ये बात एक सार्वभौमिक सत्य है कि दुनिया भर में सेनाएं बदलाव को आसानी से स्वीकार नहीं करती. फिर चाहे वो सेना का बुनियादी ढांचा हो, सामरिक सिद्धांत हों, युद्ध के तरीके हों, रणनीतिक चुनौतियों का सामना करने संबंधी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (मानक संचालन प्रक्रिया) हो या फिर अपनी सामाजिक आदतें. सेनाएं खुद को बदलने की अनिच्छुक होती हैं. समय की कसौटी पर ख़री उतरी परंपराओं और प्रथाओं पर ही सेना भरोसा करती है. ये सही है कि सेना की कई परंपराएं ऐसी हैं, जिनका संरक्षण किया जाना आवश्यक है, लेकिन इसके साथ ही ये भी ज़रूरी है सुरक्षा और संचालन संबंधी तैयारियों को और बेहतर बनाने के लिए वक्त-वक्त पर सेनाओं के काम करने की तरीके का नए सिरे मूल्यांकन किया जाए. अब समय आ गया है कि सेना को युद्ध क्षेत्र में उभरती नई चुनौतियों, उचित लागत के नई तकनीकी पर आधारित हथियारों के इस्तेमाल और भविष्य में होने वाली जंग और टकरावों के हिसाब से तैयार किया जाए.
1999 में पाकिस्तानी सेना द्वारा हम पर थोपे गए करगिल युद्ध में जीत के बावज़ूद भारत ने इस बात को महसूस किया कि रक्षा क्षेत्र में सुधार किए जाने की ज़रूरत है. के सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता वाली कारगिल रिव्यू कमेटी(KRC)ने इस सिलसिले में कई बहुप्रतीक्षित और क्रांतिकारी सुझाव दिए. 2001 में वाजपेयी सरकार द्वारा नियुक्त मंत्रियों के समूह ने इन्हें मंजूरी भी दे दी थी.
कई रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ये विधेयक ITCs के गठन की दिशा में पहला कदम है. चाहे जो भी हो लेकिन ये साफ है कि प्रस्तावित ITCs की संख्या, इसके आकार और सामरिक जिम्मेदारियों को लेकर जारी गतिरोध तीनों सेनाओं के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन गया है.
कारगिल रिव्यू कमेटी ने रक्षा क्षेत्र में सुधार को लेकर जो सुझाव दिए थे, उसमें से एक सलाह सेना में उच्च स्तर पर प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के पद की स्थापना का भी था. कमेटी के मुताबिक CDS की नियुक्ति से ये फायदा होगा कि तीनों सेनाओं की समस्याओं से जुड़े मुद्दों पर सलाह-मशविरा के लिए सरकार को एक ही व्यक्ति से बात करनी होगी. इससे आर्मी, नौसेना और वायुसेना के बीच बेहतर समन्वय बनाने में भी मदद मिलेगी. तीनों सेनाओं के बीच तालमेल बिठाना इस वक्त की बड़ी ज़रूरत है. इस मसले पर काफी बहस के बाद तीनों सेनाओं के बीच इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड (ITCs)बनाने पर सहमति बनी. ये कहा गया कि ITC से आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में तालमेल की अहम ज़रूरत पूरी होगी. लेकिन ITC का अभी तक गठन नहीं होने से ये ज़ाहिर हो गया है कि तीनों सेनाओं के बीच पेशेवर तौर पर कितने मतभेद हैं. इस बीच सरकार ने अगस्त 2023 में इंटर सर्विसेज़ ऑर्गनाइजेशन (कमांड, कंट्रोल और अनुशासन)विधेयक को लोकसभा में पारित करवाया. सरकार का कहना है कि देश की सुरक्षा को मज़बूत बनाने के मकसद से वो रक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए जो कई कदम उठा रही है, ये विधेयक उसी सिलसिले की एक कड़ी है. हालांकि कई रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ये विधेयक ITCs के गठन की दिशा में पहला कदम है. चाहे जो भी हो लेकिन ये साफ है कि प्रस्तावित ITCs की संख्या, इसके आकार और सामरिक जिम्मेदारियों को लेकर जारी गतिरोध तीनों सेनाओं के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन गया है. ITCs की समस्या का कोई आसान समाधान नहीं है. इसके अलावा तीनों सेनाओं के बीच इसे लेकर कोई पारस्परिक स्वीकार्यता भी नहीं बन पा रही है.
सैन्य कमांड का पुनर्गठन
अमेरिका के सामने भी ऐसी समस्या आई थी. तब अमेरिकी सरकार आगे आई. 1986 के गोल्डवाटर निकोलस एक्ट के ज़रिए उसने अपनी सेना के बुनियादी ढांचे का बड़े स्तर पर पुनर्गठन और बदलाव किया. इस अधिनियम के बाद रक्षा मंत्रालय ने अमेरिकी राष्ट्रपति और रक्षा मंत्री को सलाह देने की प्रक्रिया में सुधार किया. स्पेशल फोर्स और यूनिफाइड कॉम्बेट कमांड के कमांडर्स की जिम्मेदारियों का स्पष्ट तौर पर बंटवारा कर दिया. यानी हर कमांडर को ये बता दिया गया कि उनकी क्या जिम्मेदारी होगी. भारतीय सेनाओं को भी ख़ुद के अंदर झांककर अपने मतभेद ख़त्म करने चाहिए. सैन्य कमांड का इस तरह पुनर्गठन करना चाहिए जो रणनीतिक, संचालन, तकनीकी और आर्थिक तौर पर सेना के लिए सबसे बेहतर हो. सेना के कमांड में बदलाव के लिए हमें विदेशी मॉडल की हूबहू नकल करने की ज़रूरत नहीं है. भारत अपनी सामरिक आवश्यकताओं के हिसाब से नीतियां बनाए. चीन ने भारत के ख़िलाफ एक थिएटर कमांड बनाई है. अमेरिका के पास 11 भौगोलिक और कार्यशील थिएटर कमांड हैं. इसकी वजह ये है कि अमेरिका ने ख़ुद ही अपने कंधे पर कई वैश्विक जिम्मेदारियां ले रखी हैं और इन्हें पूरा करने के लिए 11 कमांड बनाए हैं.
सैन्य कमांड का इस तरह पुनर्गठन करना चाहिए जो रणनीतिक, संचालन, तकनीकी और आर्थिक तौर पर सेना के लिए सबसे बेहतर हो.
भारत के सामने अभी जो संकट हैं और भविष्य में जो चुनौतियां सामने आ सकती हैं, उसे देखते हुए इस बात को लेकर दोराय नहीं हो सकती कि भारतीय सेना को हर तरह के ख़तरों से निपटने के लिए हमेशा तैयार रहना होगा. भारत दो मोर्चों पर युद्ध के ख़तरों का सामना कर रहा है. इसके अलावा हमें उग्रवाद विरोधी और आंतरिक सुरक्षा को लेकर अपनी क्षमता भी बढ़ानी होगी. फिलहाल भारत के पास कमांडर इन चीफ लेवल के 17 कमांड हैं. इनमें से सात-सात कमांड आर्मी और एयरफोर्स में, जबकि तीन कमांड नौसेना में हैं. इसके साथ दो संयुक्त एकीकृत कमांड भी हैं. पहला अंडमान और निकोबार कमांड और दूसरा न्यूक्लियर रिस्पॉन्सिबल स्ट्रैटिजिक फोर्सेज़ कमांड है. इसके अलावा भारत के पास डिफेंस साइबर एजेंसी और डिफेंस स्पेस एजेंसी भी है, जिसे ज़रूरत पड़ने पर स्पेशल ऑपरेशन कमांड और कमांड स्तर तक बढ़ाया जा सकता है. ऐसे में अगर ITCs बनाए जाते हैं तो ये सुनिश्चित किया जा सकता है कि 3-स्टार अफसर वहां समायोजित हो जाएंगे. इसके अलावा हम जैसे-जैसे भौगोलिक रूप से बड़े और जिम्मेदार कमांड्स की तरफ जाएंगे तो उनका नेतृत्व 4-स्टार अफसर या फिर उनके समकक्ष अधिकारियों को दिया जा सकता है. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS)को 5-स्टार अफसर या उसके समकक्ष होना चाहिए. तीनों सेनाध्यक्षों को CDS के तहत काम करना चाहिए और सभी को कुछ सामरिक जिम्मेदारियां दी जानी चाहिए. भर्ती, प्रशिक्षण और लॉजिस्टिक की जिम्मेदारी 3-स्टार अफसर को दी जा सकती है. वो पहले से ही इस काम को देख रहे हैं.
आर्मी के भीतर से और रक्षा विशेषज्ञों की तरफ से भी सेना के पुनर्गठन के कई मॉडल्स के सुझाव सामने आए हैं. सेना की ऑपरेशनल क्षमता को बिना नुकसान पहुंचाए हम ईस्टर्न इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड बनाने पर विचार कर सकते हैं. ये कमांड चीन की तरफ से पैदा होने वाले ख़तरों से निपटने के अलावा म्यांमार, बांग्लादेश और भूटान का ख़्याल रख सकती है. इसी तरह नेपाल और उत्तराखंड के लिए सेंट्रल थियेटर, तिब्बत, चीन, गिलगित-बाल्टिस्तान के कुछ हिस्सों, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और जम्मू-कश्मीर के लिए नॉर्दर्न कमांड बनाने पर विचार किया जा सकता है. इसके अलावा हम वेस्टर्न इंडीग्रेटेड थिएटर कमांड भी बना सकते हैं, जो जम्मू-कश्मीर के दक्षिणी हिस्से और पठानकोट से लेकर पंजाब और पश्चिमी पाकिस्तान के पास के रेगिस्तानी इलाकों तक के लिए जिम्मेदार होगा. इसके बाद सदर्न कमांड के बारे में भी सोचा जा सकता है, जिसमें साउथ वेस्टर्न कमांड भी शामिल होगा. इस कमांड का काम सिंध, कराची और श्रीलंका के अलावा पश्चिमी समुद्र तट की देखभाल करना हो सकता है.
भारतीय नौसेना को हिंद महासागर, मलक्का जलडमरूमध्य, दक्षिण पूर्वी एशिया और जापान तक के समुद्री मार्ग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार रहना होगा.
अपने दो एकीकृत कमांड के तहत नौसेना को पश्चिमी और पूर्वी समुद्र तट की जिम्मेदारी दी जा सकती है. इस बात पर भी विचार किया जाना चाहिए कि क्या अंडमान और निकोबार कमांड को नौसेना की पूर्वी कमांड में शामिल किया जा सकता है. इस बात का ख़्याल रखा जाना ज़रूरी है कि पश्चिमी एशियाई समुद्र भारत में तेल की आपूर्ति के लिए बहुत अहम हैं. लेकिन आजकल इज़रायल-ईरान-हमास के बीच चल रही जंग की वजह से इस क्षेत्र में अशांति देखी जा रही है. इसके अलावा चीन भी कई बार समुद्री सीमा और जल परिवहन के स्वीकृत अंतर्राष्ट्रीय नियमों की अनदेखी करता आ रहा है. ऐसे में भारतीय नौसेना को हिंद महासागर, मलक्का जलडमरूमध्य, दक्षिण पूर्वी एशिया और जापान तक के समुद्री मार्ग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार रहना होगा. इसका एक समाधान ये हो सकता है कि इस क्षेत्र में ज़मीनी और हवाई सुरक्षा का काम ईस्टर्न थियेटर कमांड देखें, जबकि बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर की सुरक्षा की जिम्मेदारी अंडमान और निकोबार कमांड को दी जा सकती है.
आगे क्या?
हर सेना को थियेटर कमांड की जिम्मेदारी देने या फिर इसके रोटेशन की प्रक्रिया का बहुत सावधानी से मूल्यांकन करना चाहिए. इसके आंकलन के लिए रक्षा विशेषज्ञों और सेवानिवृत्त सैनिक और नागरिक विचारकों की निष्पक्ष राय ली जा सकती है. फिलहाल हम ईस्टर्न इंटीग्रेटेड थियेटर कमांड का पुनर्गठन कर इसकी शुरुआत कर सकते हैं. दो साल तक इस कमांड का काम देखकर उसका मूल्यांकन किया जाए और फिर उसके बाद बाकी थिएटर कमांड का एक के बाद एक पुनर्गठन किया जाए. इसका फायदा ये होगा कि इससे भारत की सुरक्षा तैयारियों पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा. चूंकि ईस्टर्न थिएटर कमांड में तीनों सेनाओं का प्रतिनिधित्व होगा तो इससे एकीकृत कमांड का परीक्षण भी हो जाएगा.
एक उभरती वैश्विक और क्षेत्रीय ताकत होने के नाते भारत को अपनी सैनिक तैयारियां भविष्य के युद्ध की चुनौतियों से निपटने के हिसाब से बनानी चाहिए. ऐसे में सुरक्षा के पुराने ढांचे में बदलाव बहुत ज़रूरी है. इस काम में अब और देर नहीं करनी चाहिए. भविष्य में भारत वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है. ऐसे में ये ज़रूरी है कि भारत की रक्षा तैयारियां सर्वोच्च स्तर की हो और एकीकृत कमांड को लेकर एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया जाए.
लेफ्टिनेंट जनरल कमल डावर भारत की डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी के पहले चीफ रहे. अब वो एक प्रमुख सामरिक विशेषज्ञ हैं.
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