Author : Parjanya Bhatt

Published on Mar 16, 2022 Updated 0 Hours ago

रूस-यूक्रेन संकट से नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का खोख़लापन सामने आ गया है. इससे भारत के सामने एकदम से चीन का ख़तरा आ गया है. 

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष से भारत के लिये सबक़; क्या भारत के पास चीन से मुक़ाबले की मुकम्मल तैयारी है?

यूक्रेन पर रूस के हमले से अमेरिकी सत्ता की सीमाएं बेपर्दा हो गई हैं. एक और युद्ध रोक पाने में अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की नाकामी भी सबके सामने आ गई है. भले ही मौजूदा सैन्य टकराव मुख्य रूप से यूरोप के आंतरिक सुरक्षा दायरों में है, लेकिन इससे भू-राजनीति पर गंभीर असर होना तय है.  

चीन के साथ सीमा विवाद में उलझे भारत के लिए इस घटनाक्रमों से दो अहम सबक़ सामने आते हैं. पहला, यूक्रेन पर रूसी चढ़ाई से अमेरिका की कमज़ोरियां जगज़ाहिर हो गई हैं. यूक्रेन को सुरक्षा की गारंटी देने वाली इकलौती ताक़त होने का रुतबा अमेरिका से छिन गया है. साथ ही अपने बराबर की फ़ौजी ताक़त को रोक पाने में अमेरिका की सैन्य और कूटनीतिक नाकामी भी उभर कर सामने आ गई है. दूसरा, इस पूरे प्रकरण से चीन के हौसले बढ़ेंगे. वो भी भारत के ख़िलाफ़ वैसी ही हरकत दोहरा सकता है जैसी रूस ने यूक्रेन के ख़िलाफ़ की है. चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) और भारतीय सेना के बीच हिंसक झड़पों की ख़बरें आती रहती हैं. अगर वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के इर्द-गिर्द भूक्षेत्रों पर कब्ज़ा जमाने के लिए चीनी फ़ौज स्थानीय स्तर पर जंग छेड़ दे तो भारत सरकार अमेरिका (या पश्चिमी देशों) से ज़ुबानी जमाखर्च के अलावा किसी ठोस मदद की उम्मीद नहीं कर सकती. चूंकि रूस पर यूक्रेन पर हमले की वजह से ‘अभूतपूर्व प्रतिबंध’ लगा दिए गए हैं, लिहाज़ा वो अपने घरेलू आर्थिक मसलों में ही उलझा रहेगा. ऐसे में चीन की फ़ौजी हरकतों के ख़िलाफ़ भारत अपने बूते एकदम अकेला (कूटनीतिक और सैनिक तौर पर) रहेगा.    

चीन के साथ सीमा विवाद में उलझे भारत के लिए इस घटनाक्रमों से दो अहम सबक़ सामने आते हैं. पहला, यूक्रेन पर रूसी चढ़ाई से अमेरिका की कमज़ोरियां जगज़ाहिर हो गई हैं. यूक्रेन को सुरक्षा की गारंटी देने वाली इकलौती ताक़त होने का रुतबा अमेरिका से छिन गया है. 

साफ़तौर से अमेरिका इस वक़्त रूस के साथ किसी तरह के फ़ौजी टकराव में उलझना नहीं चाहता था. अमेरिका को रूसी प्रभाव के बढ़ते दायरे की जानकारी है. पेंटागन को एक और परंपरागत या ग़ैर-परंपरागत युद्ध में शामिल होने में दिलचस्पी नहीं है. यूक्रेन पर रूस की फ़ौजी कार्रवाई से काफ़ी अर्सा पहले ही अमेरिका ने यूक्रेन को सैन्य टुकड़ियां और हथियार प्रणालियों की सप्लाई करने का भरोसा देने से इनकार कर दिया था. उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नेटो) के बाक़ी सदस्य भी रूस के साथ फ़ौजी तरीक़े से सीधे उलझने से बचते रहे हैं.  

मौजूदा संकट चीन के लिए अवसर लेकर आया है. चीन ने रूस की सैनिक कार्रवाइयों को आक्रमण करार नहीं दिया है. साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हुई वोटिंग से भी चीन ग़ैर-हाज़िर रहा. इन क़वायदों से चीन ने रूस को अपने गुपचुप समर्थन का संकेत दिया है. अब ये केवल थोड़े समय की बात रह गई है जब नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को ठेंगा दिखाने की अमेरिकी और रूसी हरकतों से सबक़ लेते हुए चीन भी LAC के आर-पार भारत पर चढ़ाई कर दे. लिहाज़ा भारत को अपनी सरहदों पर और ज़्यादा चौकन्ना रहना होगा. साथ ही कूटनीतिक मोर्चे पर भी पहले से ही सक्रिय रहने की दरकार है. भारत अब तक गुटनिरपेक्षता की नीति पर अमल करता रहा है. दूसरी ओर वैश्विक मंच पर टकरावों से भरी भू-राजनीति का दौर जारी है. साथ ही सैनिक और कूटनीतिक ताक़त रखने वाले मुल्क इनसे जुड़ने को लेकर हिचकिचाहट दिखा रहे हैं. ऐसे में भारत को आख़िरकार अपना रुख़ तय करना पड़ेगा. 

पश्चिम और रूस, दोनों पर भारत कई तरीक़ों से निर्भर है. ऐसे में मौजूदा संकट भारत के लिए कूटनीतिक तौर पर चुनौतीपूर्ण है. दोनों ही पक्षों (रूस-समर्थक और पश्चिम समर्थक) में भारत की विश्वसनीयता में थोड़ी-बहुत गिरावट आना तय है. पश्चिम का समर्थन गंवाने से भारत को गुणवत्तापूर्ण सैन्य हार्डवेयर की आपूर्ति का नुक़सान झेलना पड़ सकता है. ग़ौरतलब है कि पश्चिम द्वारा मुहैया कराए जाने वाले सैन्य उपकरण रूसी साज़ोसामानों से कहीं ज़्यादा उन्नत किस्म के होते हैं. दूसरी ओर रूस का समर्थन गंवाने से सुरक्षा परिषद में एक अहम वोट भारत के हाथ से जाता रहेगा. वैसे भी निकट भविष्य में बहुप्रतीक्षित S-400 मिसाइल सिस्टम्स और दूसरे सैन्य हार्डवेयर की आपूर्ति लटक जाएगी. वक़्त पर इनकी डिलिवरी होने से भारत की प्रतिरक्षा क्षमताएं और बढ़ जाती. 

भारत अब तक गुटनिरपेक्षता की नीति पर अमल करता रहा है. दूसरी ओर वैश्विक मंच पर टकरावों से भरी भू-राजनीति का दौर जारी है. साथ ही सैनिक और कूटनीतिक ताक़त रखने वाले मुल्क इनसे जुड़ने को लेकर हिचकिचाहट दिखा रहे हैं.

युद्ध की संभावना

जून 2020 का गलवान प्रकरण चीनी फ़ौज की शातिराना चाल थी. PLA के इस दांव से दौलत बेग ओल्डी तक भारतीय सेना की पहुंच में रुकावट आ सकती थी. इससे उत्तरी सरहदी इलाक़ों में चीन और पाकिस्तान के बीच की भौगोलिक दूरी और कम हो जाती. ग़ौरतलब है कि चीन सियाचिन के उत्तर स्थित शक्सगम घाटी में पहले से ही मज़बूती से जमा है जबकि सियाचिन ग्लेशियर के पूरब में पाकिस्तान की पैठ है. भारतीय प्रतिरक्षा में पल भर की चूक से चीन और पाकिस्तान के बीच की सैन्य साठगांठ पक्की हो जाएगी.  

दोनों पक्षों के सैनिक कमांडरों के बीच अनेक दौर की वार्ताओं के बावजूद PLA लगातार LAC के इर्द-गिर्द अपनी टुकड़ियां और सैनिक साज़ोसामान इकट्ठा करता जा रहा है. ये इस बात का संकेत है कि निकट भविष्य में चीन छोटी मियाद वाला, लेकिन पहले से ज़्यादा सघन सैनिक अभियान छेड़ सकता है.

निश्चित तौर पर चीन की सेना ने यूक्रेन में रूसी कार्रवाइयों पर बेहद बारीक़ी से नज़र टिका कर रखी होगी. रूस का मकसद पूरा होने पर टुकड़ियों को अपने बैरकों में वापस लौटने का फ़रमान सुना दिया जाएगा. हालांकि फ़ौजी कार्रवाई के तक़रीबन तीन हफ़्ते बाद भी यूक्रेन पर सैन्य और सियासी तरीक़े से क़ाबू पाने में रूस कामयाब नहीं हो सका है. इसके विपरीत चीन की नज़र भारतीय भूक्षेत्र पर हमेशा के लिए क़ब्ज़ा जमाने पर है. लिहाज़ा चीन की ओर से बेहद तेज़ रफ़्तार वाली फ़ौजी कार्रवाई की कोशिश रहेगी. भारतीय सरहद पर हमला करने और क़ब्ज़ा जमाने का ये पूरा संभावित चीनी अभियान 2 या 3 दिनों से ज़्यादा का नहीं होगा. इस तरीक़े से चीन बाद में होने वाली कूटनीतिक प्रक्रिया में अपना दबदबा जमा सकेगा.  

चीन की नज़र भारतीय भूक्षेत्र पर हमेशा के लिए क़ब्ज़ा जमाने पर है. लिहाज़ा चीन की ओर से बेहद तेज़ रफ़्तार वाली फ़ौजी कार्रवाई की कोशिश रहेगी. भारतीय सरहद पर हमला करने और क़ब्ज़ा जमाने का ये पूरा संभावित चीनी अभियान 2 या 3 दिनों से ज़्यादा का नहीं होगा.

यूक्रेन में रूस बेहद परंपरागत तरीक़े की जंग लड़ रहा है. रूसी हथियारबंद दस्तों, यांत्रिक बलों और सेना की पैदल टुकड़ियों के पास यूक्रेन में घुसने और वहां से निकलने के कई रास्ते मौजूद हैं. रूस की वायु सेना भी लगातार उनकी मदद कर रही है. इसके मुक़ाबले LAC के आसपास का भूगोल और जलवायु बहुत बड़ी रुकावट हैं. वहां वाहनों पर सवार सैन्य बलों के लिए प्रवेश और निकास के बेहद सीमित रास्ते हैं. दूसरी ओर पैदल सेना के लिए पहाड़ों के ऊंचे घुमावदार रास्ते जानलेवा जाल साबित हो सकते हैं. साथ ही वायु सेना के लिए भी कई तरह की रुकावटें मौजूद हैं. लिहाज़ा इस इलाक़े में परंपरागत सैन्य कार्रवाइयों में क़ुदरत और आधुनिक तकनीक की मदद की दरकार होगी. 

पीपल्स लिबरेशन आर्मी के हथकंडे

PLA को बख़ूबी इन हक़ीक़तों की जानकारी है. ऐसे में वो ज़ाहिर तौर पर शातिराना हथकंडे अपनाएगी. इनमें से सबसे पहला हथकंडा है पानी को हथियार की तरह इस्तेमाल करना. 2020 में गलवान संकट के दौरान चीन द्वारा गलवान नदी के बहाव को अपने क़ाबू में करने की ख़बरें आई थीं. दूसरी ओर ब्रह्मपुत्र नदी पर भी चीन पहले से ही पांच बांध बना रहा है. ये नदी आगे चलकर अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है. सौ बात की एक बात ये है कि परंपरागत सैनिक कार्रवाई से पहले चीन की सेना पानी को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है. इसके तहत भारत की तैनाती वाले इलाक़ों को बाढ़ में डुबोया जा सकता है या नदी के निचले बहाव वाले इलाक़ों में जानबूझकर सूखा पैदा किया जा सकता है या फिर पानी को शैतानी तरीक़े से प्रदूषित किया जा सकता है. यहां सवाल ये है कि क्या भारत भविष्य में चीन द्वारा पानी के ज़रिए छेड़ी जानी वाली जंगों से ख़ुद का बचाव कर सकता है? इस सवाल का जवाब जानबूझकर पैदा किए जाने वाले बाढ़ जैसे हालात से निपटने के क़ाबिल बुनियादी ढांचा खड़ा करने में छिपा है. सामरिक नज़रिए से ये समझना भी ज़रूरी है कि सेना की विभिन्न शाखाओं को इकट्ठा करने की नीति की कुछ सीमाएं हैं. इलाक़े में मौजूद जल संसाधनों से जुड़े आंकड़ों को साझा करने के लिए चीन से राजनयिक स्तर की क़वायद ज़रूरी है. इसके साथ ही चीन द्वारा पानी को बांध बनाकर रोके जाने की कोशिशों के ख़िलाफ़ भारत को क़ानूनी विकल्पों की भी तलाश करनी चाहिए.   

परंपरागत सैनिक कार्रवाई से पहले चीन की सेना पानी को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है. इसके तहत भारत की तैनाती वाले इलाक़ों को बाढ़ में डुबोया जा सकता है या नदी के निचले बहाव वाले इलाक़ों में जानबूझकर सूखा पैदा किया जा सकता है

PLA की तरफ़ से दूसरा वार समान रूप से ग़ैर-परंपरागत दायरों में भी किया जा सकता है. इस सिलसिले में हाइब्रिड, ग्रे-ज़ोन और झूठी सूचनाओं का इस्तेमाल हो सकता है. इनमें साइबर हमले, इलेक्ट्रॉनिक जंग और मनोवैज्ञानिक युद्ध शामिल हैं. चीन इन हथकंडों के इस्तेमाल से भारत के कमांड, कंट्रोल, संचार, कंप्यूटरों, ख़ुफ़िया तंत्र, निगरानी और टोही (C4ISR) व्यवस्थाओं को कमज़ोर कर सकता है. इससे मैदान-ए-जंग को लेकर भारतीय सेना की समझ भटक सकती है. साथ ही जवाबी हमला करने की क़ाबिलियत भी घट सकती है. इन हथकंडों के इस्तेमाल से चीनी सेना भारत की तमाम सरकारी संस्थाओं को भी ठप कर सकती है. इससे कूटनीतिक प्रतिक्रिया जताने की क्षमता भी कुंद पड़ सकती है. भारत के लिए ऐसे हालात बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं.

भारतीय सेना परंपरागत सैन्य कार्रवाइयों से निपटने में माहिर हो चुकी है. वो चीनी फ़ौज को आगे बढ़ने से रोक सकती है. साथ ही LAC के आरपार ऊंचाई वाले इलाक़ों पर अपना दबदबा भी क़ायम कर सकती है. भारतीय फ़ौज बिना संपर्क वाले युद्ध लड़ने की क़ाबिलियत भी जुटा रही है. हालांकि, चीन के साथ ये महज़ आंकड़ों का खेल नहीं होगा बल्कि उसके साथ जंग में तकनीक का भी भरपूर इस्तेमाल होगा. भारत सरकार को अहम सैन्य बुनियादी ढांचों के निर्माण में तेज़ी लानी होगी. साथ ही ग़ैर-परंपरागत युद्ध लड़ने की क्षमताओं को भी बढ़ाना होगा. भविष्य में जंग की नौबत आने पर हर दौर में इनसे मदद मिल सकेगी.  

भारतीय फ़ौज बिना संपर्क वाले युद्ध लड़ने की क़ाबिलियत भी जुटा रही है. हालांकि, चीन के साथ ये महज़ आंकड़ों का खेल नहीं होगा बल्कि उसके साथ जंग में तकनीक का भी भरपूर इस्तेमाल होगा.

हाल ही में थल सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने चिंता जताते हुए कहा था कि भारत पहले से ही इनमें से कुछ चुनौतियों से दो-चार हो रहा है. थल सेना के उप प्रमुख ले. जनरल मनोज पांडे ने भी “भारत के दुश्मनों के सामरिक मकसदों को नाकाम करने के लिए बचाव के भरोसेमंद उपाय तैयार करने” की ज़रूरत पर बल दिया था. दोनों ही सैन्य अधिकारियों के बयान अहम हैं. भारत अपने सशस्त्र बलों का एकीकृत थिएटर कमांड तैयार कर रहा है. साथ ही सामरिक अहमियत वाला बुनियादी ढांचा भी खड़ा किया जा रहा है. इसके अलावा बिना संपर्क में आए युद्ध लड़ने की क्षमता भी तैयार की जा रही है. ग़ौरतलब है कि चीन इन तमाम पहलुओं में भारत से आगे निकल चुका है. सुरक्षा के मोर्चे पर उभरती नित नई चुनौतियों से निपटने के लिए भारत को अपनी रक्षा तैयारियों की ख़ामियों को जल्द से जल्द दूर करना होगा.

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