Author : Sunjoy Joshi

Published on Sep 21, 2020 Updated 0 Hours ago

यदि संघर्ष होता है तो भारत का अमेरिका की तरफ जाना लाज़मी है जो कि रूस कभी नहीं चाहेगा.

भारत-चीन संबंध: विश्वास की कसौटी पर कितने खरे?

भारत और चीन के बीच के घटनाक्रमों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि पहली बार दोनों देशों ने एक-एक ज्वाइंट स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर करके आम सहमति बनाई है, नहीं तो इससे पहले जितनी भी वार्ताएं और बैठकें हुईं हैं, उसमें दोनों पक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप ही लगाते आ रहे थे. इसके कई महत्वपूर्ण पहलू है जिसपर ध्यान देने की ज़रूरत है. पहली बात यह कि दोनों बड़े नेताओं के बीच में जो आम सहमति बनती नज़र आ रही है उससे हमें सबक लेते हुए आगे बढ़ना चाहिए. और इस बात का ध्यान देना ज़रूरी हो जाता है कि अभी हमारे जो मतभेद है वो विवाद में ना बदले. दूसरी बात इसमें सिर्फ़ वास्तविक नियंत्रण रेखा की बात न होकर पूरे सीमा क्षेत्र की वर्तमान स्थिति में सुधार लाने की बात की गई है. दरअसल, भारत और चीन के बीच में वास्तविक नियंत्रण रेखा परिभाषित नहीं है, विशेषकर लद्दाख में जहां पर यह घटना हुई है, वहां पर ऐसी कोई लाइन नहीं खींची गई है. भारत और चीन इस बात को मानते हैं कि उनकी वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर अपनी अलग-अलग व्याख्य़ा है. पर दोनों देश एक दूसरे की वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान करते हैं. यह जो सीमा पर परिस्थिति उत्पन्न हुई है यह किसी के लिए भी अच्छा नहीं है. इसलिए जो पहले की स्थिति थी उसे फिर से बहाल किया जाना चाहिए.

सबसे बड़ी चीज है ‘विश्वास’ और यह न सिर्फ़ दोनों पक्षों के शीर्ष नेताओं के लिए ज़रूरी है बल्कि ग्राउंड लेवल पर दोनों देशों की सेनाएं जो आमने-सामने है उनके बीच विश्वास कैसे कायम किया जाए यह सबसे बड़ी चुनौती है.

1993 के तहत जो समझौता हुआ था उसके तहत यह तय हुआ था कि दोनों पक्ष विश्वास बहाली (कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर) कायम करेंगे. और यह भी तय हुआ था कि दोनों पक्ष एक-दूसरे की सीमा के भीतर आकर पेट्रोलिंग करने के बाद अपनी स्थापित जगह पर पुनः वापस आ जाएंगे.

क्या भारत-चीन के बीच विश्वास बहाली के उपाय हो सकते हैं?

अभी तक कई तरह से विश्वास बहाली पर दोनों पक्ष अमल करते चले आ रहे थे, पर उसमें कहीं ना कहीं कुछ कमी रह गई थी जिसके लिए अब एक नये तरह की विश्वास बहाली के उपाय की बात करने की ज़रूरत पड़ रही है. इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है क्या आगे चलकर के जॉइंट पेट्रोल की आवश्यकता होगी या सर्विलांस (निगरानी) के लिए उन्नत तकनीकों का सहारा लिया जा सकता है. और अपने-अपने तथाकथित क्षेत्रों की निगरानी की जा सकती है. सीमा का निर्धारण ना होने से भारत और चीन के बीच घुसपैठ की समस्या कई सालों से चलती आ रही है. कभी चीन ने कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया तो कभी भारत ने कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया और इस तरह से दोनों पक्षों की तरफ़ से एक-दूसरे को संतुलित करने का खेल चलता रहता था. इस वजह से तनाव उत्पन्न होते रहते थे लेकिन तनाव के समाधान के लिए दोनों पक्षों के बीच में बातचीत होती थी और फिर एक डिसएंगेजमेंट का प्रोसेस शुरू होता था. सबसे बड़ी चीज है ‘विश्वास’ और यह न सिर्फ़ दोनों पक्षों के शीर्ष नेताओं के लिए ज़रूरी है बल्कि ग्राउंड लेवल पर दोनों देशों की सेनाएं जो आमने-सामने है उनके बीच विश्वास कैसे कायम किया जाए यह सबसे बड़ी चुनौती है.

यदि हम दोनों देशों के समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों पर नज़र डालें तो एकदम युद्धरत स्थिति बन चुकी है. यह जो मानसिकता दोनों देशों के लोगों में बन गई है इसे कैसे कम किया जाए. इसके लिए दोनों देशों के बीच विश्वास कायम करना बहुत ज़रूरी हो जाता है. क्योंकि कभी भी किसी भी पक्ष से दुर्घटना हो सकती है.

भारत चीन संबंधों में रूस के भूमिका

भारत और चीन के बीच तनाव को लेकर रूस ने कभी भी प्रत्यक्ष रूप से मध्यस्थता करने की कोशिश नहीं की है. पिछले कुछ महीनों में जब भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन के संबंधों में तनाव उत्पन्न हुए हैं तो रूस ने डोनाल्ड ट्रंप की तरह कभी भी नहीं कहा है कि हम नेगोशिएशन कराने को तैयार है. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा है कि भारत और चीन अपने सीमा विवादों को दूर करने के लिए ख़ुद सक्षम हैं. एक तरह से दोनों देशों को रूस में शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन में बातचीत का एक मंच ज़रूरी मिला. फिर दोनों पक्ष बातचीत कर इस विवाद का समाधान निकालें.

जहां तक रूस का सवाल है वह चीन का मित्र है और चीन का मित्र इसलिए है क्योंकि वह अमेरिका को बैलेंस करता है लेकिन साथ ही साथ रूस चाहता है कि भारत ख़ुद मज़बूत हो क्योंकि भारत अगर मज़बूत होगा तो यह चीन को संतुलित करेगा.

अगर हम अमेरिका के नज़रिए से देखें तो अमेरिका चीन को दुश्मन नंबर एक मानता है और यदि भारत के साथ उसका युद्ध छिड़ता है तो चीन को अपने तटीय क्षेत्रों में तैनात सैनिकों को कम करके भारत के विरुद्ध लगानी पड़ेगी, जिससे अमेरिका, प्रशांत महासागर क्षेत्र में एक रणनीतिक बढ़त की स्थिति में हो जाएगा. इस तरह से अमेरिका के हित इसमें निहित है. और जहां तक रूस का सवाल है वह चीन का मित्र है और चीन का मित्र इसलिए है क्योंकि वह अमेरिका को बैलेंस करता है लेकिन साथ ही साथ रूस चाहता है कि भारत ख़ुद मज़बूत हो क्योंकि भारत अगर मज़बूत होगा तो यह चीन को संतुलित करेगा. तो इस तरह से रूस और चीन एशिया में शांति कायम करते हुए एक दूसरे को बैलेंस करते रहें. और यदि संघर्ष होता है तो भारत का अमेरिका की तरफ जाना लाज़मी है जो कि रूस कभी नहीं चाहेगा. इस प्रकार हम कह सकते हैं कि एक बड़े राजनीतिक संदर्भ में हां, रूस का इसमें हित छुपा है पर प्रत्यक्ष रूप से रूस ने किसी भी तरह की दख़लअंदाज़ी नहीं की है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रूस की भूमिका

रूस और अमेरिका का लंबे समय से एक भू-राजनीतिक संघर्ष चलता रहा है जिसको हम आगे चलकर पश्चिम एशिया और प्रशांत महासागर में देखेंगे. भारत भी हिंद-प्रशांत महासागर को लेकर बहुत ही संतुलित बयान देता चला आ रहा है. भारत का भी इस क्षेत्र में अपने हित है और जहां तक क्वॉड का प्रश्न है भारत को ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका इन सभी देशों की ज़रूरत है. क्योंकि जो इंडो-पेसिफिक क्षेत्र भारत के लिए बहुत ही आवश्यक हो जाता है. प्रशांत क्षेत्र में जैसा सामरिक माहौल बनता जा रहा है उसको देखते हुए भारत को चीन से रणनीतिक ख़तरा है. इसलिए भारत को इन देशों की ज़रूरत पड़ेगी लेकिन भारत ने बार-बार स्पष्ट रूप से यह कहा है कि जितने भी गठजोड़ है यह चीन के विरुद्ध नहीं है.

प्रशांत क्षेत्र में जैसा सामरिक माहौल बनता जा रहा है उसको देखते हुए भारत को चीन से रणनीतिक ख़तरा है. इसलिए भारत को इन देशों की ज़रूरत पड़ेगी लेकिन भारत ने बार-बार स्पष्ट रूप से यह कहा है कि जितने भी गठजोड़ है यह चीन के विरुद्ध नहीं है.

क्या माहौल थमेगा?

मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए यह सिर्फ़ भारत और चीन के लिए ही नहीं बल्कि विश्व के भी हित में है कि शांति कायम की जाए. जब विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है, देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई हो तो ऐसी स्थिति में शायद ही युद्ध किसी देश के हित में हो सकता है. ऐसे में उम्मीद रखना चाहिए कि यह सही दिशा में एक कदम है. और वास्तव में यह कितना आगे जाएगा इसी बात पर निर्भर करता है कि दोनों देश ख़ासतौर से चीन भारत पर कितना विश्वास करता है और इस क्षेत्र में भारत के प्रति जो अलग-थलग करने की चीन का जो रुख़ है — चाहे पाकिस्तान के माध्यम से या भारत के सीमावर्ती देशों के माध्यम से — जबतक इसमें बदलाव नहीं आएगा तब तक भारत और चीन का सामरिक संघर्ष लगातार चलता रहेगा.

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