भारत के अलग-अलग हिस्सों में इलेक्ट्रिक दो-पहिया वाहनों में आग की कई घटनाओं ने न सिर्फ़ सरकार बल्कि पूरे दो-पहिया वाहन उद्योग के लिए ख़तरे की घंटी बजा दी है. इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि आग की ये घटनाएं अलग-अलग मॉडल के इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर में देखी गई है. आग लगने के सबसे ताज़ा मामले ओकिनावा और ओला के इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर में सामने आए हैं. ये डर वास्तविक है कि आग लगने की ऐसी घटनाओं की वजह से टू-व्हीलर ख़रीदने वाले संभावित ग्राहक दहशत में आ जाएंगे क्योंकि कुछ मामलों में तो लोगों की मौत भी हो चुकी है. तमिलनाडु में हुई हाल की एक घटना में चार्जिंग के लिए लगाए गए एक टू-व्हीलर से शुरू हुई आग के धुएं में दम घुटने से एक व्यक्ति और उनकी बेटी की मौत हो गई. ये डर बेबुनियाद नहीं है क्योंकि भारत के मोटर वाहन (ऑटोमोटिव) उद्योग को अभी भी याद है कि ग़लत वायरिंग की वजह से लगी आग की कुछ घटनाओं के कारण टाटा नैनो सुरक्षा के मामले में किस तरह बदनाम हुई थी.
इन गाड़ियों में आग कैसे लगती है? इलेक्ट्रिक दो-पहिया गाड़ियां ज़्यादातर लिथियम-आयन बैटरी से चलती हैं जिनमें सैकड़ों बैटरी सेल होती हैं. बैटरी में आग लगने का सबसे सामान्य कारण इन सेल में ‘थर्मल रनवे’ है. सामान्य हालात में एक सेल का तापमान बढ़ता है लेकिन ख़राब परिस्थितियों में ज़्यादा तापमान की वजह से दबाव बढ़ने पर सेल में दरार आ जाती है और इसकी वजह से तेज़ी से अगल-बग़ल की सेल का तापमान भी बढ़ने लगता है. इसके बाद इन सैकड़ों सेल के तापमान में बढ़ोतरी की वजह से थर्मल रनवे जैसी घटना होती है जिससे आग लग जाती है.
लिथियम सबसे हल्की धातुओं में से एक है जिसके कारण इसका इस्तेमाल उन उद्योगों के लिए बेहद उपयुक्त है जहां वज़न महत्वपूर्ण है. लिथियम-आयन बैटरी के इस्तेमाल का विचार कई दशकों से होता आ रहा है लेकिन इसको काम-काज के योग्य विकसित करने में लंबा वक़्त लग गया. 2019 में वैज्ञानिक जॉन बी. गुडइनफ, एम. स्टेनली विटिंघम और अकीरा योशिनो को बैटरी के रूप में लिथियम को इस्तेमाल के योग्य बनाने की उनकी रिसर्च के लिए रसायन शास्त्र के नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. आज लिथियम बैटरी हमारे चारों ओर दिखती है. मोबाइल फ़ोन, लैपटॉप और बच्चों के खिलौनों से लेकर इलेक्ट्रिक गाड़ियों तक- हर रूप और आकार में लिथियम बैटरी मौजूद हैं.
इलेक्ट्रिक दो-पहिया गाड़ियां ज़्यादातर लिथियम-आयन बैटरी से चलती हैं जिनमें सैकड़ों बैटरी सेल होती हैं. बैटरी में आग लगने का सबसे सामान्य कारण इन सेल में ‘थर्मल रनवे’ है.
लेकिन इन वैज्ञानिकों के द्वारा की गई रिसर्च के साथ-साथ लिथियम के औद्योगिक खनन और लिथियम सेल के उत्पादन के बावजूद लिथियम बैटरी अभी भी एक समस्या बनी हुई है. कुछ ग़लती तो घटिया बैटरी में है क्योंकि बैटरी के लिए आवश्यक दूसरी धातुओं और उपकरणों में मौजूद प्रदूषक परेशानी पैदा करते हैं लेकिन सिर्फ़ ‘ख़राब’ बैटरी पर आरोप लगाना ठीक नहीं होगा. सैमसंग के मोबाइल फ़ोन और सोनी वायो लैपटॉप, जिनके भीतर बेहतरीन लिथियम बैटरी लगी थी और इसके बावजूद जिनमें हवाई यात्रा के दौरान आग लगी थी, का तजुर्बा साबित करता है कि दबाव में कोई भी लिथियम बैटरी जोखिम बन सकती है. लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि बैटरी के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के मानदंडों के बावजूद ख़राब क्वालिटी की बैटरी और चार्जर को अभी भी भारत में चलने वाले इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर में लगाया जा रहा है. ये विनाशकारी हो सकता है. इनमें से कई टू-व्हीलर, ख़ास तौर पर कम रफ़्तार वाले टू-व्हीलर, उन कंपनियों द्वारा बनाए जाते हैं जिनके पास उत्पादन की बेहद कम जानकारी है या बिल्कुल भी नहीं है. वो सिर्फ़ चीन से मंगाई गई किट को जोड़कर टू-व्हीलर तैयार करती हैं.
थर्मल रनवे, जिसे आसान शब्दों में बहुत ज़्यादा तापमान कहा जा सकता है, को शुरुआती चरण में पर्याप्त कूलिंग (ठंडा करना) और सेल मैनेजमेंट के साथ नियंत्रित किया जा सकता है. सेल मैनेजमेंट ऐसा तरीक़ा है जिसको कई महंगी चीज़ों में लिथियम बैटरी के उपयोग में अपनाया गया है जिनमें महंगी कार के साथ-साथ महंगे लैपटॉप और मोबाइल भी शामिल हैं. सेल मैनेजमेंट के दौरान असामान्य गतिविधियों के लिए सेल के समूहों पर नज़र रखी जाती है और जैसे ही तापमान बढ़ने लगता है तो बैटरी का वो हिस्सा अपने-आप बाक़ी सिस्टम से अलग हो जाता है. इसके अलावा बेहतर कूलिंग सिस्टम इलेक्ट्रिक गाड़ियों को ज़्यादा कुशल ढंग से अपने-आप ठंडा होने में मदद करता है. ये हैरानी की बात नहीं है कि कई इलेक्ट्रिक गाड़ियों में पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों के मुक़ाबले ज़्यादा बढ़िया कूलिंग सिस्टम होता है. लेकिन थर्मल रनवे से बचाने वाले ये दोनों ही उपाय महंगे हैं. कूलिंग सिस्टम के मामले में तो ये जटिल भी है. यही वजह है कि भारत में बिकने वाले ज़्यादातर इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर में न सिर्फ़ संदिग्ध लिथियम सेल होते हैं बल्कि वो केवल एयर-कूल्ड (हवा से ठंडा होने वाले इंजन) भी होते हैं.
लेकिन पर्याप्त कूलिंग सिस्टम और सेल मैनेजमेंट ही ख़राब हालात नही बनाते हैं. जो बात इस पूरे हालात को ख़राब बनाती है वो है भारत का गर्म मौसम. चार्ज और डिस्चार्ज होते वक़्त बैटरी गर्म हो जाती है. इस चीज़ को मोबाइल फ़ोन में भी महसूस किया जा सकता है क्योंकि उनमें भी लिथियम-आयन बैटरी का इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि मोबाइल फ़ोन में इस्तेमाल होने वाली बैटरी में टू-व्हीलर की बैटरी से अलग प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है. आप महसूस कर सकते हैं कि लंबे समय तक जब आप मोबाइल फ़ोन पर बात करते हैं तो उसकी बैटरी गर्म हो जाती है. उदाहरण के लिए, एप्पल के आईफ़ोन या महंगे एंड्रॉयड फ़ोन जब काफ़ी गर्म हो जाते हैं तो वो सेल्फ-प्रोटेक्ट मोड में चले जाते हैं यानी ख़ुद को बचाते हैं. अंदरुनी तापमान एक निर्धारित सीमा से ज़्यादा होने पर ये फ़ोन ख़ुद को चार्ज करना बंद कर देते हैं.
सैमसंग के मोबाइल फ़ोन और सोनी वायो लैपटॉप, जिनके भीतर बेहतरीन लिथियम बैटरी लगी थी और इसके बावजूद जिनमें हवाई यात्रा के दौरान आग लगी थी, का तजुर्बा साबित करता है कि दबाव में कोई भी लिथियम बैटरी जोखिम बन सकती है.
बैटरी को जल्दी ठंठा करना नामुमकिन
आप अपने फ़ोन को हमेशा बेहद आसानी से अपनी जेब में रख सकते हैं लेकिन भारत की गर्मी और धूल में चलने वाले इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर के साथ भी क्या ऐसा है? टू-व्हीलर के मामले में ऐसा नहीं है और अगर आपको कहीं छांव मिलती भी है तो उससे फ़ायदा नहीं है क्योंकि उत्तर और मध्य भारत के कुछ हिस्सों में मई और जून के महीनों में रात के वक़्त भी तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा हो सकता है. जो बैटरी चार्ज हो रही है या जिसका तुरंत काफ़ी ज़्यादा इस्तेमाल किया गया है, उसको इतनी जल्दी ठंडा करना नामुमकिन है. अगर इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर, ख़ास तौर पर संदिग्ध बैटरी और बिना थर्मल मैनेजमेंट सिस्टम के साथ सस्ते दो-पहिया वाहनों, की संख्या बढ़ती है तो ये एक बड़ी समस्या बन सकती है. ये ऐसी परेशानी है जिसका सामना चीन ने 2016-2018 के दौरान इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर के इस्तेमाल के शुरुआती दिनों में किया था. उस वक़्त तकरीबन हर रोज़ चीन में इलेक्ट्रिक गाड़ियों में आग लगने के मामले सामने आते थे, ख़ास तौर पर अंदरुनी चीन के गर्म शहरों जैसे कि चोंगकिंग में.
वैसे अभी भी सफलता की उम्मीद बनी हुई है. गैलेक्सी डिवाइस के इर्द-गिर्द सैमसंग ने अपनी प्रतिष्ठा फिर से स्थापित की है. कुछ वर्षों तक गैलेक्सी फ़ोन को लेकर हवाई अड्डों और एयरलाइंस के द्वारा लगातार की गई घोषणाओं के बावजूद सैमसंग ने गैलेक्सी को बेहद सुरक्षित बना दिया है. इसी तरह लैपटॉप उद्योग ने भी कूलिंग पैड जैसे समाधान पर काम किया है और ऊर्जा इस्तेमाल के मामले में लैपटॉप को ज़्यादा दक्ष बनाया है जिसकी वजह से लैपटॉप अब उतना गर्म नहीं होता. इसके अलावा, डिवाइस में मौजूद स्मार्ट सॉफ्टवेयर और संतुलित सेंसर उसे ज़्यादा गर्म होने से रोकते हैं और इस तरह थर्मल रनवे की आशंका नहीं रहती है. महत्वपूर्ण बात यह है कि ये समाधान महंगे होंगे लेकिन अगर भारत में कार्बन के उत्सर्जन को कम करना है तो हमें ये समझना होगा कि हम एक गर्म देश में रहते हैं और इलेक्ट्रिक गाड़ियों के हिसाब से गर्मी महत्वपूर्ण है.
विकास के ऊपर सुरक्षा को प्राथमिकता
सवाल यह है कि इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर के लिए विकास का एक ऐसा रास्ता हम कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं जिसमें अंधाधुंध विकास के ऊपर सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए? इलेक्ट्रिक गाड़ियों का इकोसिस्टम, ख़ास तौर पर टू-व्हीलर का, अभूतपूर्व रफ़्तार से विकसित हुआ है. कुछ अनुमानों के मुताबिक़ 2026 तक इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर की उत्पादन क्षमता, जो कि वर्तमान में 5 लाख से कम है, बढ़कर 3 करोड़ हो सकती है. उत्पादन क्षमता में ये तेज़ बढ़ोतरी कुछ शर्तों की क़ीमत पर होने की उम्मीद है जो आईसीई (इंफॉर्मेशन, कम्युनिकेशन एंड एंटरटेनमेंट) इकोसिस्टम के काफ़ी ज़्यादा नियमित विकास के दौरान भी दिखा था. लेकिन विकास की ये रफ़्तार ही इस उद्योग के लंबे वक़्त तक टिकने के लिए ख़तरा है. केंद्र सरकार की तरफ़ से तुरंत कार्रवाई के रूप में एक कमेटी बनाई जाए जो ओकिनावा और ओला के इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर में आग की दो घटनाओं की जांच करे. ये महत्वपूर्ण होगा कि इस तरह की छानबीन निष्पक्ष ढंग से हो और इनके आधार पर मज़बूत सिफ़ारिशें की जाए जिनका पालन हर हाल में ऑरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर (ओईएम) करें और नहीं मानने पर उन पर भारी जुर्माना लगे. सबसे सख़्त कार्रवाई होगी उस वक़्त तक सभी प्रभावित मॉडल को वापस लेना जब तक कि सबसे तात्कालिक मुद्दों को सुलझाया नहीं जाता. लेकिन ये क़दम अलोकप्रिय होने की उम्मीद है क्योंकि इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर की तेज़ बढ़ोतरी के पीछे सरकार की तरफ़ से दिया गया प्रोत्साहन एक बड़ा कारण रहा है. हाल में भारी उद्योग विभाग (डीएचआई) ने फेम-II (फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक एंड हाइब्रिड व्हीकल्स इन इंडिया) योजना के तहत इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर को मुहैया कराए गए प्रोत्साहनों को बढ़ाया है. ऐसे में सरकार नहीं चाहेगी कि वो कोई ऐसा कठोर क़दम उठाए जिससे ये उद्योग लड़खड़ाने लगे.
आप अपने फ़ोन को हमेशा बेहद आसानी से अपनी जेब में रख सकते हैं लेकिन भारत की गर्मी और धूल में चलने वाले इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर के साथ भी क्या ऐसा है?
ज़्यादा वास्तविक बात ये है कि नीति बनाने वाले अब पहले से मज़बूत निगरानी प्रणाली लागू करें ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि गाड़ियों में सभी तरह की बैटरी मौजूदा मानकों के अनुसार हों. वैसे तो किसी भी गाड़ी को सर्टिफिकेट देने का काम छोटे सैंपल के आधार पर किया जाता है लेकिन वास्तविकता ये है कि एक जैसी उत्पादन प्रक्रिया नहीं होने के कारण कुछ गाड़ियों में गड़बड़ी हो सकती है, ख़ास तौर पर तब जब तेज़ गति से उत्पादन के लिए उचित प्रक्रिया से समझौता किया जाए. इसके अलावा बेहद असरदार कूलिंग तकनीक के ज़्यादा इस्तेमाल के लिए मानदंड निर्धारित करने की आवश्यकता है. अगर इसकी वजह से गाड़ी की लागत में बढ़ोतरी होती है तो इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे इन गाड़ियों में उपभोक्ताओं का भरोसा बहाल होता है.
सरकार के हस्तक्षेप के अलावा हम ये उम्मीद भी कर सकते हैं कि उत्पादक ख़ुद इस तजुर्बे से सीखेंगे और अपने नज़रिए और व्यवहार में बदलाव लाएंगे. ज़ोर इस बात पर नहीं होना चाहिए कि सबसे ज़्यादा उत्पादन की क्षमता कौन हासिल कर सकता है बल्कि ज़ोर इस पर हो कि सबसे सुरक्षित उत्पादन की प्रक्रिया किसके पास है.
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