर करने के लिए उनकी पंचायत के नेताओं, डॉक्टरों और दिल्ली से आए कर्मियों की टीमों को घर-घर भेजा गया, जिन्होंने उन्हें तथ्यों की जानकारी और राज्य की स्थिति का आकलन उपलब्ध कराया।
समय पर किए गये उपायों से संक्रमित लोगों का जल्द इलाज हो सका तथा साथ ही इस संक्रमण को फैलने से रोका जा सका। कोझिकोड अस्पताल की मेडिकल टीमों ने मरीजों की देखरेख के उचित इंतजाम किए। जहां एक ओर पहले ही हफ्ते आंतरिक स्तर पर एंटीवायरल रिबाविरिन गोलियों जैसी मेडिकल सप्लाई की व्यवस्था की गई, वहीं गंभीर रूप से बीमार लोगों के लिए खास तरह के इलाज का इंतजाम किया गया। मसलन इम्युनोग्लोबुलिन्स का मलेशिया और आस्ट्रेलिया से आयात किया गया। निपाह से संक्रमित लोगों को सख्ती से अलग-थलग रखने के बारे में उनके परिजनों से बातचीत की गई और संक्रमित व्यक्ति के निकट सम्पर्क में रहे सभी लोगों का पता लगाया गया।
इस बीमारी के संक्रमण को दो जिलों कोझिकोड और मल्लापुरम तक सीमित रखा गया। 2,500 से ज्यादा सम्पर्कों की जांच की गई, सैंकड़ों लोगों को अलग-थलग रखा गया और आखिरकार इस बीमारी से होने वाली मौतों की संख्या को 17 तक सीमित रखा जा सका, इनमें से अधिकांश प्रारंभिक अवस्था में, यहां तक कि राज्य के हरकत में आने से पहले ही संक्रमित हो गए थे। संक्रमण के स्रोत का पता लगाने के लिए पशु चिकित्सकों को साथ जोड़ते हुए व्यापक तलाशी अभियान चलाया गया। इनकी सहायता राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशुरोग संस्थान (एनआईएसएचएडी), भोपाल की टीमों ने की और 2 जुलाई को निपाह वायरस का स्रोत फ्रूट बैट्स होने की बात की पुष्टि की गई।
निपाह से निपटने के लिए केरल की ओर से किया गया संघर्ष अन्य राज्यों के लिए सबक है :
केवल राज्यों के समग्र रूप से तैयार होने पर ही, उनके नागरिक खुशी और भरोसे के साथ ‘गुडबाय निपाह’ गीत गा सकते हैं। नहीं तो यह केरल की सीमा पर इस रोग की क्षणिक विदाई होगी तथा यह वायरस और ज्यादा घातक रूप से किसी दूसरे राज्य में फैल जाएगा। सभी राज्यों के लगभग समस्त स्टेकहोल्डर्स को अपनी सुविधा के मुताबिक तैयारियों से संतुष्ट होने की जगह बहुत जिम्मेदारी के साथ तैयारियां करके ऐसा हरगिज नहीं होने देना चाहिए।
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Deepesh Vendoti is a former consultant at ORF-Mumbai's HealthInitiative. He is a medical doctor by training and a public healthmanagement graduate from Yale University.
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