रायसीना डायलॉग के चौथे अंक का शुरुआती भाषण देते हुए, विदेशी मामलों की मंत्री श्रीमति सुषमा स्वराज ने कहा कि भारत ऐसे आर्थिक और सामाजिक बदलाव के दौर से गुज़र रहा है, जिसका अनुभव विश्व में कभी नहीं किया गया। “देश-विदेश में रहने वाले भारतीय नागरिकों की खुशहाली और सुरक्षा बेहद महत्वपूर्ण है, केवल आत्महित की भावना से तरक्की संभव नहीं है।”
विश्व से भारत के घनिष्ठ संबंधों की जड़ें, प्राचीन सभ्यता के मूल्यों पर जुड़ी हैं: जैसे सह-अस्तित्व, अनेकता में एकता, उदारता, वार्तालाप और प्रजातांत्रिक मान्यताएं। भारत की सफलता से विकास, शांति एवं स्थिरता को बल मिलता है, वहीं क्षेत्रीय एवं वैश्विक विकास में बढ़ोतरी होती है।
श्रीमति स्वराज ने कहा, “भारत प्रजातांत्रिक एवं शासन आधारित अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली के लिए प्रतिबद्ध है।”
श्रीमति स्वराज ने पांच ऐसे सिंद्धांतों की व्याख्या की जिनके आधार पर विश्व से भारत के संबंध परिभाषित हुए हैं। पहला, भारत ने अपने पड़ोसी देशों से संबंध मज़बूत किए हैं। दूसरा, भारत विदेशी संबंधों की तालमेल कुछ इस तरह बैठा रहा है जिसके माध्यम से आर्थिक प्रगति हासिल हो। तीसरा, वैश्विक स्तर पर भारतीय युवाओं को रोज़गार मिले, ताकि भारत मानव संसाधन के श्रेत्र में दुनिया की सबस बड़ी ताकत बन कर उभरे। चौथा, भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानकों एवं सुशासन के आधार पर दीर्घकालीन विकास नितियां और भागीदारी विकसित कर रहा है। पांचवा, भारत विश्वस्तरीय संस्थानों एवं संगठनो को पुर्नजीवित कर रहा है।
श्रीमति स्वराज ने संक्षिप्त तौर पर भारत एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जारी मौजूदा चुनौतियों के विषय में भी चर्चा की। उन्होनें कहा, ‘‘आतंकवाद लगातार पूरे विश्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है।”
“सबकुछ डिजिटल हो जाने की वजह से, ये चुनौती और बड़ी हो गई है, जिसकी वजह से सुधार के रास्ते कठिन होते जा रहे हैं।” श्रीमति स्वराज ने बताया कि विदेशी मामलों के मंत्रालय और ऑबज़र्वर रिसर्च फांउंडेशन ने संयुक्त रुप से तीन दिनों तक चलने वाली इस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया है।
श्रीमति स्वराज ने सामूहिक विनाशकारी हथियारों और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों पर भी चर्चा की।
जलवायु परिवर्तन के विषय पर चर्चा करते हुए, उन्होनें कहा कि इस स्थिति में विकासशील और अल्प विकसित देश सबसे ज़्यादा असुरक्षित हैं, क्योंकि इस संकट के निपटने के लिए इन देशों के पास पर्याप्त संसाधनों की कमी है।
भारत इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए तैयार है। फ्रांस की सरकार के साथ मिलकर, भारत ने इस साल की शुरुआत में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की स्थापना की, जिसमें विश्व के 120 देशों ने हिस्सा लिया।
श्रीमति स्वराज ने यह भी स्वीकारा कि विश्व अशांति दौर से गुज़र रहा है। हालाकि उन्होनें ये भी कहा, “निरंतर परिवर्तन के इस दौर को असामान्य स्थिति नहीं समझना चाहिए ।” अहम सवाल है कि, बदलाव के इस दौर का सामना कैसे किया जाए?
श्रीमति स्वराज ने कहा कि, विदेश नीति पर होने वाली चर्चा केवल कुछ लोगों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, इस चर्चा को छोटे शहरों, ग्रामीण इलाकों, स्कूलों और क्षेत्रीय मीडिया तक ले जाना ज़रूरी है। “यही एक मात्र तरीका है, जिसके ज़रिए विदेशी नीतियों से संबंधित प्रजातांत्रिक सोच विकसित की जा सकती है।”
श्रीमति स्वराज से हार्दिक खुशी जाहिर करते हुए कहा कि, रायसीना डायलॉग के माध्यम से की जाने वाली चर्चा और विचारों को हज़ारों लोगों के साथ साझा किया जाएगा।
तीन दिनों तक चलने वाली इस कॉन्फ्रेंस में 92 देशों के 600 प्रतिनिधि एवं 1,800 सहभागी हिस्सा ले रहे हैं।
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