Published on Nov 30, 2021 Updated 19 Hours ago

मालदीव की विपक्षी पार्टियों के द्वारा भारत को ख़तरा बताने की कोशिश के बावजूद ये बिल्कुल स्पष्ट हो चुका है कि भारत मालदीव के लिए ख़तरा नहीं है.

मालदीव की स्वतंत्रता के लिए भारत ख़तरा नहीं है- जानिये क्यों और कैसे?

जेल में बंद पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की अगुवाई वाले विपक्षी पीपीएम-पीएनसी गठबंधन के द्वारा समय-समय पर ‘इंडिया आउट’ अभियान फिर से शुरू करने, जिसके तहत भारत जैसे बड़े समुद्री पड़ोसी को मालदीव की रोज़ की राजनीति में घसीटा जाता है, के बावजूद ये आरोप सच के बिल्कुल क़रीब नहीं है. इसका कारण सीधा और स्पष्ट है. भारत के पास मालदीव में स्थायी सैन्य मौजूदगी सुनिश्चित करने के लिए एक काबिल और सशक्त फ़ौजी ताक़त मौजूद है. इसके साथ ही भारत को इस बात का भी अंदाज़ा है कि वो मालदीव की राज्य-व्यवस्था के छोटे से छोटे हिस्से को भी नाराज़ नहीं कर सकता. मालदीव के भीतर अपने विरोधियों को दूर रखने और व्यापक तौर पर भारत के हित में ऐसी ही नीति का पालन उचित रहेगा.

भारत के पास मालदीव में स्थायी सैन्य मौजूदगी सुनिश्चित करने के लिए एक काबिल और सशक्त फ़ौजी ताक़त मौजूद है. इसके साथ ही भारत को इस बात का भी अंदाज़ा है कि वो मालदीव की राज्य-व्यवस्था के छोटे से छोटे हिस्से को भी नाराज़ नहीं कर सकता. 

3 नवंबर को सालाना विजय दिवस समारोह में रक्षा मंत्री मारिया दीदी ने दोहराया कि भारत मालदीव की स्वतंत्रता के लिए ख़तरा नहीं था. ये समारोह मालदीव के उन शहीदों- आठ सैनिकों और 11 नागरिकों- की याद में मनाया जाता है जिन्होंने 1988 में श्रीलंका के भाड़े के तमिल लड़ाकों द्वारा तत्कालीन राष्ट्रपति मामून अब्दुल गयूम की सरकार को उखाड़ फेंकने की कोशिश के ख़िलाफ़ अपने प्राण न्यौछावर किए थे. तमिल लड़ाकों के हमले के बाद छिप जाने वाले गयूम ने भारत से मदद मांगी थी जिसके बाद भारतीय सेना की टुकड़ी ने ऑपरेशन कैक्टस के ज़रिए विद्रोह की कोशिश को ख़त्म कर दिया और बीच समुद्र से विद्रोही नेताओं को गिरफ़्तार करके उन्हें मालदीव की अदालत में मुक़दमे के लिए भेजा.

एक टेलीविज़न इंटरव्यू में रक्षा मंत्री ने ये भी दोहराया कि विरोधी दावे के बावजूद इस बात का कोई सबूत नहीं है कि भारत मालदीव के लिए ख़तरा है. उन्होंने 75 भारतीय सैन्य कर्मियों की मौजूदगी की तरफ़ ध्यान दिलाया जो भारत द्वारा मानवीय अभियान चलाने के लिए तोहफ़े में दिए गए दो हेलीकॉप्टर और एक डॉर्नियर फिक्स्ड विंग एयरक्राफ्ट को उड़ाने और उसकी देखभाल के लिए हैं और दावा किया कि ये भारतीय सैनिक हथियार विहीन हैं और पूरी तरह मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स (एमएनडीएफ) के तहत काम करते हैं.

रक्षा मंत्री मारिया ने कहा, “भारतीय सेना में जितने भी डॉक्टर, पायलट, मिस्त्री, रेडियोलॉजिस्ट और गायनोकॉलोजिस्ट हैं- वो मालदीव सरकार की स्पष्ट अनुमति के बिना यहां आ नहीं सकते. पायलट तब तक नहीं उड़ सकते जब तक कि एमएनडीएफ उन्हें उड़ने के लिए कहे नहीं. यहां तक कि उनके यहां रुकने की अवधि भी मालदीव सरकार के द्वारा निर्धारित की जाती है.” मारिया दीदी के अनुसार भारत की आलोचना करने वालों में बड़े ड्रग स्मगलर शामिल हैं जिन्हें एमएनडीएफ द्वारा समुद्र की निगरानी के लिए डॉर्नियर की तैनाती के बाद पिछले दो वर्षों में सबसे ज़्यादा ड्रग की बरामदगी की वजह से काफ़ी ज़्यादा नुक़सान झेलना पड़ा है.

संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में शामिल होने के लिए ग्लासगो में मौजूद राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह ने भी अपने विजय दिवस के संदेश में मालदीव की संप्रभुता को सुरक्षित रखने के लिए भारत का शुक्रिया अदा किया.  

संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में शामिल होने के लिए ग्लासगो में मौजूद राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह ने भी अपने विजय दिवस के संदेश में मालदीव की संप्रभुता को सुरक्षित रखने के लिए भारत का शुक्रिया अदा किया. मालदीव ने जिस दिन इस्लाम को अपनाया, उस दिन (इस साल ये दिन 7 नवंबर को पड़ा) को मनाने के लिए राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में सोलिह ने कहा कि धर्म के नाम पर ग़लत विश्वास का प्रसार उन सबसे बड़े मुद्दों में से एक है जिनका सामना लोग कर रहे हैं. इसकी वजह से लोगों की जान ख़तरे में है, हिंसक हमलों को बढ़ावा दिया जा रहा है और संपत्ति को नुक़सान पहुंचाया जा रहा है.

संसद के स्पीकर और राष्ट्रपति सोलिह की सत्ताधारी मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के प्रमुख मोहम्मद ‘अन्नी’ नशीद अपने देश की ‘इंडिया फर्स्ट’ नीति को दृढ़तापूर्वक कहने में बेबाक थे. एमडीपी ने मालदीव में भारत विरोधी आलोचकों के जवाब में कभी इस बात पर विश्वास नहीं किया कि भारत को मालदीव के मामलों में शामिल नहीं होना चाहिए. नशीद ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति यामीन के साथ भी चर्चा हुई और मालदीव के ज़्यादातर लोगों का मानना है कि ये बड़ा मुद्दा नहीं था.

विदेशी सैन्य मौजूदगी

अपने दोबारा प्रदर्शन को सरकारी नेताओं के द्वारा भारत के लिए आभार जताने के समय पर शुरू करते हुए यामीन के पीपीएम-पीएनसी गठबंधन ने ‘स्वतंत्रता की रक्षा के लिए’ एक रैली की जहां भाषण देने वालों ने लगातार अस्पष्ट तरीक़े से ‘विदेशी सैन्य मौजूदगी’, यानी भारतीय पायलट्स और टेक्नीशियन का ज़िक्र किया. साथ ही उथुरुथिला फल्हू द्वीप में मालदीव के कोस्ट गार्ड के लिए भारत द्वारा डॉकयार्ड बनाने के द्विपक्षीय समझौते, जिसे यूटीएफ समझौते के नाम से भी जाना जाता है, का मुद्दा भी उठाया.

मुख्य वक्ता के तौर पर गठबंधन के नेता अब्दुल रहीम अब्दुल्ला (अधूरे) ने कहा कि सरकार ने ऐसी परिस्थिति बनाई है जिससे देश की स्वतंत्रता पर ख़तरा है. बिना जानकारी वाले लोगों को उकसाते हुए उन्होंने मालदीव के लंबे इतिहास का ज़िक्र किया और कहा कि “मालदीव के लोग अच्छी तरह समझते हैं कि हनिमधू, कधधू, अद्दू और दूसरी जगहों में विदेशी सैन्य मौजूदगी स्वतंत्रता को ख़तरे में डालती है.”

मालदीव के लोग मालदीव की ज़मीन पर किसी विदेशी सैन्य कर्मी की तैनाती नहीं चाहते. मालदीव के लोगों की पुकार है कि अपनी स्वतंत्रता की रक्षा वो ख़ुद करेंगे.”  

किसी और से ज़्यादा पीपीएम के उपनेता और सांसद गासन मामून, जो पूर्व राष्ट्रपति गयूम के बेटे हैं, की रैली में मौजूदगी ने सबको हैरान किया. अगर सर्वोच्च न्यायालय यामीन के राष्ट्रपति पद के दौरान (2013-18) ‘मनी लॉन्ड्रिंग के केस’ में उनकी सज़ा और अयोग्यता को बरकरार रखता है तो उस स्थिति में गासन राष्ट्रपति पद के दावेदारों में से एक हैं. गयूम के चार बच्चों में गासन इकलौते हैं जो यामीन, गयूम से अलग हो चुके उनके सौतेले भाई, के साथ हैं. गासन ने कहा, “मालदीव के लोग मालदीव की ज़मीन पर किसी विदेशी सैन्य कर्मी की तैनाती नहीं चाहते. मालदीव के लोगों की पुकार है कि अपनी स्वतंत्रता की रक्षा वो ख़ुद करेंगे.” यामीन के दूसरे वफ़ादारों की तरह उन्होंने भी कहा कि 2018 में यामीन की सत्ता इसलिए गई क्योंकि वो देश की स्वतंत्रता की रक्षा करना चाहते थे. उन्होंने ये भी कहा कि जेल में यामीन को नुक़सान पहुंचाया जा रहा है.

भारत के एक और आलोचक और यामीन से अलग हो चुके पूर्व गृह मंत्री उमर नसीर, जो पूर्व पुलिस अधिकारी हैं और अब ‘धिवेही नेशनल एक्शन’ (डीएनए) के प्रमुख हैं, ने कहा कि मालदीव के लोग देश की स्वतंत्रता के लिए किसी भी बलिदान से पीछे नहीं हटेंगे. उन्होंने दावा किया कि भारत के पूर्व उच्चायुक्त अखिलेश मिश्रा ने उन्हें कहा कि ‘मालदीव के लोग अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं’ और उम्मीद जताई कि “अखिलेश के देश की सभी राजनीतिक हस्तियां इस तथ्य से अवगत हैं.”

अलग सुर

यूटीएफ के मुद्दे को लेकर सत्ताधारी एमडीपी की स्थायी सोच से काफ़ी अलग हटते हुए पार्टी के अध्यक्ष हसन लतीफ़ ने यूटीएफ सौदे का ‘ख़ुलासा’ करने की मांग की. पार्टी के मामलों में लतीफ को स्पीकर नशीद के साथ जोड़ा जाता है. संसद की सुरक्षा सेवा समिति, जो ‘241 समिति’ के रूप में लोकप्रिय है, के सदस्य के रूप में उन्होंने समझौते को पढ़ा लेकिन जब विपक्ष के सदस्यों ने उसको प्रकाशित करने की मांग की तो उन्होंने चुप्पी साधे रखी.

लतीफ़ ने ट्वीट किया कि सरकार को लोगों के सामने ये साबित करना चाहिए कि वो गुप्त रूप से कुछ नहीं कर रही है. इस मुद्दे पर हाल के दिनों में अपनी सोच में बदलाव की वजह बताए बिना उन्होंने कहा, “सरकार को भारत से कैसे मदद मिल रही है ये जानना (लोगों के लिए) फायदेमंद भी है.” पड़ोसी देश भारत पर केंद्रित दूसरे सभी मुद्दों को ख़त्म करने के लिए विदेश मंत्रालय ने एक बयान में ‘इंडिया आउट’ अभियान की निंदा को दोहराया और कहा कि “सरकार दृढ़ता से विश्वास करती है कि इस तरह का दृष्टिकोण आम लोगों का नहीं बल्कि एक छोटे समूह का है जिनका उद्देश्य भारत के साथ लंबे दोस्ताना संबंध को कलंकित करना है.” जिस वक़्त नये भारतीय उच्चायुक्त मुनु महावर अपना परिचय राष्ट्रपति सोलिह के सामने रख रहे थे, उसी वक़्त मालदीव के विदेश मंत्रालय के बयान को अचानक नहीं कहा जा सकता.

तथ्य कुछ और कहते हैं

बिना अस्तित्व वाली निर्वाचन क्षेत्र की राजनीति पर केंद्रित आंतरिक झगड़े से अलग ऐसी कोई चीज़ नहीं है जो ये बताए कि भारत मालदीव की स्वतंत्रता, संप्रभुता और सुरक्षा के लिए एक ख़तरा है. अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान यामीन की सरकार भी अतीत का ऐसा कोई दस्तावेज़ नहीं तलाश पाई. वो भी तब जब अपने कार्यकाल के आख़िरी दिनों में यामीन चाहते थे कि भारत ने जो दो हेलीकॉप्टर तोहफ़े में दिए हैं, उन्हें वो वापस ले.

इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण ये है कि बेहद कम समय तक सत्ता संभालने वाले राष्ट्रपति मोहम्मद वाहिद हसन मानिक, जिन्होंने भारत से हेलीकॉप्टर की मांग की और हासिल किया, के पीछे यामीन का दिमाग़ था. यामीन के राष्ट्रपति पद पर रहने (2013-18) के दौरान ही डॉर्नियर की भी मांग की गई और हासिल किया गया जबकि मालदीव के पायलट्स के लिए ट्रेनिंग की मांग नहीं की गई. मालदीव के पायलट्स की ट्रेनिंग सोलिह सरकार के दौरान हुई जब एमएनडीएफ के तीन कर्मियों ने हाल के दिनों में ट्रेनिंग के लिए क्वालिफाई किया. इसी तरह 2014 में यामीन के राष्ट्रपति रहने के दौरान ही यूटीएफ समझौते की पहल की गई जिसका अब वो विपक्ष में रहते हुए विरोध कर रहे हैं.

इस प्रायोजित धारणा में भी कोई तर्क नहीं है कि भारत मालदीव में एक सैन्य अड्डा बनाना चाहता था. पिछले 40 साल से ज़्यादा समय में दो अवसरों पर भारतीय सैन्य कर्मी मालदीव में थे लेकिन पूरी तरह मेज़बान सरकार के अनुरोध पर. पहला अवसर 1988 में था जब विद्रोह की कोशिश के दौरान मालदीव की मदद के लिए भारतीय सेना आई थी और दूसरा अवसर 2004 में सुनामी के दौरान सहायता का था. संयोग से 2015 में यामीन के शासन के दौरान ही मालदीव की राजधानी माले के एकमात्र समुद्री जल के खारापन को दूर करने वाले प्लांट में आग लगने के बाद भारतीय वायुसेना और नौसेना ने पीने का पानी पहुंचाया.

इस प्रायोजित धारणा में भी कोई तर्क नहीं है कि भारत मालदीव में एक सैन्य अड्डा बनाना चाहता था. पिछले 40 साल से ज़्यादा समय में दो अवसरों पर भारतीय सैन्य कर्मी मालदीव में थे लेकिन पूरी तरह मेज़बान सरकार के अनुरोध पर. 

सभी अवसरों पर भारतीय सशस्त्र सेना अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने के फ़ौरन बाद मालदीव से निकल गई. इससे साफ़ संकेत मिलता है कि मालदीव की सीमा में अपने सैन्य कर्मियों को तैनात करने का भारत का कोई मक़सद नहीं था. दुनिया भर के सैन्य चिंतक इस बात की तरफ़ भी ध्यान दिलाते हैं कि इन सभी मौक़ों ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया कि कम वक़्त में मालदीव को मदद पहुंचाने के लिए भारत को किसी सैन्य अड्डे की ज़रूरत नहीं थी.

मेज़बान सरकारों के द्वारा कहे जाने पर सैन्य कर्मियों को तैनात करने और हटाने का एक लंबा इतिहास है. बांग्लादेश युद्ध (1971) और श्रीलंका में भारतीय शांति सेना (आईपीकेएफ) को तैनात करने के दौरान- दोनों ही अवसरों पर भारत ने या तो अपना तात्कालिक उद्देश्य पूरा होने पर सैन्य टुकड़ी को वापस ले लिया या फिर जब मेज़बान देश को ऐसा लगा. इससे भी बढ़कर मौजूदा और उभरते हिंद महासागर के सुरक्षा परिदृश्य में मालदीव और श्रीलंका, भारत के लिए और भारत के ख़िलाफ़ रक्षा या आक्रमण की पहली पंक्ति के रूप में हैं. ये भारत के हित में नहीं होगा कि एक छोटी सरकार या कम लोगों को भी उकसाए.

ये बात ख़ास तौर पर तब और ज़्यादा लागू होती है जब चीन जैसा विरोधी देश सभी तरफ़ से भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है. भारत अपने क़रीबी पड़ोस में किसी भी संभावना को लेकर काफ़ी सचेत है, यहां तक कि मालदीव की राज्य-व्यवस्था के एक हिस्से के राजनीतिक रूप से प्रेरित भारत केंद्रित बेचैनी की वास्तविकता को उजागर करने के लिए भी.

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