Author : Rakesh Sood

Published on Aug 01, 2023 Updated 0 Hours ago

नेपाल के साथ जारी मतभेदों को दूर करने के लिए बिना शोर-शराबे के वार्ता प्रक्रिया शुरू करनी होगी. इसमें भारत को संवेदनशील और उदार रुख़ दिखाना पड़ेगा.

भारत-नेपाल संबंध: रिश्तों की गांठ सुलझाना ज़रूरी

नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा 1 से 3 अप्रैल तक भारत की यात्रा पर थे. लंबे समय से इस दौरे का इंतज़ार हो रहा था. जुलाई 2021 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद देउबा की ये पहली द्विपक्षीय स्तर की विदेश यात्रा स्थापित परंपराओं के मुताबिक रही. भले ही इस दौरे के नतीजे सामान्य दिखाई दें, लेकिन अहम बात ये है कि भारत और नेपाल दोनों ही विभाजनकारी मुद्दों को अलग रखने में कामयाब रहे. 75 साल के देउबा राजनीति के पुराने धुरंधर हैं. 1995 में पहली बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने देउबा का ये पांचवां कार्यकाल है. वो दोनों देशों के बीच के रिश्तों की पेचीदगियों से अच्छी तरह से वाक़िफ़ हैं.

सकारात्मक नतीजे

प्रधानमंत्री देउबा के दौरे की सबसे बड़ी कामयाबी बिहार के जयनगर से नेपाल के कुर्था के बीच 35 किमी लंबे रेल संपर्क का चालू होना रहा. आगे के दो चरणों में इसका बीजलपुरा से बरदिबास तक विस्तार हो जाएगा. 787 करोड़ रु की लागत वाली ये परियोजना एक साल से तैयार थी. दरअसल नेपाल में स्टाफ़ की भर्तियों के लिए कंपनी स्थापित करने से जुड़े आवश्यक प्रशासनिक ज़रूरतों को पूरा करने की वजह से इसे चालू करने का काम अटका हुआ था. शुरुआती दौर में कोंकण रेलवे कॉरपोरेशन इसके लिए ज़रूरी तकनीकी मदद मुहैया कराएगा.

दरअसल नेपाल में स्टाफ़ की भर्तियों के लिए कंपनी स्थापित करने से जुड़े आवश्यक प्रशासनिक ज़रूरतों को पूरा करने की वजह से इसे चालू करने का काम अटका हुआ था. शुरुआती दौर में कोंकण रेलवे कॉरपोरेशन इसके लिए ज़रूरी तकनीकी मदद मुहैया कराएगा.  

दूसरी परियोजना के तौर पर 90 किमी लंबी 132 किलोवाट की डबल सर्किट ट्रांसमिशन लाइन का भी उद्घाटन किया गया. ये ट्रांसमिशन लाइन टिला (सोलूखुंबू) से भारतीय सीमा के नज़दीक मिरचैया (सिराहा) को जोड़ती है. इसे एग्ज़िम बैंक द्वारा 200 करोड़ रु के रियायती कर्ज़ की मदद से तैयार किया गया है. इसके तहत सोलू कॉरिडोर में दर्ज़नभर पनबिजली परियोजनाएं तैयार करने की योजना है. इस सिलसिले में नेपाल बिजली प्राधिकरण 325 मेगावाट के बिजली ख़रीद समझौते (PPAs) पूरे कर चुका है.

इनके अलावा रेलवे सेक्टर में तकनीकी सहयोग मुहैया कराने से जुड़ा समझौता भी हुआ. अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन में नेपाल के दाख़िले पर भी सहमति बनी है. साथ ही पेट्रोलियम पदार्थों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और नेपाल ऑयल कॉरपोरेशन के बीच समझौते पर भी दस्तख़त हुए हैं.

ग़ौरतलब है कि 1996 में प्रधानमंत्री के रूप में देउबा की पहली भारत यात्रा के दौरान महाकाली समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. इसमें शारदा और टनकपुर बैराजों के साथ-साथ लगभग 6700 मेगावाट के पंचेश्वर बहुद्देशीय परियोजना को भी शामिल किया गया है. दोनों ही पक्ष इसकी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को जल्द तैयार करने पर रज़ामंद हुए हैं. 7 अरब अमेरिकी डॉलर की इस परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की दरकार है. बिजली सेक्टर में सहयोग से जुड़े साझा दृष्टिकोण पत्र में साझा तौर पर बिजली निर्माण परियोजनाओं के विकास के मौक़ों की पहचान की गई है. सीमा के आर-पार ट्रांसमिशन संपर्कों और राष्ट्रीय ग्रिडों में तालमेल के ज़रिए इसमें गति लाई जा सकती है.

चीन इन दिनों नेपाल के पोखरा और लुंबिनी में हवाई अड्डों के विस्तार से जुड़ी परियोजनाओं से भी जुड़ गया है. ज़ाहिर है, चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने की बजाए, भारत को नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ाना होगा.

देउबा 27 फ़रवरी को नेपाली संसद से यूएस मिलेनियम चैलेंज को-ऑपरेशन (एमसीसी) समझौते को मंज़ूरी दिलाने में कामयाब रहे. ग़ौरतलब है कि सहयोगी दलों, माओवादियों और यूएमएल (एकीकृत-समाजवादी) की आपत्तियों के बावजूद इसे स्वीकृति मिल गई. इस समझौते के तहत नेपाल को 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर का अनुदान मिलेगा. इस रकम से 318 किमी हाई वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों के निर्माण के साथ-साथ सब-स्टेशन भी तैयार किए जाएंगे. साथ ही 300 किमी लंबे ईस्ट-वेस्ट हाईवे के रखरखाव का काम भी किया जाएगा. काठमांडू स्थित चीनी दूतावास सक्रिय रूप से इस समझौते को बेपटरी करने की जुगत लगाता रहा. उसने इसके ख़िलाफ़ कई तरह की ख़बरें भी फैलाई. कहा गया कि ये समझौता चीन को रोकने की अमेरिकी हिंद-प्रशांत रणनीति का हिस्सा है. अमेरिका के साथ इस समझौते पर 2017 में दस्तख़त हुए थे. उस समय प्रधानमंत्री के तौर पर देउबा अपने चौथे कार्यकाल में थे. तबसे समझौते को संसदीय मंज़ूरी दिए जाने का काम अटका पड़ा था. पंचेश्वर परियोजना के साथ इस समझौते की जुगलबंदी से सुखद परिणाम सामने आ सकते हैं.

चीन का बढ़ता किरदार

नेपाल में राजशाही के ज़माने में चीन ने राजपरिवार के साथ संपर्क क़ायम रखा था. दरअसल उस वक़्त चीन की मुख्य चिंता तिब्बती शरणार्थी समुदायों पर नज़र रखने से जुड़ी थी. राजशाही के ख़ात्मे के साथ चीन ने राजनीतिक दलों और संस्थाओं पर तवज्जो देना शुरू किया. इनमें सेना और सशस्त्र पुलिस बल शामिल हैं. चीन दक्षिण एशिया में अपनी बढ़ती पैठ में नेपाल को एक अहम किरदार के तौर पर देखता है.

पिछले कुछ सालों में नेपाल के साथ भारत के रिश्तों में ‘उतार’ और ‘चढ़ाव’- दोनों देखने को मिले हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर “पड़ोसियों को प्राथमिकता” देने की नीति की चर्चा करते रहे हैं. मई 2014 में पहली बार सत्ता संभालने के बाद मोदी ने अगस्त के महीने में नेपाल की बेहद कामयाब यात्रा की थी. हालांकि, 2015 में दोनों देशों के रिश्तों में खटास आ गई. उस समय पहले तो भारत पर नेपाली संविधान का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया में दख़लंदाज़ी करने के इल्ज़ाम लगाए गए. उसके बाद भारत पर “अनाधिकारिक चक्काजाम” का भी दोष मढ़ा गया. इससे नेपाल में भारत के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर असंतोष देखने को मिला. इससे ये विचार और पुख़्ता होकर सामने आया कि नेपाली राष्ट्रवाद और भारत विरोधी विचार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. इस बहाने देउबा के पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने बड़ी कामयाबी से अपना उल्लू सीधा किया.

2016 में ओली ने सीमा के आरपार आवागमन से जुड़े समझौते पर बातचीत के लिए बीजिंग का दौरा किया. तीन साल बाद इस सिलसिले में चीन के साथ एक प्रोटोकॉल को मंज़ूरी दी गई. इसके तहत नेपाल को चीन के चार समुद्री बंदरगाहों और तीन ज़मीनी पोर्ट्स तक पहुंच मुहैया कराई गई. मार्च 2017 में पहली बार चीन के रक्षा मंत्री ने नेपाल का दौरा किया. इसके एक महीने बाद दोनों देशों के बीच साझा सैन्य अभ्यास हुए. साथ ही नेपाल के लिए 3.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सैन्य सहायता का भी एलान किया गया.

चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने की बजाए, भारत को नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ाना होगा. 

नेपाल में सीधे विदेशी निवेश के सबसे बड़े स्रोत के तौर पर चीन ने भारत को पीछे छोड़ दिया है. 2019 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने काठमांडू का दौरा किया. नेपाल को चीन की ओर से सालाना विकास सहायता के तौर पर दी गई रकम को बढ़ाकर 12 करोड़ अमेरिकी डॉलर कर दिया गया है. चीन इन दिनों नेपाल के पोखरा और लुंबिनी में हवाई अड्डों के विस्तार से जुड़ी परियोजनाओं से भी जुड़ गया है. ज़ाहिर है, चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने की बजाए, भारत को नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ाना होगा.

मतभेदों से निपटने की चुनौती

पिछले कुछ सालों से भारत और नेपाल के बीच कई तरह के मतभेद पैदा हुए हैं. इनपर ध्यान देने की ज़रूरत है. दोनों देशों में राजनीतिक विमर्श भी बदल चुका है. लिहाज़ा साझी संस्कृति, भाषा और धार्मिक रिश्तों पर टिके ‘विशेष संबंधों’ की दुहाई देकर इन मसलों को अब और दबाया या नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. देउबा के हालिया दौरे की एक बड़ी कामयाबी यही है कि मतभेद के किसी भी मुद्दे की छाया इस पर नहीं पड़ने दी गई. बहरहाल इस सकारात्मक मिज़ाज को आगे बढ़ाने के लिए इन मुद्दों पर चर्चा ज़रूरी है. बंद कमरों में और ट्रैक 2 या ट्रैक 1.5 स्तरों पर ऐसी वार्ताओं की दरकार है.

भारत और नेपाल के बीच 1950 की शांति और मित्रता संधि रिश्तों के सबसे पुराने दस्तावेज़ों में से एक है. दरअसल 1949 में नेपाली अधिकारियों ने मूल रूप से ब्रिटिश शासन वाले हिंदुस्तान के साथ अपने ख़ास रिश्तों को जारी रखने के लिए ऐसे समझौते की इच्छा जताई थी. इसके तहत भारत और नेपाल के बीच खुली सरहदों का प्रावधान है. साथ ही नेपाली नागरिकों को भारत में काम करने की मंज़ूरी दी गई है. हालांकि, आज इसे असमान रिश्तों के प्रतीक और भारत द्वारा अपनी मनमरज़ी थोपने के तौर पर देखा जाने लगा है. 1990 के मध्य से दोनों देशों के साझा बयानों में इस समझौते की समीक्षा और उसको मौजूदा ज़रूरतों के हिसाब से ढालने के विचार को जगह दी जाती रही है. इस पर समय-समय पर चर्चा भी होती रही है. हालांकि, ये चर्चा ग़ैर-सिलसिलेवार तरीक़े की रही है. 1997 में दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच इस मसले पर वार्ता हुई थी. और तो और 2014 में साझा आयोग में दोनों देशों के बीच मंत्रिस्तरीय बातचीत भी हो चुकी है.

2016 में इस मसले पर विचार के लिए प्रबुद्ध लोगों का एक समूह भी बनाया गया था. इसमें कुल 8 सदस्य थे. इसकी रिपोर्ट दोनों देशों की सरकारों के पास मौजूद है. हालांकि काठमांडू में एक आम धारणा है कि इस रिपोर्ट को औपचारिक तरीक़े से दोनों सरकारों के सुपुर्द की जानी चाहिए. दरअसल ये बात स्पष्ट तौर पर समझने की ज़रूरत है कि नेकनीयत इरादों वाले विशेषज्ञों द्वारा अपनी व्यक्तिगत क्षमता से तैयार की गई ये रिपोर्ट सरकारों के लिए बाध्यकारी नहीं है. ऐसी समझ होने पर ही दोनों देशों के विदेश मंत्रियों द्वारा सार्वजनिक रूप से इस रिपोर्ट की प्राप्ति को स्वीकार करना मुमकिन हो सकेगा. ट्रैक 2 संवादों को शुरू करने के लिए इसे सार्वजनिक भी किया जा सकता है.

2016 में इस मसले पर विचार के लिए प्रबुद्ध लोगों का एक समूह भी बनाया गया था. इसमें कुल 8 सदस्य थे. इसकी रिपोर्ट दोनों देशों की सरकारों के पास मौजूद है. हालांकि काठमांडू में एक आम धारणा है कि इस रिपोर्ट को औपचारिक तरीक़े से दोनों सरकारों के सुपुर्द की जानी चाहिए. 

नेपाल और भारत के रिश्तों में नोटबंदी भी एक बड़ी फांस रही है. नवंबर 2016 में भारत ने 15.44 खरब रु के ऊंचे मूल्य वाले (1000 रु और 500 रु) करेंसी नोटों को वापस लेने का एलान किया. आज ताज़ा नकदी के रूप में 15.3 खरब रु से ज़्यादा के नोट दोबारा चलन में लौट आए हैं. ग़ौरतलब है कि नेपाली रुपया भारतीय रुपए से जुड़ा है. नेपाली नागरिकों को क़ानूनन 25,000 रु तक की भारतीय मुद्रा रखने का अधिकार मिला हुआ है. इसके बावजूद नोटबंदी के बाद नेपाल के कई नागरिकों को रामभरोसे छोड़ दिया गया. नेपाल के केंद्रीय बैंक नेपाल राष्ट्र बैंक के पास भारतीय मुद्रा में 7 करोड़ रु हैं. साथ ही उसके पास 500 करोड़ रु की पब्लिक होल्डिंग होने का भी अनुमान है. नोटबंदी हुए 5 साल से भी ज़्यादा का समय बीत चुका है. निश्चित रूप से इन मसलों को आपसी रज़ामंदी से सुलझाया जा सकता है.

सरहदों का सवाल

2019 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ओली अपनी ही पार्टी में भारी विरोध झेल रहे थे. उन्हें इन झंझटों से ध्यान भटकाने के लिए एक अदद मुद्दे की तलाश थी. कालापानी सीमा के तौर पर उन्हें वो मसला मिल भी गया. ब्रिटिश हुकूमत ने 1816 में ही ये सरहदें तय कर दी थीं. भारत को विरासत में वही इलाक़े मिले हैं जिनपर ब्रिटिश हुकूमत ने 1947 तक नियंत्रण किया था. भारत-नेपाल सीमा के 98 फ़ीसदी इलाक़ों की साफ़-साफ़ पहचान हो चुकी है. सिर्फ़ 2 क्षेत्र सुस्ता और कालापानी ही अधर में लटके हुए हैं. जम्मू और कश्मीर राज्य के 2 केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के रूप में बंटवारे के बाद नवंबर 2019 में भारत ने नया नक़्शा जारी किया था. हालांकि, इस नए नक़्शे से भारत-नेपाल सीमा को भौतिक तौर पर कोई असर नहीं पड़ रहा था, लेकिन फिर भी तत्कालीन प्रधानमंत्री ओली ने कालापानी इलाक़े से जुड़े विवादों के तार छेड़ दिए. राष्ट्रवादी भावनाएं भड़काकर उन्होंने अपनी विधायिका से संविधान संशोधन करवाया और नेपाल के नए नक़्शे को मंज़ूरी दिलवा दी. इससे ज़मीन पर तो हालात नहीं बदले, लेकिन भारत के साथ नेपाल के रिश्तों में खटास ज़रूर आ गई. पुराने रिश्तों में एक नया और जज़्बाती फांस जुड़ गया.

आज भूक्षेत्रों से जुड़े राष्ट्रवादी बयानबाजी से परहेज़ करते हुए शांति के साथ वार्ता प्रक्रिया चालू करने की क़वायद पर ध्यान देने की ज़रूरत है. दोनों ही पक्षों को एक दूसरे के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए हासिल किए जा सकने वाले नतीजों पर तवज्जो देना होगा

आज भूक्षेत्रों से जुड़े राष्ट्रवादी बयानबाजी से परहेज़ करते हुए शांति के साथ वार्ता प्रक्रिया चालू करने की क़वायद पर ध्यान देने की ज़रूरत है. दोनों ही पक्षों को एक दूसरे के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए हासिल किए जा सकने वाले नतीजों पर तवज्जो देना होगा. “पड़ोसी को प्राथमिकता” देने की नीति की जड़ें गहरी करने के लिए भारत को संवेदनशील और बड़े दिल वाला उदार साथी बनना होगा.


ये लेख मूल रूप से द हिंदू में प्रकाशित हुआ है. 

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