Author : Sukrit Kumar

Published on Jan 03, 2019 Updated 0 Hours ago

मालदीव के साथ मजबूत सम्बन्धों को देखते हुए भारत को हिन्द महासागर में अपनी पहुँच बढ़ानी चाहिए।

द्वीप क्षेत्र की उम्मीदें

मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह ने अपनी पहली विदेश यात्रा की शुरूआत भारत से की। उनके इस तीन दिवसीय यात्रा को कूटनीति के लिहाज से काफी अहम माना जा रहा है। भारत आकर मोहम्मद सोलिह ने भारत के प्रति अपने मजबूत संबंधों को दर्शाया है। मोहम्मद सोलिह ने रविवार को नई दिल्ली में बोलते हुए कहा कि, “भारत न केवल हमारा सबसे घनिष्ठ मित्र है बल्कि यह हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है।” भारत के लिए मोहम्मद सोलिह का यह दौरा इसलिए अहम है, क्योंकि मालदीव में पिछले पांच सालों से चीन का प्रभाव काफी ज्यादा रहा है जिसका असर भारत-मालदीव के संबंधों पर भी पड़ रहा था।

नए राष्ट्रपति मुहम्मद सोलिह की मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी भारत समर्थित मानी जाती है। 2018 के सितंबर माह में हुए राष्ट्रपति चुनाव में इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने अब्दुल्ला यामीन को हराया जिन्होंने अपने शासनकाल के दौरान चीन के साथ नज़दीकियां बढ़ाई और उसके साथ कई लुभावने समझौते किए। हिंद महासागर में स्थित मालदीव कूटनीतिक और सामरिक लिहाज़ से भारत के लिए काफी अहम है। यहां से भारत के समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा पर नजर रखी जा सकती है। भारत अपने युद्धपोत, हेलिकॉप्टर, रडार के अलावा कई परियोजनाओं के लिए मालदीव को सहायता देता रहा है।

पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के समय में मालदीव चीन के महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा बना। चीन और मालदीव ने फ्री ट्रेड अग्रीमेंट पर भी दस्तखत किए है। चीन ने मालदीव में एक पुल बनाने के लिए अनुदान और ऋण सहायता प्रदान की थी जो मालदीव के माले और हुल्हुमाले के द्वीपों को जोड़ता है। चीन मालदीव में साझा महासागरीय वेधशाला स्टेशन स्थापित करने की राह तलाश रहा है जो भारत सरकार के लिए सुरक्षा से जुड़ी नई चिंता पैदा कर सकता है। चीन ने मालदीव में नौसैनिक अड्डे स्थापित करने में रुचि दिखायी है। चीन मालदीव के इवावंधू, मारवा और मारंधू द्वीपों में बुनियादी ढ़ाँचे के विकास में गहरी दिलचस्पी दिखाई है। चीन मालदीव में मारन्धू और इहावन्धू द्वीपों में ट्रांसशिपमेंट बंदरगाहों के विकास में रुचि रखता है। इसके अलावा चीन मालदीव के दूसरे सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डे हानीमाधू के विकास में भूमिका अदा करना चाहता है।

भारत ने मालदीव सरकार को 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की रियायती कर्ज देने की घोषणा किया है। इसके अलावा अगले पाँच वर्षों में मालदीव के नागरिकों को प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए अतिरिक्त 1,000 सीटें देने का भी निर्णय लिया है। दोनों देशों के बीच नई दिल्ली में एक उच्चस्तरीय बैठक के दौरान विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद और भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के बीच 4 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं जिसमें नया वीजा समझौता भी शामिल हुआ है। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “आपकी इस यात्रा से उस गहरे आपसी भरोसे और दोस्ती की झलक मिलती है जिनपर भारत- मालदीव सम्बन्ध आधारित हैं। हमारी मित्रता सिर्फ हमारी भौगोलिक समीपता के कारण ही नहीं है। सागर की लहरों ने हमारे तटों को जोड़ा है। इतिहास, संस्कृति, व्यापार और सामाजिक सम्बन्ध हमें हमेशा और भी नजदीक लाए हैं। दोनों देशों के लोग आज लोकतंत्र में अपनी आस्था और विकास की आकांक्षा से भी आपस में जुड़े हुए हैं। आपकी इस यात्रा से दोनों देशों के बीच इन संबंधों के इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत होगी।”

चीन समर्थित यामीन सरकार को हराने के बाद सोलिह ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वह इंडिया फर्स्ट पॉलिसी अपनाएंगे। मालदीव की नई सरकार यामीन द्वारा चीन के किये गए मुक्त व्यापार समझौते को रद्द कर सकती है। इस पर मोहम्मद सोलिह का कहना है कि एक छोटे देश को विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति के साथ इस तरह का समझौता करना एक गलती थी। हांलाकि चीन को छोड़कर मालदीव का किसी अन्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता नहीं है। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो जनवरी से अगस्त माह के बीच मालदीव ने चीन से 34.4 करोड़ डॉलर का आयात किया है जबकि उसका चीन को निर्यात मात्र 2,65,270 डॉलर ही रहा है। इसी अवधि में भारत से मालदीव ने 194 करोड़ डॉलर का आयात और 18 लाख डॉलर का निर्यात भी किया है।

मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दक्षिण एशिया में मालदीव ही एक ऐसा देश है, जहां वह अभी तक नहीं गए थे। हालांकि राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह के पहले उन्हें 2015 में मालदीव जाना था लेकिन वहां के राजनीतिक अस्थिरता के कारण दौरे रद्द कर दिया गया था।

भारत को लेकर वर्तमान मालदीव सरकार की सोच काफी सकारात्मक है। ऐसे में भारत को इस अवसर का लाभ उठाते हुए अपनी हितों को ध्यान में रखकर नई सत्ता के साथ समझदारी से अपने संबंधों को आगे बढ़ाना चाहिए।


लेखक ORF नई दिल्ली में रिसर्च इंटर्न हैं।

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