Published on Jan 21, 2022 Updated 0 Hours ago

मई 2020 से ही भारत और चीन के बीच सीमा पर ज़बरदस्त तनाव का माहौल बना हुआ है और ऐसा लग रहा है कि अभी लंबे वक़्त तक यही सिलसिला चलने वाला है.

भारतीय सेना: उभरती तकनीक और परंपरागत हथियार माध्यमों के सही तालमेल से ही बनेगा भविष्य का रास्ता

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मार्च 2020 में थल सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने दो टूक अंदाज़ में एक बात कही थी. उन्होंने ज़ोर देकर कहा था कि, “बीसवीं सदी के बड़े जंगी हथियार जैसे युद्धक टैंक और लड़ाकू विमान अब बीते ज़माने की चीज़ बनते जा रहे हैं.” अपनी बात को आगे विस्तार से समझाते हुए उनका कहना था कि “भविष्य में होने वाली जंगों में फ़ौज की तादाद की बजाए तकनीकी श्रेष्ठता ही लड़ाई जीतने का अहम कारक बनकर उभरेगी. फ़ौजी ढांचों के भौतिक स्वरूपों की अहमियत कम होती चली जाएगी. दूसरी ओर क़ाबिलियत बढ़ाने वाले दायरों जैसे आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और साइबर आदि में मौजूद तकनीकी क्षमता से सैनिक ताक़त का संतुलन तय हुआ करेगा.”

चीनी फ़ौज भारत के नियंत्रण वाले भौगोलिक इलाक़ों तक आ धमकी थी. तनाव भरे हालातों के बीच 15 जून 2020 को गलवान घाटी में भारत और चीनी सैनिकों के बीच ज़बरदस्त ख़ूनख़राबा हुआ. इसमें 20 भारतीय जवान शहीद हो गए थे.

बहरहाल, टैंकों और लड़ाकू विमानों के चलन से बाहर हो जाने या उनकी अहमियत कम होते जाने को लेकर थल सेना प्रमुख का आकलन हक़ीक़त से दूर ही मालूम होता है. मार्च 2020 में जनरल नरवणे द्वारा कही गई इस बात के महज़ दो महीने के भीतर यानी मई में ही चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LaC) पर अचानक हमला कर दिया. चीनी फ़ौज भारत के नियंत्रण वाले भौगोलिक इलाक़ों तक आ धमकी थी. तनाव भरे हालातों के बीच 15 जून 2020 को गलवान घाटी में भारत और चीनी सैनिकों के बीच ज़बरदस्त ख़ूनख़राबा हुआ. इसमें 20 भारतीय जवान शहीद हो गए थे. चीन की पीएलए के भी पांच जवानों की जान चली गई थी. इलाक़े पर कब्ज़ा जमाने की चीनी वारदात के बाद भारत ने भी वास्तविक नियंत्रण रेखा के इर्द-गिर्द अपनी जवाबी फ़ौजी तैनाती बढ़ा दी. टैंकों, युद्धक हथियारों, इंफेंट्री और हवाई क्षमता की तैनाती की गई. तेज़ गति से हुए इस पूरे घटनाक्रम ने ज़ाहिर कर दिया कि मार्च में थल सेना प्रमुख द्वारा दिया गया बयान कितना अदूरदर्शी था. मई 2020 से ही भारत और चीन के बीच सीमा पर ज़बरदस्त तनाव का माहौल बना हुआ है और ऐसा लग रहा है कि अभी लंबे वक़्त तक यही सिलसिला चलने वाला है. 

अगस्त 2020 में कैलाश रेंज पर क़ब्ज़ा जमाकर भारत ने भी अपनी ओर से चीन को चकमा देने में कामयाबी पाई थी. हालांकि, आगे चलकर फ़रवरी 2021 में पैंगोंग सो के “फ़िंगर्स” इलाक़े से चीन के पीछे हटने पर भारत ने भी उस क्षेत्र को खाली कर दिया था. इसके बाद जुलाई 2021 में भारत और चीन दोनों ही गोगरा से पीछे हट गए. ग़ौरतलब है कि मई 2020 में चीन ने देपसांग, हॉट स्प्रिंग्स और डेमचोक के साथ-साथ गोगरा पर भी क़ब्ज़ा जमा लिया था. बहरहाल, गोगरा के अलावा बाक़ी तीनों इलाक़े “टकराव का केंद्र” बने हुए हैं और मई 2020 से इनपर चीन का क़ब्ज़ा बरकरार है. 

अपने बयान के दूसरे हिस्से में थल सेना प्रमुख ने उभरती तकनीक जैसे साइबर और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) की अहमियत पर ज़ोर दिया था. ज़ाहिर है इनके बढ़ते महत्व से कोई इनकार नहीं कर सकता. इसके साथ ही अंतरिक्ष और इलेक्ट्रॉनिक जंग जैसे सुस्थापित तकनीकी दायरों की अहमियत भी लगातार बढ़ती जा रही है.

अमेरिकी हथियार प्रणाली पर चीन की नज़र

इस पृष्ठभूमि में देखने पर थल सेना प्रमुख के बयान से कई बातें उभरकर सामने आती हैं. इससे ज़ाहिर होता है कि भारतीय सेना के शीर्षस्थ स्तर पर बैठा सदस्य अपनी ही फ़ौज के रिकॉर्ड और भारत सरकार द्वारा युद्ध क्षमता बढ़ाने और उनकी तैनाती के बारे में किए जा रहे प्रयासों से किस कदर अनजान बैठा है. अब थल सेना के ही संदर्भ में जनरल नरवणे के बयान से जुड़ी हक़ीक़त की पड़ताल करते हैं. पिछले क़रीब तीन वर्षों में ही भारतीय सेना ने बड़ी तादाद में भारी-भरकम फ़ौजी हार्डवेयर हासिल किए हैं. इनमें टैंक, जंगी हेलिकॉप्टर और आर्टिलरी बंदूकें शामिल हैं. अपने बयान के दूसरे हिस्से में थल सेना प्रमुख ने उभरती तकनीक जैसे साइबर और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) की अहमियत पर ज़ोर दिया था. ज़ाहिर है इनके बढ़ते महत्व से कोई इनकार नहीं कर सकता. इसके साथ ही अंतरिक्ष और इलेक्ट्रॉनिक जंग जैसे सुस्थापित तकनीकी दायरों की अहमियत भी लगातार बढ़ती जा रही है. हालांकि, अंतरिक्ष, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक और AI जैसी तकनीक फ़ौजी क्षमता में बढ़ोतरी करने वाले कारक हैं. 

इन तमाम तकनीकों से टैंक, आर्टिलरी बंदूकों या लड़ाकू विमानों जैसे हथियारों की क्षमता का विस्तार होता है. भले ही पूरी बारीकी से नहीं मगर फ़ौजी कमांडरों द्वारा तेज़ गति और ज़्यादा सटीक तरीके़ से निर्णय लेने में ये तमाम तकनीक बेहद मददगार साबित होती हैं. फ़ौजी कार्रवाई के वक़्त लक्ष्य का पता लगाने, उसकी पहचान करने और उसे तबाह करने में भी इनसे काफ़ी मदद मिलती है. इनके प्रयोग से तालमेल का स्तर बढ़ाकर और सेंसर के उपयोग के ज़रिए निशाना बनाने की क्षमताओं में इज़ाफ़ा होता है. अंतरिक्ष, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक जंगी क्षमताएं और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) नेटवर्क आधारित कार्रवाइयों (NCO) के लिए बेहद उपयोगी होते हैं. इन तकनीकों से युद्ध के उद्देश्यों की हिफ़ाज़त करने में मदद मिलती है. मैदान-ए-जंग में लड़ाई लड़ रही अलग-अलग और बिखरी हुई इकाइयों के बीच तालमेल और एक साझा तरीक़े से कार्रवाई सुनिश्चित करने में तकनीक का बड़ा अहम किरदार होता है. कार्रवाई और रणनीतिक स्तर पर जंग की लागत और परिश्रम के स्तर को नीचा रखने में भी तकनीक का ये पूरा तानाबाना काफ़ी मददगार साबित होता है. 

हक़ीक़त ये है कि अंतरिक्ष, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक और AI की चौकड़ी अकेले शत्रुओं को नहीं हरा सकती. वो पारंपरिक फ़ौजी माध्यमों का प्रदर्शन सुधारने में ज़रूर मदद कर सकती हैं. तकनीक के इस्तेमाल से फ़ौज अपनी जंगी क्षमताओं का और भी ज्यादा घातक तरीक़े से, सटीक निशाने वाला और प्रभावी प्रदर्शन कर सकती है.

ये तमाम तकनीक कमांड, नियंत्रण, संचार, कम्प्यूटर्स, ख़ुफ़िया जानकारियों, निगरानी और फ़ौजी टोह लगाने (C4ISR) से जुड़ी क्षमताओं की मज़बूत नींव रखने में बड़ी भूमिका निभाते हैं. इनसे वास्तविक परिस्थितियों के बारे में बारीक़ जानकारियों मिलती हैं. साथ ही सैनिक कमांडरों को फ़ौजी कार्रवाइयों से जुड़े तमाम हालातों के बारे में बेहतर समझ विकसित करने में भी ये मददगार साबित होते हैं. बहरहाल, थल सेना प्रमुख ने ख़ुद ही ये स्वीकार किया है कि अंतरिक्ष, साइबर, AI और इलेक्ट्रॉनिक जंगी तकनीकें महज़ “सक्षम बनाने वाली” टेक्नोलॉजी हैं. अगर सचमुच ऐसा ही है तो टैंकों, लड़ाकू विमानों और युद्धपोतों के चलन से बाहर होने या बीते ज़माने की चीज़ें बन जाने का सवाल ही कहां पैदा होता है. उनके बेकार या अनुपयोगी बनने की तो बात सोची भी कैसे जा सकती है. हक़ीक़त ये है कि अंतरिक्ष, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक और AI की चौकड़ी अकेले शत्रुओं को नहीं हरा सकती. वो पारंपरिक फ़ौजी माध्यमों का प्रदर्शन सुधारने में ज़रूर मदद कर सकती हैं. तकनीक के इस्तेमाल से फ़ौज अपनी जंगी क्षमताओं का और भी ज्यादा घातक तरीक़े से, सटीक निशाने वाला और प्रभावी प्रदर्शन कर सकती है. ज़ाहिर है इससे फ़ौज के ख़ास मकसद हासिल करने में मदद मिलती है. सैनिक मिशनों को अंजाम देने और दुश्मनों पर निर्णायक जीत हासिल करने में इन तमाम तकनीकों से काफ़ी सहायता मिलती है. ग़ौरतलब है कि आज के दौर के तमाम हथियार जैसे टैंक, लड़ाकू विमान, आर्टिलरी गन्स प्राथमिक तौर पर मानव द्वारा संचालित किए जाते हैं.  भविष्य में अगर हम इनका इस्तेमाल कम करने के बारे में सोचें भी, तो भी भावी फ़ौजी कार्रवाइयों को अंजाम देने के लिए मानवरहित लड़ाकू विमानों और टैंकों की अहमियत तो बनी ही रहेगी. हवाई लड़ाकू माध्यमों जैसे अमेरिका के मानवरहित लड़ाकू एयर व्हीकल (UCAV) में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की क्षमताओं और मुख्य भूमिका की मिसाल हमारे सामने है. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से संचालित ऐसे ही मानव रहित प्रणाली ने एक युद्धाभ्यास के दौरान अमेरिका के दो वरिष्ठ फ़ाइटर पायलटों को शिकस्त देने में कामयाबी पाई थी. निश्चित रूप से चीन ने इन घटनाक्रमों पर अपनी पैनी नज़र बनाए रखी है. अमेरिकी हथियार प्रणाली में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से तैयार किए जाने वाले तमाम ऐप्लिकेशंस पर चीन की बारीक निग़ाह बनी हुई है. अमेरिकी अनुभव से सबक़ लेते हुए चीन भी अपने स्तर से AI में निवेश कर रहा है. 

पाकिस्तान को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल

ग़ौरतलब है कि भारत के दावे वाले इलाक़ों पर चीनी फ़ौज के क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ भारत के फ़ौजी जमावड़े में भी टी-72 और टी-90 टैंकों की तैनाती शामिल रही है. हालांकि चीन और भारत की सीमा पर मौजूदा तनाव का दौर शुरू होने से पहले से ही इन टैंकों की तैनाती का काम चल रहा था. ज़ाहिर है इन तमाम हालातों से सीधे तौर पर थल सेना प्रमुख के आकलनों का अपने आप ही खंडन हो जाता है.  

दरअसल, थल सेना प्रमुख के बयान के साथ दिक़्क़त सिर्फ़ इतनी ही नहीं है कि वो काफ़ी सतही है. इस आकलन के साथ कई दूसरी बड़ी समस्याएं भी हैं. हाल में हुए कुछ फ़ौजी टकरावों के आधार पर ये कह देना कि बुनियादी स्तर पर टैंकों और लड़ाकू विमानों के इस्तेमाल से होने वाले परंपरागत युद्ध अब आगे नहीं होंगे, कतई मुनासिब नहीं है. ख़ासतौर से रूस के आसपास के घटनाक्रमों की बुनियाद पर ऐसा नतीजा निकालना कतई बुद्धिमानी नहीं होगी. ग़ौरतलब है कि रूस अपनी चौहद्दी के इर्द गिर्द अपने विरोधियों के ख़िलाफ़ लगातार जंगी कार्रवाइयां कर रहा है. हालांकि, वहां के हालात बिल्कुल अलग हैं. रूस के ये पड़ोसी देश रूस के मुक़ाबले बेहद कमज़ोर हैं. दूसरी ओर भारत का सामना चीन और पाकिस्तान जैसे विकट शत्रुओं के साथ है.

भारत के साथ मौजूदा टकराव के बीच चीन ने टाइप-15 हल्के टैंकों के साथ-साथ वज़नदार टैंकों को भी अपने बेड़े में शामिल कर तैनात किया है. इनके अलावा चीनी पक्ष लड़ाकू विमानों, आर्टिलरी और मिसाइल सिस्टमों पर भी ज़ोर-शोर से काम कर रहा है.  

पाकिस्तान को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता क्योंकि वहां की राज्यसत्ता में फ़ौज का भारी दबदबा है. पारंपरिक तौर पर भारत के मुक़ाबले चीन की स्थिति मज़बूत रही है. इनमें से किसी भी राज्यसत्ता ने थल सेना प्रमुख के आकलन के मुताबिक “फ़ौजी ढांचे के भौतिक स्वरूप और क्षमताओं” से पूरी तरह से किनारा नहीं किया है, या कम से कम इस बात के सबूत नहीं हैं कि बीजिंग और रावलपिंडी ऐसा कुछ करने जा रहे हैं. भारत के साथ मौजूदा टकराव के बीच चीन ने टाइप-15 हल्के टैंकों के साथ-साथ वज़नदार टैंकों को भी अपने बेड़े में शामिल कर तैनात किया है. इनके अलावा चीनी पक्ष लड़ाकू विमानों, आर्टिलरी और मिसाइल सिस्टमों पर भी ज़ोर-शोर से काम कर रहा है. भारतीय सेना की ओर से भी अक्टूबर 2021 में 118 अर्जुन Mk-1A के ऑर्डर दिए जा चुके हैं. भारतीय वायुसेना में राफ़ेल मीडियम रोल कॉम्बैट एयरक्राफ़्ट (MRCA) को शामिल किया गया है. इसके साथ ही भारत की ओर से रूस में तैयार Sprut SDM1 हल्के टैंकों की ख़रीद की भी कोशिशें की जा रही है. चीनी फ़ौज की काट के लिए भारतीय सेना रूसी टैंक हासिल करने की ये क़वायद कर रही है. ख़ासतौर से लद्दाख के विवादित देपसांग इलाक़े में चीन के ख़िलाफ़ बख़्तरबंद अभियान चलाने में इस तरह के टैंक से मदद मिलने की उम्मीद है. 

सौ बात की एक बात ये है कि भारत की थल सेना या भारतीय फ़ौज की दूसरी सक्रिय शाखा द्वारा जल्दबाज़ी में परंपरागत युद्ध माध्यमों का त्याग किए जाने या उनके बिना काम चला लेने की संभावना न के बराबर है. लिहाज़ा अंतरिक्ष, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकों की ताक़त और कमज़ोरियों को ठीक से समझने की ज़रूरत है. इसके अलावा किन-किन क्षेत्रों में इनका इस्तेमाल हो सकता है, इस बात की पड़ताल करना भी आवश्यक हो जाता है. 

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