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सौर परियोजनाओं और उससे जुड़ी पहलक़दमियों के मामले में भारत सबसे आगे है, लेकिन वह निगरानी और सार्वजनिक जवाबदेही के प्रति ज्यादा मज़बूत दृष्टिकोण अपनाकर उससे फ़ायदा उठा सकता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) चाहते हैं कि भारत सौर ऊर्जा क्षेत्र (India’s Solar Energy Sector) के विकास में सहयोग की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अगुवाई करे. सरकार का राजनीतिक नेतृत्व असरदार है. उसने इंटरनेशनल सोलर अलायंस (International Solar Alliance) की स्थापना की अगुवाई की, और अब यह संचालन में आ चुकी संस्था है. और COP26 में, भारत और ब्रिटेन ने हरित ग्रिड पहल- एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड का एलान किया- यह बड़े पैमाने पर सौर बिजली (Solar Electricity) को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए राष्ट्रीय ग्रिडों को आपस में जोड़ने की पहल है.
लेकिन क्या भारत सहयोग के अपने मौजूदा कार्यक्रमों को बातों से ऊपर उठकर अमल में ला रहा है? यह लेख इस पक्ष में है कि भारत ISA के ज़रिये, और उससे अलग भी, तीन मुख्य क्षेत्रों में अपना नेतृत्व दिखा रहा है : वित्त (फाइनेंस), नीति संबंधी विशेषज्ञता की साझेदारी, और प्रशिक्षण को लेकर. हालांकि, आगे यह भी सुझाव देता है कि अगर सरकार को अपना नेतृत्व बढ़ाना है, तो उसे अपने सहयोग के पूर्ण आकलन की अनुमति देनी चाहिए, और इसके लिए उसे ज्यादा विस्तृत ढंग से आंकड़े जमा करने चाहिए और गतिविधियों को रिपोर्ट करना चाहिए.
अगर सरकार को अपना नेतृत्व बढ़ाना है, तो उसे अपने सहयोग के पूर्ण आकलन की अनुमति देनी चाहिए, और इसके लिए उसे ज्यादा विस्तृत ढंग से आंकड़े जमा करने चाहिए और गतिविधियों को रिपोर्ट करना चाहिए.
भारत ने 2025 तक सोलर के लिए अंतरराष्ट्रीय रियायती वित्तपोषण के वास्ते 2 अरब अमेरिकी डॉलर का अलग से प्रावधान किया है. यह काम लंबे समय से चल रही Indian Development and Economic Assistance Scheme (IDEAS) के ज़रिये शुरू किया जा चुका है. इस योजना के तहत, भारत का सार्वजनिक स्वामित्व वाला एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट (EXIM) बैंक कम ब्याज दरों वाली लाइन ऑफ क्रेडिट (यह एक पूर्व-निर्धारित उधारी सीमा है, जिसका इस्तेमाल अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ उधारकर्ता कभी भी कर सकता है) साझेदार देशों को मुहैया कराता है. उधार लेनेवाली सरकारें प्रोजेक्ट प्रस्तावित करती हैं, जिसे भारतीय कंपनियों द्वारा ही पूरा किया जाना चाहिए और उसमें मुख्यत: भारतीय वस्तुओं व सेवाओं का ही इस्तेमाल होना चाहिए.
उद्देश्यों, प्रगति और नतीजों से संबंधित आंकड़ों का सुव्यवस्थित संग्रह व प्रकाशन सरकार के लिए टिकाऊ आर्थिक और राजनीतिक साझेदारियों को साबित करने, साथ ही घरेलू और साझेदार देशों के स्तर पर पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए बेहद अहम है.
भारत सरकार यहां एक मज़बूत शुरुआत पर जोर दे सकती है. एग्जिम बैंक पहले ही लगभग 18.7 करोड़ अमेरिकी डॉलर के कर्ज़ नौ देशों को दे चुका है. सरकार 1.46 अरब अमेरिकी डॉलर के 27 और प्रोजेक्ट के लिए राज़ी हो चुकी है, जिन्हें अब वित्तीय और तकनीकी मानदंडों पर खरा उतरना होगा. ज्यादातर प्रोजेक्ट ऑफ-ग्रिड सोलर स्थापित करने के लिए हैं, जिसमें भारतीय कंपनियों के पास काफ़ी समय से विशेज्ञता है. इनमें सियरा लियोन में स्ट्रीटलाइट के लिए एक प्रोजेक्ट, और मॉरीशस में आठ मेगावाट का एक सोलर सिस्टम शामिल है. लेकिन मूल्य के हिसाब से वित्तपोषण का बड़ा हिस्सा यूटिलिटी-स्केल (बड़े स्तर के) सोलर पार्कों के लिए हैं, जिनमें केन्या, क्यूबा और बांग्लादेश के प्रस्ताव शामिल हैं. सरकार की अगली परख होगी इन्हें पूरा करने में, जो अभी तक सिर्फ़ कागज़ी समझौता भर हैं.
आगे बात करें, तो सरकार को आंकड़ों के संग्रह और रिपोर्टिंग से फ़ायदा पहुंचेगा. भारत का एग्जिम बैंक लाइन ऑफ क्रेडिट के केवल मोटे-मोटे मूल्य (हेडलाइन वैल्यू) को रिपोर्ट करता है. इससे इतर, कोई आंकड़ा नहीं जारी किया जाता जो बताए कि प्रोजेक्ट किस तरह स्ट्रक्चर किये गये हैं, फंड कैसे इस्तेमाल हो रहे हैं और प्रोजेक्ट किस स्थिति में हैं. नतीजों, यानी वो चालू हो गये हैं या अभी उन पर काम चला है, के बारे में भी आंकड़े नहीं दिये जाते. आख़िर यह क्यों मायने रखता है? उद्देश्यों, प्रगति और नतीजों से संबंधित आंकड़ों का सुव्यवस्थित संग्रह व प्रकाशन सरकार के लिए टिकाऊ आर्थिक और राजनीतिक साझेदारियों को साबित करने, साथ ही घरेलू और साझेदार देशों के स्तर पर पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए बेहद अहम है.
भारत की अगुवाई वाले ISA ने सोलर पार्क कार्यक्रम शुरू किया है. भारत सरकार ने और आगे बढ़ते हुए एक प्रोजेक्ट तैयारी सुविधा (project preparation facility) को फंड किया है, जिसकी पेशकश भारत के एग्जिम बैंक द्वारा की जानी है
एक और योगदान जो भारत कर रहा है, वह नीति, नियामक (regulatory) और संस्था संबंधी विशेषज्ञता की साझेदारी में है, जिसे उसने घरेलू अनुभव से हासिल किया है. सरकार मुख्य रूप से तीन तरह से काम कर रही है.
पहला, यह दूसरे देशों को यूटिलिटी-स्केल सोलर पार्क विकसित करने में मदद कर रही है. भारत की अगुवाई वाले ISA ने सोलर पार्क कार्यक्रम शुरू किया है. भारत सरकार ने और आगे बढ़ते हुए एक प्रोजेक्ट तैयारी सुविधा (project preparation facility) को फंड किया है, जिसकी पेशकश भारत के एग्जिम बैंक द्वारा की जानी है. यह सुविधा ISA के सदस्यों को भारतीय-वित्तपोषित परियोजनाओं को तकनीकी समर्थन मुहैया कराने का वादा कर रही है. आख़िरकार, ISA वहन-योग्य निजी वित्त (affordable private finance) के लिए कार्यप्रणाली तैयार करने पर काम कर रहा है. मोदी सरकार देशों के लिए निजी-वित्तपोषित पार्कों के अपने ख़ुद के मॉडल अपनाने का अवसर देख रही है.
ISA अभी 10 देशों में सोलर पार्कों को लेकर सहयोग कर रहा है. भारत की सार्वजनिक ऊर्जा कंपनी एनटीपीसी लिमिटेड परियोजनाओं को पूरा करने में ISA की साझेदार है. एनटीपीसी लिमिटेड माली में 500 मेगावाट के एक पार्क और टोगो में 285 मेगावाट के एक पार्क के लिए प्रोजेक्ट प्रबंधन परामर्श (project management consultancy) अनुबंधों के लिए सहमति दे चुकी है. कंपनी के पास 47 सौर परियोजनाओं को लागू करने के लिए Memorandum of Understanding (MOU) हैं. ISA ने विश्व बैंक की अगुवाई वाले Solar Risk Mitigation Initiative के विकास पर भी काम किया, जो सार्वजनिक वित्तपोषण का इस्तेमाल निजी वित्तपोषण की क्षमता के पूरे इस्तेमाल के लिए करता है.
सोलर पार्कों के मामले में, भारत सहयोग के आशाजनक क्षेत्र का विस्तार कर रहा है. सरकार के लिए अब यह दिखाना चुनौती है कि ISA से समर्थित सोलर पार्क वहन-योग्य वित्तपोषण जुटा सकते हैं. यह कठिन होगा. भारत का अपना घरेलू अनुभव यह है कि निजी वित्त ज्यादातर, धारणा और शासन दोनों के लिहाज से अपेक्षाकृत अमीर माने जानेवाले राज्यों में यूटिलिटी-स्केल सोलर पार्कों में गया है. ISA को ऐसी बहुपक्षीय वित्तपोषण संस्थाओं और दूसरी सरकारों के साथ साझेदारी करने की ज़रूरत होगी, जो एक मिश्रित वित्त प्रणाली विकसित करने के लिए सार्वजनिक वित्त की पेशकश कर सकें.
जैसे-जैसे ISA समर्थित सोलर पार्क विकसित होंगे, भारतीय नेतृत्व की परख इन बातों से होगी कि परियोजनाओं के लिए जमीन कैसे हासिल की जाती है, और कंपनियों के साथ अनुबंधों को लेकर कितनी पारदर्शिता बरती जाती है. ज़मीन का मुद्दा अक्सर राजनीतिक लिहाज से चिंताजनक होता है, और परियोजनाओं को ज़मीन के मालिकों व उसे इस्तेमाल करनेवालों से सलाह-मशविरा तथा उन्हें मुआवजे का भुगतान सुनिश्चित करना ही चाहिए. रियायती वित्तपोषण के साथ, रिपोर्टिंग यह दिखाने के लिए बेहद अहम होगी कि साझेदारियां आर्थिक और राजनीतिक रूप से टिकाऊ हैं.
दूसरा, भारत ISA के ज़रिये ऑफ-ग्रिड सोलर वस्तुओं के विदेशों में परिनियोजन (deployment) के लिए मांग एकत्रीकरण को प्रोत्साहित कर रहा है. सीधे-सीधे कहें, तो यह सोलर वस्तुओं की थोक में ख़रीद और वितरण की नीति है. ISA के पास टेंडर प्रक्रिया चलाने के लिए एक कार्यक्रम मौजूद है, जिसका मक़सद विभिन्न सोलर वस्तुओं की उस न्यूनतम दर का पता लगाना है जिस पर निर्माता (manufacturers) आपूर्ति करेंगे. इसके पीछे विचार यह है कि यह निर्माताओं को निचली दरों की ओर ले जायेगा. भारत ने इस नीति से बड़ी घरेलू कामयाबी हासिल की थी, जिनमें सबसे उल्लेखनीय रही करोड़ों एलईडी लाइट की थोक खरीद.
सरकार अपने महत्वाकांक्षी एजेंडे को लेकर कुछ प्रगति का दावा कर सकती है. ISA पहले ही 2,70,000 सोलर-पावर वाटर पंप के लिए टेंडर प्रक्रिया चला चुका है, जिनका इस्तेमाल किसानों के लिए खेतों की सिंचाई में होना है. बताया जाता है कि निर्माताओं ने मांग मूल्य को 50 फ़ीसदी से ज्यादा कम कर दिया. अब वह 4.8 करोड़ सोलर होम सिस्टम की बड़ी ख़रीद के लिए टेंडर प्रक्रिया की योजना बना रहा है. हालांकि, ISA का अब भी मांग एकत्रीकरण के लिए व्यावहारिक वित्तीय या वितरण मॉडल प्रदर्शित करना बाकी है.
तीसरा, भारत अपनी घरेलू विशेषज्ञता का इस्तेमाल कर, साझेदार देशों को सोलर मिनी-ग्रिड स्थापित करने में मदद करना चाहता है. ISA एक समर्पित मिनी-ग्रिड कार्यक्रम चला रहा है, जो उनकी स्थापना को बड़े पैमाने पर संभव बनाने वाले बिजनेस मॉडलों की पहचान पर केंद्रित है. ISA का कहना है कि वह पांच अफ्रीकी देशों में मिनी-ग्रिड की संभावनाओं का आकलन कर चुका है, और मिनी-ग्रिड नीति का मसौदा प्रकाशित कर चुका है.
सहयोग को अब भी पूरी पकड़ हासिल नहीं हो सकी है. ISA को अभी भी बिजनेस मॉडल व वित्तपोषण प्रणालियों को दिखाना है, और यह व्याख्या करनी है कि माइक्रो-गिड को उसका समर्थन किस तरह विकास उद्देश्यों से जुड़ा हुआ है. बहुत सारे अंतरराष्ट्रीय विकास संगठनों के पास सोलर मिनी-ग्रिड कार्यक्रम हैं, और भारत के लिए यह फ़ायदेमंद होगा कि वह स्पष्ट करे कि वह भीड़ से क्या अलग पेश कर रहा है.
सरकार प्रशिक्षण और ज्ञान को साझा करने के ज़रिये क्षमता निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है. भारत की एक अग्रणी प्रशिक्षण योजना है- Indian Technical and Economic Cooperation (ITEC), जिसके जरिये वह लंबे समय से तकनीक और नीति संबंधी सोलर पाठ्यक्रमों की पेशकश कर रहा है.
बहुत सारे अंतरराष्ट्रीय विकास संगठनों के पास सोलर मिनी-ग्रिड कार्यक्रम हैं, और भारत के लिए यह फ़ायदेमंद होगा कि वह स्पष्ट करे कि वह भीड़ से क्या अलग पेश कर रहा है.
तकनीकी प्रशिक्षण, उद्यमिता, और शोध एवं नवाचार (innovation) केंद्रों का नेटवर्क बनाने के लिए, ISA एक ‘STAR-C’ कार्यक्रम विकसित करता रहा है. इससे आगे बढ़ते हुए उसने मास्टर लेवल के प्रशिक्षक कार्यक्रम की पेशकश के लिए भारत के ITEC के साथ साझेदारी की है, और जो पेशेवर बीच कैरियर में हैं उनके लिए ‘सोलर फेलोशिप’ की पेशकश कर रहा है. पीएम मोदी कह चुके हैं कि भारत ISA सदस्यों के लिए हर साल 500 प्रशिक्षण जगहों (training places) के लिए धन प्रदान करेगा. भारत का इस मामले में अच्छा पिछला रिकॉर्ड है, तथा आनेवाले सालों में ITEC व ISA दोनों की ओर से प्रशिक्षण की पेशकश और बहुत से लोगों को की जायेगी.
भारत ठोस कार्यक्रमों के साथ सोलर क्षेत्र में नेतृत्व दिखा रहा है, अपनी बातों को अमली जामा पहना रहा है. जैसे-जैसे भारत का सोलर सहयोग विकसित हो रहा है, आंकड़ों का संग्रह और रिपोर्टिंग ऐसे दो अहम क्षेत्र हैं जिन पर सरकार को शायद ज्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है.
अभी जो आंकड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं, वे भारत के कार्यक्रमों के उद्देश्यों, प्रगति और नतीजों के बारे में बहुत कम सूचनाएं मुहैया कराते हैं, और इसकी वजह से विस्तृत विश्लेषण कर पाना मुश्किल हो जाता है. भारत इस मामले में अकेला नहीं है, दूसरे देश भी परियोजनाओं के नतीजों के बारे में अक्सर सीमित सूचनाएं ही मुहैया कराते हैं. लेकिन सरकार को सोलर में अपने नेतृत्व को साबित करने के लिए, वित्तपोषण, परियोजनाओं और प्रभावों को ज्यादा पारदर्शी बनाने पर और ध्यान देना चाहिए. भारत की प्रतिबद्धता स्पष्ट है, लेकिन निगरानी और सार्वजनिक जवाबदेही के प्रति ज्यादा सशक्त रवैया अपनाकर वह ख़ुद और साथ में दूसरे हितधारक बहुत से फ़ायदे उठा सकते हैं.
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Dr Jonathan Balls Research Associate and Project Manager India-UK Development Partnership Forum Newham College University of Cambridge
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