Author : Hari Bansh Jha

Published on Sep 04, 2017 Updated 0 Hours ago

हिमालय से नेपाल और भारत की समान भौगोलिक निकटता है और दोनों ही नेपाली नदियों के कारण होने वाली समस्याओं का सामना एकसमान रूप से ही कर रहे हैं।

भारत-नेपाल: बाढ़ के लिए साझा रणनीति की जरूरत

दक्षिणी नेपाल के सप्तरी जिले में बाढ़

स्रोत: पीटीआई

हाल ही में मूसलाधार बारिश के कारण आई बाढ़ ने नेपाल के विभिन्न भागों, विशेषकर तराई क्षेत्र के निचले इलाकों में भारी तबाही मचाई है। बाढ़ और भूस्खलन के कारण 123 लोगों की जान जा चुकी है। [1] लगभग 35 लोग अब तक लापता हैं और तकरीबन 100,000 परिवार बेघर हो चुके हैं। कुल मिलाकर 2,847 मकान पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। नेपाल की 28 मिलियन आबादी में से तराई के 6 मिलियन लोग बाढ़ से सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं। [2]

नेपाल का यह क्षेत्र उत्तर भारत के बिहार और उत्तर प्रदेश राज्यों से सटा हुआ है, ऐसे में नेपाल की बाढ़ का सीमा पार भारत में भी बहुत अधिक असर पड़ा है। किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार सहित उत्तर बिहार के 12 जिलों में लगभग 6.5 मिलियन लोग नेपाल में आई बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। बिहार में मॉनसून शुरू होने के बाद 78 लोगों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में से 22 जिलों में मॉनसून के दौरान आई बाढ़ के कारण नुकसान पहुंचा है और मॉनसून की बारिश के कारण 33 लोगों की मौत हो चुकी है। [3]

शुरूआती अनुमानों के अनुसार, बागमती सिंचाई परियोजना, नारायणी सिंचाई परियोजना और नेपाल गंडक पश्चिमी नहर, कोशी पम्प सिंचाई परियोजना, सुनसारी मोरांग सिंचाई परियोजना, चंद्र नहर सिंचाई परियोजना और कमला सिंचाई परियोजना सहित 135 प्रमुख सिंचाई परियोजनाओं को बाढ़ की वजह से बुरी तरह नुकसान पहुंचा है। [4]

अरबों रुपयों की सम्पत्ति नष्ट हो चुकी है। तराई क्षेत्र की लगभग 80 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि पानी में डूब चुकी है। [5] 8 बिलियन नेपाली रुपये मूल्य की खड़ी फसलें बह गई हैं। [6]

बाढ़ के कारण टेलीफोन लाइन्स और सिग्नल टॉवर्स के बाधित हो जाने से अनेक गांवों का देश के अन्य हिस्सों से सम्पर्क कट गया है। आज, तराई के लाखों लोगों की पहुंच न तो बिजली तक है और न ही पेयजल और भोजन तक।

नेपाल सरकार का दावा है कि 26,700 लोग राहत कार्यों में जुटे हुए हैं, जिनमें से 8,300 प्रशिक्षित सुरक्षा कर्मी हैं, 5,600 नेपाल पुलिस के कर्मी हैं, 1,700 सशस्त्र पुलिस बल के कर्मी हैं और 1000 नेपाल सेना के जवान हैं। [7] जैसा कि सरकार द्वारा दावा किया गया है, उन लोगों ने पीड़ित परिवारों को भोजन, पानी, कपड़े, बर्तन, अस्थायी आश्रय, तिरपाल और दवाइयों जैसी सहायता और राहत सामग्री बांटनी शुरू कर दी है। इस उद्देश्य के लिए मोटरबोट्स, रबरबोट्स और अन्य साधनों सहित 13 हैलीकॉप्टर बाढ़ग्रस्त इलाकों में भेजे गए हैं।

इतना ही नहीं, सरकार ने बाढ़ पीड़ितों को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए15,000 नेपाली रुपये की राशि उपलब्ध कराने का फैसला किया है। [8] बाढ़ में अपने प्रियजनों की जान गंवा चुके परिवारों को मुआवजे के तौर पर 200,000 नेपाली रुपये की ​राशि प्रदान करने का भी फैसला किया गया है। [9]

राहत सामग्री के वितरण में उचित तालमेल सुनिश्चित करने के लिए, नेपाल में गृह मंत्रालय ने व्यक्तियों और संगठनों द्वारा बाढ़ पीड़ितों को राहत सामग्री वितरित करने के लिए चंदा इकट्ठा करने पर रोक लगा दी है। संबंधित इकाइयों से नेपाल सरकार की ‘वन डोर पॉलिसी’ के तहत दान की रकम केवल प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष के खाते में जमा करवाने को कहा गया है, जिसे बाढ़ पीड़ितों पर खर्च किया जाएगा। [10]

हालांकि, अनेक बाढ़ ग्रस्त जिलों से आ रही खबरों में कहा गया है कि लोगों को सरकार द्वारा किए गए दावे के मुताबिक, राहत और बचाव सामग्री उपलब्ध नहीं हो पा रही है। ज्यादातर बाढ़ पीड़ित स्कूलों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर भूखे पेट शरण लेने के लिए मजबूर हैं। इसलिए नेपाली कांग्रेस के श्याम चंद्र झा ने कहा है, “मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रही है कि मेरी पार्टी की अगुवाई वाली सरकार पीड़ितों तक राहत सामग्री पहुंचाने में विफल रही है।” [11]

तराई के सप्तरी जिले के तिलाथी जैसे कुछ क्षेत्रों में, बाढ़ पीड़ित सरकार से इतने तंग आ चुके हैं कि उन्होंने राहत सामग्री के रूप में सरकार की ओर से किसी भी तरह की मदद लेने से इंकार कर दिया है। उन्हें ऐसा महसूस हो रहा है कि सरकार ने उनके लिए कुछ खास नहीं किया। [12] वे राहत सामग्री जैसे के झुनझुने के स्थान पर बाढ़ के संकट का स्थायी समाधान चाहते हैं। ​तिलाथी के स्थानीय लोगों का मानना है कि खादो और जिट्टा नदियों के जल पर नियंत्रण के लिए तटबंध बनते ही उनकी समस्याओं का अंत हो जाएगा। [13]

नेपाल में यह आमतौर पर यही धारणा है कि तराई क्षेत्र में बाढ़ की समस्या सीमा पार भारत में सड़कों, बांधों और तटबंधों का निर्माण होने के कारण आई है।

सीमा पार 18 ऐसी संरचनाएं हैं। सीमा पार भारत में बनाए गए कलकालवा तटबंध, लक्ष्मणपुर बांध, महाली सागर बांध, रसियावाल खुर्दलोतान बांध, जैसे बांध और तटबंध अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करके बनाए गए हैं और उन्होंने नेपाल से होकर बहने वाली नदियों के सहज प्रवाह को बाधित किया है जिसके कारण बाढ़ और इलाकों के जलमग्न होने की स्थिति उत्पन्न हो रही है। [14]

नेपाल के ऊर्जा मंत्री महेंद्र बहादुर शाही जैसे प्रभावशाली व्यक्ति ने हाल ही में कहा था कि भारत ने नेपाल-भारत सीमा के समीप मध्यवर्ती जगह [नो मेन्स लैंड] में 1,620 किलोमीटर लम्बे राजमार्ग का निर्माण किया है, जो 10 फुट ऊंचा और 60 फुट चौड़ा है। [15] उन्होंने कहा, “राजमार्ग का निर्माण नेपाल-भारत सीमा से सटी जमीन को ऊंचा करके किया गया है, जिसने पानी के सहज प्रवाह में रुकावट उत्पन्न कर दी है, जिसके परिणामस्वरूप वर्षा के मौसम में नेपाल का तराई वाला इलाका पानी में डूब गया है।” [16] यहां तक कि भारत द्वारा नेपाली क्षेत्र के भीतर बनाए गए कोशी और गंडक बांध के कारण तराई का कुछ क्षेत्र डूब गया है। [17]

तराई में बाढ़ की स्थिति को विकट बनाने के अन्य कारण इंसान द्वारा उत्पन्न किये गए हैं, लेकिन उन पर विरले ही किसी का ध्यान जाता है। बड़े पैमाने पर जंगलों के खाली होने, रेत और बजरी के दोहन के अलावा हिमालय के चुरे या शिवालिक क्षेत्र के अतिशिय अतिक्रमण ने तराई क्षेत्र में मॉनसून के दौरान बाढ़ की स्थिति को विकट बना दिया है। क्षेत्र में भूस्खलनों और मिट्टी के कटाव के कारण, नदियों में बड़े पैमाने पर गाद जमा हो रही है और उनका तल ऊपर की ओर बढ़ता जा रहा है। पहले, जंगल बाढ़ के ज्यादातर पानी को अपने भीतर सोख लेते थे, अब उनकी गैर मौजूदगी में बाढ़ तराई क्षेत्र और सीमा पार उत्तर भारत के इलाकों में भारी तबाही मचा रही है।

दरअसल, हाल के वर्षों में बाढ़ से होने वाली तबाही की भीषणता बढ़ी है। पर्यावरण से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि यदि नेपाल के तराई क्षेत्र और उत्तर भारत के लोगों की जीवन रेखा — चुरे क्षेत्र में अतिक्रमण रोकने के लिए कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में यह तबाही और ज्यादा विकराल रूप ले सकती है।

चुरे पर्वत श्रृंखला हिमालय की सबसे नवोदित पर्वत श्रृंखला है, जिसके दायरे में नेपाल के कुल भूभाग का लगभग 13 प्रतिशत हिस्सा आता है। [18] यह क्षेत्र रेत, बजरी, पत्थर के खनन और सड़क, बांध और तटबंध जैसी विशाल ढांचागत सुविधाओं के निर्माण जैसी गतिविधियों में तेजी आने के कारण खतरे में है।

वैसे तो हाल के वर्षों में राष्ट्रपति चुरे तराई मधेश संरक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत नेपाल के तराई और आंतरिक तराई के 29 जिलों में चुरे क्षेत्र को बचाने के लिए कुछ प्रयास किए गए हैं, लेकिन इस क्षेत्र में अतिक्रमण को रोका जाना अब तक बाकी है। [19] यही कारण है कि इस क्षेत्र से होकर बहने वाली नदियां अपने साथ खाद की जगह गाद बहाकर लाती हैं, जिससे कृषि भूमि के उत्पादन और उत्पादकता पर असर पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप, सीमा पार उत्तर भारत के क्षेत्रों सहित तराई क्षेत्र के मरूस्थल में परिवर्तित होने की आशंका है। साथ ही यदि चुरे पर्वत श्रेणी में अतिक्रमण इसी तरह लगातार जारी रहा , तो इस क्षेत्र को और ज्यादा बाढ़ का सामना करना होगा।

विरोधाभासी रूप से, भारत ने तराई में आई बाढ़ के बारे में कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, हालांकि इसने भूकम्प की तुलना में कहीं ज्यादा बड़े पैमाने पर लोगों के जीवन को प्रभावित किया। नेपाल में 25 अप्रैल, 2015 के भूकम्प के दौरान, भारत ने पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में भूकम्प पीड़ितों तक राहत पहुंचाने में एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। लेकिन इस बार जब सहरद पार तराई क्षेत्र में बसे मधेशी भीषण आपदा का सामना कर रहे थे और उनमें से बहुत से लोग अपनी जिंदगी बचाने की जद्दोजहद में थे, तो भारत की ओर से ऐसी कोई प्रति​क्रिया नहीं हुई।

इसके विपरीत, चीन जिसका मधेशियों से कुछ खास वास्ता नहीं है, उसने बाढ़ग्रस्त इलाकों में स्पष्ट तौर पर भारत की गैरमौजूदगी के कारण उपजे हालात का फायदा उठाने की कोशिश की।

चीन के स्टेट काउंसिल के वाइस-प्रीमियर वेंग येंग ने अपने हाल के नेपाल दौरे में नेपाल के बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए आपात राहत के रूप में एक मिलियन डॉलर की राशि देने की घोषणा की। [20]

अब तराई के बाढ़ ग्रस्त इलाकों के बहुत से लोग दूषित जल से होने वाली हैजा, टाइफॉइड, पेचिश, हेपेटाइटिस ए और हेपेटाइटिस ई जैसी संक्रामक बीमारियां फैलने की आशंका को लेकर परेशान हैं। इसलिए बाढ़ पीड़ितों को स्वच्छ पेय जल उपलब्ध कराना या कम से कम उन्हें क्लोरीन की गोलियां उपलब्ध कराना बेहद जरूरी है, ताकि वे अपने पास मौजूद पेयजल को रोगाणुओं से मुक्त कर सकें।

 पीड़ित परिवारों को अस्थायी आश्रय से लेकर पैकेटबंद खाद्य सामग्री मुहैया कराने के लिए सरकार और उसकी सुरक्षा एजेंसियों, गैर सरकारी संगठनों, सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों सहित सभी पक्षों के बीच तालमेल होना भी बेहद जरूरी है। नेपाल की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के पास लाखों स्वयंसेवी हैं, इसलिए वे संकट की इस घड़ी में बाढ़ पीड़ितों के लिए सराहनीय कार्य कर सकते हैं।

सरकार को हैजा, पेचिश और अन्य रोगों से पीड़ित लोगों के जीवन की रक्षा के लिए प्रभावित क्षेत्रों में मेडिकल डॉक्टर्स और महामारी विज्ञान के विशेषज्ञों को तैनात करने की योजना भी बनानी चाहिए। साथ ही, पीड़ितों का मच्छरों से बचाव करने की भी जरूरत है, ताकि उन्हें मलेरिया या डेंगू जैसे रोगों की चपेट में आने से बचाया जा सके।

सरकार ने अपनी व्यवस्था के जरिए राहत और बचाव सेवाएं प्रदान करने की जिम्मेदारी ली है, ऐसे में यह देखना भी उसी की जिम्मेदारी है कि प्रभावित आबादी में राहत सामग्री का वितरण उचित तरीके से किया जाए। सरकार से इस आपदा में बेघर हो चुके लोगों के लिए भी उसी तरह मकान बनवाने की अपेक्षा है, जैसे उसने भूकम्प पीड़ितों के लिए बनवाए थे।

लेकिन आशंका इस बात की है कि पूरे तराई क्षेत्र में बाढ़ग्रस्त आबादी में राहत सामग्री का वितरण और उसका पुनर्वास करने की सरकार के पास उचित क्षमता नहीं है, वह भी ऐसे समय में जब ज्यादातर स्थानों पर एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने का सड़क सम्पर्क कट चुका है। ऐसी स्थिति में, राहत सामग्री के वितरण के लिए ‘वन विंडो सिस्टम’ का विचार अव्यवहारिक प्रतीत हो रहा है।

कुछ खास वर्गों में, ऐसी भावना है कि ‘वन डोर पॉलिसी’ का मकसद मधेशी लोगों को बाहर से राहत सामग्री के रूप में मिलने वाली सहायता से वंचित करना है। जब वहां भूकम्प आया था, तब ऐसी कोई नीति नहीं थी। इसलिए, ऐसा प्रावधान किया जा सकता है, जहां दानदाताओं को केवल स्थानीय सरकारी निकायों को जानकारी प्रदान करते हुए बाढ़ पीड़ितों को सहाता प्रदान करने की इजाजत हो।

हिमालय से नेपाल और भारत की समान भौगोलिक निकटता है और दोनों ही नेपाली नदियों के कारण होने वाली समस्याओं का सामना एकसमान रूप से ही कर रहे हैं। वैसे ही, यदि हिमालय की चुरे पर्वत श्रृंखला का अति​क्रमण यदि इसी तरह जारी रहा, तो इन दोनों में से कोई भी देश बाढ़ या संभावित मरुस्थलीकरण के कारण होने वाली तबाही से आसानी से बच नहीं सकता।

अब समय आ गया है कि दोनों देश नदियों को जोड़ने वाली परियोजनाओं के माध्यम से बाढ़ के पानी का उचित इस्तेमाल करते हुए बाढ़ और मरुस्थलीकरण के बढ़ते खतरे से निपटने की साझा रणनीति तैयार करें। इसके अलावा, दोनों देश व्यापक वनरोपण कार्यक्रम के माध्यम से चुरे पर्वत श्रृंखला और देश के अन्य हिस्सों के पर्यावरणीय संरक्षण की दिशा में भी वे मिलकर काम कर सकते हैं। ऐसी रणनीति से सीमा पार भारत में बनने वाली सड़कों, बांधों और तटबंधों के कारण नेपाल में मॉनसून के मौसम के दौरान होने वाली जलभराव या सैलाब की समस्या जैसे बाधाओं से भी निपटा जा सकता है। इतना ही नहीं, भारत को तराई में बाढ़ प्रभावित लोगों की तकलीफे दूर करने में वही उत्साह दिखाना चाहिए, जिस उत्साह के साथ उसने भूकम्प पीड़ितों के लिए पर्वतों और पहाड़ियों में बचाव, राहत और पुनर्वास योजनाएं चलाई थीं। यह समय एक-दूसरे पर दोषारोपण करने की जगह बाढ़ की समस्या का स्थायी समाधान तलाशने का है।


संदर्भ

[1] 160 Nepali rupees is equivalent to 100 Indian rupees.

[2] Mandal, Chandan Kumar, “Tilathi villagers not to accept govt relief,” the Kathmandu Post, August 16, 2017.

[3] PTI, “Death toll in Nepal flddos climbs to 91,” The Tiems of India, August 15, 2017.

[4] Associated Press, “Flooding maroons people in Indian states, eases in Nepal,”The Himalayan Times, August 17, 2017.

[5] Republica, “Damage to irrigation amounts to Rs. 2.42 billion,” My Republica, August 17, 2017.

[6] Republica, “Floods, landslides toll clumbs to 111,” My Republica, August 16, 2017.

[7] Dhungana, Sujan, “Floods swept away crops worth Rs 8bn,” The Himalayan Times, August 17, 2017.

[8] Republica, no. 5.

[9] Republica, “Govt decides to provide Rs 200,000 each to families of those killed in flood,” My Republica, August 16, 2017.

[10] THT Online, “Govt bars NGOs, individuals from collecting funds,” The Himalayan Times, August 16, 2017.

[11] Himalayan News Service, “Flood victims await relief, rehabilitation,” The Himalayan Times, August 16, 2017.

[12] Mandal, Chandra Kumar, “Tilathi villagers not to accept govt relief,” The Kathmandu Post, August 16, 2017.

[13] Ibid.

[14] Upadhya, Nagendra, “Khanal says Indian dams causing Nepal floods,” My Republica, August 16, 2017.

[15] Ibid.

[16] Panegi, Rudra, “Indian roads next to border caused tarai floods: Minister,” My Republica, August 14, 2017.

[17]Republica, “Indian dams caused flood havoc in Nepal: Bhim Rawal,” My Republica, August 16, 2017.

[18] Republica, “Experts blame Chure exploitation for tarai flood severity,” My Republica, August 17, 2017.

[19] Ibid.

[20] Post Reporter, “Chinese govt to provide one million Us dollar as emergency fund,” The Kathmandu Post, Ausut 16, 2017.

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