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Published on Mar 14, 2023 Updated 0 Hours ago

जलवायु परिवर्तन के प्रति साझा असमान कमज़ोरी के अलावा, भारत और अफ्रीका के पास कई फायदे हैं जिनका पारस्परिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. इनमें उनकी इनोवेटिव यूथफुल डेमोग्राफी (अभिनव युवा जनसांख्यिकी), तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं, विशाल बाज़ार और विशाल प्राकृतिक संसाधन शामिल हैं. 

भारत-अफ्रीका की पारस्परिक जलवायु कूटनीति

ये लेख रायसीना फाइल्स 2023 जर्नल में एक अध्याय है.


भारत और अफ्रीका दो ऐसे क्षेत्र हैं जो जलवायु परिवर्तन के असंगत प्रभाव को वहन करने पर मज़बूर है,  यहां तक ​​कि ग्रीनहाउस गैसों का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन भी वैश्विक औसत से इन दोनों देशों का कम है और ये दोनों देश उत्सर्जन के मौज़ूदा स्टॉक के केवल एक छोटे से हिस्से के लिए ही ज़िम्मेदार है. जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की छठी आकलन रिपोर्ट (एआर6) [[1]] ने चेतावनी दी है कि भारत - जो कि दुनिया की 20 प्रतिशत आबादी का घर है - अगले दो दशकों में कई तरह के जलवायु परिवर्तन से प्रेरित आपदाओं का सामना कर सकता है. इस बीच, अफ्रीकी महाद्वीप में दुनिया के दस सबसे असुरक्षित देशों में से आठ देश हैं. [[2]]

भारत ने कूटनीति और स्थायी ऊर्जा निवेश के माध्यम से अपनी ज़िम्मेदारी पर ज़ोर देने के लिए एक वैश्विक शक्ति केंद्र के रूप में अपनी भूमिका को मज़बूत करने और भागीदार देशों पर अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए को ऑपरेटिव स्ट्रैटिजी (सामूहिक रणनीति) का चुनाव किया है.

फिर भी जलवायु से जुड़े मामले वैश्विक चिंता के विषय हैं  इसलिए जलवायु परिवर्तन से राहत, वैश्विक बेहतरी का मार्ग प्रशस्त करती है. ग्लोबल वार्मिंग से सामना करने की यही साझा ज़िम्मेदारी अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कूटनीति को आकार देती है, जो राहत और अनुकूल उपायों और उचित फंडिंग की तलाश करने वाले समझौतों को आगे बढ़ाती है. [[3]] दरअसल, जलवायु कूटनीति का विकास प्रकृति और मानव अस्तित्व के बारे में लंबे समय तक जारी रहने वाली चिंताओं का एक तार्किक परिणाम रहा है जो वर्तमान क्लाइमेट एक्शन के पहले हुआ है. [[4]], [[5]] हाल के वर्षों में, जलवायु परिवर्तन [[6]] के परिणामों और समाधानों पर वैश्विक चर्चा में नए नेटवर्क और दृष्टिकोण सामने आए हैं. इनमें  इंटरनेशनल सोलर अलायंस (आईएसए) और कोलेजन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर ( सीडीआरआई) जैसी मल्टी स्टेकहोल्डर वैश्विक साझेदारी शामिल है, जिसे इस लेख में आगे उजागर किया जाएगा.

वैश्विक जलवायु कूटनीति में भारत

भारत इस बात को लेकर एक प्रमुख केस स्टडी की तरह है कि कैसे कोई राष्ट्र जलवायु कूटनीति को मार्ग निर्देशित करता है. भारत जलवायु ज़िम्मेदारी के मामले में अपने पहले के रक्षात्मक, नव-औपनिवेशिक रवैये के उलट हाल के जलवायु संबंधों में अधिक सक्रिय और सहकारी अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण को अपनाने लगा है. भारत ने कूटनीति और स्थायी ऊर्जा निवेश के माध्यम से अपनी ज़िम्मेदारी पर ज़ोर देने के लिए एक वैश्विक शक्ति केंद्र के रूप में अपनी भूमिका को मज़बूत करने और भागीदार देशों पर अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए को ऑपरेटिव स्ट्रैटिजी (सामूहिक रणनीति) का चुनाव किया है.

जलवायु परिवर्तन पर सहयोग के लिए भारत का जोर उभरती विश्व शक्तियों या विकासशील दुनिया के नए औद्योगिक राष्ट्रों को संगठित करने के लिए एक बहुपक्षीय समाधान की तलाश से आगे विस्तार हुआ है. [[7]] भारत तीन महत्वपूर्ण समूहों - ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन (बीएएसआईसी), ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका (ब्रिक्स) और ग्लोबल साउथ के ग्रुप ऑफ 77 (जी-77) समूह का हिस्सा रहा है. [[8]] कोपेनहेगन और पेरिस कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज (सीओपी) दोनों में बेसिक देशों का समूह एक अहम किरदार रहा था, जहां भारत को समझौतों के ड्राफ्टिंग ऑथर के रूप में पहचाना गया था.  [[9]] बेसिक देशों के समूह और संयुक्त राज्य अमेरिका के नेताओं के बीच अंतिम समय में हुए समझौते के कारण कोपेनहेगन समझौते को अपनाया जा सका था. [[10]]

अफ्रीका की बात करें तो महाद्वीप के सभी देश जी 77 का हिस्सा है. यह समूह ग्लोबल साउथ में शामिल देशों को उनके सामूहिक आर्थिक हितों को स्पष्ट करने और संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों पर उनकी आवाज़ को मुखर बनाने और विकास के लिए साउथ-साउथ सहयोग को बढ़ावा देने के लिए साधन प्रदान करता है. [[11]] जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के तहत, जी 77 + चीन गठबंधन ने ऐतिहासिक रूप से धनी देशों से वित्तीय सहायता दिए जाने की वकालत की है ताकि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, जो कि सामान्य लेकिन अलग-अलग दायित्वों के सिद्धान्त पर आधारित है, को कम करने और पहले से बदलती जलवायु के अनुकूल होने में सक्षम बनाया जा सके.

2022 में कॉप 27 में भारत एक मुखर लेकिन अहम सहयोगी किरदार की भूमिका में था, जिसने लॉस एंड डैमेज फंड की स्थापना का स्वागत करते हुए साफ किया कि वह इसमें योगदान नहीं करेगा बल्कि अपने दावों को पूरा करने की कोशिश करेगा.

2022 में कॉप 27 में भारत एक मुखर लेकिन अहम सहयोगी किरदार की भूमिका में था, जिसने लॉस एंड डैमेज फंड की स्थापना का स्वागत करते हुए साफ किया कि वह इसमें योगदान नहीं करेगा बल्कि अपने दावों को पूरा करने की कोशिश करेगा. भारतीय प्रतिनिधियों ने तब यह प्रस्ताव दिया कि सभी देश सिर्फ कोयला की खपत पर ही नहीं बल्कि फॉसिल फ्यूल (जीवाश्म ईंधनों) के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीक़े से समाप्त करने पर सहमत हों. वैश्विक न्याय और समानता के सिद्धांतों की वकालत करते हुए भारत ने शिखर सम्मेलन के कवर पृष्ठ पर 'मेजर एमिटर्स (प्रमुख उत्सर्जक)' और 'टॉप एमिटर्स (शीर्ष उत्सर्जक)' जैसे शब्दों के इस्तेमाल के लिए विकसित देशों की कोशिश को रोकने का काम किया; और इसे चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल और भूटान सहित अन्य देशों का समर्थन प्राप्त था. इसी कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज में, भारत ने आईएसए और सीडीआरआई जैसे मंचों के माध्यम से मज़बूत अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने की अपनी इच्छा भी दोहराई.

अंतरराष्ट्रीय  सौर गठबंधन के लिए केस

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी 'वन वर्ल्ड, वन सन, वन ग्रिड' पहल की  पैदाइश इंटरनेशनल सोलर अलायंस (अंतरराष्ट्रीय  सौर गठबंधन (आईएसए) की भी घोषणा पेरिस में तत्कालीन फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और नरेंद्र मोदी ने ही की थी. भारत द्वारा फ्रांस के साथ संयुक्त रूप से आईएसए के गठन ने क्लाइमेट एक्शन के क्षेत्र में प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में भारत की उपस्थिति को मज़बूत किया है. आईएसए को कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच पूरी तरह या आंशिक रूप से मौज़ूद 'सनशाइन बेल्ट' देशों की सदस्यता के साथ एक मल्टी कंट्री (बहुराष्ट्रीय) साझेदारी संगठन के रूप में प्रस्तावित किया गया था. [[12]] संयुक्त राष्ट्र द्वारा आईएसए को दी गई बहुपक्षीय संधि का दर्ज़ा 6 दिसंबर 2017 को लागू हुआ.

आईएसए को सौर ऊर्जा पर सहयोग, नई तकनीक़ों को बढ़ावा देने और ग्लोबल एनर्जी इक्विटी हासिल करने के लिए फंडिंग के लिए एक मंच के रूप में देखा गया है. इसका लक्ष्य वैश्विक स्तर पर 1,000 जीडब्ल्यू सोलर इंस्टॉलेशन (सौर प्रतिष्ठान) स्थापित करने के लिए निवेश में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि जुटाना है, जिससे 2030 तक स्वच्छ ऊर्जा सस्ती और सार्वभौमिक रूप से सुलभ हो सके. [[13]]

नई दिल्ली में आईएसए का मुख्यालय होने की वज़ह से अफ्रीका में रिन्यूएबल एनर्जी परियोजनाओं में भारतीय भागीदारी बढ़ी है. [[14]] इसका उद्देश्य बेहतर ऊर्जा पहुंच, बढ़ी हुई ऊर्जा सुरक्षा, ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में बेहतर आजीविका के लिए अधिक अवसरों के प्रावधान के सामान्य लक्ष्यों में सकारात्मक योगदान देना है. [[15]]

अफ्रीका को अक्सर 'सन कॉन्टिनेंट या सूर्य महाद्वीप' कहा जाता है - महाद्वीप जहां सौर विकिरण सबसे अधिक होता है. [[16]] यह 37°नॉर्थ और 32°साउथ अक्षांशों के बीच स्थित है और एक विशाल क्षेत्र में फैला है जो भूमध्य रेखा और दोनों उष्णकटिबंधीय को पार करता है. अफ्रीका की सौर ऊर्जा क्षमता निश्चित ही बहुत ज़्यादा है. हालांकि अधिकांश अफ्रीकी देशों ने अभी तक उनके लिए उपलब्ध प्रचुर मात्रा में सौर ऊर्जा का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करना शुरू नहीं किया है. यह बताया जाता है कि पिछले एक दशक में सौर उत्पादन लागत में गिरावट के साथ, सौर ऊर्जा अफ्रीका में बिजली का सबसे सस्ता स्रोत हो सकता है, [[17]] प्रति वर्ग मीटर प्रति दिन औसतन 6 किलोवाट घंटे (केडब्ल्यूएच) सौर ऊर्जा के साथ सौर क्षमता सभी देशों में समान रूप से वितरित की जाती है. [[18]] अकेले सब-सहारा अफ्रीका में सभी देशों की कुल सौर क्षमता लगभग 10,000 गीगा वाट (जीडब्ल्यू) है. [[19]]

अफ्रीका की सौर ऊर्जा क्षमता निश्चित ही बहुत ज़्यादा है. हालांकि अधिकांश अफ्रीकी देशों ने अभी तक उनके लिए उपलब्ध प्रचुर मात्रा में सौर ऊर्जा का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करना शुरू नहीं किया है. यह बताया जाता है कि पिछले एक दशक में सौर उत्पादन लागत में गिरावट के साथ, सौर ऊर्जा अफ्रीका में बिजली का सबसे सस्ता स्रोत हो सकता है.

मार्च 2018 में नई दिल्ली में आयोजित आईएसए के पहले शिखर सम्मेलन के बाद, भारत ने अफ्रीकी देशों में 179 सौर-संबंधित परियोजनाओं के लिए 15-20 प्रतिशत राशि के साथ 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक की क्रेडिट लाइन निर्धारित की है. [[20]] आईएसए ने साहेल क्षेत्र में 10,000 मेगावाट सौर ऊर्जा प्रणाली विकसित करने के लिए अफ्रीकी विकास बैंक के साथ भी भागीदारी की है, जिसका उद्देश्य बिना बिजली (ऑफ-ग्रिड) के रहने वाले 600 मिलियन अफ्रीकियों में से लगभग आधे को बिजली प्रदान करना है. [[21]]

अफ्रीका में आईएसए के तीन प्रमुख कार्यक्रम है जिनके ज़रिए यह अपनी उपस्थिति को मज़बूत करता है : कृषि के लिए सोलर एप्लिकेशन; अफोर्डेबल फाइनेंस और स्केलिंग सोलर मिनी-ग्रिड. इसके अलावा दो अतिरिक्त कार्यक्रम - स्केलिंग रेजिडेंशियल रूफटॉप सोलर और स्केलिंग सोलर ई-मोबिलिटी एंड स्टोरेज - भी पाइप लाइन में है. पूरे अफ्रीका में आईएसए परियोजनाओं में सोलर पीवी पावर प्लांट, मिनी-ग्रिड और ऑफ-ग्रिड प्लांट की स्थापना शामिल है; सौर-संचालित सिंचाई प्रणाली; ग्रामीण विद्युतीकरण; स्ट्रीट लाइटिंग; सौर ऊर्जा से जुड़ी कोल्ड-चेन और कूलिंग सिस्टम; और सौर-संचालित शहरी बुनियादी ढांचा जैसे अस्पताल, स्कूल और सरकारी प्रतिष्ठान भी इसका हिस्सा है. इसके अलावा माली में 500 मेगावाट का सोलर पार्क; बुर्किना फासो, युगांडा और तंजानिया में सौर सुविधाएं और सौर घरेलू प्रणालियां; नाइजीरिया में सौरीकरण और कुशल कोल्ड फूड चेन; और सेनेगल और घाना में सौर-संचालित पैक हाउस और कोल्ड स्टोरेज बनाना भी इसमें शामिल है.[[22]]

अफ्रीका में आईएसए की पहल और गतिविधियों का मूल्यांकन, रोज़गार सृजन, बढ़ी हुई आय, ग़रीबी में कमी, बेहतर उत्पादकता, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, खाद्य सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता के माध्यम से स्थायी आजीविका में महत्वपूर्ण योगदान को दर्शाता है. सौर ऊर्जा तक बेहतर पहुंच भी टिकाऊ खपत और उत्पादन सुनिश्चित करती है और वनों की कटाई और भूमि क्षरण को कम करके पर्यावरण संरक्षण में योगदान देती है.

अफ्रीकी महाद्वीप में आईएसए के काम केवल दो क्षेत्रों के बीच जीवंत और बहुआयामी संबंधों को दर्शाता है, जो द्विपक्षीय व्यापार पर आधारित है. [[23]], [[24]] वर्षों से, भारत-अफ्रीकी संबंध को राजनीतिक एकजुटता से परे व्यापार और निवेश बढ़ाने के लिए विस्तारित किया गया है और इसके साथ ही वैज्ञानिक और तकनीक़ी सहयोग को भी बढ़ाना इसका मक़सद रहा है. [[25]]

जुलाई 2018 में पीएम मोदी ने कंपाला में युगांडा की संसद को  संबोधित करते हुए भारत-अफ्रीकी जुड़ाव के लिए 10 मार्गदर्शक सिद्धांतों को रेखांकित किया था. अफ्रीका के लिए यह दृष्टिकोण उन नीतियों में निरंतरता का प्रतिनिधित्व करती है जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से भारत-अफ्रीकी साझेदारी को परिभाषित किया है. [[26]] इसका लक्ष्य अफ्रीका के एज़ेंडा 2063 के साथ भारत की विकास गाथा को जोड़ना और आपसी पुनरुत्थान को बढ़ावा देना है. [[27]]

इंडिया-अफ्रीका फोरम समिट (आईएएफएस) के ढांचे के तहत अफ्रीकी देशों के साथ जुड़ाव को बढ़ाने के भारत के फैसले के साथ भारत-अफ्रीकी संबंधों को और संस्थागत रूप दिया गया है. यह शिखर सम्मेलन अब तक चार बार - 2008, 2011, 2015 और 2020 में आयोजित किए जा चुके हैं. इन शिखर सम्मेलनों ने ड्यूटी फ्री टैरिफ़ स्कीम, अनुदान सहित निवेश और रियायती कर्ज़, नॉलेज शेयरिंग(जानकारी का आदान-प्रदान), टेक्नोलॉजी ट्रांसफर(तकनीक़ हस्तांतरण) और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के माध्यम से भारत-अफ्रीका जुड़ाव को और मज़बूत किया है. भारत ने इंडियन टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड स्पेशल कॉमनवेल्थ अफ्रीकन असिस्टेंस प्रोग्राम के ज़रिए अफ्रीकी देशों के साथ अपने विकास के अनुभवों को भी साझा किया है. [[28]] भारत हाल के वर्षों में अफ्रीका में बतौर पांच शीर्ष निवेशकों में से एक के रूप में उभरा है, 2021 में भारत ने अफ्रीका में कुल लगभग 74 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया था. अफ्रीका के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार 2021-2022 में 89.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया.[[29]]

डिज़ास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे) के लिए गठबंधन

लगातार गर्म होती दुनिया को अपनाने के लिए डिज़ास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे) के महत्व को स्वीकार करते हुए, सीडीआरआई को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा न्यूयॉर्क में साल 2019 में यूएन क्लाइमेट एक्शन समिट के दौरान लॉन्च किया गया था. सीडीआरआई के अफ्रीकी सदस्य देश घाना, मेडागास्कर, मॉरीशस और दक्षिण सूडान हैं.

आईएसए की तरह, सीडीआरआई क्लाइमेट एक्शन और डिज़ास्टर रेज़िलियेंस (आपदा लचीलापन) में भारत की वैश्विक नेतृत्व की भूमिका को दर्शाता है. सीडीआरआई देश की सरकारों, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और कार्यक्रमों, बहुपक्षीय विकास बैंकों और वित्तपोषण तंत्र, निजी क्षेत्र और ज्ञान संस्थानों की एक बहु-हितधारक वैश्विक साझेदारी की तरह है. सीडीआरआई को संयुक्त राष्ट्र कार्यालय द्वारा आपदा जोख़िम को कम करने के लिए जानकारी का आदान-प्रदान, तकनीक़ी सहयोग, और क्षमता निर्माण की सुविधा के लिए रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (लचीला बुनियादी ढांचा) विकसित करने और किसी को भी पीछे न छोड़ने की प्रतिबद्धता को पूरा करते हुए मौज़ूदा बुनियादी ढ़ांचे को मज़बूत करने के लिए समर्थन हासिल है. इसमें गवर्नेंस और पॉलिसी, उभरती हुई तकनीक़, जोख़िम की पहचान और अनुमान, रिकवरी और पुनर्निर्माण, रेज़िलियेंस स्टैंडर्ड और सर्टिफिकेशन, वित्त और क्षमता विकास के क्षेत्र शामिल है.

सीडीआरआई ने जलवायु परिवर्तन से सबसे बड़े ख़तरों का सामना करने वाले विकासशील देशों और द्वीप राष्ट्रों में डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढांचा) सिस्टम के निर्माण के लिए 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर का आपदा ट्रस्ट फंड लॉन्च किया है. कॉप 27 में इन्फ्रास्ट्रक्चर रेजिलिएशन एक्सेलेरेटर फंड (आईआरएएफ) नामक फंड की घोषणा की गई थी. आईआरएएफ सीडीआरआई को जोख़िम-सूचित निवेशों और बुनियादी ढ़ांचे के विकास के माध्यम से जनादेश हासिल करने में मदद करेगा, जिसके परिणामस्वरूप लोगों की कमज़ोरी को कम किया जा सकेगा और क्लाइमेट एक्सट्रीम इवेंट्स (चरम घटनाओं) और बुनियादी ढांचे पर ऐसी आपदाओं का प्रभाव कम होगा.

सीडीआरआई ने जलवायु परिवर्तन से सबसे बड़े ख़तरों का सामना करने वाले विकासशील देशों और द्वीप राष्ट्रों में डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढांचा) सिस्टम के निर्माण के लिए 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर का आपदा ट्रस्ट फंड लॉन्च किया है.

सीडीआरआई अपनी क्षमता विकास कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षण और परियोजनाओं की सुविधा के द्वारा रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (लचीला बुनियादी ढांचा) सुनिश्चित करने में सरकारों, निजी क्षेत्र और अन्य संगठनों की क्षमता बढ़ाने का प्रयास करता है. ऐसे प्रोजेक्ट का लक्ष्य संगठनों और समुदायों की प्रक्रियाओं, संसाधनों और कौशल को विकसित और मज़बूत करना है, जिससे अधिक प्रभावी और टिकाऊ आधारभूत संरचना प्रणालियों और सेवाओं को तैयार किया जा सके. अफ्रीका में सीडीआरआई हाल ही में क्षमता विकास की पहल में शामिल रहा है: मॉरीशस में शैक्षणिक संस्थानों और बुनियादी ढांचा पेशेवरों की क्षमता विकास के प्रस्ताव पर सिफारिशें; देश के राष्ट्रीय आपदा जोख़िम को कम करने और प्रबंधन केंद्र के सहयोग से मॉरीशस में परिवहन, दूरसंचार और बिजली क्षेत्रों के लिए रैपिड लर्निंग नीड्स असेसमेंट स्टडी; और मॉरीशस के सड़क विकास प्राधिकरण के लिए आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढ़ांचे को लेकर कस्टमाइज़्ड ट्रेनिंग कोर्स के लिए एक पाठ्यक्रम विवरण का विकास और साझा करना इसमें शामिल रहा है. सीडीआरआई की अन्य गतिविधियों में मॉरीशस में रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (लचीले बुनियादी ढांचे) पर परामर्श और आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर संभावित सहयोग पर मेडागास्कर और रवांडा की सरकारों के साथ द्विपक्षीय जुड़ाव शामिल है.

निष्कर्ष

मानवता के लिए जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न अस्तित्व से संबंधित जोख़िमों ने भारत के नेतृत्व वाले आईएसए और सीडीआरआई जैसे बहु-हितधारक वैश्विक साझेदारी संगठनों को आगे बढ़ाया है. आईएसए और सीडीआरआई दोनों की स्थापना अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को आकार देने और मज़बूत करने के लिए भारत के प्रगतिशील और कोऑपरेटिव क्लाइमेट इंगेजमेंट का एक उदाहरण है. इन संगठनों के माध्यम से अफ्रीकी सरकारों के साथ समर्थन और भागीदारी नई दिल्ली के लिए अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय एज़ेंडा को प्रभावित करने की दिशा में अपने सॉफ्ट पावर का प्रयोग करने का मौक़ा देती है.

अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन और सतत विकास के बीच की कड़ी दो तरफा है, जिसमें जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन दोनों के लिए भारी संसाधनों की आवश्यकता है. जबकि पूरे अफ्रीका में आईएसए का विस्तार लाखों अफ्रीकियों की स्थायी आजीविका पर महत्वपूर्ण प्रभावों के लिए जलवायु शमन और अनुकूलन से कहीं परे है, अफ्रीकी महाद्वीप में सीडीआरआई गतिविधियां कम हैं और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल देशों की क्षमता में इसका सीमित योगदान है. अफ्रीका को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने और अपने लोगों को ग़रीबी से बाहर निकालने के लिए आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए क्लाइमेट रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (जलवायु-लचीले बुनियादी ढांचे) की आवश्यकता है. पूरे अफ्रीकी महाद्वीप के प्रमुख क्षेत्रों में क्लाइमेट रेजिलियेंट (जलवायु-लचीले बुनियादी ढांचे) को विकसित करने के लिए लंबे समय तक फंडिंग की ज़रूरत है जो सालाना 170 बिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि बनती है. [[30]] यह आईएसए की कोशिशों के पूरक के लिए अधिक सीडीआरआई पहल और परियोजनाओं की आवश्यकता को रेखांकित करता है.

जलवायु परिवर्तन के प्रति साझा असमान कमज़ोरी के अलावा, भारत और अफ्रीका के पास कई फायदे हैं जिनका पारस्परिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. इनमें उनकी इनोवेटिव यूथफुल डेमोग्राफी (अभिनव युवा जनसांख्यिकी), तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं, विशाल बाज़ार और विशाल प्राकृतिक संसाधन शामिल हैं. भविष्य की ओर देखते हुए भारत सरकार को बीजिंग से भयंकर प्रतिस्पर्धा के बीच अफ्रीकी महाद्वीप के साथ नई दिल्ली के सौहार्दपूर्ण संबंध को बनाए रखने के लिए, जलवायु कूटनीति से परे, सॉफ्ट पावर को प्रभावी ढंग से बढ़ाने के लिए अफ्रीका की मनोदशा और परिवर्तनों को समझना जारी रखने के साथ ग्लोबल साउथ की चिंताओं, जिसके केंद्र में अफ्रीका है, उसे शामिल रखना चाहिए. अफ्रीका को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नई दिल्ली से अधिक लाभ उठाने के लिए, अफ्रीकी नेताओं को सावधानीपूर्वक अध्ययन करने के साथ सीखना चाहिए और जलवायु कूटनीति के साथ भारत के अनुभवों की ख़ूबियों पर आगे बढ़ना चाहिए.


Endnotes

[1] Intergovernmental Panel on Climate Change, Climate Change 2022: Impacts, Adaptation, and VulnerabilityContribution of Working Group II to the Sixth Assessment Report of the Intergovernmental Panel on Climate Change, Geneva, Intergovernmental Panel on Climate Change, 2022.

[2] Richard Marcantonio et al., “Global Distribution and Coincidence of Pollution, Climate Impacts, and Health Risk in the Anthropocene,” PLOS ONE, 16 (2021): e0254060.

[3] Oluwaseun Oguntuase, “What the IPCC’s 2021 Report Means for Africa,” The Republic, August 16, 2021.

[4]  Nick Mabey et al., “Understanding Climate Diplomacy – Building Diplomatic Capacity and Systems to Avoid Dangerous Climate Change,” October 2013, E3G (Third Generation Environmentalism).

[5] Anna Hristova and Dobrinka Chankova, “Climate Diplomacy – A Growing Foreign Policy Challenge,” Juridical Tribune 10 (2020), 194-206.

[6] Hristova and Chankova, “Climate Diplomacy – A Growing Foreign Policy Challenge”

[7] Aman Y. Thakker, “India at the United Nations: An Analysis of Indian Multilateral Strategies on International Security and Development,” ORF Occasional Paper No. 148, March 2018, Observer Research Foundation.

[8] Renu Modi and Meera Venkatachalam, “India-Africa—Partnering for Food Security,” in India–Africa Partnerships for Food Security and Capacity Building, ed. R. Modi and M. Venkatachalam (Cham, Palgrave Macmillan, 2021), 1-22.

[9] Navroz K. Dubash, “Of Maps and Compasses: India in Multilateral Climate Negotiations,” in Shaping the Emerging World: India and Multilateral Order, ed. Waheguru P.S. Sidhu et al. (Washington, DC: Brookings Institution Press, 2013), 261.

[10]  Fiona Harvey and Suzanne Goldenberg, “The Key Players at the Paris Climate Summit,” The Guardian, December 7, 2015.

[11]  David Lesolle, “The Group of 77 and China’s Participation in Climate Change Negotiations,” Heinrich Böll Stiftung, February 3, 2014.

[12]  Oguntuase, “What the IPCC’s 2021 Report Means for Africa”

[13]  Oguntuase, “What the IPCC’s 2021 Report Means for Africa”

[14]  Modi and Venkatachalam, “India-Africa—Partnering for Food Security”

[15]  Oguntuase, “What the IPCC’s 2021 Report Means for Africa”

[16]  G. Bamundekere, “Contributions of Renewable Energy Sources to Sustainable Development in Africa: Case Study of Solar Energy Source in Rwanda” (MSc diss., Pan African University Institute of Water and Energy Science, 2019), pp. 2.

[17]  Manish Ram et al., Global Energy System Based on 100% Renewable Energy-Power, Heat, Transport and Desalination Sector (Berlin: Lappeenranta University of Technology and Energy Watch Group, 2019), pp. 101-114.

[18]  Shebonti R. Dadwal, “India and Africa: Towards a Sustainable Energy Partnership,” South African Institute of International Affairs Occasional Paper 75, February, 2011, South African Institute of International Affairs.

[19]  Anton Cartwright, “Better Growth, Better Cities: Rethinking and Redirecting Urbanisation in Africa,” Working Paper, September 2015, The New Climate Economy.

[20]  Emma Hakala, “India and the Global Geoeconomics of Climate Change: Gains from Cooperation?” ORF Issue Brief No. 291, May 2019, Observer Research Foundation.

[21]  Aastha Kaul, “The India-Africa Partnership for Sustainability”, ORF Special Report No. 88, April 2019, Observer Research Foundation.

[22]  A Climate Emergency. What the IPCC’s 2021 report means for Africa. Oluwaseun Oguntuase

[23]  Umanathe Singh, “India-Africa Relations Prospering on Mutual Respects and Co-operations Among Others,” News On Air, June 2, 2022.

[24]  Horn of Africa and South Asia, ed. Andrew R. Mickleburgh, in Oxford Bibliographies.

[25]  Oluwaseun J. Oguntuase, “India and the Global Commons: A Case Study of the International Solar Alliance,” ORF Issue Brief No. 528, March 2022, Observer Research Foundation.

[26]  HHS Viswanathan and Abhishek Mishra, “The Ten Guiding Principles for India-Africa Engagement: Finding Coherence in India’s Africa Policy,” ORF Occasional Paper No. 200, July 2019, Observer Research Foundation.

[27]  Manju Seth, “The Prospects of India-Africa Relations in 2022,” Diplomatist, January 20, 2022,

[28]   Renu Modi and Meera Venkatachalam, “India-Africa—Partnering for Food Security,” in India–Africa Partnerships for Food Security and Capacity Building, ed. R. Modi and M. Venkatachalam (Cham, Palgrave Macmillan, 2021), 1-22.

[29]  Roshni Majumdar, “India Woos Africa with Trade, Tech, and Investment,” Deutsche Welle, October 8, 2022.

[30]  Economic Commission for Africa.

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