Published on Sep 30, 2019 Updated 0 Hours ago

शारीरिक व आध्यात्मिक मेल वाला योग भारत की प्राचीन धरोहर है, लेकिन अफसोस कि बात यह है कि यहां निजी या सार्वजनिक क्षेत्र में ऐसी कोई योग संस्था नहीं है, जो सिर्फ कैदियों के लिए काम करे.

कसौटी को योग सिखाने का सिद्धांत कहा जाए

जेलों की ख़राब हालत और क्षमता से अधिक कैदियों को रखे जाने से अपराधियों के साथ जेल अधिकारियों पर भी दबाव बढ़ा है. अक्सर अपराधी जेल से रिहा किए जाने के बाद फिर से जुर्म करते हैं. यह समस्या सिर्फ पिछड़े देशों तक सीमित नहीं है. अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देश भी इससे परेशान हैं. इन देशों में जेल से रिहा होने के बाद फिर से अपराध करने की दर क्रमशः 55 प्रतिशत, 72 प्रतिशत और 44.6 प्रतिशत है. हालिया आंकड़ों के मुताबिक फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, आयरलैंड, नीदरलैंड और स्वीडन में भी इसकी दर 40 प्रतिशत से ज्यादा है.

इसमें कमी लाने के लिए कैदियों को शिक्षित और उनकी साइकोथेरेपी करने और उन्हें स्किल या कौशल सिखाने की जरूरत है ताकि सजा पूरी करने के बाद जब वे जेल से रिहा हों, तब उन्हें रोज़गार मिल सके. देश के कई जेलों में इसके लिए योग की मदद ली जा रही है. योग से स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियों को भी दूर किया जा सकता है. रिसर्च से पता चलता है कि योग करने वालों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और इसकी मदद से आदतें भी बदली जा सकती हैं. इन फ़ायदोंकी वजह से कई पश्चिमी देशों में भी जेल में बंद कैदियों को योग का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. हालांकि, यह काम योजनाबद्ध तरीके से नहीं हो रहा और काफी हद तक यह जेल सुपरिंटेंडेंट की मर्ज़ी पर निर्भर करता है.

रिहाई के बाद नियमित रोज़गार मिले तो कैदी के फिर से अपराध करने की आशंका कम हो जाती है. योग की ट्रेनिंग से कैदियों को रोज़गार का अवसर मिलता है और इससे उनके पुनर्वास का मकसद हासिल किया जा सकता है.

योग और दोबारा अपराध करने के बीच रिश्ता

भारत में पारंपरिक तौर पर कैदियों के पुनर्वास के लिए योग और शिक्षा कार्यक्रमों का इस्तेमाल होता आया है. 201 में तिहाड़ जेल प्रशासन ने कैदियों के लिए योग प्रशिक्षण के सर्टिफ़िकेट कोर्स शुरू किए थे ताकि रिहा होने के बाद उन्हें योग सिखाने का काम मिल सके. 2018 में प्रोजेक्ट संजीवन के तहत दिल्ली में साल भर के अंदर 1,000 से अधिक कैदियों को योग शिक्षक बनने की ट्रेनिंग दी गई. यह प्रोग्राम जेल प्रशासन ने मोरारजी देसाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ योग (MDNIY) के साथ मिलकर शुरू किया था. इसी तरह बिहार में जेल विभाग ने राज्य की 56 जेलों में बंद 48 हजार कैदियों को योग सिखाने के लिए आर्ट ऑफ लिविंग नाम की संस्था के साथ मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (सहमति पत्र) साइन किया है. वहीं, तेलंगाना की उस्मानिया यूनिवर्सिटी की रिसर्च से पता चलता है कि योग और शिक्षा का स्तर सुधरने से रिहा किए जाने के बाद कैदी के फिर से अपराध करने की आशंका घटती है. 2010 में मध्य प्रदेश में जेल अधिकारियों ने एक योजना शुरू की थी, जिसमें तीन महीने का योग का कोर्स पूरा करने पर कैदियों की सजा घटाई जाती थी. जेल अधिकारियों ने बताया कि योग से न सिर्फ कैदियों की फिटनेस में सुधार हुआ बल्कि इससे उनमें हिंसा की प्रवृत्ति घटी और जिंदगी के प्रति सकारात्मक सोच पैदा हुई. इनमें से कुछ कैदी तो रिहा होने के बाद योग शिक्षक बनने की योजना भी बना चुके हैं.

रिहाई के बाद नियमित रोज़गार मिले तो कैदी के फिर से अपराध करने की आशंका कम हो जाती है. योग की ट्रेनिंग से कैदियों को रोज़गार का अवसर मिलता है और इससे उनके पुनर्वास का मकसद हासिल किया जा सकता है. रिहा होने के बाद अक्सर कैदी खुद को समाज में अलग-थलग पाते हैं. योग से इस मामले में भी मदद मिलती है.

जेल में योग की अहमियतः कैदियों में अपराध की पुनरावृति रोकने के अलावा अन्य असर

2016 डेटा रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 1,412 जेल हैं, जिनमें 1,35,638 ऐसे अपराधियों को रखा गया है, जिन्हें अदालत से सजा मिल चुकी है. वहीं, 2015 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में रिहा होने के बाद कैदी के अपराध करने की दर सिर्फ 3 प्रतिशत है. यह दूसरे देशों की तुलना में काफी कम है. इसके बावजूद कैदियों के फिर से अपराध करने की चुनौती बनी हुई है. 2015 में फिर से अपराध करने पर ऐसे 5,576 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. दूसरी तरफ, जेल में कैदियों की भारी भीड़ है. उनमें उनकी क्षमता के 113.7 प्रतिशत कैदी रखे गए हैं. जेलों की ख़राब हालत के कारण कैदियों में तनाव, डिप्रेशन, ख़ुदकुशीऔर हिंसा की भावना पनपती है. 2016 की प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 6,013 कैदी मानसिक बीमारी से पीड़ित पाए गए. 2015 से 2016 के बीच जेल में अप्राकृतिक कारणों से मरने वालों की संख्या दोगुनी हो गई और ख़ुदकुशी के मामले भी बढ़े थे.

आज अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में जेलों में तेजी से योग को संस्थागत रूप में अपनाया जा रहा है. ऐसे में भारत को भी इस मामले में सुनियोजित पहल करने की जरूरत है. जर्नल ऑफ साइकिएट्रिक रिसर्च में ऑक्सफ़ोर्डयूनिवर्सिटी की एक रिसर्च छपी थी. यह शोध ब्रिटेन में योग करने वाले कुछ कैदियों पर की गई थी. इस रिसर्च पेपर में बताया गया था कि जो कैदी जेल में योग कर रहे थे, उनमें खुशमिजाजी बढ़ी थी और तनाव कम हुआ था. इस स्टडी के लिए कैदियों को अचानक चुना गया और उनसे 10 हफ्ते तक योग क्लास अटेंड करने को कहा गया. इस शोध के जो नतीजे सामने आए, उनसे यह बात साबित होती है कि कैदियों के पुनर्वास में योग बड़ी भूमिका निभा सकता है. योग करने से पहले और बाद के लक्षणों का रिसर्च में विश्लेषण किया गया. इसमें तनाव और साइकोलॉजिकल संकेतों की पड़ताल की गई. रिसर्च में क्लास अटेंडेंस, खुद योगाभ्यास करने, उम्र और बुनियादी साइकोमीट्रिक लक्षणों को भी देखा गया. इससे पता चला कि जिन कैदियों ने अधिक योग क्लास अटेंड की थी और जो अपनी तरफ से पहले करके अधिक योगाभ्यास (हफ्ते में पांच बार या उससे अधिक) करते थे, उनमें तनाव का स्तर काफी कम हुआ था. इसलिए, अगर जेल में योग सिखाया जाए तो उससे कैदियों में तनाव घटाने और उनके व्यवहार को सुधारने में मदद मिलेगी. रिसर्च में लिखा गया था कि योग से रिहा होने के बाद कैदियों के फिर से अपराध करने की आशंका भी कम होगी.

वैसे तो कई जेलों में कैदियों को योग सिखाया जाता है, लेकिन यह भी सच है कि जेल अधिकारी इसकी बजाय साइकोथेरेपी को पसंद करते हें. योग और साइकोथेरेपी के लक्ष्य अलग हैं. साइकोथेरेपी से किसी मानसिक मर्ज का इलाज़ होता है, जबकि योग ऐसी समस्या पैदा होने से रोकता है. योग से साइकोथेरेपी का कहीं अधिक असर होता है.

प्रिजन योग प्रोजेक्ट, लिबरेशन प्रिजन योग और द प्रिजन फीनिक्स ट्रस्ट नाम की तीन संस्थाएं सिर्फ कैदियों को योग प्रशिक्षण देने के लिए बनी हैं. प्रिजन योग प्रोजेक्ट की शुरुआत कैलिफ़ोर्नियासे हुई थी और इसके तहत अब अमेरिका की सभी जेलों और कैदियों को योग सिखाने की सेवा दी जाती है. इस प्रोजेक्ट की प्राथमिकताओं में रिहा होने के बाद कैदी को फिर से अपराध करने से रोकना भी शामिल है. प्रिजन फीनिक्स प्रोजेक्ट ब्रिटेन की 84 जेलों में साप्ताहिक आधार पर योग और मेडिटेशन क्लास चलाता है. यह महीने भर में करीब 2,000 कैदियों को सेवा देता है. द प्रिजन फीनिक्स ट्रस्ट के साथ मिलकर की गई ऑक्सफ़ोर्डयूनिवर्सिटी की रिसर्च से पता चला कि जेल में 10 हफ्ते के योग और मेडिटेशन कोर्स से कैदियों के इमोशनल डिस्ट्रेस घटा और वे पहले की तुलना में भावनाओं को नियंत्रित करने में अधिक सफल रहे. इस रिसर्च से यह बात भी सामने आई कि योग का धीरे-धीरे असर होता है. इसलिए जो लोग इनका नियमित तौर पर अभ्यास करते हैं, उन्हें अधिक लाभ मिलता है.

शारीरिक व आध्यात्मिक मेल वाला योग भारत की प्राचीन धरोहर है, लेकिन अफसोस कि बात यह है कि यहां निजी या सार्वजनिक क्षेत्र में ऐसी कोई योग संस्था नहीं है, जो सिर्फ कैदियों के लिए काम करे. वैसे तो कई जेलों में कैदियों को योग सिखाया जाता है, लेकिन यह भी सच है कि जेल अधिकारी इसकी बजाय साइकोथेरेपी को पसंद करते हें. योग और साइकोथेरेपी के लक्ष्य अलग हैं. साइकोथेरेपी से किसी मानसिक मर्ज का इलाज़ होता है, जबकि योग ऐसी समस्या पैदा होने से रोकता है. योग से साइकोथेरेपी का कहीं अधिक असर होता है. अंतरराष्ट्रीय शोध से भी पता चला है कि साइकोथेरेपी जहां बाहरी दबाव की तरह काम करती है, वहीं योग से उसका तुरंत असर होता है.

योग भारत की सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी का ज़रियाबन चुका है. ऐसे में विदेश मंत्रालय दूसरे देशों को इसका प्रशिक्षण देने के लिए संपर्क कर सकता है.

आगे क्या करना होगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 29 अगस्त को ऐलान किया था कि सरकार फिट इंडिया अभियान के तहत देश भर में 12,500 आयुष केंद्र बनाने जा रही है. इनमें से 4,000 केंद्र इस साल के अंत तक तैयार हो जाएंगे. इस अभियान को जेलों तक ले जाना होगा. जेल प्रशासन को आयुष केंद्रों के साथ मिलकर योग को कैदियों तक पहुंचाने की व्यवस्था करनी चाहिए. उन्हें MDNIY के साथ साझेदारी करने और दिल्ली के संजीवन प्रोजेक्ट से सबक सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. जो अपराधी योग का प्रशिक्षण ले चुके हैं, उनकी नियुक्ति वहां योग शिक्षक के रूप में करनी चाहिए. इसकी वजह यह है कि पूर्व अपराधी कैद से जुड़ी चुनौतियों को समझते हैं और इसलिए वे मौजूदा कैदियों को बेहतर सलाह दे पाएंगे. योग भारत की सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी का ज़रियाबन चुका है. ऐसे में विदेश मंत्रालय दूसरे देशों को इसका प्रशिक्षण देने के लिए संपर्क कर सकता है. लोगों को जेल से बाहर रखना और दोबारा अपराध को अंजाम देने से रोकना किसी एक देश नहीं बल्कि पूरी दुनिया के हित में है.


लेखक ORF नयी दिल्ली में रिसर्च इंटर्न हैं.

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