30 नवंबर 2020 को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शासनाध्यक्षों (सरकारों के प्रमुखों या प्रधानमंत्रियों) की परिषद की वर्चुअल बैठक हुई. ये SCO के शासनाध्यक्षों (CHG) की 19वीं बैठक थी. इसकी अध्यक्षता भारत ने की. 2017 में भारत के SCO का सदस्य बनने के बाद ये पहली बैठक थी, जिसकी अध्यक्षता भारत ने की थी.
SCO के दो सदस्य देशों के दो सालाना शिखर सम्मेलन होते हैं. भारत की अध्यक्षता में हुए CHG शिखर सम्मेलन का विश्लेषण करने से पहले हमें इन दो शिखर सम्मेलनों के बीच के अंतर को समझने की ज़रूरत है.
शंघाई सहयोग संगठन की उत्पत्ति
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की उत्पत्ति वर्ष 2001 में तत्कालीन शंघाई-5 से हुई थी. शंघाई फ़ाइव समूह का अस्तित्व वर्ष 1996 में चीन के इसरार पर आया था. उससे पहले, 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद चीन और चार अन्य देश, रूस, क़ज़ाख़िस्तान, किर्गीज़िस्तान और ताजिकिस्तान एक साथ आए थे. इन देशों के साथ चीन की सीमा सुनिश्चित नहीं थी. चीन ने पांच देशों का समूह इसीलिए बनाया था, जिससे कि इन देशों के बीच सीमा को लेकर विवाद का शांतिपूर्ण ढंग से निपटारा किया जा सके. जब इन देशों के बीच सीमा के विवाद सुलझा लिए गए, तो ये तय किया गया कि ये सभी पांच देश मिलकर शंघाई फ़ाइव का गठन करें, जिससे कि आपस में राजनीतिक, सुरक्षा, आर्थिक और सांस्कृतिक मामलों में सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके. वर्ष 2001 में इस समूह में उज़्बेकिस्तान के शामिल होने के बाद, शंघाई फ़ाइव का नाम बदलकर शंघाई सहयोग संगठन कर दिया गया.
इन सभी देशों में राष्ट्रपति प्रणाली वाली शासन व्यवस्था है, जिसमें राष्ट्रपति ही कार्यपालिका के प्रमुख होते हैं. उन्हीं के हाथ में विदेश नीति, सुरक्षा, रक्षा और सैन्य मामलों (अन्य विषय भी) की कमान होती है. जबकि इन देशों के प्रधानमंत्री, ओहदे में राष्ट्रपति से नीचे होते हैं. उन्हें आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मसलों से जुड़े फ़ैसले करने के अधिकार होते हैं. इस तरह से, शंघाई सहयोग संगठन के भीतर दो उच्च स्तरीय व्यवस्थाओं का निर्माण किया गया. राष्ट्राध्यक्षों की परिषद (CHS), जिसमें सभी देशों के राष्ट्रपति शामिल होते हैं; और शासनाध्यक्षों की परिषद (CHG), जिसमें इन देशों के प्रधानमंत्री शामिल होते हैं. CHG की ज़िम्मेदारी व्यापारिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों से संबंधित होती है.
भारत, वर्ष 2005 में इस संगठन का पर्यवेक्षक बना था. पर्यवेक्षक के तौर पर भारत के विदेश मंत्री या ऊर्जा मंत्री (SCO के कई देशों में तेल, गैस, कोयला और यूरेनियम के विशाल भंडारों को देखते हुए) SCO के दोनों ही शिखर सम्मेलनों यानी शासनाध्यक्षों (CHG) और राष्ट्राध्यक्षों (CHS) की बैठक में शामिल होता रहा था. भारत की संसदीय प्रणाली के तहत, यहां पर कार्यपालिका के वास्तविक अधिकार देश के प्रधानमंत्री के पास होते हैं. इसीलिए, भारत की ओर से प्रधानमंत्री ही CHS की बैठकों में शामिल होते आए हैं.
SCO का पर्यवेक्षक रहने के दौरान, भारत कभी भी इसके शासनाध्यक्षों या राष्ट्राध्यक्षों की बैठक में शामिल नहीं हुआ था. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह सिर्फ़ एक बार शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में वर्ष 2009 में तब शामिल हुए थे, जब रूस ने अपने येकाटेरिनबर्ग शहर में ब्रिक्स और SCO के शिखर सम्मेलन साथ-साथ आयोजित किए थे.
SCO का पर्यवेक्षक रहने के दौरान, भारत कभी भी इसके शासनाध्यक्षों या राष्ट्राध्यक्षों की बैठक में शामिल नहीं हुआ था. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह सिर्फ़ एक बार शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में वर्ष 2009 में तब शामिल हुए थे, जब रूस ने अपने येकाटेरिनबर्ग शहर में ब्रिक्स और SCO के शिखर सम्मेलन साथ-साथ आयोजित किए थे. उस समय दोनों ही संगठनों की अध्यक्षता रूस के पास थी. 2015 में एक बार फिर रूस को ब्रिक्स (BRICS) और शंघाई सहयोग संगठन की सदस्यता एक साथ मिली थी. तब भी रूस ने अपने उफा शहर में दोनों संगठनों के शिखर सम्मेलन एक साथ आयोजित किए थे. तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, शिखर सम्मेलन में शामिल हुए थे. उसके बाद से ही, शंघाई सहयोग संगठन के राष्ट्राध्यक्षों (CHS) के सभी शिखर सम्मेलनों में प्रधानमंत्री मोदी शामिल होते रहे हैं. ये सम्मेलन वर्ष 2016 में उज़्बेकिस्तान के ताशकंद में, 2017 में कज़ाख़िस्तान के अस्ताना (अब नूर-सुल्तान), 2018 में चीन के क़िंगडाओ, 2019 में किर्गीज़िस्तान के बिश्केक और 10 नवंबर 2020 को रूस की अध्यक्षता में वर्चुअल रूप में हुए थे.
जहां तक शंघाई सहयोग संगठन के शासनाध्यक्षों (CHG) की बैठकों का सवाल है, तो आम तौर पर इनमें भारत का प्रतिनिधित्व, विदेश मंत्री करते रहे हैं. 2017 में रूस के सोची में हुआ सम्मेलन हो, या 2018 में ताजिकिस्तान के दुशांबे में हुआ सम्मेलन, दोनों में ही भारत के विदेश मंत्री शामिल हुए थे. पिछले साल, उज़्बेकिस्तान के ताशकंद में हुए शासनाध्यक्षों के सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया था. इसकी वजह शायद ये थी कि उज़्बेकिस्तान और भारत के बीच रक्षा सहयोग लगातार बढ़ रहा है, और भारत और उज़्बेकिस्तान के बीच द्विपक्षीय रक्षा गतिविधियां जैसे कि भारत और उज़्बेकिस्तान के बीच साझा युद्धाभ्यास डस्टलिक का आयोजन भी शिखर सम्मेलन के समय ही किया जा रहा था.
10 नवंबर 2020 को रूस की अध्यक्षता में हुए SCO के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल हुए थे. शायद यही कारण है कि 30 नवंबर 2020 को शंघाई सहयोग संगठन के शासनाध्यक्षों की मीटिंग में भारत का प्रतिनिधित्व उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने किया. क्योंकि, उप-राष्ट्रपति प्रोटोकॉल और ऑर्डर और प्रिसिडेंस में प्रधानमंत्री से पहले आते हैं. वैसे भी जिस दिन SCO के CHG की बैठक हो रही थी, उस दिन प्रधानमंत्री मोदी अपने संसदीय क्षेत्र में कुछ कार्यक्रमों में व्यस्त थे.
अध्यक्ष का भाषण
उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने इस बैठक में अपने भाषण की शुरुआत सभी भागीदारों से रूसी भाषा में अभिवादन के साथ की थी. रूसी भाषा को, चीन और पाकिस्तान के अलावा, SCO के बाक़ी सभी सदस्य देश समझते हैं. इसे हम इशारों में चीन को सख़्त संदेश देने के रूप में देख सकते हैं, क्योंकि चीन इस संगठन का सबसे प्रमुख देश है, फिर चाहे वो राजनीतिक दृष्टि से हो या आर्थिक नज़रिए से. उप-राष्ट्रपति ने शंघाई सहयोग संगठन के मध्य एशियाई सदस्य देशों के साथ भारत के हज़ार साल से भी ज़्यादा पुराने सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सभ्यता वाले संबंधों का ज़िक्र किया. उन्होंने कहा कि भारत ने हाल के वर्षों में जो आर्थिक तरक़्क़ी की है, वो तारीफ़ के क़ाबिल है. इसके अलावा भारत ने कोविड-19 की महामारी से निपटने में भी सराहनीय काम किया है. वेंकैया नायडू ने नई विश्व व्यवस्था में बहुपक्षीयवाद को कुछ सुधारों के साथ लागू करने की बात की, और कहा कि इसी के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय अपने सामने खड़ी चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपट सकता है. उन्होंने कहा कि आज भारत, दुनिया के लिए एक भरोसेमंद और पारदर्शी आर्थिक साझीदार बनकर उभरा है, क्योंकि हमने हमेशा अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का पालन किया है. ये दबे ढंके शब्दों में चीन पर प्रहार ही था, क्योंकि चीन अंतरराष्ट्रीय नियम क़ायदों और बहुपक्षीय व्यवस्थाओं का उल्लंघन करने के लिए कुख्यात है. वर्ष 2020 में बहुत से देशों का चीन पर अविश्वास काफ़ी बढ़ गया है.
पाकिस्तान का नाम लिए बग़ैर ही वेंकैया नायडू ने उन देशों पर भी निशाना साधा, जो आतंकवाद के प्रचार प्रसार को अपने देश की नीति बना चुके हैं. उन्होंने ऐसे देशों पर भी निशाना साधा, जो शंघाई सहयोग संगठन की बैठकों में द्विपक्षीय मामलों को उठाते हैं, जो कि इस संगठन के चार्टर के नियमों के ख़िलाफ़ है.
पाकिस्तान का नाम लिए बग़ैर, उप-राष्ट्रपति नायडू ने कहा कि आज ज़रूरत है कि सभी देश मिलकर आतंकवाद और ख़ास तौर से सीमा पार से फैलाए जाने वाले आतंकवाद का मिलकर न सिर्फ़ सामना करें, बल्कि उसे परास्त करें. पाकिस्तान का नाम लिए बग़ैर ही वेंकैया नायडू ने उन देशों पर भी निशाना साधा, जो आतंकवाद के प्रचार प्रसार को अपने देश की नीति बना चुके हैं. उन्होंने ऐसे देशों पर भी निशाना साधा, जो शंघाई सहयोग संगठन की बैठकों में द्विपक्षीय मामलों को उठाते हैं, जो कि इस संगठन के चार्टर के नियमों के ख़िलाफ़ है. प्रधानमंत्री मोदी ने भी 10 नवंबर 2020 को रूस द्वारा आयोजित SCO के राष्ट्राध्यक्षों की वर्चुअल बैठक में इस मुद्दे को उठाया था. उन्हें इस विषय पर रूस का समर्थन भी मिला था.
भारत के प्रयास
पिछले साल नवंबर में शंघाई सहयोग संगठन के शासनाध्यक्षों की अध्यक्षता के उज़्बेकिस्तान के कार्यकाल के ख़त्म होने के बाद भारत इसका अध्यक्ष बना था. पिछले एक वर्ष के दौरान भारत ने कोविड-19 की भयंकर महामारी का असर अपनी ज़िम्मेदारियों पर नहीं पड़ने दिया है; इसके उलट भारत ने शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के बीच आर्थिक, वाणिज्यिक और सांस्कृतिक सहयोग बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित किए.
अपनी अध्यक्षता के दौरान भारत ने मुख्य तौर पर सहयोग के तीन विषयों पर अपना ध्यान केंद्रित किया: स्टार्ट अप और इनोवेशन, विज्ञान एवं तकनीक और पारंपरिक औषधि विज्ञान.
अपनी अध्यक्षता में भारत ने 24 नवंबर से 28 नवंबर के दौरान, शंघाई सहयोग संगठन के युवा वैज्ञानिकों के पहले कॉनक्लेव का वर्चुअल आयोजन किया था. इसमें 200 से ज़्यादा युवा वैज्ञानिक शामिल हुए थे. ये बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि शंघाई सहयोग संगठन के देशों में दुनिया की कुल 7.5 अरब आबादी के 42 प्रतिशत लोग रहते हैं. इनमें से 80 करोड़ लोग युवा हैं. ऐसे में इन देशों के युवाओं के बीच बेहतर समझ और सहयोग इस क्षेत्र की शांति, विकास और समृद्धि के लिए बहुत आवश्यक है.
आज भारत में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट अप का इकोसिस्टम है और उसने स्टार्ट अप व इनोवेटर्स के विकास के लिए एक मज़बूत और बहुआयामी व्यवस्था का निर्माण किया है. इसीलिए भारत ने शंघाई सहयोग संगठन के देशों के बीच स्टार्ट ऐंड इनोवेशन के लिए विशेष कार्यकारी समूह बनाने का प्रस्ताव रखा है.
भारत ने SCO के इकोनॉमिक थिंक टैंक के कंसर्शियम की पहली बैठक (20-21 अगस्त) का भी आयोजन किया और शंघाई सहयोग संगठन के स्टार्ट अप फोरम (27 अक्टूबर) की बैठक भी आयोजित की. B2B फ़ॉर्मेट में भारत के फेडरेशन ऑफ़ इंडियन चैंबर ऑफ़ कॉमर्स और इंडस्ट्री ने SCO के पहले बिज़नेस कॉनक्लेव (23 नवंबर) को आयोजित किया. इसमें छोटे, सूक्ष्म एवं मध्यम दर्जे के उद्योगों के बीच सहयोग पर ख़ास ज़ोर दिया गया.
आज भारत में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट अप का इकोसिस्टम है और उसने स्टार्ट अप व इनोवेटर्स के विकास के लिए एक मज़बूत और बहुआयामी व्यवस्था का निर्माण किया है. इसीलिए भारत ने शंघाई सहयोग संगठन के देशों के बीच स्टार्ट ऐंड इनोवेशन के लिए विशेष कार्यकारी समूह बनाने का प्रस्ताव रखा है. स्टार्ट अप इंडिया इनिशिएटिव की शुरुआत के साथ ही भारत ने अपने 590 ज़िलों में 38 हज़ार से अधिक स्टार्ट अप को मान्यता दी है. इनके ज़रिए रोज़गार के चार लाख से अधिक अवसरों का सृजन हुआ है.
भारत ने SCO के स्वास्थ्य मंत्रियों की सालाना बैठक में पारंपरिक औषधि विज्ञान के क्षेत्र में एक एक्सपर्ट ग्रुप की स्थापना का भी प्रस्ताव दिया है. जिस तरह कोविड-19 की महामारी ने पूरी दुनिया को अपने शिकंजे में दबोचा, उससे आधुनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की सीमाएं अपने आप उजागर हो गई हैं. ऐसे मंज़र में पारंपरिक औषधि विज्ञान ने कम लागत में प्रभावी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराकर लाखों लोगों की जान बचाने में बेहद अहम भूमिका निभाई है.
इस साल भारत ने शंघाई सहयोग संगठन के वाह्य अर्थव्यवस्था और विदेशी व्यापार के लिए ज़िम्मेदार मंत्रियों की बैठक भी 28 अक्टूबर को आयोजित की थी. इसके अलावा 16 अक्टूबर को भारत ने SCO के न्याय मंत्रियों की बैठक भी वीडियो कांफ्रेंस के ज़रिए आयोजित की थी. सांस्कृतिक एवं मानवीय पहल की बात करें, तो भारत के राष्ट्रीय संग्रहालय ने 30 नवंबर को SCO के सदस्य देशों की साझा बौद्ध विरासत की पहली डिजिटल प्रदर्शनी आयोजित की थी और भारत की दस क्षेत्रीय साहित्यिक रचनाओं का रूसी और चीनी भाषा में अनुवाद भी किया था. इस तरह भारत ने 2019 में बिश्केक में प्रधानमंत्री मोदी के दिए वचन को निभाया. इसके अलावा भारत ने वर्ष 2021 में अपने यहां, SCO खान-पान का फेस्टिवल आयोजित करने का भी प्रस्ताव रखा है.
SCO के शासनाध्यक्षों के वर्चुअल शिखर सम्मेलन के बाद, जो साझा बयान जारी किया गया, वो 66 पैराग्राफ का एक व्यापक दस्तावेज़ है, जिसमें तमाम विषयों को शामिल किया गया है. इसमें दूसरे विश्व युद्ध के ख़ात्मे और संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की 75वीं सालगिरह; कोविड-19 की वैश्विक महामारी से निपटने; विश्व व्यापार संगठन के सुधार और उसकी प्रासंगिकता; स्थायी विकास के लक्ष्य (SDG) हासिल करने; भारत के अतिरिक्त अन्य देशों के लिए BRI की अहमियत; संगठन के शासनाध्यक्षों और राष्ट्राध्यक्षों के पिछले सम्मेलनों में लिए गए फ़ैसले लागू करने; संगठन के कुछ सदस्यों द्वारा दिए गए प्रस्ताव लागू करने; और SCO के सदस्य देशों के बीच व्यापारिक, आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक सहयोग बढ़ाने जैसे विषय शामिल हैं.
निष्कर्ष
इस बैठक के दौरान चीन, कज़ाख़िस्तान, किर्गीज़िस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के विदेशी मामलों के संसदीय सचिव, SCO के महासचिव और SCO की तमाम एजेंसियों के प्रमुख भी परिचर्चाओं में शामिल हुए.
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि चीन के प्रभुत्व वाले इस संगठन का हिस्सा बनने से भारत को कोई लाभ नहीं होने वाला है. मैं इस आकलन का पुरज़ोर विरोध करता हूं. ये सच है कि अपनी स्थापना के 19 साल के बाद भी SCO एक मज़बूत संगठन के तौर पर उभर पाने में असफल रहा है. इसकी वजह चीन की प्रभावी उपस्थिति के चलते सदस्य देशों के बीच सहयोग का अभाव रही है. हालांकि, इस संगठन की अनदेखी भी नहीं की जा सकती. क्योंकि मौजूदा जियो-पॉलिटिकल और जियो-इकॉनमिक प्रभाव की दृष्टि से विशाल यूरेशियाई क्षेत्र में ये इकलौता संगठन है. भारत के लिए SCO का सदस्य बने रहने का बसे बड़ा फ़ायदा ये है कि इसके माध्यम से वो मध्य एशिया के देशों के साथ मज़बूत संबंध बनाए रख सकता है. मध्य एशियाई देश हमारे व्यापक पड़ोसी क्षेत्र में आते हैं और हज़ारों वर्षों से इन देशों के साथ भारत के ऊर्जावान और बहुआयामी संबंध रहे हैं. भारत की सुरक्षा की दृष्टि से भी मध्य एशिया और अफ़ग़ानिस्तान बेहद महत्वपूर्ण हैं, जो उसकी ऊर्जा संबंधी ज़रूरतों को पूरा कर सकते हैं. इन देशों से संपर्क बढ़ाने से भारत को व्यापार, आर्थिक प्रगति और विकास में सहयोग मिलेगा.
भारत के लिए SCO का सदस्य बने रहने का बसे बड़ा फ़ायदा ये है कि इसके माध्यम से वो मध्य एशिया के देशों के साथ मज़बूत संबंध बनाए रख सकता है. मध्य एशियाई देश हमारे व्यापक पड़ोसी क्षेत्र में आते हैं और हज़ारों वर्षों से इन देशों के साथ भारत के ऊर्जावान और बहुआयामी संबंध रहे हैं.
अपनी सक्रिय भागीदारी और तमाम गतिविधियों में मानवीय पहलुओं को केंद्र में रखकर भारत ने शंघाई सहयोग संगठन के देशों के बीच अधिक व्यापारिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा दिया है. भारत ने इस क्षेत्र में शांति और समृद्धि को भी बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभाई है. भारत के प्रयासों से स्पष्ट है कि वो SCO के सदस्य के रूप में सकारात्मक, प्रभावी और अग्रणी भूमिका निभाकर, सभी देशों के बीच भागीदारी का विस्तार करना चाहता है.
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