Published on Dec 03, 2021 Updated 0 Hours ago

विद्युत गतिशीलता कोई जादुई समाधान नहीं है, जिससे सभी उत्सर्जन समस्याएं ठीक हो सकती हैं. इसकी सफलता सुनिश्चित करने के लिए राज्य स्तर पर सावधानीपूर्वक योजना बनाने की ज़रूरत है.

भारत: नौकरियों, विकास और स्थिरता में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की सहायक भूमिका
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यह लेख कोलाबा एडिट 2021 नामक हमारी श्रृंखला का हिस्सा है.


कोरोना महामारी के कारण लाखों लोगों की जान चली गई. बल्कि इसके कारण व्यापार और आर्थिक विकास की दर में भारी गिरावट आई, और इसने लाखों लोगों को बेरोज़गारी और ग़रीबी की ओर ढकेल दिया. महामारी और बढ़ती चरम मौसमी घटनाओं के कारण आई आर्थिक मंदी से निपटने के लिए ये ज़रूरी है कि संसाधनों के दोहन और कार्बन उत्सर्जन गतिविधियों को आर्थिक विकास की परिभाषा से अलग किया जाए. ऐसी समावेशी हरित गतिविधियां लाखों लोगों को ग़रीबी की दलदल से निकालने के साथ-साथ जलवायु लक्ष्यों को हासिल कर सकती हैं.

महामारी और बढ़ती चरम मौसमी घटनाओं के कारण आई आर्थिक मंदी से निपटने के लिए ये ज़रूरी है कि संसाधनों के दोहन और कार्बन उत्सर्जन गतिविधियों को आर्थिक विकास की परिभाषा से अलग किया जाए. 

परिवहन उद्योग में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के आगमन को अक्सर एक हरित विकास नीति के रूप देखा जाता है. दुनिया भर में ईंधन के दहन से उत्सर्जित होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड का 24 प्रतिशत हिस्सा परिवहन क्षेत्र से उत्सर्जित होता है. निश्चित रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों के ज़रिए इन उत्सर्जनों में कमी लाई जा सकती है. कई देशों के लिए, इलेक्ट्रिक वाहन उनकी ऊर्जा सुरक्षा और वायु प्रदूषण की समस्या का भी समाधान पेश करते हैं. इलेक्ट्रिक वाहन आर्थिक विकास की दर को तेज कर सकते हैं. ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) की 2020 की रिपोर्ट का कहना है कि 2030 तक नए वाहनों की बिक्री में इलेक्ट्रिक वाहनों का हिस्सा 30 प्रतिशत होने पर उसका भारत में ऊर्जा सुरक्षा, रोज़गार सृजन, ग्रीनहाउस गैसों और प्रदूषकों के उत्सर्जन में कमी और घरेलू मूल्यवर्धन जैसे मुद्दों पर सकारात्मक प्रभाव हो सकता है और साथ ही इसके ज़रिए उपयोगकर्ताओं को सस्ते आवागमन की सुविधा प्राप्त हो सकती है. हालांकि, हरित विकास सुनिश्चित करने के लिए विद्युत गतिशीलता से जुड़ी नीतियों को समावेशी, न्यायसंगत, कुशल और प्रभावी होना चाहिए.

 

लक्ष्यों की प्रभावशीलता

ई-गतिशीलता की ओर परिवर्तन को लेकर किया गया सीईईडबल्यू का अध्ययन ये भी दर्शाता है कि विद्युत आधारित यात्री परिवहन तंत्र के कथित लाभ निजी वाहनों के बढ़ते स्वामित्व के चलते धरे के धरे रह सकते हैं, क्योंकि इसके कारण ऊर्जा की मांग में पहले से भी कहीं ज़्यादा बढ़ोतरी हो सकती है. ऊर्जा सुरक्षा, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और वायु प्रदूषण में कमी लाने के लिए ये आवश्यक है कि इलेक्ट्रिक वाहनों की सघनता के साथ-साथ सार्वजनिक परिवहन और साझा गतिशीलता में भी वृद्धि दर्ज की जाए. भारत के संदर्भ में किए गए एक अन्य अध्ययन का अनुमान है कि इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती आपूर्ति वायु प्रदूषण और ऊर्जा सुरक्षा जैसे संकेतकों पर आंशिक लाभ प्रदान कर सकती हैं लेकिन ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को लेकर निष्प्रभावी रह सकती हैं. वाहन प्रौद्योगिकी चाहे कोई भी हो, लेकिन इस बात को लेकर कोई शंका नहीं है कि निजी वाहन स्वामित्व के बढ़ने से शहरों में भीड़भाड़ की समस्या और उसकी लागत बढ़ेगी. नीति निर्माताओं और नागरिक समाज को समझना होगा कि ये बदलाव ज़रूरी है. फिर भी, सतत परिवहन के युग में प्रवेश करने के लिए ये काफ़ी नहीं है. सार्वजनिक परिवहन और ग़ैर-मोटर चालित परिवहन से जुड़ी नीतियों की क़ीमत पर इलेक्ट्रिक वाहनों को प्राथमिकता देना ग़लत होगा.

वाहन प्रौद्योगिकी चाहे कोई भी हो, लेकिन इस बात को लेकर कोई शंका नहीं है कि निजी वाहन स्वामित्व के बढ़ने से शहरों में भीड़भाड़ की समस्या और उसकी लागत बढ़ेगी. नीति निर्माताओं और नागरिक समाज को समझना होगा कि ये बदलाव ज़रूरी है. 

लागत क्षमता

पूरी दुनिया में विद्युत गतिशीलता से जुड़ी नीतियों की लागत प्रभाविता संदेहास्पद है. वैश्विक आंकड़ें ये दर्शाते हैं कि लागत प्रभाविता बढ़ाने के लिए, विद्युत गतिशीलता से जुड़ी नीतियों को इलेक्ट्रिक वाहनों को विशिष्ट उपभोक्ता वर्ग के लिए सुलभ बनाने पर ज़ोर देना चाहिए न कि मुख्यधारा के उपभोक्ताओं की स्वीकृति पाने के लिए जल्द से जल्द प्रौद्योगिकी परिवर्तन पर संसाधनों को खर्च करना चाहिए. भारत की ई-गतिशीलता से जुड़ी प्रोत्साहन योजना, फास्टर अडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स फेज-टू (Faster Adoption and Manufacturing of Electric Vehicles Phase-II, FAME-II) यानी फेम-दो को देखिए. तीन-पहिया इलेक्ट्रिक वाहनों में कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में खर्च की गई प्रोत्साहन राशि इलेक्ट्रिक बसों में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कम करने की तुलना में ग्यारह गुना अधिक प्रभावी साबित होती है. प्रति यात्री, प्रति किलोमीटर उत्सर्जन के आधार पर देखें तो बसें परिवहन का सबसे ज़्यादा कुशल साधन हैं. फिर भी, इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़ी प्रोत्साहन योजना का क़रीब 40 फीसदी हिस्सा इसी कुशलता को बढ़ाने के लिए खर्च किया जा रहा है. सच ये है कि भारत को कुछ महंगी ई-बसों की तुलना में बहुत ज़्यादा बसों की ज़रूरत है. एक ई-बस की प्रोत्साहन लागत पर सौ इलेक्ट्रिक ऑटो तैयार किए जा सकते हैं. ऑटो रिक्शा जैसे विशिष्ट उत्पादों को प्रोत्साहन देने के लिए संसाधनों का पुनः आवंटन फेम-2 जैसी ख़रीद प्रोत्साहन योजनाओं की लागत प्रभाविता में और भी वृद्धि हो सकती है. इसी तरह, भारत में ई-गतिशीलता नीतियों को ई-गतिशीलता आधारित सतत परिवहन तंत्र को विकसित करने के लिए दोपहिया वाहनों के वाणिज्यिक अनुप्रयोगों, भाड़े के वाहनों यानी आईपीटी (intermediate paratransit, IPT) और शहरी माल ढुलाई जैसे अन्य विशिष्ट क्षेत्रों पर भी अपना ध्यान केंद्रित करना होगा.

न्यायसंगत एवं समतापूर्ण परिवर्तन

सीईईडबल्यू के विश्लेषण के अनुसार, इलेक्ट्रिक वाहनों के कारण तेल उत्पादन क्षेत्रों में नौकरियां घट सकती हैं, और आंतरिक दहन इंजन (आईसीई) निर्माण क्षेत्र में मूल्य संवर्धन और नौकरियों की उपलब्धता में कमी आ सकती हैं. इसके अलावा, ईंधन करों से इकट्ठा होने वाले राजस्व में कमी आने के कारण केंद्र एवं सरकारों को बढ़ा घाटा उठाना पड़ेगा. महामारी के बाद की दुनिया में, भारत जैसे एक विकासशील देश के लिए न्यायसंगत एवं समतापूर्ण परिवर्तन सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है. इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने से जुड़ी इन जटिलताओं को सावधानीपूर्ण तरीक़े से बनाई पूर्व-योजनाओं के माध्यम से संतुलित किया जा सकता है. इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण के अलावा, नई आर्थिक गतिविधियों जैसे बैटरी रीसाइकल, गीगा-फैक्ट्रियों और इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग से जुड़े आधारभूत ढांचा निर्माण इत्यादि के ज़रिए मूल्य संवर्धन और नौकरियों की संभावनाएं पैदा की जा सकती हैं. ठीक इसी तरह, केंद्र और राज्यों के लिए वैकल्पिक राजस्व माध्यम ढूंढ़े जा सकते हैं, जो राजस्व घाटे की भरपाई कर सकें.

सच ये है कि भारत को कुछ महंगी ई-बसों की तुलना में बहुत ज़्यादा बसों की ज़रूरत है. एक ई-बस की प्रोत्साहन लागत पर सौ इलेक्ट्रिक ऑटो तैयार किए जा सकते हैं. 

समावेशी विकास

महामारी और उसके कारण आवाजाही पर लगे प्रतिबंधों के कारण टैक्सी/ऑटो रिक्शा चालकों, डिलीवरी एजेंटों और अन्य परिवहन कर्मचारियों की आय पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ा है. भारत में क़रीब एक करोड़ कर्मचारी परिवहन क्षेत्र (निजी बसों और पर्यटक टैक्सी सेवाओं वाले) में कार्यरत हैं, वहीं लगभग चालीस लाख लोग पैराट्रांसिट सेवाओं (जैसे ऑटो, टेंपो, ई-रिक्शा, मैक्सी-कैब आदि) में काम कर रहे हैं. कोरोना महामारी के कारण इस क्षेत्र में 30 फीसदी नौकरियों की गिरावट दर्ज की गई. द इंडियन फेडरेशन ऑफ एप बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यानी आईएफएटी (The Indian Federation of App-based Transport Workers, IFAT)  ने पाया कि जून 2020 में लॉकडाउन से जुड़े प्रतिबंधों में ढिलाई देने के बावजूद, 70 फ़ीसदी एप-आधारित डिलीवरी कर्मचारियों ने दावा किया कि दिन ख़त्म होने के बाद उनकी कुल आय शून्य थी. भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने से सभी परिवहन कर्मचारियों को उसके कारण घाटा उठाना पड़ा है.

इलेक्ट्रिक वाहनों की परिचालन लागत कम होने के कारण ये इन लोगों की कुल आय को बढ़ाने की क्षमता रखते हैं. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच) के आंकड़ों (16 नवंबर तक) के अनुसार, 2021 में पंजीकृत कुल यात्री एवं मालवाहक तिपहिया गाड़ियों में से क्रमशः 1.6 प्रतिशत और 5.8 प्रतिशत हिस्सा इलेक्ट्रिक वाहनों का था. इसी अवधि के दौरान पंजीकृत कुल तिपहिया वाहनों (ई-रिक्शा सहित) में से 40 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहन हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि कुछ समूह इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़ी कुछ विशिष्ट विशेषताओं (जैसे कम परिचालन लागत) को महत्व देते हैं. अगर इलेक्ट्रिक वाहनों को उचित समर्थन मिलता है तो अन्य समूह जैसे कैब चालक, आखिरी चरण के डिलीवरी कर्मचारी आदि भी इसके ज़रिए अपनी आय में इज़ाफ़ा कर सकते हैं. इन परिवहन चालकों को देखते हुए तैयार की ई-गतिशीलता नीतियां ही हरित विकास को सुनिश्चित कर सकती हैं.

अगर इलेक्ट्रिक वाहनों को उचित समर्थन मिलता है तो अन्य समूह जैसे कैब चालक, आखिरी चरण के डिलीवरी कर्मचारी आदि भी इसके ज़रिए अपनी आय में इज़ाफ़ा कर सकते हैं. 

क्षमता से जुड़े सवाल

संसाधनों और समय की सीमितता को देखते हुए नीति निर्माताओं को उसके सही उपयोग को लेकर फैसला करना होगा. स्थानीय सरकारों को पहले से ही रणनीतिक कदम उठाने होंगे. एक कमज़ोर परियोजना को तेजी से आगे बढ़ाना संसाधनों और समय की बर्बादी है, इसलिए स्थानीय नेताओं को अपनी प्राथमिकताओं को दुरुस्त करना होगा. क्षमता प्रबंधन संगठनात्मक दक्षता और योजना की आधारशिला है. यूके में प्रति एक लाख आबादी पर योजना निर्माताओं की संख्या 38 है, वहीं भारत में इसका अनुपात बेहद कम 0.23 है. भारत में राज्य स्तर पर योजना निर्माण तंत्र में बहुविषयी टीमों और शहरी योजना निर्माताओं की कमी बहुत बड़ी समस्या है. संस्थागत क्षमता अंतराल, जिसको लेकर नीचे चर्चा की गई है, सरकारी संस्थागत क्षमता से अधिक है.

  1. A) मानव संसाधन को बढ़ाना

नीति आयोग की एक हालिया रिपोर्ट (2021) के अनुसार, भारत में 7,933 शहरी बस्तियों में से 65 प्रतिशत के पास अपनी कोई बसाव योजना नहीं है. राज्य नियोजक विभागों में नगर

नियोजकों के स्वीकृत पदों में से लगभग आधे पद खाली हैं. भारत में केवल 49 शिक्षा संस्थान हैं, जहां शहरी नियोजन या उससे संबद्ध क्षेत्रों में पढ़ाई होती है. लेकिन ये संस्थान 2030 तक तीन लाख नए शहरी और परिवहन नियोजकों की ज़रूरत को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं. जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से टिकाऊ परिवहन अवसंरचना, कॉम्पैक्ट सिटी मॉडल और सतत गतिशीलता से जुड़ी प्रभावी योजना एवं क्रियान्वयन के लिए इस अंतराल को भरना आवश्यक है. क्षेत्रीय एवं शहरी स्थानीय निकाय मानव संसाधन क्षमता के विकास के माध्यम से परिवहन अवसंरचना नियोजन, सहकारी समितियों की स्थापना, गारंटी देने, तकनीकी सहयोग, सॉफ्ट स्किल ट्रेनिग, इलेक्ट्रिक वाहनों की ख़रीद एवं रखरखाव आदि क्षेत्रों में सुविधाएं प्रदान करने में सक्षम होंगे.

  

  1. B) विभिन्न संस्थानों के बीच बेहतर समन्वय

ई-गतिशीलता से जुड़ी नीतियों के हर स्तर पर विभिन्न हितधारकों का समूह एक दूसरे से जुड़ा हुआ है. नीतिगत लक्ष्यों को हासिल करने के लिए इनके बीच समन्वय महत्त्वपूर्ण है. केरल में महानगर परिवहन प्राधिकरणों (एमटीए) को अधिनियमित एवं सुदृढ़ करके इस पर क्षेत्रीय स्तर पर काम किया जा रहा है. महानगर परिवहन प्राधिकरण शहरों में एकीकृत परिवहन प्रणालियों को सुविधाजनक बनाने में भी महत्वपूर्ण हैं. मझोले एवं छोटे शहरों में हो रहे तेज़ विकास के साथ, क्षेत्रीय स्तर पर ऐसी योजनाओं की ज़रूरत बढ़ जाती है, जो इन कस्बों और आस-पास के ग्रामीण इलाकों एक ऐसे शहर के साथ जोड़ सकें, जो महत्त्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियों का केंद्र हो. यह बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक वाहनों, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और संबंधित तकनीकी क्षमता के प्रवाह को सुनिश्चित करेगा.

मझोले एवं छोटे शहरों में हो रहे तेज़ विकास के साथ, क्षेत्रीय स्तर पर ऐसी योजनाओं की ज़रूरत बढ़ जाती है, जो इन कस्बों और आस-पास के ग्रामीण इलाकों एक ऐसे शहर के साथ जोड़ सकें, जो महत्त्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियों का केंद्र हो.

  1. C) वित्तीय नीतियों को मज़बूत बनाना: शहरी परिवहन कोष

अधिनियमन के बाद भी, महानगर परिवहन प्राधिकरणों को अभी भी नियामक शक्तियों, वित्त एवं मानव संसाधन के संबंध में सीमाओं का सामना करना पड़ता है. शहरी परिवहन कोष (यूटीएफ) की स्थापना महानगर परिवहन प्राधिकरणों को और भी मज़बूत बना सकती है. स्थानीय स्तर पर ट्रैफिक, कार्बन एवं पार्किंग मूल्य निर्धारण, लैंड वैल्यू कैप्चर आदि जैसे उपकरणों का लाभ उठाकर राजस्व संग्रह बढ़ाया जा सकता है. ये उपकरण पुराने एवं अधिक कार्बन उत्सर्जन वाले वाहनों के विरुद्ध जबकि तुलनात्मक रूप से स्वच्छ परिवहन साधनों (बस, साइकिल, इलेक्ट्रिक वाहनों आदि) को अपनाने के प्रति प्रोत्साहन दे सकते हैं.

  1. D) उपभोक्ता ऋण की सुविधा प्रदान करना

नीति आयोग की एक हालिया रिपोर्ट (2021) के अनुसार, इलेक्ट्रिक वाहनों के पुनर्विक्रय मूल्य समेत दीर्घकालिक आर्थिक नीतियों की उच्च वित्तपोषण लागत और अनिश्चितता वित्तीय संस्थानों (एफआई) के लिए चिंता का विषय बनी हुई है. जिसके कारण इलेक्ट्रिक वाहनों के उपभोक्ताओं को ब्याज़ और बीमा दरों में वृद्धि का सामना करना पड़ेगा. दोपहिया इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए ब्याज़ दर 20 प्रतिशत तक हो सकती है. ऋण प्राथमिकता क्षेत्र से जुड़े दिशानिर्देशों में इलेक्ट्रिक वाहनों को शामिल करने और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए इंटरेस्ट सबवेंशन योजना जैसे लक्षित नीतिगत कदम इस समस्या का कुछ हद तक समाधान कर सकते हैं. इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़े डेटा के सार्वजनिक संग्रहण से वित्तीय संस्थान अपने ज़ोखिमों का बेहतर मूल्यांकन और इलेक्ट्रिक वाहनों पर अपने ब्याज़ दरों में कमी ला सकते हैं. वैज्ञानिक अध्ययनों के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रदर्शन से जुड़े तटस्थ और पारदर्शी आंकड़ें जमा करने में नागरिक समाज के संगठनों और थिंक टैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका है.

  1. E) चार्जिंग सुविधाएं प्रदान करना

निजी पार्किंग की सुविधा रखने वाले कम आबादी वाले देशों के लिए निजी या घरेलू चार्जिंग सुविधाएं बेहतर होती हैं. जैसा कि ऊपर कहा गया है, विशिष्ट समुदायों द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को प्रोत्साहन देने के लिए चार्जिंग की सार्वजनिक सुविधाएं ज़रूरी हैं. इन परिवहन कर्मचारियों के लिए, परिचालन घंटों के बीच चार्जिंग में लगने वाले समय के दौरान सवारी खोने पर उसकी एक अवसर लागत होती है. तेज़ चार्जिंग और बैटरी बदलने जैसे समाधान इन समस्याओं को सुलझा सकते हैं. बैटरी बदलने जैसे समाधानों में इलेक्ट्रिक वाहनों के ख़रीद मूल्य को कम करने की क्षमता भी है क्योंकि वाहन और बैटरियों को अलग-अलग ख़रीदा जा सकेगा. ऐसे समाधानों को सुविधाजनक बनाने में बिजली वितरकों, नियामकों और स्थानीय सरकारों की एक अनिवार्य भूमिका है. रियल स्टेट प्रावधानों और सब्सिडी आधारित बिजली प्रदान करने संबंधी नीतियां लागू करके राज्य एवं स्थानीय स्तर पर विशिष्ट समुदायों को राहत सुविधाएं दी जा सकती हैं.

 ऋण प्राथमिकता क्षेत्र से जुड़े दिशानिर्देशों में इलेक्ट्रिक वाहनों को शामिल करने और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए इंटरेस्ट सबवेंशन योजना जैसे लक्षित नीतिगत कदम इस समस्या का कुछ हद तक समाधान कर सकते हैं.  

  1. F) नए व्यवसायिक मॉडलों को अपनाना

सहकारी समिति, कंपनी पैराट्रांसिट ड्राइवर जैसे नवाचारी व्यवसायिक मॉडल वाहन ख़रीद, ऋण ब्याज़ और गारंटी, चार्जिंग से जुड़ी अवसंरचना के निर्माण और पार्क-प्रबंधन पर सामूहिक सौदेबाजी के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं. इसके कारण सरकारी एजेंसियों के साथ समन्वय बनाने, वार्ता करने और पैरवी या सिफ़ारिश जैसी गतिविधियों को अंज़ाम देना आसान हो सकता है. राज्य और स्थानीय स्तरों पर नीतिगत प्रोत्साहनों के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों को सब्सक्रिप्शन या किराए या पट्टे पर लेने जैसे अन्य व्यवसाय मॉडलों को बढ़ावा दिया जा सकता है.

निष्कर्ष

महामारी के बाद की दुनिया में, गतिशीलता में यह तकनीकी परिवर्तन हरित विकास की दिशा में रोज़गार सृजन करता है. हालांकि ई-गतिशीलता जुड़ी नीतियां हरित विकास के पथ से संयोजित रहें, इसके लिए ज़रूरी है कि वे न्यायसंगत, प्रभावी एवं समावेशी हों. एक सतत ई-गतिशीलता नीति के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़े घाटों की भरपाई के लिए पहले से योजना बनाने की ज़रूरत है, जबकि उसके साथ ये भी सुनिश्चित करना होगा कि सबसे ज़्यादा वंचित समूहों को सबसे अधिक लाभ मिले. ऐसी नीतियों के ज़रिए सफलतापूर्ण परिवर्तन लाने के लिए मानव संसाधन, वित्त पोषण, बुनियादी ढांचे और ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस यानी उद्यमशीलता को आसान बनाने से जुड़े अंतरालों को पाटने की भी ज़रूरत है.

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