Author : Sushant Sareen

Published on Jan 10, 2020 Updated 0 Hours ago

अविश्वास के ऐसे माहौल के साथ ही भारत और पाकिस्तान ने 2020 का आग़ाज़ किया है. दोनों देशों के संबंध जो बेहद तल्ख़ हो चुके हैं और एक दूसरे को धमकियां देने के स्तर तक पहुंच चुके हैं.

नए दशक में भारत पाकिस्तान के रिश्ते: इतिहास ख़ुद को ही दोहराएगा

अगर कोई बहुत बड़ी या नाटकीय घटना नहीं होती है, तो इस नए दशक का पहला साल या फिर इक्कीसवीं सदी के इस दूसरे और नए दशक के ज़्यादातर हिस्से में भारत और पाकिस्तान के संबंध में कोई सकारात्मक बदलाव आने की संभावना न के बराबर है. बल्कि हम ये कहें कि फ़िलहाल तो हालात ऐसे हैं कि दोनों पड़ोसी देशों के बीच रिश्ते और ख़राब होने के लिए ही माकूल माहौल बना हुआ है. इस रिश्ते में सुधार की तो कोई गुंजाईश नहीं दिखती. भारत और पाकिस्तान के बीच इस समय जो भयंकर तनातनी है, उसे देखते हुए ये भी एक उपलब्धि ही होगी, अगर हम हालात को और बिगड़ने से बचा सकें.

कई मायनों में 2019 की घटनाओं ने ही ये तय कर दिया है कि 2020 का साल, भारत और पाकिस्तान के संबंध के लिहाज़ से कैसा रहने वाला है. बल्कि, पिछले साल हुई घटनाओं ने 2020 के दशक के लिए ही भारत-पाकिस्तान के रिश्तों की दशा-दिशा तय कर दी है. 2019 के शुरुआती महीनों में ही पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने पुलवामा का आत्मघाती हमला किया था. इस आतंकवादी हमले में CRPF के 40 से ज़्यादा जवान शहीद हो गए थे. इस घटना के बाद से ही दोनों देशों के संबंधों में तेज़ी से गिरावट का दौर शुरू हो गया था. पुलवामा हमले के कुछ ही दिनों के भीतर, भारत ने पिछले तीन दशक से अपने ऊपर ख़ुद से लगाई बंदिशों से आज़ाद होते हुए, पाकिस्तान के बालाकोट पर हवाई हमले किए थे. ऐसा पहली बार हुआ था, जब भारत ने पीओके नहीं, बल्कि पाकिस्तान की असल सीमा के भीतर जा कर, उस के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वाह सूबे में स्थित, जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी कैम्प को निशाना बनाया था. कुछ ही दिनों के भीतर पाकिस्तान ने भी भारत के इस हमले का जवाब दिया. और एक वक़्त तो ऐसा लग रहा था कि दोनों देशों के बीच एलान-ए-जंग हो गया है. क्योंकि ऐसी ख़बरें आ रही थीं कि भारत, पाकिस्तान के कई ठिकानों पर एक साथ मिसाइल हमले करने की योजना बना रहा था. और पाकिस्तानी ये चेतावनी दे रहे थे कि वो ऐसे किसी मिसाइल हमले का मिसाइल हमले से ही जवाब देंगे.

भारत ने पाकिस्तान को ये संदेश भी दे दिया कि अब वो बेख़ौफ़ हो कर भारत पर आतंकवादी हमले का जोखिम लेने की स्थिति में नहीं रह गया है. अब अगर पाकिस्तान ऐसा करता है, तो भारत इस बात की चिंता किए बग़ैर पाकिस्तान पर पलटवार करेगा कि पड़ोसी देश के पास एटम बम का सुरक्षा कवच है

हालांकि, दोनों ही देशों ने, युद्ध के बेहद क़रीब जा कर अपने पांव पीछे खींच लिए. लेकिन, इस पूरी घटना से ये स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से पीड़ित भारत के सब्र का प्याला न केवल पूरी तरह से भर गया है, बल्कि अब छलकने भी लगा है. भारत ने पाकिस्तान को ये संदेश भी दे दिया कि अब वो बेख़ौफ़ हो कर भारत पर आतंकवादी हमले का जोखिम लेने की स्थिति में नहीं रह गया है. अब अगर पाकिस्तान ऐसा करता है, तो भारत इस बात की चिंता किए बग़ैर पाकिस्तान पर पलटवार करेगा कि पड़ोसी देश के पास एटम बम का सुरक्षा कवच है. और, पाकिस्तान मज़े से, इस की आड़ लेकर भारत में हमला करने के लिए आतंकवादी भेजता रहेगा. हक़ीक़त ये है कि सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद से निपटने के भारत के इस नए तरीक़े ने भारत और पाकिस्तान के संबंधों में नई दुविधा और अनिश्चितता को जन्म दिया है. अब पाकिस्तान इस बात को ले कर निश्चिंत नहीं रह सकता है कि अगर उस के पाले-पोसे आतंकवादी भारत में दहशतगर्दी फैलाते हैं, तो भारत की प्रतिक्रिया क्या होगी.

जिस समय भारत और पाकिस्तान आपसी संबंध में जुड़े इस नए आयाम के मुताबिक़ ख़ुद को ढाल रहे थे, उसी समय भारत में आम चुनाव हुए थे. जिस में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी, दोबारा भारी बहुमत से सत्ता में आ गई. बीजेपी और मोदी की पहले से बड़ी इस जीत का कुछ श्रेय, पाकिस्तान के आतंक को मोदी सरकार के मुंहतोड़ जवाब वाली कार्रवाई को भी दिया गया. एक तरह से इस कार्रवाई ने अब एक पैमाना तय कर दिया है, जिस के आधार पर आने वाली भारतीय सरकारों को पाकिस्तान के साथ संबंध को लेकर परखा जाएगा. आगे चल कर, अगर पाकिस्तान कोई उकसावे वाली कार्रवाई करता है. और कोई भारतीय सरकार सैन्य कार्रवाई से उसका जवाब नहीं, तो ये उस के लिए राजनीतिक ख़ुदकुशी करने जैसा होगा.

अगस्त 2019 में हुए दूसरे क्रांतिकारी परिवर्तन ने तो पाकिस्तान को झकझोर कर रख दिया. भारत की मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को क़रीब-क़रीब ख़त्म कर दिया और, अनुच्छेद 35A को भी अलविदा कह दिया. साथ ही सरकार ने जम्मू-कश्मीर का बंटवारा कर के इसे, दो केंद्र शासित प्रदेशों में तब्दील कर दिया. इस से भी पाकिस्तान को भयंकर सदमा लगा. हालांकि ये ज़बरदस्त क़दम सांसें रोक देने वाला था. लेकिन, ये फ़ैसला ले कर बालाकोट हवाई हमले के बाद पाकिस्तान के साथ संबंधों में जो गुंजाईश बची थी, वो भी भारत ने ख़त्म कर दी. पाकिस्तान ने उम्मीद के मुताबिक़ ही इस क़दम पर भी प्रतिक्रिया दी. पाकिस्तान चीखा-चिल्लाया. उस ने दुनिया भर में शोर मचाया कि भारत, कश्मीर में रक्तपात की तैयारी कर रहा है. उस ने ये आशंका जता कर दुनिया को डराने की कोशिश की कि भारत के इस क़दम की वजह से लाखों लोग कश्मीर से पाकिस्तान कूच कर देंगे. भारत सरकार के इस फ़ैसले से कश्मीर की आबादी की संरचना बदल जाएगी और नरसंहार शुरू हो जाएगा, वग़ैरह..वग़ैरह.

उम्मीद के मुताबिक़, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने भारत के साथ कूटनीतिक संबंधों का दर्जा घटाने का एलान किया. पाकिस्तान में भारत के राजदूत को निष्कासित कर दिया गया और पाकिस्तान ने भारत के साथ हर तरह का कारोबार बंद कर दिया. यूं भी, बालाकोट हमले के बाद भारत ने, पाकिस्तान को दिया मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन का दर्जा वापस ले लिया था और पाकिस्तान से आयात पर शुल्क दो सौ फ़ीसद बढ़ा दिया था. तो उस के बाद से ही दोनों देशों के बीच व्यापार नाम-मात्र को ही रह गया था. हालांकि, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को कुछ ही दिनों के बाद भारत से व्यापार बंद करने का ये फ़ैसला पलटना पड़ा. क्योंकि, पाकिस्तान के लोगों को ये एहसास हो गया था कि उन्हें हिंदुस्तान से दवाओं के आयात की सख़्त ज़रूरत है. इस के बावजूद, कश्मीर पर भारत के इंक़लाबी क़दम के बाद से ही आज की तारीख़ में भारत और पाकिस्तान के बीच नाम के संबंध रह गए हैं. दोनों ही देशों के राजनयिक संबंध सीमित हैं. भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक संवाद कम-ओ-बेश ख़त्म ही है.

अनुच्छेद 370 हटाने के बाद बढ़ी तनातनी के दौरान ही पाकिस्तान ने भारत के सा करतारपुर गलियारा खोलने के फ़ैसले को लागू किया. हालांकि उम्मीद रखने वालों ने पाकिस्तान के इस क़दम से काफ़ी उम्मीदें बांधीं. मगर हक़ीक़त पसंद लोगों का मानना है कि करतारपुर गलियारा खोलने के पीछे भी पाकिस्तान की नेकनीयती नहीं है. वो इस के माध्यम से खालिस्तान आंदोलन में नई आग फूंकना चाहता है. इसीलिए, करतारपुर गलियारा खुलने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच जिसे एक सकारात्मक पहल कहा जा रहा था, वो भी भयंकर संदेह के दायरे में आ गई. ये वही अविश्वास है, जो दोनों देशों के आपसी संबंधों की पहचान बन चुका है.

इस समय पाकिस्तान में आर्मी चीफ़ के कार्यकाल को बढ़ाने को लेकर काफ़ी उठा-पटक चल रही है. जब ये हलचल शांत होगी, तब भी इस बात की उम्मीद ज़्यादा है कि बाजवा हों या फिर कोई और जनरल, पाकिस्तान की फ़ौज, भारत से तनाव को बढ़ावा ही देगी.

अविश्वास के ऐसे माहौल के साथ ही भारत और पाकिस्तान ने 2020 का आग़ाज़ किया है. दोनों देशों के संबंध जो बेहद तल्ख़ हो चुके हैं और एक दूसरे को धमकियां देने के स्तर तक पहुंच चुके हैं (आशंका इस बात की भी है कि ऐसी धमकियां कहीं किसी हादसे का सबब न बन जाएं). और ये गीदड़भभकी, भारत-पाकिस्तान संबंधों से जुड़ी महज़ एक समस्या है. क्षेत्रीय सामरिक संबंधों में बनते नए आयाम की वजह से भी भारत और पाकिस्तान के रिश्ते और पेचीदा होने की आशंकाएं जताई जा रही हैं. द्विपक्षीय स्तर की बात करें तो, जब तक इमरान ख़ान पाकिस्तान की सत्ता में हैं, तब तक भारत के प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ उन के ज़हरीले और वाहियात बयानों से हालात में और विषाक्तता भरती रहेगी. लेकिन, अगर इमरान ख़ान की जगह कोई और भी पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनता है, तो वो भी इमरान ख़ान द्वारा लिए गए सख़्त स्टैंड से पीछे नहीं हट सकेगा. क्योंकि इमरान ख़ान का भारत के ख़िलाफ़ जो सख़्त रवैया है, उसे पाकिस्तान की फ़ौज के साथ साथ वहां के कट्टरपंथी मुल्ला, मुजाहिदीन और मीडिया के साथ-साथ, पाकिस्तानी अवाम भी बहुत पसंद करते हैं. और जहां तक इमरान ख़ान की बात है, तो वो चूंकि बहुत अक़्लमंद इंसान नहीं हैं-वो अक्सर वही बातें दोहराते हैं, जो कोई उन के कान में फ़ुसफ़ुसा कर कहता है- तो उन से कुछ ख़ास उम्मीद लगाना ही बेमानी है. ऐसे में बस यही हो सकता है कि वो अपनी यू-टर्न नेता की छवि के मुताबिक़, भारत और प्रधानमंत्री मोदी के संदर्भ में कोई बहुत बड़ा यू-टर्न न ले लें. लेकिन, ऐसा होने के लिए उन्हें अपने असल हुक्मरानों यानी पाकिस्तान के जनरलों की रज़ादमंदी और उन के दबाव की ज़रूरत होगी. और इस बात की तो क़तई संभावना नहीं है.

इस समय पाकिस्तान में आर्मी चीफ़ के कार्यकाल को बढ़ाने को लेकर काफ़ी उठा-पटक चल रही है. जब ये हलचल शांत होगी, तब भी इस बात की उम्मीद ज़्यादा है कि बाजवा हों या फिर कोई और जनरल, पाकिस्तान की फ़ौज, भारत से तनाव को बढ़ावा ही देगी. हां, इस के लिए बहाना तो कश्मीर को ही बनाया जाएगा, जहां सर्दियों के बाद आतंकवाद में इज़ाफ़ा होने की पूरी आशंका है. अब कुछ भी हो, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के साथ-साथ, उस का ख़ुद को इस्लाम के गढ़ देश का स्वयंभू अवतार कहना भी जारी रहेगा. ख़ास तौर से भारतीय उप-महाद्वीप के मुसलमानों संदर्भ में. ये बिल्कुल तय है कि पाकिस्तान, पंजाब में अलगाववाद की आग को फिर भड़काएगा. जनमत संग्रह 2020 इस की एक मिसाल है. साथ ही वो भारत के मुसलमानों को भड़काने की भी भरसक कोशिशें जारी रखेगा. हो सकता है कि वो इंडियन मुजाहिदीन जैसे किसी और आतंकवादी संगठन को खड़ा करे. ताकि, कोई आरोप लगने की सूरत में पाकिस्तान इस में अपना हाथ होने से पल्ला झाड़ सके. और ये कहे कि ये तो भारतीयों का ही संगठन है.

भारत में इस वक़्त सीएए-एआरसी-एनपीआर को ले कर जो हल्ला मचा हुआ है, पाकिस्तान इसे भुना कर भी भारत के लिए मुश्किलें पैदा करने की भरपूर कोशिशें करेगा. इन के हवाले से वो विश्व स्तर पर भारत के ख़िलाफ़ अपने ज़हरीले दुष्प्रचार को भी हवा देना चाहेगा. यक़ीन मानिए कि पाकिस्तान हर मंच का उपयोग कश्मीर के मसले पर शोर मचाने के लिए करेगा. मुश्किल नहीं है अगर पाकिस्तान, पशुपालन और जलवायु परिवर्तन के मंचों पर भी ये हंगामा खड़ा करे. इस के साथ-साथ पाकिस्तान, भारत में उठ रही विरोध की आवाज़ों, ख़ास तौर से अल्पसंख्यकों की शिकायतों के हवाले से भारत के ख़िलाफ़ अपने नकारात्मक अभियान को जायज़ ठहराने की कोशिश करेगा. साफ़ है कि पाकिस्तान की ऐसी कोशिशों के चलते, दोनों देशों के बीच किसी भी तरह से संबंध बेहतर होने की कोई गुंजाईश नहीं दिखती.

दक्षिण एशिया में चीन की दख़लंदाज़ी भी एक मसला होगा. ये न केवल सीपीईसी की वजह से होगा, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र की रणनीति के लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण होगा. भारत, जितना ही अमेरिका और इसके सहयोगी देशों के साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाकर चीन को घेरने की कोशिश करेगा

इस वक़्त जो क्षेत्रीय सामरिक माहौल है, वो भी भारत और पाकिस्तान के बीच अच्छे रिश्तों के लिए हमवार नहीं है. अफ़ग़ानिस्तान में पश्चिमी देशों की मौजूदगी ख़त्म होने के बाद, भारत और पाकिस्तान में वहां दबदबा बनाने की होड़ और तेज़ होगी. नए समीकरण बनेंगे भी और बिगड़ेंगे भी. दक्षिण एशिया में चीन की दख़लंदाज़ी भी एक मसला होगा. ये न केवल सीपीईसी की वजह से होगा, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र की रणनीति के लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण होगा. भारत, जितना ही अमेरिका और इसके सहयोगी देशों के साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाकर चीन को घेरने की कोशिश करेगा, चीन भी पाकिस्तान की मदद से भारत को परेशान करने की उतनी ही चालें चलेगा. और अगर भारत, प्रशांत क्षेत्र में आक्रामक रवैया न भी अपनाए, तो भी ये तय है कि चीन, क्षेत्रीय स्तर पर और विश्व मंचों पर भी, भारत के ख़िलाफ़ पाकिस्तान को भड़काता रहेगा और उसे मदद करता रहेगा. वहीं, भारत का ध्यान अपनी और हिंद-प्रशांत क्षेत्र की रणनीति की तरफ़ खींचने के लिए अमेरिका भी पाकिस्तान को मोहरा बनाता रहेगा.

रूस पहले ही पाकिस्तान के साथ संबंध बेहतर बनाने में जुटा हुआ है. 2020 में इस नई-नई दोस्ती को नई धार और गहराई मिलने की पूरी संभावना है. ज़ाहिर है, इस का असर भारत पर भी होगा. क्योंकि, अगर भारत का पुराना सहयोगी देश उस के क़रीब जाएगा, तो पाकिस्तान का हौसला बढ़ना तय है. भारत के पास कम से कम एक क्षेत्र में पाकिस्तान के ऊपर निर्णायक बढ़त थी और वो थी भारत की विशाल अर्थव्यवस्था. लेकिन, अब इस की चमक भी धूमिल पड़ चुकी है. इस बात की कोई संभावना नहीं है कि, 2020 में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था आईसीयू से बाहर आ सकेगी. अब ख़तरा ये है कि भारत की अर्थव्यवस्था भी कहीं आईसीयू में न पहुंच जाए. ऐसे हालात में, भारत पर दबाव और बढ़ेगा. इस का ये नतीजा होगा कि पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कार्रवाई की उस की क्षमता पर भी बुरा असर पड़ेगा. जहां तक क्षेत्रीय सहयोग संगठन सार्क (SAARC) की बात है, तो अभी इस के ठंडे बस्ते में ही पड़े रहने की ज़्यादा संभावना है. इस में तभी बदलाव होगा, अगर अगला सार्क शिखर सम्मेलन पाकिस्तान से बाहर आयोजित हो.

कुल मिलाकर कहें तो, भारत और पाकिस्तान के बीच किसी अर्थपूर्ण संवाद की संभावना बेहद कम है. जहां तक प्रधानमंत्री मोदी की बात है, तो वो अतीत में पाकिस्तान को ले कर यू-टर्न के लिए जाने जाते हैं. लेकिन, जिस तरह से पाकिस्तान के नेता, ख़ास तौर से प्रधानमंत्री इमरान ख़ान, मोदी को गालियां देते हैं, वैसे में इस बात की संभावना कम ही है कि मोदी के पास पाकिस्तान को लेकर किसी बड़े बदलाव के ज़्यादा विकल्प मौजूद हैं. ऐसा तभी संभव है, जब प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान के आगे झुकने के लिए तैयार हों. मसलन, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 दोबारा लागू कर दें. नागरिकता संशोधन क़ानून को वापस ले लें. एनआरसी का ख़याल त्याग दें. इन में से किसी भी बात की संभावना दूर-दूर तक नहीं नज़र आती. और पाकिस्तान में अगर कोई नई सरकार आ भी जाती है, तो दोनों देशों के संबंधों को निर्धारित करने वाली बुनियादी बातों में कोई बदलाव नहीं आने जा रहा है.

इसीलिए, अगर कोई मुंगेरी लाल के हसीन सपने भी देख रहा है, तो भी भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में ज़्यादा से ज़्यादा यही हो सकता है कि दोनों देश आपसी राजनयिक संबंधों को दोबारा पूरी तरह से बहाल कर दें. दोनों देशों के बीच कारोबार फिर से शुरू हो जाए. भारत और पाकिस्तान के बीच आवाजाही थोड़ी आसान हो जाए. इस से इतर, दोनों देशों के बीच एक दूसरे के चीथड़े उड़ाने और बदनाम करने की नीतियों पर अमल का सिलसिला जारी रहेगा. भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर सरगर्मी बनी रहेगी. पाकिस्तान से भारत को आतंकवाद का निर्यात एक समस्या बना रहेगा. लेकिन, संभवत: ये भारत के बर्दाश्त करने की क्षमता के दायरे में ही रहेगा. दूसरे शब्दों में कहें, तो भारत-पाकिस्तान के संबंध पहले जैसे ही रहेंगे.

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