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ऐसी उम्मीद है कि ट्रम्प भारत-अमेरिका साझीदारी को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे।
डोनाल्ड ट्रम्प को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में विजयी हुए तीन महीने से अधिक और अपना पदभार संभाले तीन सप्ताह से अधिक हो चुके हैं।
विश्लेषकों और पर्यवेक्षकों को उम्मीद थी कि चुनावों में जीत जाने के बाद वह विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्वों पर अपने तेवर में नरमी लाएंगे। उन्हें उम्मीद थी कि राष्ट्रपति-निर्वाचित उम्मीदवार ट्रम्प की तुलना में अपनी घोषणाओं में अधिक जिम्मेदार और नाप तौल कर बोलने वाले साबित होंगे। पर ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने अनुमान लगाया था कि राष्ट्रपति ट्रम्प पहले की तुलना में अधिक मर्यादित तरीके से बर्ताव करेंगे। एक बार उनकी उम्मीदें गलत साबित हुईं।
फिर भी दूरंदेशी तरीके से ट्रम्प के शासन काल के दौरान भारत-अमेरिका संबंधों की भविष्य की धारा पर कुछ यथार्थपूर्ण अनुमान लगा पाना मुमकिन है।
भारत-अमेरिका साझीदारी कुछ ऐसे क्षेत्रों में है जो गैर विवादास्पद है। हाल के वर्षों में विदेश नीति के मोर्चे पर अमेरिका के लिए यह एक उपलब्धि रही है। यह कहा जा सकता है कि भारत-अमेरिका संबंधों को अमेरिकी कांग्रेस में दोनो दलों और अमेरिकी नागरिकों के बीच समान रूप से समर्थन हासिल है। मार्च 2000 में बिल क्लिंटन की भारत की यात्रा के साथ प्रारंभ, आज की साझीदारी की स्थिति दोनों देशों के बीच अब तक के सर्वेश्रेष्ठ स्तर पर है।
पिछले तीन राष्ट्रपतियों — क्लिंटन, ओबामा (डेमोक्रेट) एवं बुश (रिपब्लिकन) — सभी ने इन संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए कठिन परिश्रम किया है। भारत के नजरिए से देखें तो अगर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दोनों देशों को ‘स्वाभाविक साझीदार’ करार दिया तो प्रधानमंत्री मोदी ने इस संबंध को एक ‘अपरिहार्य साझीदारी’ का नाम दिया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारत-अमेरिका नागरिक नाभिकीय समझौते को लेकर अपनी सरकार तक को दांव पर लगा दिया था। उन्होंने इसे अपने 10 वर्ष के शासन की सबसे बड़ी उपलब्धि घोषित किया था। राष्ट्रपति ओबामा ने भारत-अमेरिका संबंधों को ’21 वीं सदी की निर्णायक साझीदारी’ बताया था।
पिछले तीन राष्ट्रपतियों — क्लिंटन, ओबामा (डेमोक्रेट) एवं बुश (रिपब्लिकन) — सभी ने इन संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए कठिन परिश्रम किया है।
पिछले दशक के दौरान, भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंध साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और द्विपक्षीय, क्षेत्रीय तथा वैश्विक मुद्दों पर हितों के बढ़ते समन्वय पर आधारित एक ‘वैश्विक रणनीतिक साझीदारी’ में तबदील हो गए हैं। उच्च स्तरीय राजनीतिक यात्राओं ने द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत गति प्रदान की है जबकि व्यापक और लगातार विस्तारित हो रहे वार्ता ढांचे ने भारत-अमेरिका संबंधों के लिए एक दीर्घकालिक संरचना की स्थापना की है। आज, भारत-अमेरिका द्विपक्षीय सहयोग व्यापक हो चुका है और कई क्षेत्रों में इसका विस्तार हो चुका है। इसमें व्यापार से लेकर निवेश, रक्षा और प्रतिरक्षा, शिक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, उच्च प्रौद्योगिकी, नागरिक नाभिकीय ऊर्जा, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी एवं अनुप्रयोगों, स्वच्छ ऊर्जा, पर्यावरण, कृषि एवं स्वास्थ्य शामिल हैं।
इसलिए, कहा जा सकता है कि डोनाल्ड ट्रम्प को भारत और अमेरिका के बीच एक सशक्त और जीवंत संबंध विरासत में मिला है। ऐसी उम्मीद है कि ट्रम्प इस द्विपक्षीय साझीदारी को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे। यह इस तथ्य से पूरी तरह स्पष्ट था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मैक्सिको एवं मिस्त्र के राष्ट्रपतियों एवं कनाडा तथा इजरायल के प्रधानमंत्रियों के बाद दुनिया के ऐसे पांचवें नेता थे, जिनसे ट्रम्प ने 20 जनवरी, 2017 को अपना पदभार ग्रहण करने के बाद पहली बार बात की थी। 24 जनवरी को हुई मोदी-ट्रम्प बातचीत में पूरी आत्मीयता एवं गर्मजोशी थी, पर ट्रम्प ने अन्य जिन नेताओं के साथ बातचीत की थी, उसके बारे में यही बात नहीं कही जा सकती। दोनों पक्षों द्वारा जारी आधिकारिक बयानों में हालांकि कोई विशेष बात नहीं कही गई लेकिन ट्रम्प शासन काल के प्रारंभिक दिनों के संकेतों से उस वरीयता के साक्ष्य मिलते हैं, जो ट्रम्प भारत-अमेरिका संबंधों को देते हैं। व्हाइट हाउस बयान के अनुसार, ट्रम्प ने जोर देकर कहा था कि अमेरिका भारत को “एक सच्चा मित्र और दुनिया भर की चुनौतियों का सामना करने में एक साझीदार के रूप में देखता है।” बताया जाता है कि दोनों नेताओं ने अर्थव्यवस्था और रक्षा क्षेत्र में अपनी साझीदारी को मजबूत बनाने के अवसरों पर चर्चा की। उन्होंने दक्षिण एवं मध्य एशिया में सुरक्षा पर भी चर्चा की और “आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक संघर्ष में कंधे से कंधा मिला कर लड़ने का संकल्प किया।” मोदी ने ट्वीट किया कि उनकी राष्ट्रपति के साथ “गर्मजोशी से बातचीत हुई और कहा कि दोनों व्यक्तियों ने हमारे द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए आगे आने वाले दिनों में घनिष्ठतापूर्वक काम करने पर सहमति जताई।” मोदी और ट्रम्प दोनों ने ही एक दूसरे को राजकीय यात्राओं के लिए आमंत्रित किया। उनकी टेलीफोन पर बातचीत ने रिपब्लिकन प्रशासन के राज में भारत-अमेरिका संबंधों के भविष्य का माहौल तैयार कर दिया।
प्रधानमंत्रि मोदी ने ट्वीट किया कि उनकी राष्ट्रपति के साथ “गर्मजोशी से बातचीत हुई और कहा कि दोनों व्यक्तियों ने हमारे द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए आगे आने वाले दिनों में घनिष्ठतापूर्वक काम करने पर सहमति जताई।”
हालांकि फोन पर बातचीत के बाद इस बारे में कोई विवरण या कोई विशिष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई, पर यह स्पष्ट था कि रणनीतिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं प्रतिरक्षा संबंधों, विशेष रूप से आतंकवाद के नासूर का सामना करने के लिए आपसी संबंधों को और मजबूत बनाने पर दोनों नेताओं के बीच पूरी तरह सहमति थी।
मोदी एवं ट्रम्प की फोन पर बातचीत के अतिरिक्त, भारत सरकार एवं नवनिर्वाचित ट्रम्प प्रशासन पहले ही 8 नवंबर, 2016 को ट्रम्प की विजय के बाद कई बार संपर्क स्थापित कर चुके थे।
पहला संपर्क चुनाव परिणामों में ट्रम्प को विजयी घोषित किए जाने के कुछ ही घंटों के बाद प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 9 नवंबर को बधाई के लिए दिया जाने वाला संदेश और फोनकॉल थी। दूसरा संपर्क विदेश सचिव एस. जयशंकर द्वारा नवंबर के आखिर में न्यूयॉर्क की उनकी यात्रा के दौरान हुआ था। बताया जाता है कि वहां उन्होंने सत्ता हस्तांतरण को क्रियान्वित करने के लिए गठित ट्रम्प की टीम के कई सलाहकारों एवं अधिकारियों के साथ मुलाकात की। इसके बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार(अजीत डोवाल) और अमेरिका के एनएसए जनरल माइक फ्लिन के बीच 19 दिसंबर को वाशिंगटन डीसी में मुलाकात हुई। बताया जाता है कि क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों पर चर्चाएं हुईं। बीती 14 फरवरी को फ्लिन के इस्तीफे के बाद एनएसए स्तर पर संपर्क निश्चित अवधि में फिर से स्थापित किया जाना है।
बताया जाता है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी ने चुनावों के तुरंत बाद खुद कहा था कि वह अमेरिकी राष्ट्रपति-निर्वाचित डोनाल्ड ट्रम्प के साथ काम करने की आशा करते हैं, जिनके साथ उनके अच्छे संबंध हैं और महसूस करते हैं कि आगामी रिपब्लिकन प्रशासन का भी भारत की ओर अच्छा झुकाव होगा।
अपने चुनाव अभियान के दौरान ट्रम्प द्वारा दिए गए वक्तव्यों के अध्ययन से प्रदर्शित होता है कि उन्होंने भारत के खिलाफ उस प्रकार की आलोचनात्मक और तीखी टिपण्णियां नहीं कीं जिस प्रकार उन्होंने कई अन्य देशों के लिए कीं। इसके विपरीत, उन्होंने कुल मिला कर भारत के लिए सकारात्मक और प्रशंसात्मक उद्धरण दिए। उन्होंने कहा कि जब वह निर्वाचित हो जाएंगे, तो भारत व्हाईट हाउस में उनका एक सच्चा दोस्त होगा। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की गर्मजोशीपूर्ण तरीके से प्रशंसा की और कहा कि वह काफी ऊर्जावान हैं और वह (ट्रम्प) उनके साथ काम करने के इच्छुक हैं।
अमेरिका में रोजगार नुकसान का मुद्दा लगातार और पिछले राष्ट्रपति चुनावों में भी एक विवादास्पद और विभाजनकारी मुद्दा बना रहा। वर्तमान चुनावों में भी कारखानों के बंद होने एवं अमेरिकी नौकरियों को चुराए जाने का मुद्दा व्यापक रूप से छाया रहा।
ट्रम्प ने मुख्य रूप से चीन और मैक्सिको को अमेरिकी मैन्यूफैक्चरिंग में रोजगार के अवसरों को छीनने के लिए निशाना बनाया और उन पर अमेरिकी उद्योगों के बंद होने के लिए जिम्मेदार होने का आरोप लगाया। केवल कुछ ही अवसरों पर उन्होंने भारत की सॉफ्टवेयर एवं आईटी रोजगारों की ऑफ-शोरिंग के लिए आलोचना की। भारतीय कंपनियों, खासकर, इंफोसिस, विप्रो, टीसीएस आदि जैसी आईटी सेक्टर की कंपनियाों ने जो अमेरिका में सक्रिय हैं, पहले ही ट्रम्प एवं अटॉर्नी जनरल जेफ सेशंस की पुष्टि सुनवाइयों के दौरान की गई टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए स्थानीय पेशेवरों की भर्ती करने के द्वारा सुधारात्मक कदम उठाने आरंभ कर दिए हैं। इसके बावजूद कि अमेरिकी प्रशासन एच1बी वीज़ा व्यवस्था को विवेकपूर्ण बनाने के लिए तात्कालिक रूप से कोई कदम उठा सकता है, मुझे पूरा भरोसा है कि निकट भविष्य में अमेरिका सरकार को अमेरिकी उद्योग जगत इस बात के लिए राजी कर लेगा और अवश्य महसूस करेगा कि अमेरिकी उद्योग जगत की प्रतिस्पर्धा की क्षमता गंभीर रूप से भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियरों आदि द्वारा किए जा रहे विशिष्ट एवं तकनीकी रूप से परिष्कृत कार्यों पर निर्भर है। अगर ट्रम्प अमेरिका में कॉरपोरेट टैक्स को 35 प्रतिशत से घटा कर 15 प्रतिशत पर ले आने के अपने वादे को पूरा करते हैं, तो यह स्थिति वर्तमान में भारत में स्थित कुछ अमेरिकी कंपनियों को अमेरिका में फिर से स्थापित हो जाने को आकर्षित और प्रोत्साहित करेगी। अगर कुछ कंपनियां भारत छोड़ कर चली जाती है तो इसका भारत सरकार क की पहल ‘मेक इन इंडिया’ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
पाकिस्तान के साथ ट्रम्प के संबंधों का भारत पर उल्लेखनीय प्रभाव पडने की संभावना है। आतंकवाद के खिलाफ ट्रम्प के सख्त वक्तव्यों से इस बात की पूरी संभावना है कि वह पाकिस्तान पर आतंकवादियों को समर्थन देने एवं उन्हें शरण देने से रोकने के लिए और अधिक दबाव डालेंगे। यह भारत के लिए लाभदायक साबित हो सकता है। ट्रम्प के सात मुस्लिम बहुल देशों के नागरिकों को आने से मना करने के अस्थायी प्रतिबंध ने पाकिस्तान को चिंता में डाल दिया है कि उसे भी इसी वर्ग में शामिल कर लिया जा सकता है। यह आशंका उस वक्त और भी बलवती हो गई, जब व्हाईट हाउस की एक प्रेस बैठक में प्रवक्ता ने एक सवाल के प्रत्युत्तर में कहा कि पाकिस्तानी नागरिकों के प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है। इसी वजह से पाकिस्तान ने तत्काल कार्रवाई करते हुए इस वर्ष 31 जनवरी को लश्करे-ए-तैयबा के सरगना हाफिज सईद को नजरबंद कर दिया ताकि वह ट्रम्प प्रशासन के सामने अपने आतंकवादी विरोधी कदमों को बढ़ा चढ़ा कर पेश कर सके। पिछले कई वर्षों में, ट्रम्प ने ऐसे कई बयान दिए हैं जिनमें पाकिस्तान की काफी निंदा की गई है और जिनमें कहा गया कि वह अमेरिका का मित्र नहीं है क्योंकि वह अमेरिका से अरबों डॉलर लेता है पर उसके दुश्मनों की मदद करता है और अमेरिकी सैनिकों को मरवा डालता है। टम्प ने पाकिस्तान में नाभिकीय हथियारों के खिलाफ प्रतिकूल टिपण्णियां की हैं। उन्होंने अपनी एक चुनाव रैली में कहा था कि वह एक अर्ध-स्थिर, नाभिकीय शस्त्रों से लैस पाकिस्तान की समस्या से निपटने के लिए भारत की सहायता एवं समर्थन लेना पसंद करेंगे।
निष्कर्ष के रूप में कहा जाए तो, बहुत हद तक ऐसा लगता है कि रणनीतिक, राजनीतिक, सुरक्षा, प्रतिरक्षा एवं आर्थिक लिहाज से भारत और अमेरिका के बीच के संबंध राष्ट्रपति ट्रम्प के नेतृत्व में नई बुलंदियों तक पहुंचेंगे। पाकिस्तान के साथ अमेरिका के संबंधों का प्रभाव भारत के लिए लाभदायक एवं सकारात्मक होने की उम्मीद है। जहां तक चीन एवं रूस के साथ अमेरिका के उभरते संबंधों के भारत के लिए निहितार्थ का सवाल है तो बेहतर यह होगा कि इसके उपसंहार के खुलासे के लिए अभी और इंतजार किया जाए। इन देशों के साथ अमेरिका के संबंध जटिल और बहुआयामी हैं। इसका अनुमान लगाना अभी जल्दीबाजी होगी कि उनके बीच किस प्रकार के संबंध विकसित होंगे और उनका भारत पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।
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Amb. Ashok Sajjanhar has worked for the Indian Foreign Service for over three decades. He was the ambassador of India to Kazakhstan Sweden and Latvia ...
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