Author : Sukrit Kumar

Published on Jul 15, 2019 Updated 0 Hours ago

मोदी के एजेंडे में देश की रक्षा ताक़तों के आधुनिकीकरण को प्राथमिकता दी गई है. पहले भी उन्होंने कई नए प्रमुख हथियारों के सौदे पर हस्ताक्षर किये जिसके कारण उन्हें चीन और पाकिस्तान के विरोध का सामना करना पड़ा था.

भारत को नाटो देश के रूप में मिला; किसको मिलेगा फ़ायदा — भारत या अमेरिका?

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो बीते माह भारत-अमेरिका संबंधों में तनावपूर्ण समय के बीच भारत पहुंचे. ये एक ऐसा समय है जब भारत अमेरिका के बीच ईरान और रूस से होने वाले भारतीय रक्षा सौदे को लेकर तनाव है. सामरिक तौर पर, भारत को रूसी एस-400 मिसाइल खरीदने से अमेरिकी प्रतिबंधों का ख़तरा है साथ ही अमेरिका की तरफ से भारत पर ईरानी तेल के आयात को शून्य करने का दबाव डाला गया है. ईरान के मामले में अमेरिका सफल भी रहा. आर्थिक मोर्चे पर, वाशिंगटन ने अपने इस्पात और एल्यूमीनियम टैरिफ़ को और सख्त़ कर दिया और लगभग 5 अरब डॉलर के निर्यात पर व्यापारिक लाभ में भारत को मिलने वाली तरजीह को रद्द कर दिया. बदले में भारत ने भी टैरिफ की भाषा में उसका जवाब दिया. बहरहाल, इस नीरस पृष्ठभूमि में भी एक सकारात्मक कहानी रही है. अमेरिकी सीनेट ने भारत को नाटो देशों के समान दर्जा देने वाले प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है जिससे अब रक्षा संबंधों में अमेरिका भारत के साथ अपने दुसरे नाटो सहयोगियों की तर्ज़ पर उन्नत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण करेगा यानी एडवांस्ड तकनीक भारत को देगा. रक्षा और सामरिक साझेदारी को बढ़ाने के लिए शस्त्र निर्यात नियंत्रण अधिनियम के तहत काम होगा. भारत को मिले इस नए दर्जे के लिए ओसाका में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच हुई बैठक और अमेरिकी विदेश मंत्री का भारत दौरा महत्त्वपूर्ण रहा. मोदी के एजेंडे में देश की रक्षा ताक़तों के आधुनिकीकरण को प्राथमिकता दी गई है. उन्होंने अपने पहले कार्यकाल के दौरान कई नए प्रमुख हथियारों के सौदे पर हस्ताक्षर किये. ऐसा करते समय उन्हें अपने पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान की ओर से दोहरे ख़तरे का भी सामना करना पड़ा है.

मजबूत होते रक्षा संबंध 

वर्तमान में भारत, अमेरिकी सैन्य हार्डवेयर के शीर्ष ग्राहकों में से एक है और एशिया में अमेरिका का एक प्रमुख सहयोगी है, जिसे अक्सर पाकिस्तान की तुलना में अधिक वरीयता और समर्थन प्राप्त होता है. अमेरिका ने 2016 में भारत को “प्रमुख रक्षा साझेदार” के रूप में मान्यता दी, एक पदनाम जो भारत को अमेरिका के सबसे क़रीबी सहयोगियों और भागीदारों के साथ अधिक उन्नत और संवेदनशील तकनीकों को खरीदने की सहूलियत के साथ-साथ भविष्य में सहयोग भी सुनिश्चित करता है.

दोनों देशों के बीच रक्षा और सामरिक संबंधों को बढ़ाने के प्रस्तावों को सीनेट द्वारा पारित $ 750 अरब के रक्षा बजट में शामिल किया गया. सेनेटर जॉन कॉर्निन और मार्क वॉर्नर की ओर से पेश किए गए विधेयक में कहा गया था कि हिंद महासागर में भारत के साथ मानवीय सहयोग, आतंक के खिलाफ संघर्ष, समुद्री लुटेरों की रोकथाम और सामुद्रिक सुरक्षा पर काम करने की जरूरत है. भारत हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के पश्चिमी भाग में एकमात्र शक्ति है जो चीन की सैन्य और आर्थिक प्रगति को संतुलित कर सकता है.

भारत और अमेरिका संयुक्त सैन्य उपक्रमों के लिए भारतीय निजी क्षेत्र के साथ अमेरिकी रक्षा कंपनियों, महत्वपूर्ण सैन्य प्रौद्योगिकी और वर्गीकृत जानकारी के हस्तांतरण की सुविधा के लिए एक ढ़ाँचे पर काम कर रहे हैं.

वर्तमान में, अमेरिकी कंपनियों द्वारा भारतीय निजी क्षेत्र के साथ वर्गीकृत रक्षा जानकारी साझा करने का कोई प्रावधान नहीं है, हालांकि दोनों देश महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्म के संयुक्त विकास के पक्ष में रहे हैं क्योकि वे चाहते है कि दोनों देश की सरकारें ढाँचागत दायित्व, बौद्धिक संपदा अधिकारों और औद्योगिक सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर स्पष्टता लायें. पिछले महीने, लॉकहीड मार्टिन ने भारत में अपने नए रोल आउट एफ -21 का निर्माण करने की पेशकश की. उन्होंने यह भी कहा कि अगर भारत 114 विमानों के लिए ऑर्डर देता है तो वह किसी अन्य देश को विमान नहीं बेचेगा. हालाँकि भारत ने 114 लड़ाकू जेट की खरीद के लिए बोलियों को आमंत्रित करने की तरफ एक कदम आगे बढ़ाया है. अगर यह डील हो जाती है तो वर्तमान में यह दुनिया का सबसे बड़ा रक्षा सौदा होगा. यह सौदा – 15 अरब डॉलर से अधिक मूल्य का है – इसमें बोइंग कंपनी, लॉकहीड एचआर कॉर्प सहित दुनिया की कई बड़ी रक्षा कंपनियों के शुरुआती प्रस्तावों को आकर्षित किया है. एक प्रारंभिक दस्तावेज़ के अनुसार कम से कम 85%उत्पादन भारत में होना है.

क्या नाटो से भारत को फायदा होगा?

सदस्य राष्ट्रों को नाटो को वित्तपोषित करने के लिए अपने सकल घरेलू उत्पाद का एक हिस्सा देना होता है इसके बाद प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी और नाटो सहयोगी राष्ट्र केवल नाटो देशों के साथ रणनीतिक कामकाजी साझेदारी में शामिल होंगे, न कि अमेरिका के साथ पारस्परिक रक्षा समझौतों में. इससे भारत को बहुत सारे सैन्य और वित्तीय लाभ प्राप्त हो सकेंगे जो गैर-सदस्य देशों के लिए उपलब्ध नहीं है. इस दर्जे के बाद भारत के लिए एक साझा-लागत के आधार पर रक्षा विभाग (डीओडी) के साथ सहकारी अनुसंधान और विकास परियोजनाओं के लिए एक मार्ग प्रशस्त करेगा, आतंकवाद निरोधी पहल में भागीदारी, घटे हुए यूरेनियम एंटी-टैंक राउंड की खरीद, जहाजों और सैन्य रसद की प्राथमिकता वितरण, और अमेरिकी सैन्य ठिकानों के बाहर रखे गए रक्षा विभाग के स्वामित्व वाले उपकरणों के वॉर रिजर्व स्टॉक्स का प्रयोग करने का मार्ग प्रशक्त करेगा. इससे भारत को ऋण के रूप में विकास परियोजनाओं के लिए उपकरण और अनुसंधान सामग्री लेने, कुछ रक्षा उपकरणों की खरीद या पट्टे के लिए अमेरिकी वित्त व्यवस्था का उपयोग करने और जल्द से जल्द अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का निर्यात करने का रास्ता खुलेगा.

यह भारत की व्यवहार कुशल रणनीति का ही नतीजा है कि इस दर्जे से अमेरिकी उच्च सैन्य उपकरणों की खरीद में लाभ की स्थिति में रहेगा. इसके साथ ही साथ भारत को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह अमेरिका पर निर्भर होने की बजाय दुनिया की प्रमुख शक्तियों के बीच अपनी स्वतंत्र भूमिका का निर्वहन करता रहे.

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