Author : Seema Sirohi

Published on Aug 26, 2019 Updated 0 Hours ago

दोनों ही पक्ष आपसी संबंध के विवादों पर हंगामे को ख़त्म करने को इच्छुक दिखते हैं.

भारत-अमेरिका संबंध: जहां नाकामी की गुंजाईश भी नामुमकिन है

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच मुलाक़ात उम्मीद से बेहतर रही. दोनों ही नेताओं के बर्ताव से ये साफ़ संदेश मिला कि दोनों देशों के रिश्ते बहुत अहम हैं. ट्रंप और मोदी की बातचीत ने ये संकेत दिया कि दुनिया के दो अहम लोकतांत्रिक देश आपसी रिश्तों को कितनी अहमियत देते हैं.

जब मोदी बातचीत के लिए ट्रंप से मिले तो उन्होंने पूरे धैर्य से काम दिया. इसी तरह ट्रंप भी मोदी से मिलते हुए काफ़ी सजग नज़र आए. बिना किसी बाधा के हुई ये मुलाक़ात अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है. ख़ास तौर से अगर हम अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप के व्यवहार को ध्यान में रखकर देखें तो. लेकिन, इससे भी अहम बात ये है कि दोनों देशों ने ये इच्छाशक्ति दिखाई है कि वो आपसी विवाद को लेकर हो रहे ‘शोर’ को कम करना चाहते हैं. इससे दोनों ही देशों के बीच कारोबारी और सामरिक मसलों पर बढ़ रहे तनाव को कम करने में काफ़ी मदद मिली है.

प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बीच मुलाक़ात की क़ामयाबी के पीछे भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो का बड़ा रोल रहा.

हालांकि इसका ये मतलब नहीं है कि दोनों देशों के विवाद ख़त्म हो गए हैं. ऐसी बात बिल्कुल नहीं है. लेकिन, भारत और अमेरिका फ़िलहाल इस बात पर सहमत हो गए हैं कि वो आपसी मतभेदों को दूर करने के लिए काम करेंगे, ताकि रिश्तों के इस सफ़र पर ठहरने के बजाय आगे बढ़ा जा सके. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अहम पदों पर जो नियुक्तियां हुईं, उनसे ये साफ़ संकेत मिला कि भारत, अमेरिका के साथ अपने संबंध बेहतर करने और तय लक्ष्य हासिल करने को लेकर गंभीर है. अमेरिका के रणनीतिकारों को भी ये बात अच्छे से समझ में आ गई है.

प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बीच मुलाक़ात की क़ामयाबी के पीछे भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो का बड़ा रोल रहा. इन दोनों ने ही मोदी और ट्रंप के बीच सकारात्मक बैठक की ज़मीन दो दिन पहले तैयार की.

एस. जयशंकर और माइक पॉम्पियो इस बात पर सहमत दिखे कि वो आपसी विवाद के विषयों पर काम करते रहेंगे. लेकिन, इनकी वजह से वो आपसी रिश्तों को दांव पर नहीं लगाएंगे. संबंध बेहतर बनाने के लिए पॉम्पियो और जयशंकर में ये सहमति बनी कि वो 2017 में मोदी और ट्रंप के बीच पहली मुलाक़ात में तय हुए बुनियादी उसूलों के दायरे में रहकर आगे बढ़ेंगे. ओसाका में मोदी और ट्रंप के बीच बैठक की क़ामयाबी के पीछे पॉम्पियो और जयशंकर के बीच अच्छा तालमेल सबसे बड़ी वजह थी.

भारत ने अपनी हदों को जिस सफ़ाई से अमेरिका के सामने रखा है. उससे दोनों ही पक्षों को असल मुद्दों पर आगे बढ़ने का रास्ता मिलेगा. भारत ने अमेरिका को साफ़ बता दिया है कि किन मसलों पर वो अमेरिका की बातें मान सकता है और किन मसलों पर उसे कोई भी शर्त मंज़ूर नहीं है. अमेरिका को भी ये संदेश साफ़ तौर पर मिल गया है कि उसे भारत में एक मज़बूत सरकार के साथ कैसे तालमेल बिठाना है. ओसाका में हमें इसकी झलक देखने को मिली. मोदी ने ट्रंप के साथ मुलाक़ात में सार्वजनिक रूप से ये बताया कि वो किन मुद्दों पर ट्रंप से बातचीत करना चाहते हैं. ये एक असामान्य बात थी. आम तौर पर विश्व के नेता ऐसा नहीं करते. लेकिन मोदी ने टीवी कैमरों के सामने ट्रंप को बताया कि वो ईरान, 5जी तकनीक, आपसी संबंधों और रक्षा सहयोग के मसलों पर बात करना चाहेंगे.

ऐसा लगा कि एक दिन पहले ट्रंप ने जो भड़काऊ ट्वीट किया था, उसका मोदी पर कोई असर नहीं पड़ा है. ट्रंप ने मोदी से मुलाक़ात से एक दिन पहले ट्वीट कर के मांग की थी कि भारत, अमेरिका से होने वाले आयात पर शुल्क में छूट दे. शायद ट्रंप ने ये ट्वीट, भारत से होकर गए अपने विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो से मुलाक़ात के पहले किया था. पॉम्पियो उन्हें भारत के विदेश मंत्री के साथ हुई बातचीत और इस में मिली सफलताओं के बारे में नहीं बता सके थे. पॉम्पियो के भारत के साथ हुई बातचीत की रिपोर्ट देने के बाद ट्रंप के रुख़ में बदलाव उस वक़्त साफ़ दिखा, जब वो मोदी से मिले. तब ट्रंप ने मोदी की जमकर तारीफ़ की और संकेत दिया कि दोनों देश कुछ बड़े समझौतों के लिए तैयार हैं. हालांकि हम न तो ट्रंप की मोहब्बत को गंभीरता से लेकर सकते हैं और न ही उनके आक्रामक रुख़ को. किन्हीं दो देशों के बीच रिश्ते और रणनीतिक साझेदारियां एक ट्वीट पर निर्भर नहीं हो सकतीं. भले ही वो तारीफ़ वाला हो या फिर बहुत ही नेगेटिव.

इस वक़्त मोदी को चाहिए कि वो अपना ट्रंप कार्ड जल्द से जल्द चल दें. क्योंकि उसके बाद तो ट्रंप अपने यहां राष्ट्रपति चुनाव में व्यस्त हो जाएंगे.

लेकिन, ट्रंप को ‘क़ामयाब’ लोग पसंद हैं. और मोदी की चुनावी जीत से वो बहुत प्रभावित हुए हैं. ट्रंप ख़ुद अपने दोबारा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. अगर दोनों नेता जल्द ही दोबारा मिलते हैं, तो यक़ीन जानिए कि वो चुनावी रणनीति पर कुछ न कुछ बात ज़रूर करेंगे. हालांकि, दोनों ही देशों को इस वक़्त मोदी और ट्रंप के बीच एक व्यापक द्विपक्षीय मुलाक़ात की तारीख़ जल्द से जल्द तय करनी चाहिए. और दोनों नेताओं के बीच मुलाक़ात इस साल के अंत से पहले ही हो जानी चाहिए. इस वक़्त मोदी को चाहिए कि वो अपना ट्रंप कार्ड जल्द से जल्द चल दें. क्योंकि उसके बाद तो ट्रंप अपने यहां राष्ट्रपति चुनाव में व्यस्त हो जाएंगे.

पिछले कुछ दिनों में भारत और अमेरिका के बीच जो संवाद हुआ है, उसमें एक बात ख़ास तौर से ग़ौर करने लायक़ है. भारत ने अमेरिका के साथ अपनी नीति को स्पष्ट रूप से परिभाषित कर दिया है. वो ईरान के मसले पर संबंध ख़राब नहीं करना चाहता. लेकिन, भारत, रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम को ख़रीदने में अमेरिका की तरफ़ से अटकाए जा रहे रोड़ों को भी नहीं पसंद करेगा. हां, भारत अपने विशाल बाज़ार का फ़ायदा 5जी तकनीक को लेकर सिलिकॉन वैली और दुनिया में चल रहे विवाद से निपटने में ज़रूर उठाना चाहता है.

भारत ने अमेरिका को स्पष्ट संदेश दे दिया है. अमेरिका, भारत के रणनीतिक विकल्पों को सीमित नहीं कर सकता है.

विशाल जनादेश पाने के बाद मोदी ज़्यादा आक्रामक हैं. वो आत्मविश्वास के साथ विश्व कूटनीति के मोर्चे पर आगे बढ़ रहे हैं. उन्हें पता है कि विश्व के मंच पर भारत की अहमियत और उसके रोल को कैसे स्थापित करना है. ये बात उस वक़्त साफ़ दिखी, जब माइक पॉम्पियो की मौजूदगी में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ये कहा कि, ‘जो भी हमारे देश के हित में होगा हम वो करेंगे. किसी भी देश के साथ रणनीतिक साझीदारी का एक पहलू ये भी है कि दोनों देश एक दूसरे के राष्ट्रीय हितों को समझें और उनका सम्मान करें’. एस. जयशंकर ने ये बात रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम ख़रीदने के संदर्भ में कही थी. क्योंकि ये सौदा अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे में आता है.

भारत ने अमेरिका को स्पष्ट संदेश दे दिया है. अमेरिका, भारत के रणनीतिक विकल्पों को सीमित नहीं कर सकता है. हालांकि, भारत ने हाल के कुछ वर्षों में अमेरिका से कई रक्षा सौदे किए हैं. आज वो अमेरिका से ज़्यादा हथियार ख़रीद रहा है. लेकिन, जयशंकर ने साफ़ किया कि, ‘अगर अमेरिका और भारत के सामरिक संबंधों का विकास आवश्यक है, तो हमें एक दूसरे पर भरोसा रखना होगा’.

जयशंकर ने अपने बयान में ‘अगर’ शब्द का बहुत ज़ोर देकर इस्तेमाल किया था. कुछ अमेरिकी विशेषज्ञों ने जयशंकर के इस बयान को लेकर ट्विटर पर आश्चर्य भी ज़ाहिर किया था. लेकिन, किसी को भी इस बात पर अचरज नहीं होना चाहिए अगर अमेरिका और भारत कुछ लेन-देन के साथ इस विवाद को ख़त्म करने पर सहमत हो जाएं. पॉम्पियो ने कई इंटरव्यू में ये ज़ाहिर किया कि वो भारत और रूस के ‘ऐतिहासिक संबंधों’ की अहमियत समझते हैं. इस बयान से पॉम्पियो ने संकेत दिया है कि रूस के साथ भारत के एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम के सौदे को अमेरिका कुछ शर्तों के साथ स्वीकार कर सकता है. भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने इस बात पर भी ज़ोर दिया था कि, ‘दोनों देशों के रिश्ते बहुत गहरे और व्यापक हैं. दोनों ही देशों को चाहिए कि वो इन संबंधों को व्यापक दृष्टि से देखें, जिनमें व्यापार, ऊर्जा, रक्षा और निवेश के अलावा दोनों देशों की जनता के बीच मेल-मुलाक़ात पर भी ज़ोर हो’.

अब जबकि दोनों देशों की टीमों ने आपसी संबंध को दोबारा पटरी पर लाने के लिए काम करना शुरू कर दिया है, तो, हमें ये उम्मीद करनी चाहिए कि कारोबार के मसले पर कुछ प्रगति देखने को मिलेगी. ख़ास तौर से तब और अगर माइक पॉम्पियो अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि और अपने कैबिनेट सहयोगी रॉबर्ट लाइटज़र को क़ाबू में रखने में क़ामयाब हो गए तो. रॉबर्ट जल्द ही भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से मिलने वाले हैं. ये ट्रंप सरकार में पॉम्पियो की अहमियत का भी इम्तिहान होगा. इसी तरह, ईरान के मसले पर भी जयशंकर ने पॉम्पियो को साफ़ संकेत दिया कि मध्य-पूर्व में शांति और स्थिरता भारत के लिए कितनी अहम है. ऐसे में वो खाड़ी क्षेत्र में तबाही लाने वाली एक और जंग छिडने का जोख़िम मोल नहीं ले सकता. ट्रंप से मुलाक़ात के दौरान मोदी ने भी ये संदेश दिया.

ख़ुशक़िस्मती से ट्रंप ख़ुद भी अमेरिका को किसी नए युद्ध में नहीं झोंकना चाहते. लेकिन, उनकी सरकार के कुछ उद्दंड अधिकारी ज़रूर बेक़ाबू हो रहे हैं. इसी वजह से इलाक़े में तनाव बढ़ रहा है और वॉशिंगटन में चिंता. रूस के मोर्चे पर भी ट्रंप का रुख़ नरम है. वो रूस से रिश्ते सामान्य करने के पक्षधर हैं. जबकि, शायद उनकी अपनी सरकार के मंत्री तक इसके लिए राज़ी नहीं हैं. मोदी को रूस के प्रति ट्रंप की इस नरमी का फ़ायदा इस तरह उठाना है कि वो अमेरिकी चुनाव में रूस की दख़लअंदाज़ी का समर्थन करते हुए न दिखें. आने वाले कुछ महीनों में ये तय होगा कि संतुलन बनाने वाला भारत का ये सिस्टम कितने अच्छे तरीक़े से काम करता है.

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