Published on May 09, 2018 Updated 0 Hours ago

आक्रामकता से आज आप नेतृत्व नहीं हासिल कर सकते हैं। एशिया की तस्वीर को बदलना तो शी को चाहिए थी पर फिलहाल ट्रंप ऐसा करते दिख रहे हैं।

शी नहीं, ट्रंप बदल रहे हैं एशिया की तस्वीर

चीन और अमेरिका दुनिया के दो बड़े देश हैं जो एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था में भरोसा करते हैं और उसी के हिसाब से काम भी करते हैं। इन्हीं दोनों पाटों के बीच फंसे एशिया में हाल ही के दिनों में राजनीतिक⎯रणनीतिक⎯आर्थिकvसैन्य बदलाव दोनों देशों के बीच शक्ति संघर्ष के एक और चरण के तौर पर सामने आए हैं। चीन के बहुआयामी प्रमुख नेता शी जिनपिंग के प्रभाव क्षेत्र में शक्ति संघर्ष की बाजी का यह दौर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नाम है।

दो समीकरणों में बदलाव सामने आए हैं – उत्तर और दक्षिण कोरिया, जिसकी यात्रा तो शुरू हो गई है, लेकिन मंज़िल अभी अस्पष्ट है; और भारत⎯चीन, जिसकी नींव रख दी गई है पर अभी इमारत बनने का इंतज़ार है। ऐसा लगता है कि इन्हीं बदलते समीकरणों के चलते (भारत⎯पाकिस्तान) के तीसरे समीकरण के लिए बीज बो दिए गए, हालांकि इसे लेकर हमें उम्मीद कम ही है।

किम कभी भी कुछ भी अप्रत्याशित कर सकते हैं। इसलिए अभी यह देखना बाकी है कि जब वे अपने परमाणु संयंत्रों को दुनिया के मीडिया के सामने खोलते हैं तो उस समय हालात क्या करवट लेते हैं।

पहले, उत्तर कोरिया के सुप्रीम नेता किम जोंग उन की बात करते हैं। उन्होंने 27 अप्रैल को परमाणु मुक्त होने तथा दक्षिण कोरिया के साथ शांति जैसी अविश्वसनीय और अत्यंत चर्चित घोषणाएं कीं। इन घोषणाओं में दक्षिण कोरिया के साथ हाथ से हाथ मिलकार एक भाषा, एक संस्कृति, एक इतिहास, एक टाइम ज़ोन और एक राष्ट्र की ओर बढ़ने जैसी बातें भी शामिल थीं। यह ट्रंप के किम तथा शी दोनों पर बनाए गए दबाव का नतीजा था। यह महत्वपूर्ण है कि किम सफेद झंडा लहराते हुए पहले सामने नहीं आए बल्कि उन्होंने खुलकर सामने आने का वह समय चुना जब दूसरी ओर इस संबंध में ट्रप के ट्वीट आ रहे थे।

पर किम कभी भी कुछ भी अप्रत्याशित कर सकते हैं। इसलिए अभी यह देखना बाकी है कि जब वे अपने परमाणु संयंत्रों को दुनिया के मीडिया के सामने खोलते हैं तो उस समय हालात क्या करवट लेते हैं। सवाल ये भी है कि क्या किम अंतत: उत्तर कोरिया में संपन्नता लाने वाले नेता बनेंगे?

विश्न के आर्थिक विकास का केंद्र पूर्व की ओर स्थानांतरित हो रहा है। ऐसे में शी को इस बात का अहसास होना चाहिए हालांकि चीन को इससे सबसे ज्यादा लाभ होगा लेकिन अब नई धुरी चीन नहीं बल्कि वह क्षेत्र (एशिया) है जिसमें चीन स्थिति है और दुनिया का वह हिस्सा है (पश्चिम) जहां उसके विकास का स्त्रोत है।

दूसरा मामला है भारत⎯चीन के सीमाकरणों में परिवर्तन का। एक हद तक इसे जरूरत से ज्यादा महत्व भी दिया जा रहा है। ट्रंप ने चीन के साथ व्यापार युद्ध यानी ट्रेड वॉर की शुरूआत की और उसी समय दुनिया के दो सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों ने अपने सेनाओं को पृष्ठभमि में रखते हुए आपसी भरोसे की कमी को दूर का फैंसला किया। ट्रंप द्वारा चीन के खिलाफ आरंभ की गई ट्रेड वॉर भारतvचीन के बीच इस नए समीकरण का आधार भले ही न हो पर इसका इन कदमों से करीबी संबंध तो है। हालांकि यहां एक मुख्य मसला है चीनी सीपीईसी के

भारतीय क्षेत्र से गुजरने के कारण भारत की सार्वभौमिकता का उल्लंघन होता है और इस मसले से अभी निपटा नहीं जा सका है। चीन के लिए तेज गति से आर्थिक विकास कर रहा भारत एक स्वाभाविक भागीदार है; भारत के लिए विशाल और शक्तिशाली चीन एक जरूरी सहयोगी है। हम 27⎯28 अप्रैल को दोनो देशों के बीच हुई बैठकों को प्रतीकात्मक भर नहीं मान रहे हैं। इस बार इन बैठकों में संदेश देने से अधिक भी कुछ था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुलकर चीन के साथ संबंधों की बाज़ी पर अपने दांव लगा रहे हैं और वैसे गेंद अब शी के पाले है। क्या दोनो नेताओं ने ईस्ट लेक के शांत पानी पर जो यात्रा की उसका नतीजा सैन्य और रणनीतिक मोर्चे पर शांति के रूप में सामने आएगा ताकि व्यापार और आतंकवाद से जुड़े ज्यादा जरूरी मुद्दों पर दोनो पक्ष चर्चा कर सकें।

तीसरा समीकरण, भारत और पाकिस्तान के बीच शांति की उम्मीद से जुड़ा है। विदेशी राजनयिक यह उम्मीद कर रहे हैं कि दक्षिण और उत्तर कोरिया की तर्ज पर भारत⎯पाक संबंधों में भी शांति और सुलह की ओर कदम बढ़ाने के प्रयास होंगे। ट्रंप ने एक और पाकिस्तान को सैन्य मदद समाप्त करके दबाव बनाया है, दूसरी ओर अमेरिका ने पाकिस्तान के नए रहनुमा चीन को व्यापार व बौद्धिक संपदा उल्लंघन पर तीखी प्रक्रिया देकर चीन पर दबाव बनाया है। इससे नए समीकरण बन रहे हैं। शी को अपने कदम पीछे हटाने पड़े हैं ताकि उन्हें फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के कार्यकाल का नेतृत्व मिल सके। चीन और अमेरिका की इस रससाकशी में पाकिस्तान अपनी ही सरजमीं पर एक मूक दर्शक की तरहं खड़ा है ।आतंकवाद को संरक्षण देने वाले पाकिस्तान को सोचना पड़ रहा है कि उसे चीन द्वारा मिल रहा समर्थन अमेरिका और अंतराष्ट्रीय दबाव के दबाव के चलते कब तक जारी रह पाएगा।

सितंबर में संयुक्त सेना अभ्यास के बावजूद भारत⎯पाकिस्तान संबंधों में बदलाव दूर की कौड़ी लगता है। उत्तर कोरिया के किम के मामले में वैश्विक समुदाय इसलिए आशावादी है क्योंकि वह एक ऐसे तानाशाह हैं जो अपने देश में हर संस्था को नियंत्रित करते हैं। इनमें सरकार, न्यायपालिका, सेना से लेकर मीडिया तक शामिल है। इसलिए उत्तर कोरिया के मामले में चीज़ें होना संभव लगता है। चीन की तरहं उत्तर कोरिया में भी केवल एक व्यक्ति को राजी करने की जरूरत है। लेकिन भारत जैसे लोकतंत्र में एकल निर्णय लेना संभव नहीं, यहां इकतरफा फैंसलों को रोकने के लिए कई तरहं के अंकुश हैं। पाकिस्तान का मामला तो और भी जटिल है; वहां पता ही नहीं चलता कि देश में कौन फैंसले ले रहा है सेना, नागरिक सरकार, न्यायपालिका यां आतंकवादी। नफरत को अपनी जीवन रेखा बना चुका यह देश शांति की तरफ कदम बढ़ाने से पहले ही बिखर जाएगा।

कैसी भी स्थितियां बनें और जटिलताएं कैसी भी हों, एक बार हम कुछ कदम पीछे हटाकर 36000 फीट की उंचाई से यह स्थिति देखते हैं तो पता चलता है कि एशिया में भूराजनीतिक बिसात पर अब ट्रंप की नीतियों का प्रभाव स्पष्ट है। उन्होंने चीन के दो साथियों उत्तर कोरिया जो परमाणु बम की धमकी दे रहा था और पाकिस्तान जो आतंकवाद को संरक्षण देता है, की धार खत्म कर दी है। इस क्षेत्र में यही दो अनियंत्रित देश (रोग नेशन्स) ऐसे थे जो चीन के करीब थे। भारत, दक्षिण कोरिया, वियतनाम से जापन, फिलीपीन्स और ताइवान तक अपने अधिकतर पड़ोसी देशों के साथ तो चीन हाई⎯अलर्ट की स्थिति में है। रूस के साथ उसका संबंध बीते दिनों के समाजवाद और भविष्य में 850 अरब डॉलर की गैस पाइपलाइन से जुड़ा है, जबकि मंगोलिया एक मूक दर्शक की तरहं है।

विश्न के आर्थिक विकास का केंद्र पूर्व की ओर स्थानांतरित हो रहा है। ऐसे में शी को इस बात का अहसास होना चाहिए हालांकि चीन को इससे सबसे ज्यादा लाभ होगा लेकिन अब नई धुरी चीन नहीं बल्कि वह क्षेत्र (एशिया) है जिसमें चीन स्थित है और दुनिया का वह हिस्सा है (पश्चिम) जहां उसके विकास का स्त्रोत है।

दक्षिण चीन समुद्र (South China Sea) से लेकर भारतीय महासागर तक इस क्षेत्र में शी की आक्रामकता और अपने भागीदरों को भिखारी बनाने के सिद्धांत पर ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’ के तहत श्रीलंका और पाकिस्तान को दी गई उसकी आर्थिक मदद, सहयोग का नहीं उसके अलग⎯थलग होने का माध्यम बन रहा है। बीते दिनों की एक ध्रुवीय दुनिया में यह संभव था जैसा लातीन अमेरिकी देशों के मामले में हुआ था। लेकिन बहुध्रुवीय दुनिया में यह संभव नहीं है।

आज की दुनिया में आक्रामकता से नेतृत्व नहीं मिलता है। इसीलिए एशिया के नए समीकरण, जो शी को तय करने चाहिए थे, आज ट्रंप के माध्यम से उन्हें जबरन स्वीकार करने पड़ रहे हैं। इस​ नजरिए से देखा जाए तो असली बदलाव तो चीन और अमेरिका के समीकरणों के बीच हुआ है। उत्तर व दक्षिण कोरिया, भारत और पाकिस्तान, तथा भारत और चीन के नए समीकरण तो इस प्रक्रिया का एक परिणाम मात्र हैं।

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