Author : Shashi Tharoor

Published on Dec 14, 2020 Updated 0 Hours ago

कमला हैरिस की उपलब्धि अमेरिका के लिए अनूठी है. लेकिन, ये इस बात की भी याद दिलाता है कि कई मामलों में अव्वल अमेरिका जैसे देश को भी लैंगिक विभेद की आख़िरी दीवार गिराने के लिए वर्ष 2020 तक का इंतज़ार करना पड़ा

भारतीय मूल की कमला हैरिस और ‘राजनीतिक’ महिला आंदोलन

जिस रात जो बाइडेन और कमला हैरिस के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने की ख़बर आई, उस रात नारे लगाती, ताली बज़ाती, हुंकारती भीड़ और कुछ रोते हुए समर्थकों के सामने खड़े होकर कमला हैरिस ने जैसा भाषण दिया वो उस ऐतिहासिक मौक़े के बिल्कुल अनुरूप था.

सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए उस रात दर्शकों ने मंच के बाहर कारें पार्क की हुई थीं और उन्हीं पर बैठे या खड़े थे. मौक़े के मुताबिक़ सफ़ेद लिबास पहने कमला हैरिस, महिलाओं को वोटिंग के अधिकार दिलाने के लिए चले आंदोलन की याद दिला रही थीं. अब तो सफ़ेद लिबास उनकी पहचान बनता जा रहा है. उस रात कमला हैरिस ने जज़्बाती होकर ऐलान किया कि, ‘आज मैं अपनी मां के बारे में सोच रही हूं और पूरी एक पीढ़ी की अश्वेत, एशियाई, गोरी और लैटिन अमेरिकी व अमेरिका की आदिवासी महिलाओं के बारे में सोच रही हूं जिन्होंने इस देश के इतिहास के हर मोड़ पर एक निर्णायक भूमिका निभाई और उसी के चलते आज का लम्हा संभव हो सका.’

कमला पूरे देश में हुए चुनाव में एक राष्ट्रीय पद के लिए चुनी गई ऐसी महिला हैं जो अश्वेत, दक्षिण एशियाई और कैरेबियाई पूर्वजों से आती हैं. सोने पर सुहागा ये कि कमला के पति यहूदी हैं. अमेरिका की हज़ारों अश्वेत लड़कियों ने, ‘मेरी उप-राष्ट्रपति मेरे जैसी दिखती हैं’ लिखी हुई टी-शर्ट पहनीं और जिनकी तस्वीरें बाद के दिनों में वायरल हुईं.

ये लम्हा बेहद अर्थपूर्ण था और उस रात झंडे लहराते हुए सैकड़ों प्रसन्न कार्यकर्ताओं के लिए उस क्षण ने एक ऐसी ऐतिहासिक ताबीर लिखी है, जो कुछ लोगों की नज़र में मुमकिन ही नहीं लगती थी. अमेरिका की पहली निर्वाचित महिला उप-राष्ट्रपति के तौर पर कमला हैरिस, अपने देश के कई अल्पसंख्यक समुदायों की एक साथ नुमाइंदगी करती हैं. जैसे कि कमला पूरे देश में हुए चुनाव में एक राष्ट्रीय पद के लिए चुनी गई ऐसी महिला हैं जो अश्वेत, दक्षिण एशियाई और कैरेबियाई पूर्वजों से आती हैं. सोने पर सुहागा ये कि कमला के पति यहूदी हैं. अमेरिका की हज़ारों अश्वेत लड़कियों ने, ‘मेरी उप-राष्ट्रपति मेरे जैसी दिखती हैं’ लिखी हुई टी-शर्ट पहनीं और जिनकी तस्वीरें बाद के दिनों में वायरल हुईं. कमला हैरिस ने उनकी उम्मीदों के क्षितिज का विस्तार किया है.

मगर, उस रात कमला हैरिस की शान में पढ़े गए तमाम क़सीदों में एक झुठलाने वाली बात थी. एक महिला के उप-राष्ट्रपति के पद तक पहुंचने का जश्न मनाते हुए, कमला हैरिस ने बड़े गर्व से कहा कि वो यहां तक पहुंचने वाली पहली महिला ज़रूर हैं, लेकिन आख़िरी नहीं. कमला ने कहा कि मेरी मां श्यामला गोपालन, जब 1959 में केवल 19 वर्ष की उम्र में भारत से अमेरिका आई थीं. उन्हें ये विश्वास था कि अमेरिका में ऐसा होना संभव है. मगर, कमला ने कहा कि शायद उनकी मां को भी ऐसे पलों के आने का यक़ीन नहीं रहा होगा.

अमेरिका में मिली अभूतपूर्व सफलता

आख़िर क्यों नहीं? कमला हैरिस की तारीफ़ करने वाला कोई भी भारतीय ये सवाल कर सकता है. हो सकता है कि अमेरिका में किसी महिला के उप-राष्ट्रपति चुने जाने की कल्पना करना मुश्किल हो. क्योंकि, अमेरिका के लंबे इतिहास में, वहां की दोनों प्रमुख पार्टियों के बीच से अब तक केवल एक बार एक महिला को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया गया है और उप-राष्ट्रपति के लिए केवल दो बार महिलाओं को नामांकित किया गया-और सभी असफल रहे. लेकिन, दक्षिण एशिया में तो महिलाओं ने ये मुकाम बहुत पहले हासिल कर लिया था. किशोरवय की श्यामला गोपालन के अमेरिका पहुंचने के बस एक ही वर्ष बाद, 1960 में सिरीमावो भंडारनायके, अपने पति और उस वक़्त देश के प्रधानमंत्री रहे सोलोमन भंडारनायके की दुख़द हत्या के बाद श्रीलंका की प्रधानमंत्री चुनी गई थीं.

भारत में इंदिरा गांधी जनवरी 1966 में देश की प्रधानमंत्री बनी थीं. उन्होंने 1980 में दोबारा चुनाव जीता और 1984 में दुख़द रूप से हत्या होने तक प्रधानमंत्री का पद संभाला था. भंडारनायके ने तो 1970-77 और फिर 1994-2000 के दौरान देश की प्रधानमंत्री का पद संभाला था.

उसके बाद से ही एशिया में महिला शासनाध्यक्षों की लंबी फ़ेहरिस्त बनने की शुरुआत हुई थी. भारत में इंदिरा गांधी जनवरी 1966 में देश की प्रधानमंत्री बनी थीं. उन्होंने 1980 में दोबारा चुनाव जीता और 1984 में दुख़द रूप से हत्या होने तक प्रधानमंत्री का पद संभाला था. भंडारनायके ने तो 1970-77 और फिर 1994-2000 के दौरान देश की प्रधानमंत्री का पद संभाला था. पीएम के तौर पर भंडारनायके के आख़िरी कार्यकाल के दौरान इत्तेफ़ाकन उनकी बेटी चंद्रिका कुमारतुंगा श्रीलंका की राष्ट्रपति बन गई थीं.

सीमा के पार, बेनज़ीर भुट्टो पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री चुनी गईं. बेनज़ीर तो किसी मुस्लिम देश की पहली महिला प्रमुख थीं. बेनज़ीर पहली बार 1988 में प्रधानमंत्री चुनी गई थीं और उन्हें 1993 में दोबारा प्रधानमंत्री चुना गया था. इसी तरह ख़ालिदा ज़िया 1991 में बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी थीं. इसके बाद शेख़ हसीना वाज़ेद, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं. उन्हें पहली बार वर्ष 1996 में बांग्लादेश की पीएम चुना गया और 2008 में वो दोबारा चुनी गईं. शेख़ हसीना अभी भी बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं. हमारे गणतंत्र की पहली महिला राष्ट्राध्यक्ष के तौर पर प्रतिभा पाटिल ने एक दशक से भी ज़्यादा समय पहले देश की राष्ट्रपति (वर्ष 2007-2012) का पद संभाला था.

तो, जहां तक कमला हैरिस का सवाल है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका की पहली महिला उप-राष्ट्रपति बनकर उन्होंने इतिहास रचा है और भारतीयों के लिए दिलचस्पी रखने की बात ये है कि इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला का कुछ संबंध दक्षिण एशिया से भी है. लेकिन, दक्षिण एशिया  जहां से कमला हैरिस की मां का संबंध था, वहां पर किसी महिला के देश का सर्वोच्च पद संभालने की परिकल्पना बहुत पुरानी है.

महिलाओं को देश के ऊंचे पदों पर चुनकर बिठाने के मामले में अमेरिका, अन्य लोकतांत्रिक देशों के मुक़ाबले काफ़ी पीछे रहा है. यहां तक कि अनुदारवादी देश भी इस मामले में अमेरिका से आगे रहे हैं.

ये बात तर्क बिल्कुल सही है कि महिलाओं को देश के ऊंचे पदों पर चुनकर बिठाने के मामले में अमेरिका, अन्य लोकतांत्रिक देशों के मुक़ाबले काफ़ी पीछे रहा है. यहां तक कि अनुदारवादी देश भी इस मामले में अमेरिका से आगे रहे हैं. आज से लगभग आधी सदी पहले गोल्डा मेयर वर्ष 1969 में इज़राइल की चौथी प्रधानमंत्री चुनी गई थीं. उन्होंने 1974 तक ये पद संभाला था. और पूरी दुनिया में बहुत सी महिलाओं ने गोल्डा मेयर का अनुकरण किया. ब्रिटेन की आयरन लेडी मार्गरेट थैचर ने अपने देश की प्रधानमंत्री के तौर पर 1979 से 1992 तक राज किया था. विगडिस फिनबोगाडोटिर ने आइसलैंड की पहली चुनी हुई महिला राष्ट्रपति के तौर पर वर्ष 1980 से 1996 तक राज किया. जर्मनी में एंगेला मर्केल 2005 से अब तक चांसलर का पद संभाल रही हैं. आज की दुनिया में मर्केल जैसी राष्ट्राध्यक्ष का विकल्प तलाश पाना बेहद मुश्किल है. 

सर्वोच्च पदों पर आसीन महिलाएं

महिलाओं के ऊंचे पदों तक पहुंचने की ये लिस्ट बहुत लंबी है. हाल के दिनों में सर्वोच्च पदों पर पहुंचने वाली महिलाओं में ब्राज़ील की राष्ट्रपति रही दिलमा रूसेफ, साउथ कोरिया कि पार्क ग्यून-हाये, स्विटज़रलैंड की साइमोनेटा सोमारुगा, मॉरीशस की अमीना ग़रीब-फ़कीम और क्रोएशिया की कोलिंडा ग्रैबर-कितारोविच (जो अपने देश की सबसे युवा राष्ट्राध्यक्ष भी बनीं) शामिल हैं. कई अन्य देशों में भी महिलाओं ने ऐसे मकाम हासिल किए हैं. जैसे कि फिलीपींस की कोराज़ान अक़ीनो, इंडोनेशिया की मेगावती सुकर्णोपुत्री, थाईलैंड कि यिंगलक शिनावात्रा और किर्गीज़िस्तान की रोज़ा ओटुनबायेवा. ये लिस्ट बहुत लंबी है. इस समय बांग्लादेश, एस्टोनिया, इथियोपिया, ग्रीस और म्यामांर (ज़मीनी स्तर पर) की राष्ट्राध्यक्ष महिलाएं ही हैं.

सच तो ये है कि कमला हैरिस भले ही अमेरिका की पहली चुनी हुई महिला उप राष्ट्रपति हैं. लेकिन, वो किसी देश की राष्ट्रपति के तौर चुनी जाने वाली पहली अमेरिकी महिला भी नहीं हैं. ये ख़िताब तो जैनेट रोज़ेनबर्ग जगन नाम की श्वेत यहूदी अमेरिकी महिला के नाम है. जैनेट, गुयाना के लोकप्रिय राजनेता छेदी जगन की पत्नी थीं. 1997 में पति के देहांत के बाद जैनेट ने गुयाना के राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा था. वो दो साल तक राष्ट्रपति के पद पर रही थीं.

सच तो ये है कि कमला हैरिस भले ही अमेरिका की पहली चुनी हुई महिला उप राष्ट्रपति हैं. लेकिन, वो किसी देश की राष्ट्रपति के तौर चुनी जाने वाली पहली अमेरिकी महिला भी नहीं हैं. ये ख़िताब तो जैनेट रोज़ेनबर्ग जगन नाम की श्वेत यहूदी अमेरिकी महिला के नाम है.

हक़ीकत तो ये है कि जैनेट की कहानी ये इशारा करती है कि, भले ही सारी महिलाएं न सही, लेकि कुछ महिला राजनेताओं को ताक़तवर राजनेताओं से अपने संबंधों या विरासत का लाभ मिला है. अक्सर महिलाओं की राजनीतिक तरक़्क़ी में ख़ानदानी सियासत ने अहम भूमिका निभाई है. लेकिन, एशियाई देशों की राजनीति में महिलाओं के शीर्ष पदों तक पहुंचने का रिकॉर्ड फिर भी बेहद शानदार है. हालांकि, ये तर्क दिया जा सकता है कि ये अपनी मेहनत से ऊंचे पदों पर पहुंचने वाली महिलाओं के संघर्ष की सफलता नहीं कहा जा सकता. न ही ये कहा जा सकता है कि कुछ गिनी-चुनी महिलाओं की कामयाबी से राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है. बल्कि, महिलाओं के माध्यम से सत्ता में पारिवारिक राजनीतिक पकड़ को ही आगे बढ़ाया गया है.

फिर भी ये बात तो कही ही जा सकती है कि पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी होने के बावजूद, हिलेरी क्लिंटन को अमेरिकी जनता के बहुमत का समर्थन नहीं मिला. जबकि इसी अमेरिकी मतदाता ने उनके पति को दो बार राष्ट्रपति का चुनाव जिताया. अमेरिका में अब भी महिलाओं से भेदभाव होता है. जबकि, अन्य देशों में इस भेदभाव ने महिलाओं की सियासी तरक़्क़ी को नहीं रोका. बहुत सी महिलाएं, कमला हैरिस के पति डगलस एमहॉफ के देश के पहले, ‘सेकेंड जेंटलमैन’ होने का लुत्फ़ उठा रही हैं. पर सच ये है कि डेनिस थैचर से लेकर आसिफ अली ज़रदारी तक, दुनिया में तमाम ऐसे मर्दों की मिसालें मिलती हैं, जिन्होंने अपनी प्रभावशाली पत्नी के साये तले जीवन गुज़ारा है और ऐसी परिस्थिति के लिहाज़ से ख़ुद को ढाला है.

ऐसे में ये ज़रूर कहा जा सकता है कि कमला हैरिस की उपलब्धि अमेरिका के लिए अनूठी है. लेकिन, ये इस बात की भी याद दिलाता है कि अमेरिका, जिसे मानवीय प्रयासों के कई क्षेत्रों में अव्वल होने का दर्जा हासिल है, उसे भी लैंगिक विभेद की आख़िरी दीवार गिराने के लिए वर्ष 2020 तक का इंतज़ार करना पड़ा.


ये लेखक के अपने विचार हैं.

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