Author : Sohini Bose

Published on Jul 31, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में बिजली आपूर्ति परियोजना को जापान की वित्तीय मदद दोनों देशों के बीच मज़बूत द्विपक्षीय रिश्तों की मिसाल है.

भारत-जापान गठजोड़: अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर ज़ोर
भारत-जापान गठजोड़: अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर ज़ोर

31 मार्च 2022 को जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (JICA) ने भारत सरकार के साथ एक अनुदान समझौते पर दस्तख़त किए. इस समझौते के तहत भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में बिजली आपूर्ति परियोजना के लिए 4,016,000,000 जापानी येन (तक़रीबन 13.3 करोड़ अमेरिकी डॉलर) की सहायता मुहैया कराने का प्रावधान है. इस निवेश का मकसद दक्षिणी अंडमान में बिजली आपूर्ति व्यवस्था में स्थिरता लाना है. इसमें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पैदा बिजली का इस्तेमाल किया जाएगा. इस क़वायद को विशेष उपकरण  और बैटरी स्टोरेज सिस्टम और ग्रिड इंटरकनेक्शन कैसेट जैसी सहूलियतों के ज़रिए अंजाम दिया जाएगा. फ़रवरी 2024 तक इस परियोजना के पूरा हो जाने की उम्मीद है. अंडमान और निकोबार प्रशासन की निगरानी में इसे अमल में लाया जा रहा है. दरअसल इसका लक्ष्य द्वीप समूह में कार्बन की छाप में कटौती करना है. इसके लिए डीज़ल आधारित बिजली निर्माण की व्यवस्था को स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा से बदला जा रहा है. जापानी मदद से चलने वाली इस क़वायद से अंडमान निकोबार द्वीप समूह में बिजली विकास नीति से जुड़ी योजना में मदद मिलने के आसार हैं. इससे द्वीप समूह की औद्योगिक प्रतिस्पर्धा में सुधार आएगा. साथ ही इस इलाक़े की फ़ौजी क्षमताओं में भी इज़ाफ़ा होगा. दरअसल सालों तक हिफ़ाज़ती तरीक़े से यहां का प्रशासन चलाने के बाद अब भारत  ख़ुद इस द्वीप के विकास और यहां की सामरिक संभावनाओं का लाभ उठाने को लेकर तत्पर है.

जापानी मदद से चलने वाली इस क़वायद से अंडमान निकोबार द्वीप समूह में बिजली विकास नीति से जुड़ी योजना में मदद मिलने के आसार हैं. इससे द्वीप समूह की औद्योगिक प्रतिस्पर्धा में सुधार आएगा. साथ ही इस इलाक़े की फ़ौजी क्षमताओं में भी इज़ाफ़ा होगा.

अंडमान सागर से बंगाल की खाड़ी को अलग करने वाले अंडमान निकोबार द्वीप समूह में भारत के 30 फ़ीसदी विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) स्थापित हैं. इस द्वीप समूह में विश्व के सबसे प्राचीन और ख़तरे की ज़द में रहने वाले आदिवासी समूहों की रिहाइश है. यहां जंगली जानवरों और पेड़-पौधों का एक विविधतापूर्ण संसार मौजूद है. लिहाज़ा ये बात आसानी से समझी जा सकती है कि 1947 में आज़ादी हासिल करने के बाद भारत ने इस द्वीप समूह को संरक्षित करने की पुरज़ोर कोशिश की है. “शोषणकारी प्रलोभनों से इनका वजूद और बुनियाद” बचाने की इन क़वायदों के तहत इस द्वीप समूह को ‘अनछुआ रखने के लिए लगातार नज़रअंदाज़‘ किया जाता रहा. शासन-प्रशासन का ये परंपरावादी नज़रिया क़ानूनी एलानों और पर्यावरणवादी समूहों के प्रयासों से साल दर साल उभरकर सामने आता रहा है. नतीजतन ये द्वीप समूह विकास की उस बयार से अछूता रह गया जो भारत की मुख्य भूमि में बह रही थी. कई सालों तक इस समूचे द्वीप समूह के महज़ 7 फ़ीसदी इलाक़ों का ही विकास किया गया. बाक़ी इलाक़ों की सुरक्षित क्षेत्र के तौर पर निशानदेही कर दी गई. बहरहाल, अंडमान निकोबार द्वीप समूह के निवासियों की बढ़ती आकांक्षाओं और बदलते भूराजनीतिक हालातों के चलते भारत सरकार को इस इलाक़े पर नए सिरे से ध्यान देना पड़ा है. अब ये बात समझ में आ गई है कि पर्यावरण संरक्षण के साथ आर्थिक तरक़्क़ी का तालमेल बिठाते हुए आगे बढ़ा जा सकता है. लिहाज़ा धीरे-धीरे अंडमान निकोबार द्वीप समूह के प्रशासन में बदलाव देखा जा रहा है. अब यहां के प्रशासन में पहले से ज़्यादा लचकदार रुख़ अपनाया जाने लगा है.

विदेशी ताक़त को इन द्वीपों में निवेश करने की इजाज़त

इसी बदलाव की तर्ज पर अंडमान निकोबार द्वीप समूह में हाल के वर्षों में विकास से जुड़े अनेक कार्यक्रम शुरू किए गए हैं. मिसाल के तौर पर 2015 में 100 करोड़ रु की लागत से एक योजना का एलान किया गया था. इसका मकसद अंडमान निकोबार द्वीप समूह को भारत के पहले सामुद्रिक अड्डे की तौर पर विकसित करना था. 2018 में प्रधानमंत्री मोदी ने अनेक विकास परियोजनाओं के उद्घाटन के लिए पहली बार इस द्वीप समूह का दौरा किया. 2019 में द्वीप तटीय नियामक क्षेत्र अधिसूचना जारी की गई. इसके ज़रिए बंदरगाहों, पत्तनों और जेटी सेवाओं के लिए भूमि अधिग्रहण की क़वायद को मंज़ूरी दी गई. इसका मकसद द्वीप समूह में विलासितापूर्ण पर्यटन को बढ़ावा देना था. 2020 में चेन्नई-अंडमान और निकोबार समुद्रतलीय इंटरनेट केबल की शुरुआत हुई. इसका मकसद अंडमान निकोबार द्वीप श्रृंखला के 7 सबसे दूरदराज़ के द्वीपों को हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्शन मुहैया कराना था. साथ ही ग्रेटर निकोबार द्वीप समूह में समुद्री जहाज़ों में माल और ढुलाई की अदलाबदली की सहूलियत देने वाला बंदरगाह तैयार करने का एलान भी किया गया. जैसा कि ऊपर बताया गया है द्वीप समूह की बिजली आपूर्ति में सुधार के लिए JICA द्वारा निवेश की क़वायद इन विकास कार्यक्रमों की कड़ी में सबसे ताज़ा पहल है. इस कार्यक्रम की एक बड़ी ख़ासियत ये है कि पहली बार एक विदेशी ताक़त को सामरिक रूप से अहम इन द्वीपों में निवेश करने की इजाज़त दी गई है.

इस कार्यक्रम की एक बड़ी ख़ासियत ये है कि पहली बार एक विदेशी ताक़त को सामरिक रूप से अहम इन द्वीपों में निवेश करने की इजाज़त दी गई है. 

सामरिक रूप से कितना अहम?

​अंडमान निकोबार का ज़िक्र अक्सर “दुनिया में सामरिक तौर पर सबसे अहम स्थान पर स्थित द्वीप समूह के तौर पर” किया जाता है. दरअसल अपने भौगोलिक विस्तार के बूते ये द्वीप समूह अपने आसपास के जलीय इलाक़ों में आवागमन की आज़ादी से जुड़ी तमाम संभावनाएं सुनिश्चित कर सकता है. हिंद और प्रशांत महासागर के मिलन क्षेत्र के बेहद क़रीब स्थित ये द्वीप समूह मलक्का जलसंधि के पश्चिम में, और उसके बेहद नज़दीक है. मलक्का जलसंधि का इलाक़ा पूर्वी एशिया के ज़्यादातर देशों की ऊर्जा ज़रूरतों के लिहाज़ से बेहद अहम है. यही वजह है कि इस इलाक़े को लेकर चीन हमेशा चिंतित रहता है. उसकी इसी कशमकश को ‘ मलक्का दुविधा ‘(Malacca Dilemma) के तौर पर जाना जाता है. चीन इसी इकलौते जलसंधि के ज़रिए अपनी ज़रूरतों का तेल आयात करता है. लिहाज़ा इस रास्ते के बाधित हो जाने से चीन के आर्थिक विकास पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है. इसके अलावा अंडमान निकोबार द्वीप समूह का विस्तार प्रिपेरिस चैनल, द डंकन पासेज, द टेन डिग्री चैनल और द सिक्स डिग्री चैनल तक भी है. भारत के साथ-साथ पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया के तमाम ठिकानों तक जाने वाले समुद्री जहाज़ों के अहम रास्ते यहीं से गुज़रते हैं. ज़ाहिर है दुनिया के सबसे व्यस्त पूर्व-पश्चिम सामुद्रिक रास्ते के नज़दीक बसे (यहां से महज़ 8 नॉटिकल मील दूर) इस द्वीप की ज़द में कई अहम संवेदनशील ठिकाने (chokepoints) हैं. चीन बंगाल की खाड़ी में आक्रामक तरीक़े से अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है. भारत भी इन जलीय इलाक़ों में अपनी स्थिति सुरक्षित करने और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता बरक़रार रखने की क़वायदों में लगा है. ऐसे में इस द्वीप समूह की अहमियत पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गई है.

चीन बंगाल की खाड़ी में आक्रामक तरीक़े से अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है. भारत भी इन जलीय इलाक़ों में अपनी स्थिति सुरक्षित करने और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता बरक़रार रखने की क़वायदों में लगा है. ऐसे में इस द्वीप समूह की अहमियत पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गई है. 

​जापान ‘स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत’ से जुड़ी भारतीय आकांक्षाओं के साथ है. नतीजतन दोनों देशों की भागीदारी इसी सामरिक सहमति के इर्द गिर्द रची बसी है. JICA के ज़रिए हो रहे निवेश से भी यही बात साबित हुई है. JICA भारत की संघीय सरकार के अलावा विभिन्न राज्य सरकारों के साथ भी भागीदारी करता आ रहा है. इसके ज़रिए भारत को ग़रीबी उन्मूलन, निवेश संवर्धन और बुनियादी ढांचे के विकास में मदद पहुंचाई जा रही है. आज ये भारत को द्विपक्षीय तौर पर अनुदान देने वाली सबसे बड़ी एजेंसी है. भारत इससे सहायता हासिल करने वाले देशों की सूची में 2003 से सबसे ऊपर बना हुआ है. ये गठजोड़ भारत की घरेलू परियोजनाओं से लेकर अफ़्रीका में जापान-भारत के तालमेल से चलने वाली परियोजनाओं तक फैला हुआ है. भारत की घरेलू परियोजनाओं में दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा और भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र (NER) की विभिन्न परियोजनाएं शामिल हैं. 2020 में दोनों देशों ने अपनी सशस्त्र सेनाओं के बीच आपूर्तियों और सेवाओं के पारस्परिक प्रावधानों से जुड़े समझौते पर दस्तख़त किए थे. ये समझौता और भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र (जो संवेदनशील सरहदी इलाक़ा है) में जापान का जुड़ाव जापान को लेकर भारत के भरोसे का संकेत है. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में गठजोड़ को लेकर JICA के ताज़ा एलान से ये विश्वास और उभरकर सामने आया है. मार्च 2021 में अंडमान निकोबार द्वीप समूह में जापान ने पहली बार अपनी आधिकारिक विकास सहायता (ODA) परियोजना को मंज़ूरी दी. इसके ज़रिए हिंद-प्रशांत को मुक्त और स्वतंत्र क्षेत्र बनाए रखने में सामरिक और भूराजनीतिक रूप से द्वीप समूह की मौजूदगी पर ज़ोर दिया गया है.

भू-राजनीतिक हक़ीक़त

दरअसल 1942-45 के बीच अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर एक बार जापान का कब्ज़ा रहा था. लिहाज़ा बंगाल की खाड़ी में इस द्वीप समूह की सामरिक अहमियत से जापान अच्छी तरह से वाक़िफ़ है. हिंद-प्रशांत के हिस्से के तौर पर बंगाल की खाड़ी का सामरिक महत्व दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. दुनिया के कुछ बेहद अहम समुद्री रास्ते यहीं से गुज़रते हैं. इसके अलावा यहां हाइड्रोकार्बन के भंडार के रूप में बड़ी दौलत भरी पड़ी है. चीन इस इलाक़े में अपनी स्थिति सुरक्षित करना चाहता है. इसी तरह जापान भी यहां की बदलती भूराजनीतिक हक़ीक़तों को अच्छी तरह से समझता है. हिंद-प्रशांत में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए जापान इस जलीय इलाक़े के छोटे-छोटे द्वीपों- ख़ासतौर से दक्षिण एशिया के तमाम दूसरे देशों से अपने संपर्क बढ़ाने की क़वायदों में लगातार जुटा हुआ है. यही वजह है कि JICA बंगाल की खाड़ी में जगह-जगह बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश कर रहा है. इस तरह से ये चीनी परियोजनाओं के मुक़ाबले आर्थिक रूप से कहीं ज़्यादा टिकाऊ और पारदर्शी विकल्प मुहैया करा रहा है. ज़ाहिर है अप्रत्यक्ष रूप से जापान की इन तमाम क़वायदों का मक़सद इस जलीय क्षेत्र में अपनी रक्षा मौजूदगी की पड़ताल करना है. दरअसल जापान का संविधान उसे दूसरे देशों को खुले तौर पर सैन्य सहायता मुहैया कराने की इजाज़त नहीं देता. ऐसे में जापान की तमाम कोशिशें और उनसे जुड़े मंसूबे आसानी से समझे जा सकते हैं.

हिंद-प्रशांत में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए जापान इस जलीय इलाक़े के छोटे-छोटे द्वीपों- ख़ासतौर से दक्षिण एशिया के तमाम दूसरे देशों से अपने संपर्क बढ़ाने की क़वायदों में लगातार जुटा हुआ है. यही वजह है कि JICA बंगाल की खाड़ी में जगह-जगह बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश कर रहा है.

​​बहरहाल, इस इलाक़े में भारत-जापान भागीदारी को केवल चीन की काट के तौर पर देखना पूरे मसले का ज़रूरत से ज़्यादा सरलीकरण करने जैसा होगा. दरअसल दोनों ही देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र को समृद्ध और स्थिर देखना चाहते हैं. लिहाज़ा ऊपर बताई गई तमाम क़वायदों को इसी साझा नज़रिए पर अमल के तौर पर देखना चाहिए. अंडमान निकोबार द्वीप समूह को मज़बूत बनाने से इस जल क्षेत्र से आने-जाने वाली तमाम ताक़तों को मुक्त और स्वतंत्र होकर आवागमन करने की प्रक्रिया को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी. इतना ही नहीं, अंडमान निकोबार द्वीप समूह के शांत और मनोरम वातावरण में पर्यटन उद्योग के लिए अपार संभावनाएं मौजूद हैं. इसके लिए कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचों का विकास ज़रूरी है. इस मोर्चे पर जापानी निवेश से देश के लिए व्यापारिक अवसरों के द्वार खुलते हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि अंडमान निकोबार द्वीप समूह में भारत और जापान के गठजोड़ से दोनों देशों के बीच बढ़ता आपसी विश्वास सामने आया है. बंगाल की खाड़ी और हिंद-प्रशांत का सामरिक भविष्य तय करने में विश्वास का ये कारक बेहद अहम साबित होगा.

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