Author : Renu Swarup

Published on Nov 24, 2020 Updated 0 Hours ago

अपनी स्थापना के साथ ही जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने खुद को सामाजिक चुनौतियों का हल खोजने की दिशा में प्रतिबद्ध किया, जिसके केंद्र में है, ‘मेक इन इंडिया’.

जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में इनोवेशन और उसका रूपांतरण

भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत 1986 में बनाया गया, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, डीबीटी (DBT), किसी भी सरकार द्वारा बनाया गया, जैव प्रौद्योगिकी को समर्पित पहला विभाग था. अपने अस्तित्व में आने के बाद, जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology) भारत के विकास से जुड़ी चुनौतियों के लिए, नए से नए समाधान ढूंढने और उनके प्रसार में उत्प्रेरक की भूमिका में रहा है. जैव प्रौद्योगिकी ने आज खाद्य व कृषि, पोषण, स्वास्थ्य, पर्यावरण और औद्योगिक विकास के क्षेत्र को प्रभावित करने में मुख्य़ भूमिका निभाई है.

जैव प्रौद्योगिकी ने आज खाद्य व कृषि, पोषण, स्वास्थ्य, पर्यावरण और औद्योगिक विकास के क्षेत्र को प्रभावित करने में मुख्य़ भूमिका निभाई है. जैसे-जैसे इस क्षेत्र में प्रगति हुई है, जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 

जैसे-जैसे इस क्षेत्र में प्रगति हुई है, जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. अनुसंधान से लेकर प्रमुख बीमारियों की रोकथाम और इलाज तक, बेहतर कृषि उत्पादकता की चुनौतियों का समाधान करने के लिए, राष्ट्रीय पोषण की जरूरतों को पूरा करने के लिए और स्वच्छ पर्यावरण के लिए, नए समाधान विकसित करने की दिशा में डीबीटी, जैव-प्रौद्योगिकीय अनुसंधान के ज़रिए, क्रांतिकारी रूप से बदलाव का अग्रेता रहा है.

अपनी स्थापना के बाद से, डीबीटी ने ‘मेक इन इंडिया’ की भावना को केंद्र में रखते हुए और इसको लक्षित करते हुए, सामाजिक चुनौतियों के समाधान उपलब्ध कराने को लेकर प्रतिबद्धता दिखाई है. आज, जैसे-जैसे हम खोज संबंधी अनुसंधान से महत्वपूर्ण चिकित्सीय हल ढूंढने वाली ‘ट्रांसलेशनल रिसर्च’ (translational research) तक, अकादमिक क्षेत्र से स्टार्टअप परितंत्र तक, संस्थागत सहयोग से ज़टिल समस्याओं के हल खोजने तक का सफ़र तय कर रहे हैं; जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने भारत में वैज्ञानिक इनोवेशन यानी नवाचार क्षेत्र में बहुआयामी फर्क़ पैदा किया है.

पिछले तीन दशकों में, डीबीटी ने देश भर में एक मज़बूत अनुसंधान और उसका क्षेत्रीय अनुवाद से जुड़ा पारिस्थितिकी तंत्र बनाया है, जिसने जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अनुसंधान की मज़बूत नींव डाली है. इसके अलावा जैव प्रौद्योगिकी विभाग, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी व भागीदारी से भी लाभ उठाता है. इस के चलते, 15,000 से अधिक वैज्ञानिकों और 800 संस्थानों व प्रयोगशालाओं का सहयोग करते हुए डीबीटी सालाना, लगभग 10,000 जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान अध्येताओं (biotechnology research fellows) और छात्रों की सहायता करता है.

पिछले तीन दशकों में, डीबीटी ने देश भर में एक मज़बूत अनुसंधान और उसका क्षेत्रीय अनुवाद से जुड़ा पारिस्थितिकी तंत्र बनाया है, जिसने जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अनुसंधान की मज़बूत नींव डाली है. 

विश्व स्तरीय, ‘स्टेट ऑफ़ द आर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर’ यानी बेहतरीन बुनियादी ढांचे के साथ, डीबीटी ने अपनी ‘सहज’ नामक योजना (Scientific Infrastructure Access for Harnessing Academia University Research Joint Collaboration-SAHAJ) को देश भर में अनुसंधान और इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए, सभी शोधकर्ताओं और स्टार्टअप के लिए सुलभ बनाया है. इसके साथ ही, ‘स्किल विज्ञान लाइफ़ साइंस’ और जैव प्रौद्योगिकी केंद्रों ने, रोज़गारपरक मानव संसाधन विकसित करने में मदद की है.

राष्ट्रीय योजनाओं के साथ तालमेल

इसके अलावा, डीबीटी ने राष्ट्रीय विकास एजेंडा के साथ अपने काम को संरेखित यानी कि तालमेल बिठाकर महत्वपूर्ण योगदान दिया है. राष्टीय एजेंडे के साथ तालमेल स्थापित करके डीबीटी ने स्वच्छ भारत, आयुष्मान भारत, भारत पोषण अभियान, स्टार्ट-अप इंडिया, मेक इन इंडिया और कौशल विकसित करने से संबंधित स्किल इंडिया व राष्ट्रीय अभियानों के लिए, नए से नए समाधान विकसित करने में अहम भूमिका निभाई है. जैव प्रौद्योगिकी विभाग के साथ काम करने वाले, शैक्षणिक व उद्योग जगत से जुड़े विशेषज्ञों ने सफल रूप से, अपने काम के ज़रिए देश को लाभ पहुंचाया है.

जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बाइरैक) की स्थापना, एक जीवंत और विविध, स्टार्टअप परितंत्र व उद्यमशीलता को बढ़ावा देने वाला माहौल विकसित करने के लिए की गई थी. बाइरैक (BIRAC) का उद्देश्य सामाजिक लाभ के लिए जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में इनोवेशन का समर्थन करते हुए, उत्कृष्टता को बढ़ावा देना है. अपनी शुरुआत से अब तक के छोटे से कार्यकाल में हमने लगातार नए हुनर विकसित करते हुए, और कुछ नया सीखने की अवस्था को बनाए रखते हुए, जैव प्रौद्योगिकी से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धी वित्तपोषण (funding) जमा करने के प्रयास किए हैं.

राष्टीय एजेंडे के साथ तालमेल स्थापित करके डीबीटी ने स्वच्छ भारत, आयुष्मान भारत, भारत पोषण अभियान, स्टार्ट-अप इंडिया, मेक इन इंडिया और कौशल विकसित करने से संबंधित स्किल इंडिया व राष्ट्रीय अभियानों के लिए, नए से नए समाधान विकसित करने में अहम भूमिका निभाई है. 

हमने इस क्षेत्र में सफल होते हुए, नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं. विभिन्न फंडिंग कार्यक्रमों के माध्यम से, हमने देखा है कि खोज अनुसंधान और उत्पादन संबंधी विकास को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा दिया गया है. इस क्षेत्र में हम गहरी जड़ें बनाना चाहते हैं ताकि इनोवेशन द्वारा प्रेरित और संचालित अनुसंधान का लाभ सभी तक पहुंचे. बाइरैक के तहत, 1,000 से अधिक स्टार्टअप और उद्यमियों को समर्थन दिया जाएगा.

वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रयोगशाला से अंतिम उपयोगकर्ता तक ले जाने के लिए, डीबीटी ने एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाया है, जो वैज्ञानिक खोज को ‘ट्रांसलेशनल’ चरण से व्यवसायीकरण तक ले जाने का काम करता है. इस संबंध में 16 संस्थानों, चार बायो-क्लस्टर, दो सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और 5,000 से अधिक अनुसंधान परियोजनाओं ने इसमें योगदान दिया है.

वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रयोगशाला से अंतिम उपयोगकर्ता तक ले जाने के लिए, डीबीटी ने एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाया है, जो वैज्ञानिक खोज को ‘ट्रांसलेशनल’ चरण से व्यावसायीकरण तक ले जाने का काम करता है.

हमने एकल-अन्वेषक (single-investigator) से बहु-अन्वेषक परियोजनाओं (multi-investigator), एकल संस्थानों से बहु-संस्थान परियोजनाओं, और केवल अकादमिक शोध व अनुसांधान से उद्योग व अकादमिक क्षेत्र की साझेदारी से संबंधित शोध व अनुसंधान की ओर बढ़ना तय किया है. इसके चलते, नई संस्थागत भागीदारी और शासन से जुड़े मॉडल सामने आए हैं.

आत्मनिर्भर बनें, आत्मकेंद्रित नहीं

यह अनिवार्य है कि हम आत्मनिर्भर भारत को आत्मकेंद्रित भारत के रुप में न देखें और विकसित करें. अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सहभागिता, आत्मनिर्भर होने की मूल-भावना है. भारत की प्रगति, निस्संदेह वैश्विक प्रगति में योगदान करेगी. डीबीटी और बाइरैक ने जैव प्रौद्योगिकी से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में कई देशों और परोपकारी संगठनों यानी फिलैंथ्रोपिक संस्थाओं के साथ सह-भागिता में अनुसंधान और विकास कार्यक्रमों की शुरुआत करके, इस मूल भावना को प्रमाणित किया है.

जैसे-जैसे दुनिया कोविड-19 की महामारी से निपटने, इस संकट का समाधान ढूंढने, इस महामारी द्वारा उजागर की गई भारी स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना करने और त्वरित समाधानों की तलाश में है, हमारा प्रयास यह सुनिश्चित करना है कि हमारी हर नई खोज, टिकाऊ हो, शाश्वत हो, विस्तार योग्य हो और उसकी पुनरावृत्ति की जा सके. नई और उभरती हुई तकनीकों का एकीकरण, जैविक विज्ञान को डेटा विज्ञान, चिकित्सीय अनुसंधान और इंजीनियरिंग विज्ञान के साथ जोड़ना, साल 2025 तक भारत को 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर की जैव-स्वायत्तता प्राप्त करवाने के हमारे महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में बेहद महत्वपूर्ण है. इसी के ज़रिए भारत 100 बिलियन अमेरीकी डॉलर का जैव-निर्माण गढ़ (hub), बन सकता है.

आगे बढ़ते हुए, हमारी चुनौती केवल अनुसंधान और उसका क्षेत्रीय अनुवाद नहीं है, बल्कि इस क्षेत्र में स्थिरता, टिकाऊपन और विस्तार को सुनिश्चित करना है. डीबीटी, लगातार जीवन के सभी क्षेत्रों में विज्ञान के महत्व को सामने लाता रहा है, और हमने राष्ट्रीय विकास के साथ नवाचार यानी इनोवेशन को एकीकृत किया है. इस विभाग ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी को काम करने के एक उन्नत क्षेत्र के रूप में देखने के बजाय, इसे सोचने के नए तरीके के रूप में देखा और बढ़ावा दिया है, और इसे भारत की विकास गाथा की महत्वपूर्ण कड़ी बनाना ही हमारा मकसद है.

अब जब हम एक नई दुनिया के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं, तो हमारा ध्यान स्वदेशी अनुसंधान और प्रभाव-संचालित इनोवेशन के विकास पर केंद्रित होना चाहिए. यह हर मायने में, भारत को आत्मनिर्भर बनाने की ओर अग्रसर होने की कुंजी है.

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