वैश्विक व्यवस्था इस समय बड़े भू-राजनीतिक मंथन के दौर से गुज़र रही है जिसके लक्षण हैं बीच की बड़ी शक्तियों के बीच पुनर्संरचना और संबंधों को लेकर नई सोच. विकासशील देशों के बीच तरक़्क़ी के दो महत्वपूर्ण स्तंभ होने की वजह से भारत और अफ्रीका के संबंधों में कोई भी प्रगति हमेशा नीति निर्माताओं के बीच दिलचस्पी पैदा करती है. वैसे तो ये दलील दी जा सकती है कि भारत और अफ्रीका अपनी साझेदारी की वास्तविक संभावना को अभी तक हासिल नहीं कर पाए हैं लेकिन दोनों पक्षों की तरफ़ से संबंधों को बढ़ाने और उसे ऊंचा करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति स्पष्ट रूप से दिख रही है.
वैसे तो ये दलील दी जा सकती है कि भारत और अफ्रीका अपनी साझेदारी की वास्तविक संभावना को अभी तक हासिल नहीं कर पाए हैं लेकिन दोनों पक्षों की तरफ़ से संबंधों को बढ़ाने और उसे ऊंचा करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति स्पष्ट रूप से दिख रही है.
पिछले कुछ वर्षों से भारत रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में अफ्रीका के देशों के साथ नज़दीकी रिश्ते बनाने की लगातार कोशिश कर रहा है. पहले ये साझेदारी प्राथमिक रूप से केवल अफ्रीका के समुद्रों में भारतीय जहाज़ों एवं नाविकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से साझा गश्त करने और अफ्रीका के देशों में अलग-अलग संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में भारतीय बलों की भागीदारी तक सीमित थी लेकिन अब ये बढ़कर अलग-अलग क्षेत्रों में और ज़्यादा व्यापक हो गई है. परंपरागत रूप से प्रशिक्षिण एवं क्षमता निर्माण पर भारत के ध्यान देने के अलावा आतंकवाद निरोध, चरमपंथ, मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम, अंतर्राष्ट्रीय अपराध और मुक्त एवं खुले समुद्र के लिए काम करने जैसे मुद्दे अब सबसे आगे हैं. संबंधों में इस विस्तार में बढ़ोतरी के पीछे चार कारण हैं.
अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराधों और समुद्री अपराधों के नये रूपों के उभरने के साथ वैश्विक सुरक्षा के वातावरण में तेज़ी से बदलाव हो रहा है. ऐसे ख़तरों का मुक़ाबला करने और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए भारत और उसके अफ्रीकी साझेदारों के बीच एक साझा, सहयोगपूर्ण प्रयास की आवश्यकता है. दूसरा, भारत और अफ्रीका दोनों ये समझते और स्वीकार करते हैं कि शांति, सुरक्षा और विकास एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. इनमें से किसी एक के बिना दूसरा लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता है. तीसरा, दोनों पक्ष मानते हैं कि आतंकवाद के अभिशाप का किसी देश के द्वारा आर्थिक विकास हासिल करने और सामाजिक स्थिरता सुनिश्चित करने की क्षमता पर गंभीर असर होता है. दोनों पक्ष अन्य गुटों के अलावा बोको हराम, अल क़ायदा, अल-शबाब और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों के द्वारा आतंकवाद और कट्टर चरमपंथ के शिकार रहे हैं. इसके परिणामस्वरूप आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्ति को ख़त्म करना, वित्तीय चैनल (हवाला प्रणाली) को हटाना और कम महत्वपूर्ण तत्वों के सीमा पार आवागमन को रोकना एक प्राथमिकता बन गई है.
आख़िर में, भारत को अफ्रीका में चीन की चुनौती के बारे में अच्छी तरह से पता है. अफ्रीका के कई देश चीन के हथियारों एवं सैन्य उपकरणों का उपयोग करते हैं जिन्हें चीन बाज़ार से कम क़ीमत और अनुकूल वित्तीय मदद जैसे प्रलोभनों का उपयोग करके बेचता है. काफ़ी हद तक चीन अफ्रीका के बाज़ारों में अपना हिस्सा बनाने में सफल रहा है, विशेष रूप से जब बात कुछ पश्चिमी देशों के संभावित विकल्प के रूप में अपने हथियारों की प्रणाली और ड्रोन को बढ़ावा देने की आती है.
इस तरह के घटनाक्रम को देखते हुए ये समझा जा सकता है कि भारत नहीं चाहता है कि वो पीछे रहे. भारत और अफ्रीका के बीच भौगोलिक नज़दीकी, राजनीतिक समर्थन और सैन्य प्रशिक्षण एवं भागीदारी की समृद्ध परंपरा के बावजूद दोनों पक्षों के बीच संबंधों के अब तक के सफ़र को खोए हुए अवसर के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है. लेकिन हाल के समय में भारत के द्वारा नई पहल एवं मंचों के रूप में संगठित प्रयास इस बात की उत्सुकता की तरफ़ इशारा करते हैं कि वो अफ्रीका के लिए पसंद का साझेदार और प्रमुख सुरक्षा सहयोगी बनना चाहता है.
अफ्रीका-इंडेक्स (AF-INDEX)
ऐसी ही एक पहल है अफ्रीका-इंडिया फील्ड ट्रेनिंग एक्सरसाइज़ (AF-INDEX) जिसका उद्देश्य न केवल "अफ्रीकी देशों की सेनाओं की क्षमता में बढ़ोतरी के लिए एक सहयोगपूर्ण दृष्टिकोण को प्रोत्साहन देना है" बल्कि अभ्यास में शामिल देशों की सेना को भारत के स्वदेशी और नई पीढ़ी के सैन्य उपकरणों की क्षमता के बारे में बताना भी है. AF-INDEX का दूसरा संस्करण पुणे में 21-29 मार्च के बीच आयोजित किया गया जिसमें अफ्रीका के 24 देशों की सैन्य टुकड़ियां शामिल हुईं. AF-INDEX का पहला संस्करण 2019 में आयोजित हुआ था. वास्तव में इस तरह के अभ्यासों का उद्देश्य सुरक्षा संकट से निपटने में भारतीय अनुभव को साझा करना और भाग लेने वाले अफ्रीकी देशों की टुकड़ियों को संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन एवं मानवीय सहायता के लिए साझा अभियान के दौरान उनके रणनीतिक कौशल को प्रखर करना है. इस तरह के नियमित अभ्यास एक-दूसरे के साथ जुड़ने की क्षमता को सुधारने में मदद करते हैं और भारत एवं अफ्रीकी सेनाओं के बीच मेल-जोल को बेहतर करते हैं. AF-INDEX के मौजूदा संस्करण का मक़सद अफ्रीका-इंडिया मिलिट्रीज़ फॉर रिजनल यूनिटी (AMRUT) के विचार को बढ़ावा देना है जो अफ्रीका के एजेंडा 2063 और महाद्वीपीय पहल जैसे कि अफ्रीकन यूनियन की साइलेंस द गन्स बाई 2030 (2030 तक बंदूक़ को ख़ामोश करना), जिसका उद्देश्य संघर्ष की रोकथाम, प्रबंधन और समाधान है, के साथ मेल खाता है.
समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में भी भारत-अफ्रीका सहयोग की रफ़्तार तेज़ हो रही है. भारतीय नौसेना तेज़ी से हिंद महासागर के क्षेत्र (IOR) में अपने दम पर सुरक्षा प्रदाता के रूप में उभरी है और अंतर्राष्ट्रीय नियमों एवं व्यवस्था के रक्षक एवं IOR में ‘सुरक्षा प्रदाता’ के रूप में उसकी भूमिका बढ़ रही है
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दूसरा महत्वपूर्ण घटनाक्रम इंडिया-अफ्रीका डिफेंस मिनिस्टर्स (IADMC) और चीफ के कॉन्क्लेव की नींव रखना है. इस संवाद को एक के बाद एक रक्षा प्रदर्शनियों (डेफ एक्सपो) के दौरान साल में दो बार आयोजित करने के लिए संस्थागत रूप दिया गया है और ये भारतीय एवं अफ्रीकी सशस्त्र सेवा के कर्मियों को रक्षा उपकरण सॉफ्टवेयर, साइबर सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद निरोध और रक्षा उपकरणों, अतिरिक्त पुर्जों एवं उनकी देखरेख के लिए प्रावधान के क्षेत्र में संयुक्त उपक्रमों एवं निवेश के लिए अवसरों की तलाश करने का मौक़ा देता है. इस तरह के सहयोग के एक उपोत्पाद को ऐसे समझा जा सकता है जब हम इस पर नज़र डालें कि भारत हिंद महासागर के एक क़रीबी देश तंज़ानिया में क्या कर रहा है. मई 2022 में तंज़ानिया के शहर दार-एस-सलाम में भारतीय उच्चायोग ने एक मिनी रक्षा प्रदर्शनी का आयोजन किया जहां कई सरकारी एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों ने रक्षा उद्योग में अवसरों का पता लगाने के लिए भागीदारी की. दोनों देश द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने के लिए पंचवर्षीय योजना तैयार करने के उद्देश्य से एक साझा टास्क फोर्स स्थापित करने के लिए भी तैयार हो चुके हैं. इस तरह के सहयोगपूर्ण प्रयासों को भारत और दूसरे साझेदार देशों जैसे कि केन्या, मोज़ाम्बिक, दक्षिण अफ्रीका, इत्यादि के लिए दोहराने और उनका पालन करने में आदर्श के रूप में काम करना चाहिए.
समुद्री सुरक्षा
समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में भी भारत-अफ्रीका सहयोग की रफ़्तार तेज़ हो रही है. भारतीय नौसेना तेज़ी से हिंद महासागर के क्षेत्र (IOR) में अपने दम पर सुरक्षा प्रदाता के रूप में उभरी है और अंतर्राष्ट्रीय नियमों एवं व्यवस्था के रक्षक एवं IOR में ‘सुरक्षा प्रदाता’ के रूप में उसकी भूमिका बढ़ रही है. सागर (SAGAR यानी सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन) की धारणा IOR के लिए भारत की परिकल्पना को प्रस्तुत करती है जिसके अनुसार भारत IOR के तटीय क्षेत्रों के साथ साझेदारी और विश्वास एवं पारदर्शिता को बनाए रखना चाहता है. साथ ही एक-दूसरे के हितों को लेकर संवेदनशीलता दिखाना चाहता है और समुद्री सुरक्षा से जुड़े मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में काम करना चाहता है.
भारत के संस्थानों में नियमित तौर पर अफ्रीकी देशों के नौसेना अधिकारियों, कोस्ट गार्ड एवं समुद्री पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षण मुहैया कराने और हाइड्रोग्राफिक सर्वे एवं समुद्री निगरानी से जुड़े अभियान आयोजित करने के अलावा भारत अफ्रीकी देशों के साथ त्रिपक्षीय साझेदारी के नये स्वरूपों में भागीदारी कर रहा है. अक्टूबर 2022 में भारत, मोज़ाम्बिक और तंज़ानिया की नौसेना ने पहली बार साझा समुद्री अभ्यास का आयोजन किया जिसे IMT TRILAT का नाम दिया गया. इस अभ्यास का उद्देश्य ट्रेनिंग प्रदान करना एवं सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों को साझा करना, एक-दूसरे से जुड़ाव में सुधार करना और तीनों देशों के बीच समुद्री सहयोग को मज़बूत करना था. हालांकि भारत को ये हर हाल में सुनिश्चित करना चाहिए कि इस तरह के अभ्यास सामान्य अस्थायी उपायों की तरह बनकर नहीं रह जाएं बल्कि भविष्य में नियमित रूप से आयोजित होने चाहिए. भारतीय नौसना ने क्रमश: अफ्रीका के पूर्वी तट और खाड़ी क्षेत्र में संपन्न एक्सरसाइज़ कटलैस एक्सप्रेस के 2021 और 2023 संस्करण में भी भागीदारी की थी. ये अभ्यास अमेरिकी नौसेना अफ्रीका के द्वारा आयोजित किया जाता है और इसका उद्देश्य इस क्षेत्र में, जिसे मोटे तौर पर पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र (WIOR) के रूप में जाना जाता है, राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देना है.
ये तथ्य कि भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (IAFS) का आख़िरी संस्करण, जो आख़िरी बार 2015 में दिल्ली में आयोजित हुआ था, संपन्न हुए सात साल से ज़्यादा बीत चुके हैं, इस बात की तरफ़ इशारा करते हैं कि हमारे बीच भागीदारी में निरंतरता की कमी है.
एक और महत्वपूर्ण घटनाक्रम है अफ्रीका के समुद्र में भारत-फ्रांस का बढ़ता मेलजोल. दोनों देशों के एक जैसे भू-राजनीतिक एवं समुद्री हित हैं और उन्होंने WIOR में समन्वित एवं साझा निगरानी मिशन और समुद्र का खाका तैयार करने का अभियान चलाया है. केवल पिछले साल में भारतीय नौसेना के समुद्र में टोह लगाने वाले एयरक्राफ्ट बोइंग P-81 और फ्रांस की नौसेना के फाल्कन M50 ने रीयूनियन द्वीप और मोज़ाम्बिक चैनल में तीन साझा निगरानी अभियान (मार्च, मई एवं नवंबर 2022) चलाए. इसके अतिरिक्त गुरुग्राम में स्थित इंडियन ओशन रीजन-इंफोर्मेशन फ्यूज़न सेंटर (IFC-IOR) और सेशेल्स में स्थित रीजनल कोऑर्डिनेशन ऑपरेशंस सेंटर (RCOC) ने हिंद महासागर के क्षेत्र में सूचनाओं को साझा करने और समुद्री क्षेत्र को लेकर जागरुकता में बढ़ोतरी करने के लिए फरवरी 2023 में एक समझौता ज्ञापन पर दस्तखत किए. भारत की पहुंच मॉरिशस के अलग-अलग हिस्सों में आठ तटीय निगरानी रडार (CSR) स्टेशन तक भी है. इन स्टेशन की रेंज 50 किलोमीटर तक है जो IFC-IOR को सूचना देते हैं. पांच स्टेशन मॉरिशस के मुख्य द्वीप में हैं जबकि एक-एक स्टेशन रॉड्रिग्स, सेंट ब्रैंडन और अगालेगा द्वीप में हैं. सेशेल्स में भारत की पहुंच छह CSR स्टेशन तक हैं जिनमें से दो एज़ंपशन द्वीप में हैं जबकि एस्टोव, अल्फोंसे, फ़रक़हर और माहे में एक-एक स्टेशन हैं.
भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन का अगला संस्करण?
वैसे तो ये नई पहल, मंच और अभ्यास भारत-अफ्रीका के बीच रक्षा और सुरक्षा साझेदारी में बढ़ते तालमेल के प्रमाण हैं लेकिन इस साझेदारी की असली संभावना का अभी भी पूरा इस्तेमाल नहीं हुआ है. ये तथ्य कि भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (IAFS) का आख़िरी संस्करण, जो आख़िरी बार 2015 में दिल्ली में आयोजित हुआ था, संपन्न हुए सात साल से ज़्यादा बीत चुके हैं, इस बात की तरफ़ इशारा करते हैं कि हमारे बीच भागीदारी में निरंतरता की कमी है. ये समस्या तब और भी बढ़ जाती है जब अफ्रीका के दूसरे अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों जैसे कि चीन, जापान, यूरोप, अमेरिका और यहां तक कि रूस ने भी इस अवधि के दौरान अपने-अपने फोरम के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की है. हालांकि, IAFS के चौथे संस्करण, जो कि 2020 में आयोजित होना था, में कोविड-19 महामारी की वजह से देरी हुई लेकिन दूसरे देश सम्मेलन के आयोजन को लेकर आगे बढ़े और उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में अफ्रीका के नेताओं के साथ आमने-सामने के सम्मेलन के अलावा वर्चुअल बैठक भी की. भारत भी ऐसा कर सकता था लेकिन इस तरह के बड़े शिखर सम्मेलनों को आमने-सामने आयोजित करना ज़्यादा ठीक है.
इस बात की तरफ़ ध्यान दिलाना महत्वपूर्ण है कि अफ्रीका के देशों और वहां के नेताओं के लिए व्यक्तिगत दौरों के माध्यम से प्रतीकात्मकता एवं बार-बार की बातचीत के माध्यम से संबंधों में निरंतरता मायने रखती है. अगर भारत पिछले कई दशकों के दौरान अफ्रीका में ख़ुद को लेकर जमा विश्वास, सद्भावना और एक ज़िम्मेदार विश्व शक्ति की छवि को बनाए रखना चाहता है तो उसे IAFS के चौथे संस्करण को हर हाल में जल्द-से-जल्द आयोजित करना चाहिए.
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