Published on Jul 06, 2019 Updated 0 Hours ago

वैचारिक और रणनीतिक रूप से ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तान के मुक़ाबले भारत ने अफ़ग़ानिस्तान जैसे संसाधनयुक्त पड़ोसी देश से संबंध बढ़ाने में बढ़त हासिल कर ली है.

भारत-अफ़गानिस्तान संबंध: बड़े कूटनीतिक खेल में भारत ने ‘सॉफ़्ट पॉवर’ से पाकिस्तान को दी मात

अफ़ग़ानिस्तान हमेशा से ‘बड़ी ताक़तों के खेल का मैदान’ रहा है. अलग-अलग दौर में तमाम देश अफ़ग़ानिस्तान पर अपने वैचारिक और रणनीतिक नियंत्रण की जंग लड़ते आए हैं. ताकि वो अफ़ग़ानिस्तान पर अपनी पकड़ मज़बूत कर सकें. वक़्त के साथ इस खेल के खिलाड़ी ज़रूर बदले हैं. लेकिन, अफ़ग़ानिस्तान में खेल हमेशा यही रहा है कि उस पर नियंत्रण किसका हो? कौन सा देश अपनी सॉफ्ट पॉवर से उसे ज़्यादा प्रभावित कर सके, ताकि वो अफ़ग़ानिस्तान के ग्रेट गेम को जीत सके. भारत और पाकिस्तान के बीच भी अफ़ग़ानिस्तान में यही रणनीतिक जंग चल रही है. फिलहाल, इस युद्ध में भारत का पलड़ा भारी दिख रहा है. अफ़ग़ानिस्तान में अपनी धाक जमाने की इस रेस में भारत ने पाकिस्तान को बहुत पीछे छोड़ दिया है, और इसकी सबसे बड़ी वजह है भारत का ‘सॉफ्ट पॉवर’.

अफ़ग़ानिस्तान की अहमियत उसकी भौगोलिक और सामरिक स्थिति की वजह से है. यहां पर क़ुदरती संसाधनों के बड़े भंडार भी हैं. भारत और पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान पर इन वजहों से और अन्य कारणों से भी अपनी पकड़ मज़बूत रखना चाहते हैं. दोनों देशों की क्षेत्रीय और घरेलू स्थिरता के लिए भी अफ़ग़ानिस्तान में स्थायित्व ज़रूरी है. दोनों ही देश ये महसूस करते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान पर अपना प्रभाव जमाकर वो अपना रणनीतिक दायरा और अहमियत बढ़ा सकते हैं.

दुनिया की बड़ी ताक़तों के बीच अपनी हस्ती बढ़ाने और छवि चमकाने के अलावा भारत और पाकिस्तान क्षेत्रीय स्तर पर भी अपनी धाक जमाना चाहते हैं. भारत को लगता है कि उसे विश्व की बड़ी ताक़त बनने से पहले क्षेत्रीय स्तर पर अपनी अहमियत साबित करनी होगी. इसके लिए भारत लंबे समय से कला, संस्कृति, संगीत और फ़िल्मों के ज़रिए अपनी शक्ति का विस्तार करता रहा है. अफ़ग़ानिस्तान के मामले में भारत की सॉफ्ट पॉवर वाली कूटनीति का मक़सद वहां के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ जीतना है. ताकि वो अफ़ग़ानिस्तान के साथ अपने ऐतिहासिक सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंधों की बुनियाद पर अपना असर बढ़ा सके और अफ़ग़ानिस्तान मे नए राष्ट्र के निर्माण और राजनीतिक स्थिरता स्थापित करने में अहम रोल निभा सके. हालांकि, लोग ये भी कह सकते हैं कि भारत का लक्ष्य तो क्षेत्रीय स्तर पर अपनी दादागीरी स्थापित करना है, या फिर वो वैश्विक ताक़त बनना चाहता है. लेकिन, कोई इस बात से इनकार नहीं कर सकता है कि सॉफ्ट पावर के इस्तेमाल की वजह से भारत को अफ़ग़ानिस्तान के लोगों का भरोसा जीतने और समर्थन हासिल करने में बड़ी मदद कामयाबी मिली है.

भारत की इस कामयाबी से पाकिस्तान बौखला गया है. उसकी आंखों में भारत और अफ़ग़ानिस्तान की ये नज़दीकी चुभ रही है. हालांकि, पाकिस्तान का इरादा अफ़ग़ानिस्तान में भारत का असर कम करना और अफ़ग़ानिस्तान की जनता का झुकाव अपनी तरफ़ करना है. लेकिन, अपनी इसी संकुचित सोच की वजह से पाकिस्तान अपने इरादों में नाकाम रहा है. पाकिस्तान का सबसे नज़दीकी पड़ोसी होने के अलावा, पाकिस्तान के अफ़ग़ानिस्तान के साथ एक सदी से भी ज़्यादा पुराने ताल्लुक़ात हैं. इनका फ़ायदा उठाकर पाकिस्तान, वहां अपना प्रभाव और बढ़ा सकता था. पाकिस्तान के अफ़ग़ानिस्तान के साथ ऐतिहासिक, धार्मिक, ज़ातीय, भाषाई और कारोबारी रिश्ते रहे हैं. इन की वजह से पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान स्वाभाविक रूप से दोस्त बन सकते थे. लेकिन, पाकिस्तान इन बातों का फ़ायदा उठा कर अफ़ग़ानिस्तान से संबंध बेहतर करने में नाकाम रहा है. पाकिस्तान, अपना असर बढ़ाने के लिए सैन्य शक्ति पर ज़्यादा भरोसा करता है. ऐसा करने के चक्कर में वो अपनी सॉफ्ट पावर का इस्तेमाल ही नहीं करता. जबकि वो चाहता तो कला, संस्कृति और शिक्षा की मदद से अपनी विदेश नीति के लक्ष्य अफ़ग़ानिस्तान में हासिल कर सकता था. इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय कई आतंकवादी और उग्रवादी संगठनों को भी पाकिस्तान पनाह देता है. माना जाता है कि पाकिस्तान की हुकूमत इन संगठनों को समर्थन देती है. ये बात भी पाकिस्तान की छवि को नुक़सान पहुंचाती है और उसके ख़िलाफ़ जाती है. अफ़ग़ानिस्तान के लोग इन्हीं वजहों से पाकिस्तान को नापसंद करते हैं. इसका नतीजा ये हुआ है कि वहां भारत का असर बढ़ा है और उसे अपनी सॉफ्ट पावर का फ़ायदा हो रहा है. आज अफ़ग़ानिस्तान के लोग, पाकिस्तान के मुक़ाबले भारत को अपना सच्चा दोस्त और हमदर्द समझते हैं.

जिस तरह भारत ने अफ़ग़ानिस्तान मे क्रिकेट के विकास में योगदान दिया है, वो सॉफ्ट पावर से किसी देश का दिल जीतने की एक बड़ी मिसाल है. मज़े की बात है कि अफ़ग़ानिस्तान में क्रिकेट का खेल पाकिस्तान के उन शरणार्थी शिविरों से शुरू हुआ था, जहां 1980 के दशक में सोवियत संघ से युद्ध के चलते अफ़ग़ानिस्तान से भागे लोग रह रहे थे. अफ़ग़ानिस्तान के लोगों ने तो क्रिकेट को हाथों-हाथ लिया. लेकिन, देश में चल रही उठा-पटक की वजह से इस खेल के विकास में बड़ी बाधाएं आईं. इसके लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचे का विकास नहीं हो सका और न ही इस काम के लिए पैसे जुट पा रहे थे. भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में क्रिकेट के विकास में जो योगदान दिया है, उससे दोनों ही देशों को फ़ायदा हुआ है. अफ़ग़ानिस्तान में अस्थिर हालात की वजह से अफ़ग़ानिस्तान की टीम भारत को अपना बेस बनाकर तैयारी करने के लिए बहुत उत्सुक रही थी.

पिछले साल भारत ने बेंगलुरू में अफ़ग़ानिस्तान के साथ दोस्ताना क्रिकेट सीरीज़ की मेज़बानी की थी. ये टेस्ट क्रिकेट का वो फॉर्मेट था, जो ज़्यादा समय वाला था. जो प्रतिष्ठा की दृष्टि से भी अहम था और मुक़ाबले के लिहाज़ से भी. इस टूर्नामेंट के दौरान अफ़ग़ानिस्तान की टीम ने अपनी क्षमताओं का अच्छा प्रदर्शन किया था. ये सीरीज़ अफ़ग़ानिस्तान की क्रिकेट टीम के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई. इस ने भारत और अफ़ग़ानिस्तान के संबंध बेहतर करने में भी अहम रोल निभाया. भारत ने अच्छे मेज़बान का फ़र्ज़ बख़ूबी निभाते हुए अफ़ग़ानिस्तान के खिलाड़ियों का पुरज़ोर तरीक़े से स्वागत-सत्कार किया था. इसके अलावा भारत ने ग्रेटर नोएडा के स्टेडियम को अफ़ग़ानिस्तान की टीम के अभ्यास का आधिकारिक केंद्र घोषित किया था. क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान की टीम के पास अपने देश में प्रैक्टिस के लिए कोई स्टेडियम नहीं था. हाल ही में देहरादून को अफ़ग़ानिस्तान की टीम के दूसरे केंद्र का दर्ज़ा दिया गया है. भारत सरकार अफ़ग़ानिस्तान की टीम को कोचिंग और तकनीकी सुविधाएं भी मुहैया करा रही है. साथ ही भारत कांधार में एक स्टेडियम बनाने में भी मदद कर रहा है. भारत ने क्रिकेट का इस्तेमाल केवल राष्ट्र निर्माण के माध्यम के तौर पर नहीं किया है. बल्कि इसकी मदद से अफ़ग़ानिस्तान से अपने रिश्ते भी बेहतर किए हैं. जबकि पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान का सबसे नज़दीकी पड़ोसी देश है. यहीं पर अफ़ग़ानिस्तान क्रिकेट टीम की शुरुआत हुई. अगर पाकिस्तान चाहता, तो क्रिकेट की बुनियाद पर अफ़ग़ानिस्तान का दिल जीत सकता था. लेकिन, वो देखता रह गया और भारत ने इस मोर्चे पर बाज़ी अपने नाम कर ली.

भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच फ़िल्मी संबंधों का भी लंबा इतिहास रहा है. इससे दोनों देशों की जनता के बीच संपर्क बढ़ता है. ये किसी भी सरकारी कोशिश से ज़्यादा असरदार है. अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कट्टरपंथी नियमों की वजह से समाज में रूढ़िवादी सोच है. इसीलिए अफ़ग़ानिस्तान के लोग बॉलीवुड फ़िल्में बहुत पसंद करते हैं. क्योंकि अक्सर बॉलीवुड फ़िल्मों में नायक नाइंसाफ़ी से लड़ता दिखाया जाता है. भारतीय फ़िल्मों की मदद से अफ़ग़ानिस्तान के लोग शानदार ज़िंदगी की कल्पना कर पाते हैं. वो इन्हें देखकर अपने मन में भी इंसाफ़ पाने की उम्मीद जगाते हैं. रबींद्रनाथ टैगोर की काबुलीवाला जैसी कहानियां, भारत और अफ़ग़ानिस्तान के सांस्कृतिक संबंधों की कहानी बयां करती है. भारतीय सिनेमा के लिए अफ़ग़ानिस्तान हमेशा ही बड़ा बाज़ार रहा है. इसके अलावा भारतीय फ़िल्मों में हमेशा ही पश्तूनों और अफ़ग़ानिस्तान की दूसरी नस्लों के लोगों को अच्छे इंसान के तौर पर दिखाया गया है. फिर चाहे छलिया फ़िल्म में एक पठान को एक बच्ची को बचाने में ज़िंदगी निसार करते दिखाया गया हो, या फिर ज़ंजीर फ़िल्म में एक पठान को भरोसेमंद दोस्त के तौर पर दिखाया जाना हो. इन फ़िल्मी किरदारों से अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के बारे में भारतीयों की सोच भी ज़ाहिर होती है. बॉलीवुड की बहुत सी फ़िल्में जैसे धर्मात्मा, काबुल एक्सप्रेस और ख़ुदा गवाह की शूटिंग अफ़ग़ानिस्तान में हुई थी. इनसे भी वहां भारतीय फ़िल्मों की लोकप्रियता बढ़ी.

फ़िल्मों की वजह से अफ़ग़ानिस्तान और भारत के बीच क़रीबी रिश्ता पनपता है. दोनों देशों के लोग एक-दूसरे के लिए अपनापन महसूस करते हैं. अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी का कहना है कि भारतीय फ़िल्मों ने उनके देश पर जितनी ग़हरी छाप छोड़ी है, उतना तो एक अरब डॉलर का निवेश भी नहीं कर पाता. इससे बॉलीवुड के माध्यम से भारत की सॉफ्ट पावर की ताक़त का एहसास होता है. इससे पता चलता है कि भारतीय फ़िल्मों ने कैसे अफ़ग़ानिस्तान के लोगों का दिल जीतने में अहम रोल निभाया है. पाकिस्तान, अपने सांस्कृतिक संबंधों और नज़दीकी की वजह से मनोरंजन उद्योग के माध्यम से अफ़ग़ानिस्तान के लोगों का दिल जीत सकता था. उनका भरोसा हासिल कर सकता था. लेकिन, पाकिस्तान ने इस मोर्चे पर भी अपनी सैन्य ताक़त पर ज़्यादा भरोसा किया. इसकी वजह से आज अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान, भारत से पीछे रह गया है.

भारत, अफ़ग़ानिस्तान में शिक्षा के प्रचार-प्रसार में बहुत नज़दीकी से जुड़ा हुआ है और बहुमूल्य योगदान दे रहा है. अफ़ग़ानिस्तान में शिक्षा के क्षेत्र का बहुत बुरा हाल है. इसके लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचा ही वहां नहीं है. इसके अलावा लड़के और लड़कियों में बहुत भेदभाव होता है. वहां प्रशिक्षित टीचर भी नहीं हैं. भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के छात्रों को बड़ी तादाद में वज़ीफ़े मुहैया कराए हैं. आज हज़ारों अफ़ग़ानी बच्चे भारत में पढ रहे हैं. उन्हें कारोबारी ट्रेनिंग दी जा रही है. स्किल डेवेलपमेंट में भी उनकी मदद की जा रही है. इसमें अफ़ग़ानिस्तान की महिलाएं भी शामिल हैं. इस समय भारत दस लाख डॉलर की मदद से हबीबा हाई स्कूल के प्रोजेक्ट के विकास में अफ़ग़ानिस्तान की मदद कर रहा है. भारत ने हमेशा ही अफ़ग़ानिस्तान के तमाम नस्लीय समुदायों के साथ बेहतर तालमेल बनाने की कोशिश की है. ख़ासतौर से पश्तून समुदाय से. इस समुदाय के लोग पाकिस्तान और अफग़ानिस्तान की सीमा पर बड़ी संख्या में रहते हैं. ये लोग भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थ का रोल निभाते आए हैं. सॉफ्ट पावर के औज़ार के रूप में शिक्षा का इस्तेमाल, भारत के हित में रहा है, इससे भारत, अफ़ग़ानिस्तान के लोगों का भरोसा जीतने में कामयाब रहा है.

अफ़ग़ानिस्तान में भारत स्वास्थ्य और इलाज के क्षेत्र में भी बहुत योगदान दे रहा है. भारत ने अफ़ग़ान रेड सोसाइटी प्रोग्राम के लिए 50 लाख डॉलर की मदद दी है. ताकि, वहां के बच्चों के दिल की बीमारी का इलाज हो सके. भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच मेडिकल टूरिज़्म का एक बहुत बड़ा बाज़ार विकसित हो गया है. इससे दोनों देशो के लोगों के बीच संपर्क बढ़ा है. 2014 के बाद से भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को बड़ी उदारता से वीज़ा दिए हैं. इससे ज़्यादा से ज़्यादा अफ़ग़ानी मरीज़, भारत आकर इलाज करा पा रहे हैं. क्योंकि उनके अपने देश में इलाज की अच्छी सुविधाएं नहीं हैं. भारत के सरकारी और निजी अस्पताल खुले दिल से अफ़ग़ानिस्तान के मरीज़ों का स्वागत और इलाज करते हैं और उन्हें पूरा सहयोग देते हैं. बहुत से दुभाषिये अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को अस्पतालों के कर्मचारियों से बात करने में मदद करते हैं. कई अस्पतालों के कर्मचारियों को भी अफ़ग़ानिस्तान की भाषाओं की ट्रेनिंग दी गई है. भारत के अच्छे माहौल और अस्पताल के कर्मचारियों के अच्छे बर्ताव की वजह से इलाज के लिए भारत आने वाले अफग़ानियों की तादाद काफ़ी बढ़ गई है. वहीं, पाकिस्तान में जाने के दौरान लगातार सुरक्षा जांच के सख़्त नियमों की वजह से अफ़ग़ानिस्तान के नागरिकों ने इलाज के लिए वहां जाना छोड़ ही दिया है. पाकिस्तान में अफ़ग़ानिस्तान के नागरिकों के लिए वीज़ा के नियम भी बहुत कड़े हैं. भले ही आज भारत में इलाज का ख़र्च बढ़ता जा रहा है. फिर भी ये पाकिस्तान मे महंगे होते इलाज के मुक़ाबले सस्ता ही है. तो, भारत में वीज़ा के सरल नियमों और इलाज की बेहतर सुविधाओं की वजह से आज अफ़ग़ानिस्तान के नागरिक, पाकिस्तान के बजाय भारत आना बेहतर समझते हैं. इस वजह से भी दोनों देशों के ताल्लुक़ात और बेहतर हो रहे हैं.

साफ़ है कि अफ़ग़ानिस्तान में अपनी ताक़त के बजाय सॉफ्ट पावर के इस्तेमाल का फ़ायदा भारत को हो रहा है. दोनों देशों के संबंध बेहतर हो रहे हैं. किन्हीं दो देशों के बीच संबंध बेहतर करने में सॉफ्ट पावर का अहम रोल होता है. इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती. इसका ये मतलब नहीं कि हम अपनी सामरिक शक्ति की पूरी तरह से अनदेखी कर दें. दोनों के बीच सही संतुलन और दोनों के मेल से ही विदेश नीति का मक़सद पूरा किया जा सकता है. अगर, पाकिस्तान की ख़्वाहिश अफ़ग़ानिस्तान में स्थिरता क़ायम करने और उससे संबंध बेहतर करने की है, तो उसे चाहिए कि वो अपनी सॉफ्ट पावर का इस्तेमाल ज़्यादा करे. न कि अपनी सैन्य शक्ति की धौंस जमाए और सामरिक ताक़त का डर अफ़ग़ानिस्तान को दिखाए.


लेखक ORF नई दिल्ली में रिसर्च इंटर्न हैं.

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