Author : Pushan Das

Published on May 20, 2020 Updated 0 Hours ago

मूल मुद्दा आधुनिकीकरण के लिए आवंटित फंड है. अर्थव्यवस्था पर कोविड19 महामारी के असर को देखते हुए ये और महत्वपूर्ण हो जाता है. आगे आने वाले कुछ वक़्त तक रक्षा ख़रीद में देरी हो सकती है.

भारत की रक्षा ख़रीद नीति: मेक इन इंडिया को दी गई तरजीह

रक्षा मंत्रालय ने हाल में रक्षा ख़रीद प्रक्रिया (DPP) 2020 का मसौदा जारी किया. नये DPP के मसौदे में मेक इन इंडिया की पहल के तहत देसी रक्षा क्षमता को बढ़ावा देने और आयात पर निर्भरता कम करने के सरकार के लक्ष्य के तहत मौजूदा सैन्य ख़रीद नीति में बदलाव किए गए हैं. मसौदे में रक्षा ख़रीद प्रक्रिया 2016 की कुछ नीतियों को दोहराया गया है जिससे भारत में हथियार बनाने की देसी क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ बिना बिचौलिए के हथियार ख़रीदने की भारत की कोशिशों में रुकावट आ सकती है.

DPP 2020 के मसौदे में ज़्यादा स्थानीय उत्पाद, लीज़िंग की कैटेगरी और उपकरणों के टिकाऊ होने का नया विकल्प प्रस्तावित है. ये 2016 की नीति को बेहतर करने की कोशिश है. नई DPP का मक़सद देसी डिज़ाइन क्षमता को और बढ़ावा देना और ज़्यादा स्थानीय उत्पादन है. अगर इन दोनों चीज़ों को असरदार ढंग से लागू किया गया तो रक्षा उत्पादन में घरेलू उद्योग ख़ास तौर पर प्राइवेट सेक्टर की भूमिका को बढ़ावा मिलेगा.

रक्षा ख़रीद को मंज़ूरी देने की सबसे प्राथमिकता वाली श्रेणी को ‘इंडियन इंडिजेनसली डिज़ाइन्ड डेवलप्ड एंड मैन्युफैक्चर्ड’ या इंडियन-IDDM कहा जाता है. इंडियन-IDDM के तहत प्रस्तावित है कि अगर डिज़ाइन देसी है तो किसी भी ख़रीद में कम-से-कम 50% देसी उत्पाद होना चाहिए. यानी इसमें 40% की बढ़ोतरी की गई है. या इंडियन-IDDM श्रेणी के तहत अगर उत्पाद का डिज़ाइन और उत्पादन देसी है तो स्थानीय भागीदारी 50% होनी चाहिए. अगर डिज़ाइन और डेवलपमेंट देसी नहीं है तो स्थानीय भागीदारी 60% होनी चाहिए..

No. Category Proposed Indigenous Content DPP 2016
1 Buy(Indian-IDDM) Indigenous design and ≥ 50% Min 40%
2 Buy (Indian) In case of indigenous design ≥ 50% otherwise ≥ 60% Min 40%
3 Buy and Make (Indian) ≥ 50% of the ‘Make’ portion Min 50% of Make
4 Buy and Make ≥ 50%
5 Buy (Global – Manufacture in India) ≥ 50%
6 Buy (Global) Foreign Vendor – Nil Indian Vendor ≥ 30%

(Draft DPP 2020)

ये महत्वपूर्ण औद्योगिक नीति का दस्तावेज़ जहां मेक इन इंडिया को बढ़ावा देता है, वहीं लागत के विश्लेषण या तुलना को लेकर इसमें प्रावधान नहीं किया गया है. साथ ही इस तरह की देसी भागीदारी को लागू करने की वजह से उत्पादन में संभावित कमी का भी ध्यान नहीं रखा गया है. स्वदेशीकरण का मतलब है दूसरों पर निर्भरता कम करना और सुरक्षा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भारत की क्षमता को बढ़ाना.

भारत के पास कई मामलों में उत्पादन क्षमता, विशेषज्ञता की कमी है जिसकी वजह से कई चीज़ों का उत्पादन भारत में पहली बार हो रहा है. रक्षा मंत्रालय स्वदेशीकरण की कोशिश में इन पहलुओं पर लड़खड़ाता रहा है.

इसके परिणाम स्वरूप भारत में स्वदेशीकरण के विकास का इतिहास कुप्रबंधन, देरी, आख़िरी चरण में डिज़ाइन में बदलाव और लागत में बढ़ोतरी के उदाहरण से भरा रहा है. हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स द्वारा तैयार लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट, अर्जुन टैंक, भारतीय नौसेना की स्कॉर्पीन पनडुब्बी के लिए एयर इंडिपेंडेंट प्रॉप्लशन (AIP) सिस्टम, करगिल से पहले सेना के लिए वेपन लोकेटिंग रडार की ख़रीद उस लंबी सूची का हिस्सा हैं जो स्वदेशी हथियारों के विकास के जोखिम से जुड़ा है.

जापान इस वक़्त मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज़ के ज़रिए 42 F-35 स्टील्थ फाइटर्स की घरेलू असेंम्बलिंग में लगा हुआ है लेकिन वहां इस बात पर बहस छिड़ी हुई है कि घरेलू उत्पादन को छोड़कर अमेरिका से फाइटर्स का आयात क्यों नहीं किया जाए. इसी तरह यूनाइटेड किंगडम ने अपने देश के मानकों के हिसाब से ऑगस्टा वेस्टलैंड के ज़रिए अपाचे का उत्पादन करने के बदले बोइंग से अपाचे का नया बेड़ा ख़रीदने का फ़ैसला किया. इसकी वजह से लागत में कमी आई.

लीज़िंग का प्रावधान

DPP 2020 में पहली बार ख़रीद और उत्पादन के अलावा लीज़िंग की श्रेणी को पेश किया गया है. इस विकल्प के तहत रक्षा कंपनियों या दूसरे देशों से सशस्त्र सेना के लिए हथियार या उपकरण ख़रीदने के बदले लीज़ पर लिया जा सकता है. रोज़ाना के आधार पर कंपनियों से लंबे वक़्त के लिए समझौता करके कॉम्बैट एयरक्राफ्ट या टैंक लिया जा सकता है. समझौते की अवधि के दौरान इसके देखरेख और मरम्मत की ज़िम्मेदारी उन कंपनियों की होगी. मसौदे में कहा गया है:

लीज़िंग के ज़रिए उपकरणों को ख़रीदे बिना उन्हें रखा जा सकता है. ये विशाल खर्च और समयसमय पर भुगतान की जगह लेने में उपयोगी है. दो उपश्रेणियों में लीज़िंग को मंज़ूरी होगी जहां लीज़ पर उपकरण देने वाली कंपनी भारतीय हो और दूसरी जहां विदेशी कंपनी हो.

इस तरह का समझौता करते वक़्त जोखिम की समीक्षा बड़ी चुनौती होगी. साथ ही ऐसे मामलों में ख़रीद के मुक़ाबले फ़ायदों और लागत की विस्तृत समीक्षा की ज़रूरत होगी.

विदेशी कंपनियां इस तरह की साझेदारी में 49% से ज़्यादा की भागीदार नहीं हो सकतीं. इस रोक की वजह से विदेशी कंपनियां नवीनतम तकनीक को बताने से हिचकती हैं

रणनीतिक साझेदारी

DPP 2020 के मसौदे में भी 2016 के विवादित अध्याय 7 को बिना किसी बदलाव के साथ शामिल किया गया है. इस महत्वपूर्ण अध्याय में चार कार्यक्रमों- लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, बख्तरबंद गाड़ियों और पनडुब्बी- का घरेलू साझेदार कंपनी के साथ मिलकर भारत में उत्पादन को लेकर रणनीतिक साझेदारी से जुड़े नियमों को बताया गया है. नियमों के तहत विदेशी कंपनियां इस तरह की साझेदारी में 49% से ज़्यादा की भागीदार नहीं हो सकतीं. इस रोक की वजह से विदेशी कंपनियां नवीनतम तकनीक को बताने से हिचकती हैं. नियम के तहत गुणवत्ता और समय पर डिलीवरी का ज़िम्मा विदेशी कंपनी के पास होता है जिसके पास सिर्फ़ 49% हिस्सा है जबकि भारतीय साझेदार मुख्य कॉन्ट्रैक्टर और बोली लगाने वाला होता है.

DPP 2020 का मसौदा 2016 की तरह प्रक्रियाओं में सुधार, संस्थागत संरचना और जिम्मेदारी से जुड़े मुद्दों पर चुप है. इन संशोधनों के बिना नई DPP कितनी असरदार होगी?

इन आलोचनाओं के बीच ये बताना महत्वपूर्ण है कि रक्षा मंत्रालय ने लोगों की राय जानने के लिए मसौदे की जानकारी सार्वजनिक करके ये उम्मीद बांधी है कि जहां तक संभव होगा वो इसमें सुधार कर सकता है. टिकाऊ रक्षा उत्पादन का माहौल बनाने के के लिए ऑफसेट एक अल्पकालीन क़दम है और भारतीय रक्षा उद्योग के विकास में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होगी.

DPP 2020 का मसौदा 2016 की तरह प्रक्रियाओं में सुधार, संस्थागत संरचना और जिम्मेदारी से जुड़े मुद्दों पर चुप है. इन संशोधनों के बिना नई DPP कितनी असरदार होगी?  ऐसे में देखना होगा कि रक्षा मंत्रालय, सेना मुख्यालय, इंटिग्रेटेड डिफेंस स्टाफ और DRDO कैसे इन्हें लागू करता है.

रक्षा क्षमता के स्वदेशीकरण की खोज में महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षमताओँ की पहचान करना और सबसे महत्वपूर्ण योग्यताओं का विकास शायद सबसे कम जोखिम वाला तरीक़ा है. आर्थिक हालात को देखते हुए सशस्त्र सेनाओं को ज़रूरी चीज़ों से लैस करने और राष्ट्रीय औद्योगिक क्षमता के बीच लागत और जोखिम का संतुलन बैठाना बेहद महत्वपूर्ण है. भारत हर चीज़ में स्वदेशीकरण क्षमता के छोटे हिस्से का ख़तरा नहीं उठा सकता. विकास की लागत को कम करने के लिए उत्पादन क्षमता बढ़ाना  ज़रूरी है.

आख़िर में, मूल मुद्दा आधुनिकीकरण के लिए आवंटित फंड है. अर्थव्यवस्था पर कोविड19 महामारी के असर को देखते हुए ये और महत्वपूर्ण हो जाता है. आगे आने वाले कुछ वक़्त तक रक्षा ख़रीद में देरी हो सकती है. वित्त मंत्रालय ने कोविड19 की वजह से राजस्व में आई कमी को देखते हुए पहली तिमाही में बजट अनुमान का 20 या 15% ही खर्च करने का निर्देश जारी किया है. रक्षा मंत्रालय को इसी के मुताबिक़ अपनी प्राथमिकता तय करनी होगी. रक्षा ख़रीद प्रक्रिया 2020 के मसौदे में बताए गए स्वदेशीकरण को अपनाने पर सलाह-मशविरा करना भी समझदारी भरा क़दम होगा.

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