भारत-मध्य एशिया संबंधों को इसकी वास्तविक क्षमता तक पहुंचने से रोकने वाला सबसे महत्वपूर्ण कारक कनेक्टिविटी है क्योंकि मध्य एशिया गणराज्य भूमिबद्ध या ज़मीन से घिरे हैं. अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी), तुर्कमेनिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (टीएपीआई) पाइपलाइन जैसी कुछ कनेक्टिविटी परियोजनाएं हैं, जिनकी कल्पना काफी पहले की गई थी लेकिन भू-राजनीतिक, वित्तीय और सुरक्षा बाधाओं के कारण इनकी प्रगति काफी धीमी रही है. उज़्बेकिस्तान ने भी भारत और ईरान के साथ चाबहार पोर्ट जैसी साझा परियोजनाओं को आगे बढ़ाया है लेकिन यह परियोजना अभी बेहद शुरुआती स्तर पर है और मूर्त रूप लेने में इसमें अभी वक़्त लगेगा. इसके अलावा, व्यापाक स्तर पर, भारत की विदेश नीति रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) जैसी बड़ी महाशक्तियों और चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों की चुनौतियों से निपटने में ज़्यादा केंद्रित रही है. ऐसे में मध्य एशिया गणराज्य की अनदेखी होती रही है.
यह जानते हुए कि अफ़ग़ानिस्तान ने भारत को सीएआर की ओर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए मज़बूर किया है, इसका इस्तेमाल पारस्परिक रूप से फायदेमंद संबंध बनाने के लिए किया जाना चाहिए, जो मौजूदा वक्त में पहले के मुकाबले कहीं ज़्यादा मज़बूत हुआ है. जबकि अफ़ग़ानिस्तान में पनपती हुई अनिश्चित स्थिति निस्संदेह सभी तरह की कार्रवाई में एजेंडा के शीर्ष पर है. इसके अलावा सहयोग के आगे के क्षेत्रों पर चर्चा की जा सकती है, ख़ास तौर पर संबंधों में आने वाली बाधा के आसपास काम करने के लिए जो आने वाले दिनों में उभर कर सामने आ सकती है.
हालांकि चीन की मध्य एशिया में सबसे बड़ी क्षेत्रीय मौजूदगी है जो आने वाले समय में भारत की पहुंच से कहीं ज़्यादा है लेकिन सीएआर अपने आर्थिक संबंधों में विविधता लाने को इच्छुक रहते हैं जिससे किसी एक देश के पास इस क्षेत्र पर हावी होने का मौका ना हो. यह, सीएआर देशों के बीच इसकी सद्भावना के साथ, भारत द्वारा अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए मुख्य रूप से इस्तेमाल में लाया जा सकता है. भारत इस मोर्चे पर प्रगति करने के लिए इस क्षेत्र के सबसे प्रभावशाली देशों में से एक, रूस के साथ अपनी पुरानी दोस्ती को मज़बूत करने पर भी विचार कर सकता है.
भारत को मध्य एशिया में सबसे अधिक प्रभावी देश के रूप में उभरने में अभी काफी वक़्त लगेगा लेकिन भारत सही रास्ते पर है
यह सुनिश्चित करने के लिए, 2019 और 2020 (वस्तुतः) में पहले दो द्विपक्षीय वार्ता के बाद मध्य एशिया की ओर एक भारतीय विदेश नीति के झुकाव के संकेत मिले थे. इसके बाद 2020 में भारत द्वारा अतिरिक्त 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के लाइन ऑफ क्रेडिट का विस्तार किया गया था. हालांकि, भारत को मध्य एशिया में सबसे अधिक प्रभावी देश के रूप में उभरने में अभी काफी वक़्त लगेगा लेकिन भारत सही रास्ते पर है और इन बार-बार होने वाले राजनयिक संबंधों का लाभ उठाकर भारत-मध्य एशिया संबंधों का एक नया सवेरा निश्चित ही बहुत दूर नहीं है.
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