Published on Jan 08, 2021 Updated 0 Hours ago

अब ये ख़तरे कितने असली हैं, ये आगे चलकर ही पता चलेगा. लेकिन, एक बात साफ़ है कि भारत ऐसे कट्टरपंथ और बाहरी दख़ल से निपटने के लिए कड़ी सुरक्षा व्यवस्था का एक हद तक ही इस्तेमाल कर सकता है

भारत-पाकिस्तान विवाद: एक मुर्दा डॉज़ियर का सामरिक महत्व

14 नवंबर को पाकिस्तान ने एक डॉज़ियर जारी करते हुए ये दावा किया कि इसमें पाकिस्तान की घरेलू उठा-पटक के पीछे भारत की खुफ़िया एजेंसियों का हाथ होने के पक्के सबूत हैं. पाकिस्तान ने इसे ‘भारत सरकार द्वारा प्रायोजित आतंकवाद’ का नाम दिया है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने ट्ववीट करके दुनिया से अपील की कि वो, ‘न तो इन सबूतों की अनदेखी करे और न ही इस विषय पर ख़ामोश रहे.’

पाकिस्तान ने जो डॉज़ियर जारी किया है उसके लगभग दस पन्ने ही सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं. बाक़ी के दस्तावेज़ों को सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों (P-5), ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक को-ऑपरेशन (OIC), संयुक्त राष्ट्र और फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (FATF) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सामने पेश किया जा रहा है. इससे पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी और पाकिस्तान की तीनों सेनाओं के प्रचार संगठन के महानिदेशक (DG-ISPR) मेजरन जनरल बाबर इफ़्तिख़ार ने एक साझा प्रेस कांफ्रेंस की थी. जिसमें उन्होंने पाकिस्तान के आतंकवादियों के साथ भारतीय एजेंटों के बीच सहयोग के तथाकथित सबूतों के तौर पर कुछ ऑडियो क्लिप और तस्वीरें दिखाई थीं.

भारत ने पाकिस्तान के इन दावों को ‘बनावटी’ बताया था और इन सभी आरोपों से इनकार करते हुए कहा था कि ये सब (पाकिस्तान की) ’कोरी कल्पना’ है. पाकिस्तान पर नज़र रखने वाले भारतीय विशेषज्ञों ने पाकिस्तान के इन दस्तावेज़ी सबूतों में कई ख़ामियों को उजागर किया था.

भारत ने पाकिस्तान के इन दावों को ‘बनावटी’ बताया था और इन सभी आरोपों से इनकार करते हुए कहा था कि ये सब (पाकिस्तान की) ’कोरी कल्पना’ है. पाकिस्तान पर नज़र रखने वाले भारतीय विशेषज्ञों ने पाकिस्तान के इन दस्तावेज़ी सबूतों में कई ख़ामियों को उजागर किया था. इनमें वर्तनी की ग़लतियां, अपुष्ट जानकारियों का इस्तेमाल और क़ानूनी व नौकरशाही भाषा में आधी-अधूरी जानकारियां तो शामिल हैं ही. इनके अलावा डॉज़ियर में कुछ ऐसे तत्वों को भी सामने लाया गया था, जिनसे भारत द्वारा पाकिस्तान के भीतर ख़ुफ़िया गतिविधियां चलाने के दावे पर कुछ यक़ीन किया जा सकता है.

ये पहली बार नहीं है, जब पाकिस्तान ने ऐसा कोई दस्तावेज़ जारी किया है.

असल में पाकिस्तान ने भारत से ही सबक़ लेते हुए ये काम किया है. क्योंकि, भारत लंबे समय से और संस्थागत तरीक़े से पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी ISI के, सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने और वैश्विक जिहादी संगठनों से सांठ-गाठ का पर्दाफ़ाश करता रहा है. भारत ने ISI की गतिविधियों पर 2009 और 2015 में दस्तावेज़ी सबूतों के डॉज़ियर जारी किए थे. इन सबूतों के चलते भारत, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाव बनाने में सफल रहा है. लेकिन, पाकिस्तान अपने डॉज़ियर जारी करके न तो पहले भारत पर ऐसा दबाव बना सका और न ही इस बार उसके इस मक़सद में कामयाब होने की संभावना है.

ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब पहले के डॉज़ियर बेअसर रहे, तो आख़िर पाकिस्तान ने ये नया दस्तावेज़ जारी क्यों किया और ऐसा क़दम अभी क्यों उठाया? इस दस्तावेज़ की विवादित फोरेंसिक बारीक़ियों को देखते हुए इसे रद्दी में फेंकने का विकल्प आकर्षक लगता है. लेकिन, ऐसा करके हम ऐसे डॉज़ियर के असल मक़सद को नहीं समझ पाएंगे. फोरेंसिक तौर पर बेकार दस्तावेज़ों में भी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रोपेगैंडा फैलाने की काफ़ी क्षमता होती है. जैसे ही ऐसे क़िस्से कहानियां सार्वजनिक किए जाते हैं, तो ये अपने आप को परिचर्चा का हिस्सा बना लेते हैं.

हाल के वर्षों में भारत अपने अंदरूनी संतुलन की चुनौती और पिछले वर्ष की शुरुआत में दिल्ली में सांप्रदायिक हिंस्सा की आग का सामना कर चुका है. ऐसे में इस तरह के डॉज़ियर का मक़सद भारत की ऐसी छवि गढ़ना भी हो सकता है, जिससे लंबी अवधि में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भारत के कूटनीतिक प्रयासों की राह में मुश्किलें खड़ी की जा सकें. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के विशेष सलाहकार (SAPM) मोईद यूसुफ़, जिन्हें पाकिस्तान की बुनियादी हरकतें सुधारने के बजाय, उसकी बिगड़ती छवि को दुरुस्त करने की ज़िम्मेदारी दी गई है, उनकी सरपरस्ती में लाया गया ये डॉज़ियर, पाकिस्तान के भारत विरोधी प्रोपेगैंडा के मक़सद को पूरा करता है.

मोईद यूसुफ़ ने पिछले साल अक्टूबर में करन थापर को एक बहुचर्चित इंटरव्यू दिया था. उसके बाद ही ये डॉज़ियर भी आया. इसके चलते पाकिस्तान की सेना को अपने ख़िलाफ़ बन रहे माहौल को बदलने में काफ़ी मदद मिली. इस दस्तावेज़ की मदद से पाकिस्तान ने आतंकवाद  को पालने-पोसने को लेकर अंतरराष्ट्रीय दबाव भी कम करने की कोशिश की, और इससे वो क्षेत्रीय शांति और स्थिरता में भारत की भूमिका पर भी सवाल उठाने में सफल रहा. लेकिन, इस डॉज़ियर की असल अहमियत पाकिस्तान के कूटनीतिक लाभ उठाने में नहीं है. बल्कि वो इसकी मदद से पूरे क्षेत्र में ज़मीनी स्तर पर फ़ायदा उठाना चाहता है. जिस तरह से और जिस समय पर इस डॉज़ियर को जारी किया गया है, उसी से हमें इसके उपयोग के महत्वपूर्ण संकेत मिलते हैं.

किसके लिए जारी किया गया है डॉज़ियर?

इसमें कोई दो राय नहीं कि असरदार प्रोपेगैंडा का व्यापक असर होता है. इस नज़रिए से देखें, तो पाकिस्तान अपने डॉज़ियर की मदद से अमेरिका में, और ख़ास तौर से नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन और उनकी टीम के बीच अपने लिए समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहा है. इसके अलावा वो अन्य पश्चिमी देशों व अंतरराष्ट्रीय मंचों जैसे कि संयुक्त राष्ट्र, FATF और इस्लामिक देशों के संगठन (OIC) से भी हमदर्दी हासिल करना चाह रहा है. लेकिन, पाकिस्तान को ये भी पता है कि उसे डॉज़ियर से कोई ठोस कूटनीतिक समर्थन नहीं मिलने वाला है. इसके दो कारण हैं.

पहली बात तो ये कि, बराक ओबामा के शासन काल में जब जो बाइडेन उप-राष्ट्रपति थे, तब अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी CIA और ISI के बीच ख़ुफ़िया स्तर पर बहुत से संघर्ष हुए थे. दोनों एजेंसियों की ये लड़ाई 2011 में रेमंड डेविस से जुड़े विवाद और फिर एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन की हत्या के रूप में खुलकर सामने आ गई थी. ये इतिहास बहुत ज़्यादा पुराना नहीं है. ऐसे में जो बाइडेन को ये समझा पाना कठिन होगा कि अब पाकिस्तान का रवैया बदल गया है. दूसरी, बात ये कि शीत युद्ध के दौर और आतंकवाद के ख़िलाफ़ वैश्विक युद्ध के दौरान, पाकिस्तान इसके अग्रणी मोर्चे वाला देश था. लेकिन, अब चीन के साथ चल रही प्रतिद्वंदिता में अमेरिका के लिए पाकिस्तान से कहीं ज़्यादा अहमियत भारत की हो गई है. अमेरिका द्वारा अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेनाएं वापस बुलाने के बाद, उसकी नज़र में पाकिस्तान की उपयोगिता और भी कम हो जाएगी.

ऐसे में जो बाइडेन को ये समझा पाना कठिन होगा कि अब पाकिस्तान का रवैया बदल गया है. दूसरी, बात ये कि शीत युद्ध के दौर और आतंकवाद के ख़िलाफ़ वैश्विक युद्ध के दौरान, पाकिस्तान इसके अग्रणी मोर्चे वाला देश था. लेकिन, अब चीन के साथ चल रही प्रतिद्वंदिता में अमेरिका के लिए पाकिस्तान से कहीं ज़्यादा अहमियत भारत की हो गई है. 

इसके साथ-साथ सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के साथ पाकिस्तान के संबंधों में आई दरार, और इन दोनों देशों के लिए भारत की बढ़ती जियोपॉलिटिकल अहमियत, अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की पाकिस्तान के प्रयासों में मुश्किलें खड़ी करेगी. हां, उसे तुर्की, मलेशिया और चीन का समर्थन ज़रूर मिल जाएगा. सच तो ये है कि कई बरसों से पाकिस्तान की करतूतों की अनदेखी करने के बाद, इनमें से बहुत से देश, अब भारत द्वारा अपने पड़ोसी पर दबाव बनाने की कोशिशों का विरोध नहीं करना चाहेंगे.

इसी तरह से इस डॉज़ियर से राजनीतिक मुश्किलों में घिरे इमरान ख़ान और पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल क़मर जावेद बाजवा को अपने सभी राजनीतिक विरोधियों को भारत का एजेंट बताने में मदद मिलेगी. लेकिन, ये कहना ग़लत होगा कि पाकिस्तान ने ये डॉज़ियर अभी इसी मक़सद से जारी किया है. पाकिस्तान, अपनी घरेलू समस्यायों के पीछे भारत का हाथ होने वाला दांव कई दशकों से चलता आया है. ऐसे में उसे अपने घरेलू बाग़ी सुरों को शांत करने के लिए भारत द्वारा पाकिस्तान में लड़ी जा रही ख़ुफ़िया जंग के दस्तावेज़ी सबूत जारी करने और बेशक़ीमती कूटनीतिक प्रयास करने की ज़रूरत नहीं थी. पाकिस्तान इसके बग़ैर भी अपनी घरेलू समस्याओं के लिए भारत पर आरोप लगाता रहा है, और आगे भी वो ऐसा करता रहेगा.

निश्चित रूप से पाकिस्तान द्वारा जारी इस डॉज़ियर का लक्ष्य भारत ही है.

इसका संदेश क्या है?

पहला तो ये कि पाकिस्तान आने वाले महीनों में, अफ़ग़ानिस्तान में भारत की मौजूदगी को कम करने का मज़बूत इरादा रखता है. ये डॉज़ियर, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के काबुल दौरे के ठीक पहले जारी किया गया था. इमरान ख़ान, दोहा में अफ़ग़ान सरकार और पाकिस्तान की सरपरस्ती में वार्ता कर रहे तालिबान के बीच बने गतिरोध को दूर करने के इरादे से काबुल गए थे. इसके अलावा, ये डॉज़ियर अमेरिका के उस एलान के संदर्भ में भी था, जिसमें उसने जनवरी 2021 तक अफग़ानिस्तान में अपने सैनिकों की संख्या घटाकर 2500 करने का फ़ैसला किया है. इसके अलावा, डॉज़ियर का संबंध अफ़ग़ानिस्तान के कई अधिकारियों के भारत दौरे से भी था, जो भारत को इस बात के लिए मनाने की कोशिश कर रहे थे कि वो अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान से सीधी बातचीत का रास्ता खोले.

जिस तरह से इस डॉज़ियर में पाकिस्तान ने भारतीय और अफ़ग़ानिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसियों के बीच ‘गठजोड़’ उजागर करने की कोशिश की गई है, उसका संकेत साफ़ है. पाकिस्तान का इरादा अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय हितों को निशाना बनाने का है.

हाल के महीनों में अफग़ानिस्तान के मौजूदा उप-राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह की हत्या करने की कई बार कोशिशें की गईं. अमरुल्लाह सालेह, ख़ुफ़िया एजेंसी के प्रमुख रह चुके हैं. वो पाकिस्तान के कट्टर आलोचक और भारत के मुखर समर्थक के रूप में जाने जाते हैं. जिस तरह से इस डॉज़ियर में पाकिस्तान ने भारतीय और अफ़ग़ानिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसियों के बीच ‘गठजोड़’ उजागर करने की कोशिश की गई है, उसका संकेत साफ़ है. पाकिस्तान का इरादा अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय हितों को निशाना बनाने का है.

हमें ये समझना होगा कि भारत और अफ़ग़ानिस्तान के पाकिस्तान के साथ जैसे संबंध हैं, वैसे में दोनों देश निश्चित रूप से सुरक्षा के क्षेत्र में आपस में सहयोग करते हैं. लेकिन, पाकिस्तान के ये दावे कि भारत, अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन पर 66 आतंकवादी कैंप चलाता है, या फिर उसने तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को आर्थिक मदद दी है, वो नेटो की ख़ुफ़िया एजेंसियों की सामूहिक बुद्धिमत्ता का अपमान है. क्योंकि नैटो (NATO) देशों की सेनाएं पिछले क़रीब दो दशकों से अफ़ग़ानिस्तान में जंग लड़ रही हैं, और उन्हें भारत की ऐसी भूमिका के कोई सबूत नहीं मिले. हां, ऐसे इल्ज़ाम लगाकर पाकिस्तान का इरादा, अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय अधिकारियों, नागरिकों, हितों और संस्थाओं को निशाना बनाकर हिंसा करने की ज़मीन तैयार करना ज़रूर है.

अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ख़ुफ़िया कूटनीति के विद्वान ये मानते हैं कि किसी दुश्मन द्वारा चलाए जा रहे गोपनीय अभियानों का पर्दाफ़ाश करना उकसावे वाली कार्रवाई होता है. क्योंकि इससे उस देश के नेता ऐसी कोशिशों पर पलटवार करने वाले क़दम उठाने को बाध्य हो जाते हैं. ये डॉज़ियर और उससे पहले मोईद यूसुफ़ द्वारा करन थापर से इंटरव्यू के दौरान भारत से किसी तरह की बैक-चैनल बातचीत के प्रस्ताव को ख़ारिज करने का मतलब बिल्कुल साफ़ है. पाकिस्तान ने भारत के साथ किसी भी तरह की बातचीत के रास्ते बंद कर लिए हैं. इसके बजाय, उस मोड़ पर जब भारत, सीमा पर चीन के साथ सैन्य तनातनी का सामना कर रहा है, तो पाकिस्तान का इरादा भारत की कमज़ोर स्थिति का फ़ायदा उठाने का है.

हो सकता है कि पाकिस्तान इस बात का भी फ़ायदा उठाए कि दुनिया के बड़े देश और अंतरराष्ट्रीय संगठन भारत के ख़िलाफ़ दबाव तो बनाएंगे ही नहीं. पाकिस्तान की नज़र में डॉज़ियर उपलब्ध कराना और भारत के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की कोशिश करना, उसे भारत के ख़िलाफ़ आक्रामक रुख़ अपनाने की आज़ादी देगा. संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के राजदूत, मुनीर अकरम ने जब ये दस्तावेज़ संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस को सौंपा, तो उन्होंने इसका इशारा भी दिया था. अकरम ने कहा था कि वो भारत की तथाकथित आक्रामक गतिविधियों के ख़िलाफ़ ‘आत्मरक्षा में क़दम उठाने’ का अधिकार रखता है.

ये पाकिस्तान की पुरानी और आज़माई हुई चाल है. 2008-9 के दौरान, ऐसा ही एक डॉज़ियर जिसे किसी ने भी गंभीरता से नहीं लिया था, उसे जारी करने से पहले और उसके बाद, पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी ISI ने अफग़ानिस्तान में भारत के दूतावास, कॉन्सुलेट और यहां तक कि उन गेस्ट हाउस को भी निशाना बनाया था, जहां भारतीय ठहरा करते थे. तब ISI अफ़ग़ानिस्तान में भारत द्वारा चलाए जा रहे विकास के प्रोजेक्ट को भी नहीं बख़्शा था. उस समय पाकिस्तान ने ये दुष्प्रचार भी किया था कि अफ़ग़ानिस्तान में भारत 22 कॉन्सुलेट चला रहा है. हालांकि, तब भी पाकिस्तान का ये अभियान बेअसर रहा था.

लेकिन, इन सभी कोशिशों का मक़सद एक ही था, ये कि भारत, अफ़ग़ानिस्तान से अपना बोरिया-बिस्तर समेट ले.

ये सब तब हुआ था, जब ब्रिटेन, अफ़ग़ान तालिबान के साथ कूटनीतिक वार्ता की ज़मीन तैयार करने में जुटा हुआ था. इस विचार का जन्म जनवरी 2010 में लैंकैस्टर हाउस सम्मेलन के दौरान हुआ था. हालांकि, तब तालिबान के साथ वार्ता के प्रस्ताव को कोई ख़ास समर्थन नहीं मिल सका था. ये वो लम्हा भी था जब ब्रिटेन ने भारत को नाख़ुश करते हुए पाकिस्तान के इशारे पर, अफ़ग़ानिस्तान में भारत की मौजूदगी पर भी सवाल उठाए थे. भले ही अब हालात वैसे नहीं हैं. लेकिन, ये इतिहास का ऐसा सबक़ है, जिससे हो सकता है पाकिस्तान कोई सीख लेने की कोशिश कर रहा हो.

दूसरी बात, जो शायद ज़्यादा ख़तरनाक संकेत वाली है कि पाकिस्तान, भारत में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव का फ़ायदा उठाना चाहता हो. ईमानदारी से कहें तो, अभी भारत को घरेलू इस्लामिक कट्टरपंथियों से कोई ठोस सामरिक ख़तरा नहीं है. लेकिन, हिंदू राष्ट्रवाद के उभार के साथ-साथ, राजधानी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों और अंतरधार्मिक विवाहों और प्रथाओं को निशाना बनाने से भारत के सुरक्षा तबक़े के बीच इस बात की चिंता बढ़ रही है कि पाकिस्तान और चीन आने वाले महीनों और बरसों में भारत में इस सांप्रदायिक तनाव का फ़ायदा उठा सकते हैं.

अमित शाह के नेतृत्व वाले गृह मंत्रालय ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, असम और केरल में कट्टरपंथ के विस्तार का विश्लेषण करने वाली एक स्टडी को मंज़ूरी दी है. भले ही अभी ये बात स्प्ष्ट नहीं है, और शायद आगे भी साफ न हो कि क्या इस अध्ययन में तमाम धार्मिक, जातीय और वैचारिक समूहों के बीच फैलते कट्टरवाद का अध्ययन किया जाएगा? 

जैसा कि विद्वान बताते हैं कि ऐसी चिंताओं को ग़ैरवाजिब कहकर ख़ारिज नहीं किया जा सकता, भले ही वो गंभीर न हों. अमित शाह के नेतृत्व वाले गृह मंत्रालय ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, असम और केरल में कट्टरपंथ के विस्तार का विश्लेषण करने वाली एक स्टडी को मंज़ूरी दी है. भले ही अभी ये बात स्प्ष्ट नहीं है, और शायद आगे भी साफ न हो कि क्या इस अध्ययन में तमाम धार्मिक, जातीय और वैचारिक समूहों के बीच फैलते कट्टरवाद का अध्ययन किया जाएगा? लेकिन, जिस तरह से इस स्टडी के लिए चार राज्यों को चुना गया है, उससे साफ़ है कि इसका मक़सद मुस्लिम युवाओं के बीच बढ़ते कट्टरपंथ का पता लगाना है.

ISI के लिए कश्मीर में उग्रवाद को बढ़ावा देना मुश्किल हो गया है, क्योंकि वहां से धारा 370 हटाने के बाद भारत ने सुरक्षा की मज़बूत मोर्चेबंदी की हुई है. इसके साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की कमज़ोर कूटनीतिक हैसियत और नियंत्रण रेखा के आर-पार भारी गोलीबारी को देखते हुए, ISI के लिए भारत के सांप्रदायिक तनाव का लाभ उठाना ज़्यादा आकर्षक विकल्प लगता है. इसमें पाकिस्तान को चीन से भी गोपनीय समर्थन मिल सकता है. भारत के सुरक्षा मामलों के जानकार निजी तौर पर इसका इशारा भी करते रहे हैं.

अब ये ख़तरे कितने असली हैं, ये आगे चलकर ही पता चलेगा. लेकिन, एक बात साफ़ है कि भारत ऐसे कट्टरपंथ और बाहरी दख़ल से निपटने के लिए कड़ी सुरक्षा व्यवस्था का एक हद तक ही इस्तेमाल कर सकता है. इस मोर्चे पर सफलता की कुंजी शायद इस बात में छुपी है कि भारत अपने अंदरूनी संतुलन को सुधारे. भले ही वो इसे जियोपॉलिटिकल कारणों से ही करे, न कि एक हिंदू राष्ट्रवादी सरकार के सिद्धांत के ख़िलाफ़ जाकर करे.

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