Author : Harsh V. Pant

Published on Jul 01, 2019 Updated 0 Hours ago

ये बात सच है कि पिछले कुछ समय में ट्रंप प्रशासन ने कई मुद्दों पर इस रिश्ते में दरार डालने का काम किया है. जो विवाद पर्दे के पीछे थे, उन्हें सामने ला खड़ा किया है.

भारत-अमेरिका संबंध: बुनियादी बातों पर ज़ोर देने से ही बात बनेगी

ऐसा लगता है कि आख़िरकार अमेरिका और भारत को एक-दूसरे की दोस्ती रास आने लगी है. अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो की भारत यात्रा की वजह से भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों को लेकर तनाव काफ़ी बढ़ गया था. बहुत से लोग ये दावा कर रहे थे कि ये रिश्ता डांवाडोल हो रहा है. लेकिन, विदेश मंत्री एस.जयशंकर के साथ साझा प्रेस कांफ्रेंस में माइक पॉम्पियो ने बार-बार दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी की अहमियत पर ज़ोर डाला. दोनों नेताओं ने ये साफ़ कर दिया कि भले ही कारोबार को लेकर दोनों देशों में अभी भी गंभीर मतभेद हों, लेकिन, दोनों ही मुल्क इस समस्या को असरदार तरीक़े से सुलझाने को लेकर एकमत हैं. भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने कहा कि अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. ऐसे में दोनों ही देशों के बीच समय-समय पर मतभेद होने स्वाभाविक हैं. वहीं, माइक पॉम्पियो ने सुझाव दिया कि दोनों देशों के केवल द्विपक्षीय संबधों को बेहतर बनाने तक सीमित नहीं रहना चाहिए. बल्कि, भारत और अमेरिका को दुनिया के और मसलों पर भी एक-दूसरे से सहयोग बढ़ाना चाहिए. अमेरिकी विदेश मंत्री ने साफ़ तौर पर कहा कि, “भारत और अमेरिका के दोस्ताना ताल्लुक़ात नई ऊंचाईयों को छूने की तरफ़ बढ़ रहे हैं.”

ये बात सच है कि ट्रंप प्रशासन ने कई मुद्दों पर इस रिश्ते में दरार डालने का काम किया है. जो विवाद पर्दे के पीछे थे, उन्हें सामने ला खड़ा किया है. अब अमेरिका की मांग है कि भारत उसके निर्यात पर आयात शुल्क कम करे. इसी महीने, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने भारत को जीएसपी यानी जनर्लाइज़्ड सिस्टम ऑफ़ प्रेफ़रेंस के तहत मिलने वाले कारोबारी फ़ायदे ख़त्म कर दिए थे. ट्रंप का कहना है कि भारत, अमेरिका को अपने बाज़ार की बराबरी से और तार्किक तरीक़े से पहुंच का वादा करने में नाकाम रहा है. इसका मतलब ये है कि दोनों देशों के रिश्तों में आपसी व्यापार का मसला बार-बार उठने वाला है. दोनों ही देशों को अपने आर्थिक सहयोग को नए सिरे से परिभाषित करना होगा.

दूसरी तरफ़, मध्य-पूर्व का संकट एक बार फिर गहरा रहा है. भारत, ईरान और अमेरिका, दोनों ही देशों से अपने संबंधों को बनाकर रखना चाहता है. अमेरिका ने ईरान से तेल ख़रीदने को लेकर भारत को जो रियायतें दे रखी थीं, वो ख़त्म हो गई हैं और, भारत अब इस नई हक़ीक़त से तालमेल बिठाने में लगा हुआ है. आज की तारीख़ में भारत, पारंपरिक रूप से मध्य-पूर्व के देशों से ज़्यादा तेल ख़रीदने के बजाय, अमेरिका से तेल का ज़्यादा आयात कर रहा है. लेकिन, भारत, क्षेत्रीय स्थिरता का पक्षधर है और ये बात विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो से साफ़ कर दी है. जैसा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साझा प्रेस कांफ्रेंस में कहा भी कि, “मध्य-पूर्व के साथ भारत के संबंध सिर्फ़ ऊर्जा सुरक्षा तक सीमित नहीं हैं. खाड़ी देशों में हमारे और भी हित हैं. वहां पर रहने वाले भारतीय मूल के लोग, मध्य-पूर्व से कारोबारी रिश्ते और क्षेत्रीय सुरक्षा से भी भारत के हित जुड़े हुए हैं.”

माइक पॉम्पियो के भारत दौरे का एक और अहम मुद्दा था रूस से एस-400 ट्रायंफ एयर डिफेंस सिस्टम की ख़रीद का था. अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध लगा रखे हैं. वहीं, भारत के रूस से ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. भारत इनकी अनदेखी नहीं कर सका. भारत का पक्ष ये है कि उसे अमेरिकी क़ानून CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) के तहत रियायत मिलनी चाहिए. भारत ने अपने पक्ष में ये तर्क भी दिया कि अमेरिका के साथ क़रीब 10 अरब डॉलर के रक्षा सौदे प्रक्रिया में हैं. ऐसे में भारत के रक्षा मामलों में अमेरिका का रोल लगातार बढ़ रहा है. लेकिन, भारत ने ये भी स्पष्ट कर दिया है कि वो अमेरिका के साथ ISA यानी औद्योगिक सुरक्षा एनेक्सी पर वार्ता को आगे बढ़ा रहा है. इससे दोनों देशों के बीच औद्योगिक सहयोग भी और बढ़ेगा. लेकिन, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने प्रेस कांफ्रेंस ने रूस के साथ भारत के संबंधों को रणनीतिक आयाम देते हुए ये भी कहा कि, “हमारे बहुत से देशों से बहुत तरह के ताल्लुक़ात हैं. इनमें से कई रिश्ते बहुत पुराने दौर से हैं. उनका एक लंबा इतिहास रहा है. हम अपने राष्ट्रीय हितों के हिसाब से इन संबंधों को देखते हैं. और आगे भी अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर ज़रूरी क़दम उठाएंगे. किसी भी देश के साथ रणनीतिक साझेदारी का एक अहम पहलू ये भी है कि वो अपने सहयोगी देश के दूसरे रणनीतिक संबंधों और राष्ट्रीय हितों को भी समझे और उनका भी सम्मान करे.”

अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो की ये तीसरी भारत यात्रा थी. इसका मक़सद, ओसाका में जी-20 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की मुलाक़ात की बुनियाद तैयार करना था. पॉम्पियो, भारत के साथ रिश्तों के बेहतर भविष्य के लिए बहुत उत्साहित रहे हैं. हालांकि राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने इस संबंध में अनिश्चितता का पुट भी डाला है. भारत इस बात को लेकर आशंकित है कि अमेरिका एच-1बी वीज़ा की संख्या और कम करने वाला है. बहुत से भारतीय इस वीज़ा की मदद से अमेरिका जाकर काम करते हैं. हालांकि अमेरिका इस आशंका से इनकार करता रहा है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ये कहकर अमेरिका के साथ संबंध को लेकर नई उम्मीद जगाने की कोशिश की कि, “दोनों ही देशों के अपने-अपने हित हैं. ऐसे में ये सामान्य सी बात है कि कई बार इन हितों का टकराव भी होता है. लेकिन, हम कूटनीतिक तरीक़े से इन मसलों का हल निकाल लेंगे. हम अमेरिका के साथ बहुत सकारात्मक सोच के साथ बातचीत करेंगे.”

भारत के साथ संबंध बेहतर करने में अमेरिका के अपने हित भी हैं. लेकिन, भारत की विदेश नीति की क्षमताओं को सिरे से खारिज करना, विश्व राजनीति में भारत के बढ़ते कद की तरफ़ से आंखें बंद कर लेने जैसा है. भारत में भले ही बहुत से लोगों के ये बात विरोधाभासी लगे, लेकिन, भारत असल में अमेरिका से अपने रिश्ते बेहतर कर के अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को और बढ़ाना चाहता है. आज भारत के रणनीतिक हितों को सबसे बड़ा ख़तरा चीन से है. चीन से मुक़ाबले के लिए फ़िलहाल भारत के पास पर्याप्त क्षमता नहीं है. ऐसे में अमेरिका से रिश्ते मज़बूत करके भारत आने वाले वक़्त में फौरी तौर पर चीन से मिल रही चुनौती से निपट सकता है. वहीं, आगे चल कर भारत अपनी राष्ट्रीय शक्ति का विस्तार करके ख़ुद को चीन से निपटने में सक्षम बनाने की दिशा में काम कर सकता है. विवादों के बावजूद माइक पॉम्पियो के भारत दौरे ने भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंध में नया जोश भरा है और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के रूप में पॉम्पियो को ऐसा सहयोगी मिला है, जो दोनों देशों को व्यवहारिक लक्ष्य हासिल करने में मददगार होगा. अब ये ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप पर है कि वो दोनों देशों को रिश्ते को एक नया रणनीतिक आयाम दें.

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