Published on Aug 09, 2023 Updated 0 Hours ago

जब तक वैश्विक स्तर पर दामों में कमी नहीं आयेगी, भारत में भी मुद्रास्फीति से राहत मिलने की आशा नहीं की जा सकती है.

मुद्रास्फीति की चपेट में पूरी दुनिया!
मुद्रास्फीति की चपेट में पूरी दुनिया!

पूरी दुनिया मुद्रास्फीति की चपेट में हैयदि पिछले दोढाई दशक को देखेंतो हम पाते हैं कि धनी देशोंख़ासकर अमेरिकामें मुद्रास्फीति की स्थिति नहीं रही थी और दाम नियंत्रण में थेइसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि चीनपूर्वी एशियादक्षिण एशिया और पूर्वी यूरोप के वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में आने से उत्पाद बड़ी मात्रा में और सस्ती दरों पर उपलब्ध हो रहे थेदूसरा कारण यह रहा कि दुनिया के कई हिस्सों में आबादी का स्वरूप बदला और युवाओं की संख्या बढ़ने से कार्य बल की आपूर्ति में बढ़ोतरी हुईश्रम आपूर्ति अधिक होने सेअगर उसकी मांग स्थिर रहती है या कुछ बढ़ती भी हैउत्पादक पर वेतन  भत्तों को लेकर अधिक दबाव नहीं रहता हैअगर मांग अधिक होती और श्रमिक कम होतेतो वेतन बढ़ाना पड़तालेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि श्रम अधिशेष की स्थिति पैदा हो गयीअब यह स्थिति बदलने लगी है और आबादी में अधिक आयु के लोगों की संख्या बढ़ने लगी हैइसके साथ ही उत्पादन प्रक्रिया में तकनीक का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर बढ़ा हैइन कारकों की वजह से कीमतें नीचे रही थींलेकिन कोरोना महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका दे दिया.

एक तो महामारी और अब यह मुद्रास्फीति, तो ऐसी स्थिति में देशों को भी कड़े फैसले लेने पड़ रहे हैं, जिनसे दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ रहा है. उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया ने पाम ऑयल के निर्यात पर रोक लगा दी है. पिछले साल भारत ने वहां से अस्सी लाख टन पाम ऑयल का आयात किया था. 

आपूर्ति श्रृंखला बुरी तरह प्रभावित 

महामारी की रोकथाम की कोशिशों के कारण आपूर्ति श्रृंखला में व्यापक अवरोध उत्पन्न हुआयह केवल उत्पादित वस्तुओं के साथ ही नहीं हुआबल्कि खानेपीने की चीजों की आपूर्ति भी बाधित हुई. एक तो महामारी और अब यह मुद्रास्फीतितो ऐसी स्थिति में देशों को भी कड़े फैसले लेने पड़ रहे हैंजिनसे दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ रहा है. उदाहरण के लिएइंडोनेशिया ने पाम ऑयल के निर्यात पर रोक लगा दी है. पिछले साल भारत ने वहां से अस्सी लाख टन पाम ऑयल का आयात किया था. अब इसकी आपूर्ति कहीं और से करनी होगी और उसके लिए अधिक दाम चुकाना होगापाम ऑयल का उपभोग केवल परिवारों में नहीं होता हैबाजार में बिकनेवाले बहुत सारे खाद्य पदार्थ इससे बनाये जाते हैंउनके दाम भी बढ़ रहे हैंबहरहालपिछले साल भारत समेत दुनिया के अधिकतर देशों में स्थिति में धीरेधीरे सुधार होने लगा था और अनुमान लगाया जा रहा था कि दोतीन सालों में सब कुछ सामान्य हो जायेगा.

रूस-यूक्रेन युद्ध के रूप में बड़ा संकट

लेकिन तभी रूसयूक्रेन युद्ध के रूप में बड़ा संकट हमारे सामने उपस्थित हो गया हैइस मसले में तेल और प्राकृतिक गैस को लेकर अधिक चर्चा हो रही हैवह एक स्तर पर ठीक भी है क्योंकि यूरोप की मुद्रास्फीति में इसका बड़ा योगदान है क्योंकि रूस उसका सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता हैयह सर्वविदित तथ्य है कि जब तेल और गैस के दाम बढ़ते हैं या उनकी आपूर्ति में बाधा आती हैजो अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र पर असर होता हैपाबंदियों के कारण कई देशों को दूसरे देशों से तेल और गैस लेना होगाइससे दाम बढ़ना स्वाभाविक हैबिजली और यातायात का खर्च बढ़ना इसके साथ सीधे तौर पर जुड़ा हुआ हैसाथ हीकई तरह के खनिज का मामला भी है.

चीन की जीरो कोविड पॉलिसी भी मुद्रास्फीति को बढ़ा रही है. हालिया लॉकडाउन की वजह से चीन से और चीन में सामानों की ढुलाई पर असर पड़ा है. इस संबंध में एक उदाहरण सेमीकंडक्टर का है, जिसका इस्तेमाल डिजिटल सामानों के साथ-साथ वाहनों में भी होता है.

रूस और यूक्रेन गेहूंसूरजमुखी के तेल आदि विभिन्न खाद्य पदार्थों के भी बड़े उत्पादक हैंइस युद्ध के कारण यूरोप और पश्चिम एशिया समेत दुनिया के कई हिस्से खाद्य संकट के कगार पर हैंइस कारण भारत समेत विश्व भर में खानेपीने की चीजें महंगी हो गयी हैंइस युद्ध और रूस पर  रूस द्वारा लगाये गये प्रतिबंधों के कारण आपूर्ति श्रृंखला भी प्रभावित हुई हैजो पहले से ही दबाव में है. चीन की जीरो कोविड पॉलिसी भी मुद्रास्फीति को बढ़ा रही है. हालिया लॉकडाउन की वजह से चीन से और चीन में सामानों की ढुलाई पर असर पड़ा है. इस संबंध में एक उदाहरण सेमीकंडक्टर का हैजिसका इस्तेमाल डिजिटल सामानों के साथ-साथ वाहनों में भी होता है.

सेमीकंडक्टर की आपूर्ति बाधित होने से हमारे देश में चारपहिया गाड़ियों की प्रतीक्षा अवधि बहुत बढ़ गयी हैचिप की तंगी डेढ़दो साल से बनी हुई हैयह भी विडंबना ही है कि भारत और अमेरिका समेत अनेक देशों के केंद्रीय बैंकों ने मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी की हैलेकिन इससे भी महंगाई बढ़ने की आशंका पैदा हो गयी है क्योंकि अब क़र्ज़ महंगे हो जायेंगेमहामारी के दौर में यही समझ थी कि अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सस्ती दरों पर पूंजी मुहैया कराया जाए ताकि औद्योगिक और कारोबारी गतिविधियां बढ़ेंरोजगार के अवसर पैदा होंलोग खरीदारी कर सकें और मांग बढ़ेइसका फ़ायदा भी हुआपर रूसयूक्रेन युद्ध ने फिर समस्या को वहीं पहुंचा दिया है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का आकलन

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का आकलन है कि तीसरी तिमाही में स्थिति नियंत्रण में  सकती हैपर अनेक जानकार इससे सहमत नहीं हैंजिनमें मैं भी शामिल हूंअभी युद्ध सबसे बड़ी चुनौती है और सभी को यह प्रयास करना चाहिए कि यह तुरंत रुकेयह मामला जितना अधिक चलेगाहालात ख़राब होते जायेंगेचीन को भी कोविड की रोकथाम के अपने कड़े नियमों पर पुनर्विचार करना चाहिएअभी की स्थिति में भारत के लिए भी मुश्किलें हैंबीते दोतीन दशक में हमारी अर्थव्यवस्था का विस्तार तो हुआ हैलेकिन उत्पादन के स्तर पर हम विविधता लाने में सफल नहीं हो सके हैंअभी तक यह सोचा जा रहा था कि जिन क्षेत्रों में निर्यात बढ़ रहा हैउस पर ध्यान दिया जाए तथा अन्य जिन चीजों की जरूरत होगीउसे हम बाहर से खरीद लेंगेइसमें परेशानी यह हुई कि वैश्विक मुद्रास्फीति ने हमारे हिसाब को गड़बड़ा दियापिछले साल से ही औद्योगिक उत्पादन में प्रयुक्त होनेवाली वस्तुओं की लागत बहुत बढ़ने लगी थी.

अमेरिकी बॉन्ड की कमाई का अनुमान बहुत गिर गया है. ऐसा जब जब हुआ है, तब तब मंदी या वित्तीय संकट की स्थिति पैदा हुई है. ऐसी चिंताजनक स्थिति से निकलने के लिए हमें रूस-यूक्रेन युद्ध को तुरंत रोकने का भरसक प्रयास करना चाहिए तथा चीन को यह कहा जाना चाहिए कि वह आपूर्ति प्रक्रिया को बाधित न होने दे. तभी आर्थिक संकट को टाला जा सकता है.

दुनिया के देशों के सामने चुनौती

अभी भारत और अन्य कई देशों के सामने चुनौती यह है कि कुछ चीजों के निर्यात बढ़ने से लाभ तो हो रहा हैलेकिन जैसे ही आप आयात कर रहे हैंतो लाभ उसमें चला जा रहा हैजब तक वैश्विक स्तर पर दामों में कमी नहीं आयेगीभारत में भी मुद्रास्फीति से राहत मिलने की आशा नहीं की जा सकती हैएक बेहद चिंताजनक आशंका वैश्विक आर्थिक संकट या महामंदी की भी हैअमेरिकी बॉन्ड की कमाई का अनुमान बहुत गिर गया है. ऐसा जब जब हुआ हैतब तब मंदी या वित्तीय संकट की स्थिति पैदा हुई है. ऐसी चिंताजनक स्थिति से निकलने के लिए हमें रूस-यूक्रेन युद्ध को तुरंत रोकने का भरसक प्रयास करना चाहिए तथा चीन को यह कहा जाना चाहिए कि वह आपूर्ति प्रक्रिया को बाधित न होने दे. तभी आर्थिक संकट को टाला जा सकता है.


यह लेख मूल रूप से प्रभात खबर में प्रकाशित हो चुका है. 

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