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रणनीतिक रूप से स्थित इन देशों में, चयनात्मक रूप से की गई यह तैनाती, चीन की सॉफ्ट पॉवर और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से जुड़ी कोशिश है.
अफ्रीकी देशों के साथ चीन का जुड़ाव महत्वाकांक्षाओं से भरा और जटिल है. अफ्रीकी देशों और चीन के बीच तेज़ी से बढ़ रही इस सक्रियता के कई अलग-अलग पहलू हैं, जैसे- एजेंडा, क्षेत्र और कौन से देश चीन की सूची में शामिल हैं. जिस तरह से यह घटनाक्रम विकसित हो रहा है, वह एक कथानक के रूप में अपने आप में नायाब है. चीन की भूमिका और अफ्रीकी देशों की ओर उसका झुकाव, भले ही संदेह के घेरे में हो लेकिन अफ्रीकी महाद्वीप और अफ्रीका के सुरक्षा मामलों में चीन के पर्याप्त प्रभाव को अनदेखा करना मुश्किल है. हथियारों की सप्लाई से लेकर, शांति अभियानों में सेना की तैनाती, संघर्ष के मामलों में मध्यस्थता और सैन्य प्रशिक्षण में भागीदारी तक, अफ्रीका और चीन के बीच भागीदारी और सक्रियता का दायरा कई गुना बढ़ गया है. इसके अलावा, चीन भी चतुराई से समुद्री डकैती से बचाव के उपायों का इस्तेमाल कर और शांति मिशन में भागीदारी के ज़रिए ख़ुद को एक ज़िम्मेदार ताक़त के रूप में पेश कर रहा है, और उप-सहारा अफ्रीका में अपने व्यापक रणनीतिक हितों को आगे बढ़ाने में जुटा है.
चीन की भूमिका और अफ्रीकी देशों की ओर उसका झुकाव, भले ही संदेह के घेरे में हो लेकिन अफ्रीकी महाद्वीप और अफ्रीका के सुरक्षा मामलों में चीन के पर्याप्त प्रभाव को अनदेखा करना मुश्किल है.
साल 2020 में संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में चीन की भागीदारी की 30 वीं वर्षगांठ है. इस अवधि में, चीनी सशस्त्र बलों ने 40,000 से अधिक सेवा सदस्यों को 25 संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों पर भेजा है, जिनमें से अधिकांश अफ्रीकी देशों में तैनात रहे हैं. चीन अब शांति स्थापना और संयुक्त राष्ट्र सदस्यता शुल्क दोनों स्तरों पर, दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है. ज़्यादातर मामलों में, अफ्रीका में चीन कर्मचारियों की भागीदारी, चिकित्सा और इंजीनियरिंग क्षेत्रों में सहायता से जुड़ी है, लेकिन अब चीनी कार्यदल सैन्य दस्तों, सुरक्षा के लिए पैदल सेना के संचालन, मध्यस्थता और संयुक्त राष्ट्र के जनादेश के अनुरुप आम नागरिकों की सुरक्षा से संबंधी कार्रवाई में अधिक सक्रिय भूमिका निभा रहा है.
इन शांति अभियानों के माध्यम से, चीन मानवीय मदद और आम लोगों के हितों की रक्षा करने वाले चैंपियन के रूप में अपनी साख को बढ़ाना चाहता है. बीजिंग यह कार्रवाई, विदेशी हितों की रक्षा के मद्देनज़र कर रहा है, और इसके ज़रिए वह उप-सहारा अफ्रीका में क्षेत्रीय सार्वजनिक वस्तुओं को भी प्रदान करना चाहता है. इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, चीन ने हाल ही में ‘द ब्लू डिफेंसिव लाइन’ नाम की डॉक्यूमेंट्री फिल्म जारी की है, जिसमें युद्धग्रस्त दक्षिण सूडान में स्थानीय शरणार्थी शिविरों की रक्षा करने वाली चीनी शांति सेना की बटालियन का बखान है. इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म का ट्रेलर, शांति और विकास के लिए चीन के ‘ब्लू हेलमेट’ सैनिकों द्वारा किए जा रहे प्रयासों और बलिदानों का वर्णन प्रस्तुत करता है.
चीन ने हाल ही में ‘द ब्लू डिफेंसिव लाइन’ नाम की डॉक्यूमेंट्री फिल्म जारी की है, जिसमें युद्धग्रस्त दक्षिण सूडान में स्थानीय शरणार्थी शिविरों की रक्षा करने वाली चीनी शांति सेना की बटालियन का बखान है.
सीधे तौर पर कहें तो इस ट्रेलर में दिखाया गया है कि कैसे चीनी शांति रक्षक, अफ्रीकी स्थानीय लोगों के साथ घुलमिलकर काम करते हैं. चीनी सेना का यह भव्य और परोपकारी रूप जब दृश्य माध्यम से अफ्रीकी लोगों के बीच पहुंचता है, तो सहानुभूति पैदा करता है और स्थानीय लोग, चीन के प्रति कृतज्ञता की भावना से भर जाते हैं. हर संभव क़दम पर, चीन अपनी छोटी से छोटी उपलब्धियों को भी लोगों के बीच विज्ञापित करने को उत्सुक है, और इसे एक रणनीति के रूप में इस्तेमाल करता है. यह अफ्रीका में चीन के द्वारा किए जा रहे, विकास की कहानी का एक ऐसा उदाहरण है, जो उसके पश्चिमी समकक्षों से अलग है. चीन अपनी विकास यात्रा की कहानी को एक ताकत के रूप में अच्छी तरह पहचानता है. वो कहानी जो एक एक ग़रीब देश से अमीर देश बनने की दास्तान बयां करती है, और आर्थिक प्रगति की यह कहानी चीन, अफ्रीकी देशों को बेचना चाहता है.
चीन ने बढ़ती सहायता, बड़े पैमाने पर विकास संबंधी वित्तीय मदद, और सैन्य उपस्थिति में लगातार वृद्धि कर पश्चिमी देशों द्वारा अफ्रीकी देशों में छोड़े गए खालीपन को भरने में कामयाबी हासिल की है. ख़ासकर ऐसे समय में जब पश्चिमी देश, अफ्रीका में अपने बल और संसाधनों को कम करने का मन बना रहे हैं.
अफ्रीका में चीन की बढ़ती सुरक्षा-सक्रियता कई विचारों और रणनीतियों से प्रेरित है. अफ्रीकी महाद्वीप को लेकर चीन की सुरक्षा मामलों में रुचि अक्सर इसके अफ्रीकी समकक्षों के समान ही है. चीन का दावा है कि एक स्थिर, सुरक्षित और शांतिपूर्ण अफ्रीका से उसे लाभ मिलेगा और ऐसा सुनिश्चित करने के लिए वो हर संभव कोशिश करेगा. अफ्रीकी राज्यों में शांति और स्थिरता के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में मदद करके, बीजिंग अफ्रीका के बढ़ते बाजारों तक निरंतर अपनी पहुंच सुनिश्चित करना चाहता है. अफ्रीकी देश भी सुरक्षा क्षेत्र में चीन की बढ़ती भागीदारी का स्वागत करते हैं, क्योंकि यह हिंसा, असुरक्षा और अस्थिरता के लंबे समय से जारी चक्र को समाप्त करने का एक विकल्प प्रदान करती है, और इस क्षेत्र में अफ्रीकी क्षमता को और बढ़ाने में सहायक है. अफ्रीकी सुरक्षा में चीन की बढ़ती भूमिका उसकी आर्थिक स्थिति और वाणिज्यिक हितों को रेखांकित करती है. यह चीन को अपनी सेना को पेशेवर बनाने में मदद करती है, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के परिचालन और सैन्य क्षमता को बेहतर बनाती है, और इन देशों में उसके विशाल निवेश की रक्षा करती है. इसके अलावा चीन का मकसद यह भी है कि वह इन गतिविधियों के लिए अफ्रीकी महाद्वीप में मौजूद चीनी नागरिकों की सुरक्षा को भी सुनिश्चित कर सके. इसके अलावा, चीन विशुद्ध रूप से वाणिज्यिक लेन-देन से दूर अफ्रीकी देशों के साथ अपने संबंधों को अन्य क्षेत्रों में भी संतुलित करने की कोशिश कर रहा है. बीजिंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि को सुधारना चाहता है और इसके लिए वह अपने साझेदारों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष, एक ज़िम्मेदार, विकासशील और महान शक्ति के रूप में ख़ुद को प्रस्तुत करना चाहता है. इसके ज़रिए वह अपनी अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता बढ़ना चाहता है और यह काम वह अपने अफ्रीकी भागीदारों के ज़रिए पूरा करना चाहता है.
कुल मिलाकर, अफ्रीका से चीन का सुरक्षा मुद्दे पर जुड़ाव, आर्थिक विकास जैसे अन्य लक्ष्यों से जुड़ा हुआ है जिसमें आपूर्ति श्रंखलाओं का विस्तार और बहुपक्षीय मंचों पर अपने राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाना शामिल है, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में अपने प्रभाव को बढ़ाना. गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र की कुल सदस्यता का एक चौथाई हिस्सा अफ्रीकी देशों से आता है.
उप-सहारा अफ्रीका में चीन ऐतिहासिक फिर भी नया सुरक्षा साझेदार है. 1960 के दशक में बीजिंग, तंज़ानियाई सेना के लिए सहायता का प्राथमिक स्रोत था और इससे पहले 1970 के दशक में मुक्ति संघर्षों के दौरान उसने क्षेत्र के कई सत्तारूढ़ दलों का समर्थन किया था, जिसमें ज़िम्बाब्वे में ZANU-PF और मोज़ाम्बिक में FRELIMO शामिल थे. हाल के वर्षों में, चीन की सुरक्षा भागीदारी में दोनों मात्रात्मक और गुणात्मक रूप से वृद्धि हुई है, क्योंकि इसने अपनी द्विपक्षीय सुरक्षा साझेदारी को बढ़ावा दिया है. चीनी निजी क्षेत्र ने इन इलाकों में बहुत सारे सुरक्षा अनुबंध जीते हैं. साथ ही चीन ने मैपिंगा में तंज़ानिया की सेना के लिए 30 मिलियन डॉलर का प्रशिक्षण केंद्र तैयार किया है, इसके अलावा कोविड-19 से निपटने को लेकर भी चीन ने, दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रीय रक्षा बल (South African National Defense Force) को मेडिकल सुरक्षा गियर देने का काम किया है.
फरवरी 2020 तक, चीन के पास डीआरसी, माली, सूडान, दक्षिण सूडान और मध्य अफ्रीकी गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में तैनात 2,000 से अधिक सैनिक और कर्मचारी हैं. चीन अफ्रीकी संघ के शांति और सुरक्षात्मक ढांचे का एक प्रबल समर्थक रहा है. चीन-अफ्रीका सहयोग को लेकर साल 2015 के एफओसीएसी फोरम में, चीन ने ‘अफ्रीकी स्टैंडबाई फोर्स’ और ‘रैपिड रिस्पांस फोर्स’ के गठन के लिए, 100 मिलियन डॉलर की सैन्य सहायता का वादा किया था. पीएलए भी अफ्रीकी देशों में अपने प्रतिनिधित्व का विस्तार कर रहा है. सीएसआईएस में अफ्रीकी कार्यक्रम के निदेशक जुड डेवर्मोंट के अनुसार, पीएलए का अफ्रीका के एक तिहाई देशों में प्रतिनिधित्व है, और इनमें से 75 प्रतिशत देशों के चीन में प्रतिनिधि मौजूद हैं.
नौसेना के क्षेत्र में देखें तो भी, सद्भावना जहाज यात्राओं और मानवीय सहायता के प्रावधान के अलावा, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (पीएलएएन) ने केन्या, तंज़ानिया, जिबूटी और सेशेल्स को मुफ्त चिकित्सा सहायता और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करते हुए “पीस आर्क” नाम से अस्पताल रूपी जहाज तैनात किया है. रणनीतिक रूप से स्थित इन देशों में, चयनात्मक रूप से की गई यह तैनाती, चीन की सॉफ्ट पॉवर और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से जुड़ी कोशिश है.
फरवरी 2020 तक, चीन के पास डीआरसी, माली, सूडान, दक्षिण सूडान और मध्य अफ्रीकी गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में तैनात 2,000 से अधिक सैनिक और कर्मचारी हैं. चीन अफ्रीकी संघ के शांति और सुरक्षात्मक ढांचे का एक प्रबल समर्थक रहा है.
चीनी हथियार और रक्षा उपकरण भी अफ्रीकी राज्यों में बड़े पैमाने पर प्रवेश कर चुके हैं. एसआईपीआरआई द्वारा संकलित आंकड़ों से पता चलता है कि चीन 2015-2019 की अवधि में, उप-सहारा अफ्रीका को हथियारों की आपूर्ति करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश था, जिसमें चीन का हिस्सा, इस क्षेत्र में हो रहे आयात का 19 प्रतिशत था. रूस के पास, राज्यों द्वारा हथियारों के आयात का 36 प्रतिशत और फ्रांस के पास 7.6 प्रतिशत हिस्सा था. नीचे दी गई (तालिका देखें).
क्षेत्र | साल | शीर्ष आपूर्तिकर्ता | शीर्ष प्राप्तकर्ता देश |
उत्तर अफ्रीका | 2014-2018 |
रूस (49%) यूएसए (15%) चीन (10%) फ्रांस (7.8%) जर्मनी (7.7%) |
अल्जीरिया (सबसे बड़ा हथियार आयातक) रूस से 66%, चीन से 13%, जर्मनी से 10% प्राप्त किया मोरक्को-दूसरा सबसे बड़ा आयातक (यूएसए से 62%, फ्रांस से 36% प्राप्त) |
2015-2019 |
रूस (67%) चीन (13%) जर्मनी (11%) |
अल्जीरिया (अकेले उत्तरी अफ्रीकी हथियारों के आयात का 79% हिस्सा है) | |
उप सहारा अफ्रीका | 2014-2018 |
रूस (28%) चीन (24%) यूक्रेन (8.3%) यूएसए (7.1%) फ्रांस (6.1%) |
नाइजीरिया (सबसे बड़ा हथियार आयातक – रूस से 35%, चीन से 21% और संयुक्त राज्य अमेरिका से 15% प्राप्त किया गया) |
2015-2019 |
रूस (36%) चीन (19%) फ्रांस (7.6%) |
अंगोला नाइजीरिया सूडान सेनेगल जाम्बिया |
स्रोत: सिप्री, इंटरनेशनल आर्म्स ट्रांसफर, 2018 , 2019 में रुझान
हालांकि, चीन ने अब तक ज़्यादातर अफ्रीकी देशों को छोटे और हल्के हथियारों का निर्यात किया है, लेकिन चीनी हथियार निर्माताओं ने अब अफ्रीकी देशों को अधिक उन्नत और परिष्कृत हथियार प्रणालियां बेचना शुरू कर दिया है, जिसमें सीएच-3 मानव रहित एरियल वाहन और बोको हराम के खिलाफ नाइजीरियाई अभियानों में सहयोग करने के लिए युद्ध टैंक शामिल हैं. रक्षा उपकरणों और सैन्य हार्डवेयर की चीन से खरीद, अफ्रीकी देशों के लिए आसान उपलब्धता और कम लागत के कारण आकर्षक है.
चीन अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों का उपयोग, वर्तमान और भविष्य में अफ्रीका के सुरक्षा क्षेत्र में, नेतृत्व विकसित करने के लिए भी करता है. साथ ही भविष्य में चीनी कंपनियों के लिए लाभदायक होने वाले संपर्क स्थापित कर नेटवर्क भी विकसित कर रहा है. साल 2018 में, चीन ने 50 अफ्रीकी देशों और अफ्रीकी संघ को मिलाकर, चीन-अफ्रीका रक्षा और सुरक्षा फोरम (China-Africa Defense and Security Forum) में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया, जिससे एक नए, औपचारिक और व्यापक स्तर के संवाद की शुरुआत हुई. ऐसे फ़ोरम चीनी और अफ्रीकी सुरक्षा प्रतिनिधियों को निरंतर चर्चा करने और रक्षा व सुरक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के अवसरों की पहचान करने के लिए एक मंच प्रदान करते हैं.
अफ्रीकी देशों के साथ होने वाले ये सुरक्षा अनुबंध अक्सर व्यापार और निवेश की पहल के साथ बंधे होते हैं. उदाहरण के लिए, जैसे ही ‘द ब्लू डिफेंसिव लाइन’ नामक डॉक्यूमेंट्री का ट्रेलर जारी किया गया, चीन ने हुनान प्रांत में एक नए अफ्रीका-केंद्रित मुक्त व्यापार क्षेत्र की घोषणा की. इससे पहले, चांग्शा शहर ने चीन-अफ्रीका व्यापार एक्सपो की मेज़बानी की थी और कोको के व्यापार को आगे बढ़ाने को लेकर काम किया जा रहा है. ये समानांतर घटनाक्रम महज़ एक संयोग हो सकते हैं, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों के बीच इस तरह के संबंध इस ओर भी इशारा करते हैं, कि चीन की रणनीति कई स्तरों पर संबंधों को आगे बढ़ाने की है. चीन की पेशकश, एक संपूर्ण पैकेज की है, जिसमें हथियारों की बिक्री, सैन्य प्रशिक्षण, एंटी-पाइरेसी ड्रिल, चिकित्सा सहायता, व्यापार और निवेश सौदों के अलावा भी कई तरह के विभिन्न कार्यक्रम शामिल होते हैं.
ये समानांतर घटनाक्रम महज़ एक संयोग हो सकते हैं, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों के बीच इस तरह के संबंध इस ओर भी इशारा करते हैं, कि चीन की रणनीति कई स्तरों पर संबंधों को आगे बढ़ाने की है. चीन की पेशकश, एक संपूर्ण पैकेज की है,
चीन के अंतर्निर्मित सुरक्षा और आर्थिक हित इसे अफ्रीका में पश्चिमी समकक्षों के मुकाबले, महत्वपूर्ण लाभ और अवसर प्रदान करते हैं. यह स्पष्ट है कि अफ्रीका में बढ़ती चीन की सुरक्षा संबंधी भागीदारी को लेकर कोई व्यापक चिंता नहीं है. इसका अर्थ संभवतः यह है कि अफ्रीकी देशों में बढ़ते चीनी हस्तक्षेप को लेकर अभी तक गंभीर रूप से जांच और अवलोकन नहीं किया गया है.
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Abhishek Mishra is an Associate Fellow with the Manohar Parrikar Institute for Defence Studies and Analysis (MP-IDSA). His research focuses on India and China’s engagement ...
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