Author : Saaransh Mishra

Published on Dec 22, 2021 Updated 0 Hours ago

अफ़ग़ानिस्तान संमिलन का एक अहम मुद्दा होने के साथ भारत को मध्य एशिया और इसकी अर्थव्यवस्था के साथ अपने संबंधों को बढ़ाना चाहिए.

मध्य एशिया के साथ प्रगाढ़ होते भारत के रिश्ते

गणतंत्र दिवस (Republic Day, India) के मौके पर भारत मध्य एशिया के पांचों देश के राष्ट्रपतियों को बतौर मुख्य अतिथि न्योता देने वाला है, हालांकि इससे पहले तीसरे द्विपक्षीय वार्ता के लिए भारत इन देशों के विदेश मंत्रियों को 18 या 19 दिसंबर को बुलाने वाला था. इस दौरान व्यापक जुड़ाव के सिलसिले को बढ़ावा मिलेगा जो भारत की विदेश नीति के मध्य एशिया की तरफ झुकाव की ओर इशारा करता है.

भारत और मध्य एशिया गणराज्य के देशों के लिए आपस में समन्वय और सहयोग बढ़ाने की बेहद सामान्य वजह है जो अफ़ग़ानिस्तान से आतंकवाद और ड्रग्स ट्रैफ़िकिंग के ख़तरे के बढ़ते साये को लेकर है. 

यूरेशिया के केंद्र में मध्य एशिया की मौजूदगी, इसकी भौगोलिक निकटता और ऐतिहासिक संबंध, इस क्षेत्र को भारत के रणनीतिक हितों के लिए बेहद प्रासंगिक बनाते हैं. दरअसल 1990 के दशक में मध्य एशियाई गणराज्यों (सीएआर) के आज़ाद होने के बाद से ही भारत मध्य एशियाई देशों पर ध्यान केंद्रित करने वाली विदेश नीतियों को बढ़ावा देने की कोशिश करता रहा है, हालांकि अभी तक इसके सीमित नतीजे ही देखने को मिले हैं.

कनेक्ट सेंट्रल एशिया की नीति

साल 2012 में कनेक्ट सेंट्रल एशिया की नीति की शुरुआत के साथ, जिसका मकसद इस क्षेत्र से भारत की राजनीतिक, सुरक्षा और सांस्कृतिक संबंध को बढ़ावा देना था, इस दिशा में निश्चित तौर पर कुछ प्रगति तो हुई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मध्य एशिया का दौरा किया और कई मौकों पर मध्य एशियाई देशों के नेताओं से मुलाकात की. भारत इससे पहले दो बार द्विपक्षीय वार्ता कर चुका है जबकि शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (एससीओ) और भारत में इंटरेक्शन एंड कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स (सीआईसीए) जैसे मंचों से इन देशों के साथ लगातार संवाद स्थापित करने की कोशिशें जारी रही हैं लेकिन रूस, चीन, तुर्की, ईरान के मुकाबले इस क्षेत्र में भारत की भूमिका बहुत ज़्यादा नहीं है.

हालांकि मध्य एशिया की अहमियत कई वजहों से अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कब्ज़े के बाद बढ़ गई है. पहला, भारत और मध्य एशिया गणराज्य के देशों के लिए आपस में समन्वय और सहयोग बढ़ाने की बेहद सामान्य वजह है जो अफ़ग़ानिस्तान से आतंकवाद और ड्रग्स ट्रैफ़िकिंग के ख़तरे के बढ़ते साये को लेकर है. दूसरा, मध्य एशिया में किसी भी तरह की घटना अगर होती है तो इसका असर रूस और चीन तक होगा यह भी तय है. इसलिए, जहां मध्य एशिया में स्थिरता रूस और चीन जैसे शक्तिशाली मुल्कों के लिए बेहद अहम है वहीं मध्य एशिया गणराज्य के देश केंद्र में बने रहेंगे ख़ास कर अफ़ग़ानिस्तान को शामिल कर, जो भारत के साथ रिश्तों को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है.

भारत और सीएआर हमेशा एक-दूसरे के प्रति सकारात्मक धारणा आपस में रखते हैं और ऐतिहासिक रूप से सौहार्दपूर्ण संबंध साझा करते हैं[/pullquote]

भारत उपरोक्त कारकों की पहचान तो करता है, यहां तक कि अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता परिवर्तन के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर इस क्षेत्र का तीन बार दौरा कर चुके हैं. इसके अतिरिक्त, कज़ाकिस्तान, ताज़िकिस्तान, किर्ग़िस्तान और तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने भी अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति को लेकर भारत द्वारा नवंबर महीने में बुलाए गए क्षेत्रीय सम्मेलन  में हिस्सा लिया था.

अफ़ग़ानिस्तान की परिस्थितियों पर विचार करने की अहमियत के बावजूद, इस तरह के संवाद और व्यापकता ने भारत और मध्य एशियाई गणराज्यों को अपने द्विपक्षीय संबंधों को उस ऊंचाई तक, जो पिछले 30 सालों में मुमकिन नहीं हो सका है, ले जाने का मौका प्रदान करता है.  हालांकि भारत और सीएआर हमेशा एक-दूसरे के प्रति सकारात्मक धारणा आपस में रखते हैं और ऐतिहासिक रूप से सौहार्दपूर्ण संबंध साझा करते हैं, वे अपने लाभ के लिए इस संबंध का फायदा उठाने में अब तक असमर्थ रहे हैं.

भारत और मध्य एशिया के बीच कारोबार

भारत और मध्य एशिया के बीच कारोबार महज 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है जबकि चीन और मध्य एशिया गणराज्यों के बीच व्यापार 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का होता है.  ये आंकड़े और ज़्यादा ख़राब दिखते हैं जब ऊर्जा आयात के मामले में भारत की निर्भरता के मुकाबले इसका आंकलन किया जाता है, जबकि मध्य एशिया गणराज्य के देशों में तेल, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम जैसे प्राकृतिक संसाधन भरपूर मात्रा में हैं. हालांकि ऊर्जा, दवाईयां, रसायन, हथियार और कृषि उत्पादों के कारोबार  का स्थान तो है लेकिन पर्याप्त नहीं है. इसमें दो राय नहीं कि मध्य एशियाई देशों के लिए भारत के बाज़ार में दाखिल होना बेहद फायदेमंद हो सकता है जो लगातार संघर्ष करती अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटाने की कोशिश कर रहे हैं.

व्यापाक स्तर पर, भारत की विदेश नीति रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) जैसी बड़ी महाशक्तियों और चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों की चुनौतियों से निपटने में ज़्यादा केंद्रित रही है

भारत-मध्य एशिया संबंधों को इसकी वास्तविक क्षमता तक पहुंचने से रोकने वाला सबसे महत्वपूर्ण कारक कनेक्टिविटी है क्योंकि मध्य एशिया गणराज्य भूमिबद्ध या ज़मीन से घिरे हैं.  अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी), तुर्कमेनिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (टीएपीआई) पाइपलाइन जैसी कुछ कनेक्टिविटी परियोजनाएं हैं, जिनकी कल्पना काफी पहले की गई थी लेकिन भू-राजनीतिक, वित्तीय और सुरक्षा बाधाओं के कारण इनकी प्रगति काफी धीमी रही है. उज़्बेकिस्तान ने भी भारत और ईरान के साथ चाबहार पोर्ट जैसी साझा परियोजनाओं  को आगे बढ़ाया है लेकिन यह परियोजना अभी बेहद शुरुआती स्तर पर है और मूर्त रूप लेने में इसमें अभी वक़्त लगेगा.  इसके अलावा, व्यापाक स्तर पर, भारत की विदेश नीति रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) जैसी बड़ी महाशक्तियों और चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों की चुनौतियों से निपटने में ज़्यादा केंद्रित रही है. ऐसे में मध्य एशिया गणराज्य की अनदेखी होती रही है.

यह जानते हुए कि अफ़ग़ानिस्तान ने भारत को सीएआर की ओर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए मज़बूर किया है, इसका इस्तेमाल पारस्परिक रूप से फायदेमंद संबंध बनाने के लिए किया जाना चाहिए,  जो मौजूदा वक्त में पहले के मुकाबले कहीं ज़्यादा मज़बूत हुआ है. जबकि अफ़ग़ानिस्तान में पनपती हुई अनिश्चित स्थिति निस्संदेह सभी तरह की कार्रवाई में एजेंडा के शीर्ष पर है. इसके अलावा सहयोग के आगे के क्षेत्रों पर चर्चा की जा सकती है, ख़ास तौर पर संबंधों में आने वाली बाधा के आसपास काम करने के लिए जो आने वाले दिनों में उभर कर सामने आ सकती है.

हालांकि चीन की मध्य एशिया में सबसे बड़ी क्षेत्रीय मौजूदगी है जो आने वाले समय में  भारत की पहुंच से कहीं ज़्यादा है  लेकिन सीएआर अपने आर्थिक संबंधों में विविधता लाने को इच्छुक रहते हैं जिससे किसी एक देश के पास इस क्षेत्र पर हावी होने का मौका ना हो.  यह, सीएआर देशों के बीच इसकी सद्भावना के साथ, भारत द्वारा अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए मुख्य रूप से इस्तेमाल में लाया जा सकता है. भारत इस मोर्चे पर प्रगति करने के लिए इस क्षेत्र के सबसे प्रभावशाली देशों में से एक, रूस के साथ अपनी पुरानी दोस्ती को मज़बूत करने पर भी विचार कर सकता है.

भारत को मध्य एशिया में सबसे अधिक प्रभावी देश के रूप में उभरने में अभी काफी वक़्त लगेगा लेकिन भारत सही रास्ते पर है 

यह सुनिश्चित करने के लिए, 2019 और 2020 (वस्तुतः) में पहले दो द्विपक्षीय वार्ता के बाद मध्य एशिया की ओर एक भारतीय विदेश नीति के झुकाव के संकेत मिले थे. इसके बाद 2020 में भारत द्वारा अतिरिक्त 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के लाइन ऑफ क्रेडिट का विस्तार किया गया था.  हालांकि, भारत को मध्य एशिया में सबसे अधिक प्रभावी देश के रूप में उभरने में अभी काफी वक़्त लगेगा लेकिन भारत सही रास्ते पर है और इन बार-बार होने वाले राजनयिक संबंधों का लाभ उठाकर भारत-मध्य एशिया संबंधों का एक नया सवेरा निश्चित ही बहुत दूर नहीं है.

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