बीमारियों पर निगरानी सार्वजनिक स्वास्थ्य (पब्लिक हेल्थ) का एक ज़रूरी पहलू है. इससे संक्रामक बीमारियों के बारे में जल्दी पता लग जाता है और समय पर जवाब तैयार करने में मदद मिलती है. भारत में स्वास्थ्य से जुड़े सरकारी विभाग असरदार ढंग से संक्रामक बीमारियों पर निगरानी की चुनौतीपूर्ण ज़िम्मेदारी का सामना करते हैं, ख़ास तौर पर समय पर बीमारियों की पहचान और जल्द चेतावनी के मामले में. इस मुद्दे से निपटने के लिए सरकार ने 2004 में एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम यानी इंटीग्रेटेड डिज़ीज़ सर्विलांस प्रोग्राम (IDSP) की शुरुआत की. IDSP का प्राथमिक उद्देश्य एक व्यापक रोग निगरानी प्रणाली तैयार करना था जिसमें राज्य और केंद्र- दोनों सरकारें शामिल हों. कार्यक्रम का लक्ष्य किसी बीमारी की पहचान जल्दी करना और उस पर निगरानी रखना है जिससे सक्षम नीतिगत फ़ैसले लेने में मदद मिलेगी. मिसाल के तौर पर, 2009 के H1N1 प्रकोप के दौरान IDSP ने इन्फॉर्मेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी (ICT) नेटवर्क का इस्तेमाल डेटा को जल्द इकट्ठा करने, उसके विश्लेषण और सूचना के लिए किया. इन चीज़ों में निवेशों से कई चुनौतियों से पार पाने में मदद मिली जिनमें दूर-दराज़ के इलाक़ों में रहने वाले लोगों तक पहुंचने की क्षमता, प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी को बढ़ाना और सूचना के वैकल्पिक तरीक़ों जैसे कि ई-मेल और वॉयसमेल के इस्तेमाल को बढ़ावा शामिल हैं.
इस मुद्दे से निपटने के लिए सरकार ने 2004 में एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम यानी इंटीग्रेटेड डिज़ीज़ सर्विलांस प्रोग्राम (IDSP) की शुरुआत की. IDSP का प्राथमिक उद्देश्य एक व्यापक रोग निगरानी प्रणाली तैयार करना था जिसमें राज्य और केंद्र- दोनों सरकारें शामिल हों.
आंकड़ा 1: IDSP के तहत सालाना बजट अनुमान और संशोधित अनुमान. स्रोत: IDSP
IDSP के तहत बजट का अनुमान और संशोधित अनुमान पिछले कुछ वर्षों के दौरान इस कार्यक्रम के लिए आवंटित वित्तीय संसाधनों का संक्षिप्त विवरण देते हैं. संशोधित अनुमान के साथ बजट अनुमान संकेत देते हैं कि कार्यक्रम के लिए बजट के आवंटन में मामूली बढ़ोतरी हुई है (आंकड़ा 1) लेकिन पिछले कुछ वर्षों के दौरान बीमारी की निगरानी से जुड़ी गतिविधियों के लिए आवंटन नियमित नहीं रहा है, बजट अनुमानों में कई बार उतार-चढ़ाव देखा गया है.
इसके बाद स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 26 नवंबर 2018 को एकीकृत स्वास्थ्य सूचना मंच यानी इंटीग्रेटेड हेल्थ इन्फॉर्मेशन प्लैटफॉर्म (IHIP) को ट्रायल के तौर पर शुरू किया. इस शुरुआत का मक़सद IDSP की डिजिटल क्षमताओं को बढ़ाना था. 5 अप्रैल 2021 को केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने IHIP के एक अपग्रेडेड वर्ज़न को वर्चुअली लॉन्च किया. इस प्लैटफॉर्म को दुनिया में सबसे व्यापक ऑनलाइन बीमारी निगरानी प्रणाली (डिज़ीज़ सर्विलांस सिस्टम) के तौर पर स्वीकार किया गया है जो रियल-टाइम केस-आधारित सूचना, एकीकृत विश्लेषण (इंटीग्रेटेड एनेलिटिक्स) और आधुनिक विज़ुअलाइज़ेशन क्षमता मुहैया करा रहा है.
इंटीग्रेटेड पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरीज़
निगरानी और ज़िले की लैबोरेटरी को और मज़बूत करने के लिए एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशाला यानी इंटीग्रेटेड पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरीज़ (IPHL) को प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन (PM-ABHIM) की ऑपरेशनल गाइडलाइन के हिस्से के तौर पर स्थापित किया गया. PM-ABHIM को माननीय प्रधानमंत्री ने 25 अक्टूबर 2021 को संक्रामक बीमारियों पर निगरानी और नियंत्रण के लिए लॉन्च किया था. भारत सरकार ने PM-ABHIM के तहत सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 730 ज़िलों में सिलसिलेवार ढंग से IPHL की स्थापना के लिए समर्थन मुहैया कराया. ‘सभी के लिए सेहत’ के मक़सद को हासिल करने के लिए IPHL अलग-अलग स्तरों पर संपर्क के साथ यानी प्रखंड से लेकर ज़िला, राज्य और क्षेत्रीय या राष्ट्रीय स्तर तक स्थापित की गई है.
IPHL में ये क्षमता है कि वो मौजूदा हेल्थ सिस्टम की चुनौतियों का समाधान करे. शुरुआत में ये ध्यान रखा जाना चाहिए कि ज़िला और उप-ज़िला स्तर पर स्थित पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरी में सभी डायग्नोस्टिक सुविधाओं के मानकीकरण (स्टैंडर्डाइज़ेशन), एकीकरण (इंटीग्रेशन) और आधुनिकीकरण (एडवांसमेंट) को लेकर सलाह के प्रावधान के ज़रिए IPHL में बीमारी पर निगरानी को बढ़ाने का सामर्थ्य है. ये बीमारियों के प्रकोप की जल्द पहचान और तुरंत जवाब देने में सुधार कर सकते हैं. इस तरह संक्रामक बीमारियों के फैलाव को रोका जा सकता है, मरीज़ की देखभाल की जा सकती है और निगरानी की गुंजाइश को व्यापक किया जा सकता है. दूसरी बात, मरीज़ के देखभाल की स्थिति में फ़ैसले लेने में मदद के लिए IPHL सलाह मुहैया करा सकती है और अलग-अलग स्तरों पर लैबोरेटरी सेवाओं के नेटवर्क के एकीकरण (इंटीग्रेशन) की सुविधा दे सकती है जिनमें वेटनरी और पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरी शामिल हैं. अंत में, IPHL क्षमता के विकास में मदद मुहैया करा सकती है और छोटी लैबोरेटरी एवं प्रखंड स्तर की पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरी को समर्थन दे सकती है.
मौजूदा समस्याओं के समाधान में इस तरह की प्रगति के साथ कई और कमियों को दूर करने की ज़रूरत है ताकि ये प्रभावी हो सकें. इनमें से एक चुनौतीहै सामाजिक और प्रशासनिक बाधाएं यानी कार्यक्रम संबंधी महत्वपूर्ण और नीतिगत जांच-पड़ताल का समाधान करने के लिए मौजूदा डेटा सिस्टम की क्षमता सीमित कर दी गई है. लैबोरेटरी और पब्लिक हेल्थ संस्थानों के बीच सूचना और तालमेल भी चुनौती बन सकते हैं, ख़ास तौर पर बीमारी फ़ैलने के दौरान जब समय पर और सटीक सूचना महत्वपूर्ण होती हैं. पर्याप्त संसाधनों की कमी, जैसे कि लैबोरेटरी के काम-काज में समर्थन के लिए कर्मचारी, एक चुनौती बनी हुई है. प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी और बड़ी मात्रा में सैंपल के टेस्ट की सीमित क्षमता लैबोरेटरी के काम-काज पर असर डाल सकती है.
लैबोरेटरी और पब्लिक हेल्थ संस्थानों के बीच सूचना और तालमेल भी चुनौती बन सकते हैं, ख़ास तौर पर बीमारी फ़ैलने के दौरान जब समय पर और सटीक सूचना महत्वपूर्ण होती हैं.
संसाधनों की मजबूरी से जुड़े फैक्टर को उजागर करने के लिए GDP के प्रतिशत के रूप में कुल स्वास्थ्य खर्च (THE) और महामारी की निगरानी में वर्तमान स्वास्थ्य खर्च को नेशनल हेल्थ अकाउंट्स (NHA) के डेटा (2013-2020) से नीचे बताया गया है. GDP के प्रतिशत के रूप में कुल स्वास्थ्य खर्च किसी देश के आर्थिक विकास की तुलना में स्वास्थ्य पर खर्च का संकेत देता है. आंकड़ा 2a दिखाता है कि GDP के प्रतिशत के रूप में कुल स्वास्थ्य खर्च नीचे की तरफ़ जा रहा है और आंकड़ा 2b बताता है कि बीमारी की निगरानी में लगातार निवेश की ज़रूरत है ताकि रोग नियंत्रण कार्यक्रमों के असर को सुनिश्चित किया जा सके. इसलिए, जहां सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी में प्रगति दर्ज की गई है, वहीं स्वास्थ्य एवं बीमारी निगरानी की गतिविधियों में पर्याप्त संसाधनों की कमी और लगातार निवेश नहीं होना भारत में एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है.
आंकड़ा 2a: GDP के प्रतिशत के रूप में कुल स्वास्थ्य खर्च (THE). आंकड़ा 2b: मौजूदा स्वास्थ्य खर्च: महामारी की निगरानी, जोखिम और बीमारी नियंत्रण कार्यक्रम
स्रोत: नेशनल हेल्थ अकाउंट्स रिपोर्ट
संदर्भ के औचित्य पर विचार करते हुए लेखक PRISM (परफॉर्मेंस, रिज़ल्ट्स, इनोवेशन, स्ट्रैटजी एंड मैनेजमेंट) के ढांचे का इस्तेमाल करने की वक़ालत करते हैं जिसमें दुनिया भर में सीखे गए सबक़ को शामिल किया जाए. PRISM पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरी को उनके प्रदर्शन (परफॉर्मेंस) को बेहतर करने पर ध्यान देने, ग़ौर करने लायक नतीजा (रिज़ल्ट्स) हासिल करने, इनोवेशन को बढ़ावा देने, असरदार रणनीति (स्ट्रैटजी) विकसित करने और मज़बूत प्रबंधन (मैनेजमेंट) पद्धति को लागू करने में मदद करता है. प्रदर्शन के सूचक (इंडिकेटर्स) पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरी को उनकी प्रगति पर नज़र रखने और ये सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि उनकी सेवाएं लोगों की ज़रूरत को पूरा करें. इससे लैबोरेटरी सेवाओं की गुणवत्ता (क्वॉलिटी) को सुधारने में सहायता मिल सकती है और अंत में बेहतर स्वास्थ्य के नतीजे में योगदान मिलता है. उदाहरण के लिए, यूनाइटेड किंगडम में नेशनल हेल्थ सर्विस (NHS) ने लैबोरेटरी की डायग्नोस्टिक सेवाओं के लिए प्रमुख प्रदर्शन सूचकों (की परफॉर्मेंस इंडिकेटर्स या KPI) की श्रेणी को विकसित किया. ये KPI कई क्षेत्रों जैसे कि टर्नअराउंड टाइम (एक प्रक्रिया को पूरा करने का समय), क्वॉलिटी और कॉस्ट-इफेक्टिवनेस (लागत के हिसाब से असर) को देखते हैं. इन KPI पर निगरानी रखकर लैबोरेटरी सुधार वाले क्षेत्रों की पहचान कर सकती हैं और अपनी सेवाओं की क्वॉलिटी को बेहतर करने के लिए बदलाव कर सकती हैं. लैबोरेटरी सेवाओं को व्यापक तौर पर पब्लिक हेल्थ के लक्ष्यों और उद्देश्यों के साथ जोड़ने से पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरी लोगों के बीच सबसे ज़रूरी स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों का समाधान करने में लक्षित दृष्टिकोण (टारगेटेड अप्रोच) का इस्तेमाल करने में समर्थ होते हैं. इससे लैबोरेटरी सेवाओं की कार्य-कुशलता और असर को बेहतर करने में मदद मिल सकती है और ये सुनिश्चित किया जा सकता है कि संसाधनों का इस्तेमाल सबसे ज़्यादा प्रभावी ढंग से किया जा रहा है.
महामारी और बेहतर वैश्विक संधि
इसके अलावा नई तकनीकों और नज़रिए को अपनाने को बढ़ावा देकर पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरी अपनी कार्य-कुशलता, सटीक नतीजे और क्षमता को बढ़ा सकते हैं. इससे लैबोरेटरी सेवाओं की क्वॉलिटी में सुधार हो सकता है और ये सुनिश्चित किया जा सकता है कि पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरी आने वाले स्वास्थ्य से जुड़े ख़तरों का जवाब देने के लिए तैयार हैं. उदाहरण के लिए, विक्टोरियन इन्फेक्शियस डिज़ीज़ेज़ रेफरेंस लैबोरेटरी (VIDRL) ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के ज़रिए अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों को एक मज़बूत भरोसा मुहैया कराया है. इसके अलावा रणनीतिक योजनाओं को विकसित करके और उन्हें लागू करके पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरी ये सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनका काम पब्लिक हेल्थ के व्यापक लक्ष्यों और उद्देश्यों के साथ जुड़ा हो. इससे ये सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि संसाधनों का आवंटन असरदार ढंग से हो रहा है और लैबोरेटरी सेवाएं स्वास्थ्य से जुड़े महत्वपूर्ण नतीजों को हासिल करने में योगदान दे रही हैं.
कनाडा में नेशनल माइक्रोबायोलॉजी लैबोरेटरी (NML) ने लैबोरेटरी की प्राथमिकताओं और उद्देश्यों का ढांचा तैयार करने के लिए एक रणनीतिक योजना विकसित की. इस योजना में संक्रामक बीमारियों के प्रकोप का जवाब देने में कनाडा की क्षमता को मज़बूत करने और लैबोरेटरी के इंफ्रास्ट्रक्चर एवं तकनीक को सुधारने का काम शामिल है. अंत में PRISM की रूप-रेखा असरदार प्रबंधन (मैनेजमेंट) की पद्धतियों के महत्व पर ज़ोर देती है. मज़बूत नेतृत्व, काम करने वालों के विकास और गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली (क्वॉलिटी मैनेजमेंट सिस्टम) को बढ़ावा देकर पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरी क्षमता तैयार कर सकती हैं और ये सुनिश्चित कर सकती हैं कि अच्छी क्वॉलिटी की लैबोरेटरी सेवाएं देने के लिए उनके पास ज़रूरी संसाधन हों. वैश्विक स्तर पर सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों (बेस्ट प्रैक्टिसेज़) के मानदंड (बेंचमार्किंग) को देखते हुए IPHL (इंटीग्रेटेड पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरीज़) की निगरानी के लिए PRISM को इस्तेमाल करना हेल्थ और वेलनेस सिस्टम के सबसे बेहतर इस्तेमाल का एक सही तरीक़ा होगा.
मौजूदा चर्चा के संदर्भ में निगरानी को रखते हुए प्रस्तावित महामारी संधि बेहतर वैश्विक निगरानी और पहले चेतावनी देने की प्रणाली (अर्ली वॉर्निंग सिस्टम) की ज़रूरत को उजागर करती है ताकि आने वाले ख़तरों का पता लगाया जा सके और उनका जवाब दिया जा सके. इस तरह से IPHL बीमारियों की निगरानी और डायग्नोस्टिक सेवाओं को बेहतर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, साथ ही स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े लोगों की क्षमता का निर्माण कर सकती है. इसके अलावा PRISM को अपनाने से पब्लिक हेल्थ लैबोरेटरी अपने प्रदर्शन को सुधारने, ग़ौर करने लायक नतीजा हासिल करने, इनोवेशन को बढ़ावा देने, असरदार रणनीति विकसित करने और मज़बूत मैनेजमेंट पद्धति को लागू करने पर भी ध्यान दे सकती हैं. इस तरह PRISM बेहतर स्वास्थ्य के नतीजों में योगदान देता है. कुल मिलकर IPHL की स्थापना और PRISM के ढांचे को अपनाना भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली (पब्लिक हेल्थ सिस्टम) को मज़बूत करने में और बीमारी का पता लगाने, निगरानी और नियंत्रण की मौजूदा चुनौतियों का समाधान करने में एक व्यापक नज़रिया पेश करते हैं.
वायोला सैवी डिसूज़ा प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ पॉलिसी की PhD स्कॉलर हैं.
डॉ. संजय पट्टनशेट्टी मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन के डिपार्टमेंट ऑफ ग्लोबल हेल्थ गवर्नेंस के प्रमुख और सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी के कोऑर्डिनेटर हैं.
डॉ. हेलमुट ब्रैंड मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन के प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के फाउंडिंग डायरेक्टर हैं.
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