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इस तरह की कई मिसालें हैं जब नंबर 1 नेता के सहायक या उत्तराधिकारी की पारी अचानक ख़त्म हो गई.
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) के गठन के बाद से नंबर 1 नेता का नज़दीकी रहना हमेशा राजनीतिक कामयाबी की गारंटी नहीं है. इस तरह की कई मिसालें हैं जब नंबर 1 नेता के सहायक या उत्तराधिकारी की पारी अचानक ख़त्म हो गई. अक्टूबर में जब चीन राष्ट्रीय दिवस की छुट्टियां मनाने में व्यस्त था, बीजिंग में इस तरह की अफ़वाहें चरम पर थी कि मौजूदा उप राष्ट्रपति वांग किशान के सचिव रह चुके डांग हांग के ख़िलाफ़ जांच चल रही है. 2012-17 के बीच वांग किशान चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति में छठे नंबर के नेता थे. साथ ही वो केंद्रीय अनुशासन निरीक्षण आयोग के अध्यक्ष भी थे जिसका काम भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाना था. उन्हें राष्ट्रपति शी जिनपिंग का क़रीबी माना जाता था.
अक्टूबर में जब चीन राष्ट्रीय दिवस की छुट्टियां मनाने में व्यस्त था, बीजिंग में इस तरह की अफ़वाहें चरम पर थी कि मौजूदा उप राष्ट्रपति वांग किशान के सचिव रह चुके डांग हांग के ख़िलाफ़ जांच चल रही है.
डांग हांग के ख़िलाफ़ जांच की अफ़वाह से अटकलें लगने लगी कि सीसीपी के ऊपरी पदों में बड़ा बदलाव हो सकता है. सीसीपी की राष्ट्रीय कांग्रेस- जिस दौरान नेतृत्व में परिवर्तन पर विचार होता है- 2022 में होने वाली है लेकिन बड़े पदों के लिए जोड़-तोड़ शुरू हो चुकी है.
वांग सार्वजनिक तौर पर काफ़ी कम मौक़ों पर दिखे हैं. एक कम्युनिस्ट देश के लिए ये चिंताजनक संकेत है. एक और चिंता बढ़ाने वाला घटनाक्रम ये है कि उनके ख़ास लोगों की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है. डांग हांग, जिनके ख़िलाफ़ हाल में “अनुशासन के उल्लंघन” की पड़ताल शुरू की गई है, वांग के साथ क़रीब तीन दशकों से जुड़े हुए हैं. सितंबर में एक सरकारी प्रॉपर्टी कंपनी के प्रमुख रह चुके रेन झिकियांग को भ्रष्टाचार के एक केस में दोषी साबित होने के बाद 18 साल जेल की सज़ा दी गई थी.
रेन के बारे में कहा जाता है कि वो वांग को स्कूल के समय से जानते थे. ये भी कहा जाता है कि जब रेन ने सीसीपी की आलोचना वाले बयान दिए थे तो उनको बचाने में वांग का हाथ था. हुबेई प्रांत, जहां नोवल कोरोनावायरस की शुरुआत हुई, में पार्टी सचिव रह चुके जियांग चाओलियांग को इस साल की शुरुआत में उनके पद से हटाया गया. पूर्व बैंकर जियांग चाओलियांग के बारे में कहा जाता है कि वांग किशान के साथ उनके नज़दीकी कामकाजी संबंध 1990 से थे.
चीन में नंबर 1 नेता के साथ नज़दीकी दोधारी तलवार की तरह है. ‘मुख्य़ नेता’ के क़रीब रह चुके कई वरिष्ठ सीसीपी अधिकारियों का पतन हो चुका है. माओत्से तुंग के घोषित उत्तराधिकारियों का बुरा अंत हो चुका है. एक वक़्त माओ के वारिस कहे जाने वाले लियू शाओकी को सांस्कृतिक क्रांति के दौरान बेआबरू होकर पद छोड़ना पड़ा और 1969 में जेल में रहते हुए उनकी मौत हुई. लाल सेना के कमांडर लिन बियाओ, जिन्हें आधिकारिक तौर पर माओ का उत्तराधिकारी नियुक्त किया गया था, की मौत मंगोलिया में एक रहस्यमय हवाई हादसे में हुई. लिन पर बाद में आरोप लगे कि वो माओ से सत्ता हथियाने के लिए साज़िश कर रहे थे. बाद में उनका नाम सीसीपी के आधिकारिक इतिहास से हटा दिया गया. वांग होंगवेन और हुआ गुओफेंग माओ की जगह नहीं भर सके. हुआ को तो 70 के दशक में डेंग जियाओपिंग ने मात दे दी. वो डेंग जिन्होंने कई बार सत्ता की रेस से हटने के बाद वापसी की थी.
डेंग के ज़माने में भी घोषित उत्तराधिकारी जब तक अपने-अपने पदों पर जम पाते उससे पहले ही उन्हें हटा दिया गया. हू याओबांग को डेंग के साथ उनके मतभेदों की वजह से सीसीपी के महासचिव के पद से हटा दिया गया. हू याओबांग के उत्तराधिकारी झाओ ज़ियांग को 1989 के थियानमेन प्रदर्शनों के बाद मजबूर होकर पद छोड़ना पड़ा.
शी जिनपिंग के दौर में सबसे बड़े पद की चाह रखने वाले सीसीपी नेताओं को कुचल दिया गया. पोलित ब्यूरो के पूर्व सदस्य सुन झेंगकाई को नेतृत्व की आकांक्षा रखने वाले नेता के तौर पर देखा जा रहा था लेकिन 2017 में केंद्रीय अनुशासन निरीक्षण आयोग ने उनके ख़िलाफ़ जांच शुरू कर दी. 2017 में राष्ट्रीय दिवस की छुट्टियों से कुछ दिन पहले उन्हें सीसीपी से निष्कासित कर दिया गया और एक चर्चित ट्रायल में उन्हें भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया गया. सीसीपी में सावधानी से बनाए गए एकता के दिखावे के पीछे कई गुट हैं जो साझा हितों की वजह से आपस में बंधे हुए हैं. ये गुट प्रमुख पदों पर अपने-अपने लोगों को बिठाने में लगे रहते हैं. चीन पर नज़र रखने वालों में इस बात को लेकर आम राय नहीं है कि कितने गुट हैं और उन गुटों में कितने सदस्य हैं लेकिन मोटे तौर पर ऐसे गुटों की संख्य़ा 4-5 है.
शी जिनपिंग के दौर में सबसे बड़े पद की चाह रखने वाले सीसीपी नेताओं को कुचल दिया गया. पोलित ब्यूरो के पूर्व सदस्य सुन झेंगकाई को नेतृत्व की आकांक्षा रखने वाले नेता के तौर पर देखा जा रहा था लेकिन 2017 में केंद्रीय अनुशासन निरीक्षण आयोग ने उनके ख़िलाफ़ जांच शुरू कर दी.
आम तौर पर इन गुटों के नेताओं ने प्रमुख पदों को उस क्षेत्र या संगठन में काम करने वाले अपने भरोसेमंद सहायकों से भरने को प्राथमिकता दी है. 80 के दशक के आख़िर में जियांग ज़ेमिन के राष्ट्रपति बनने की ओर से लेकर 2000 के शुरुआती दौर तक झू रोंगजी (जिन्होंने पीएम के तौर पर काम किया), झेंग किंगहोंग (2002-07 तक उप राष्ट्रपति) और हान झेंग (फिलहाल पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति में) का उदय हुआ. ऐसा कहा जाता है कि ये लोग “शंघाई” गुट से आते थे. ये नाम इसलिए दिया गया था क्योंकि जियांग ज़ेमिन ने शंघाई में अलग-अलग पदों पर काम किया था. हू याओबांग और बाद में पूर्व राष्ट्रपति हू जिंताओ के उदय के साथ नौजवानों के लिए सीसीपी की इकाई ‘कम्युनिस्ट यूथ लीग’ (सीवाईएल) एक गुट के तौर पर मशहूर हुआ. मौजूदा प्रधानमंत्री ली केक़ियांग के बारे में कहा जाता है कि वो सीवाईएल गुट से आते हैं. सरकारी कंपनियों में अपना वक़्त बिताने वाले लोगों का भी पार्टी में एक गुट है. एक और गुट सीसीपी के वरिष्ठ नेताओं का है जिनके पर कतर दिए गए थे लेकिन उन्हें पुनर्वास के तहत अपने बच्चों को मनोनीत करने की इजाज़त दी गई.
चीन पर नज़र रखने वालों का कहना है कि शी जिनपिंग अपने वफ़ादारों को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं. ये वफ़ादार मुख्य़ तौर पर झेजियांग प्रांत (जहां जिनपिंग पार्टी के प्रमुख थे) और शांक्सी (जिनपिंग का गृह प्रांत) से आते है. उदाहरण के लिए, पोलित ब्यूरो के सदस्य ली झांगसु (तीसरे नंबर के नेता) और झाओ लेजी (छठे नंबर के नेता) को शी की सत्ता में अहम पद दिए गए हैं. ली झांगसु नेशनल पीपुल्स कांग्रेस- चीन की विधायिका- के अध्यक्ष हैं और झाओ लेजी सीसीपी में रिश्वतखोरी की जांच करने वाली संस्था केंद्रीय अनुशासन निरीक्षण आयोग के प्रमुख हैं.
चीन में सत्ता के केंद्र में सहायक का काम सबसे अभिशप्त है. सत्ता की रेस में आगे चढ़ने वाले लोग सीसीपी के नेता की नज़रों से क्यों गिर जाते हैं, ये अभी तक रहस्य बना हुआ है.
दोनों ने शांक्सी प्रांत में काम किया है. झेजियांग में पार्टी के पूर्व सचिव शिया बाओलोंग और ली क़ियांग ने अपनी क़िस्मत बदलते देखी है. ली क़ियांग को प्रांत की राजनीति से लाकर 2017 में पोलित ब्यूरो का सदस्य बनाया गया. वहीं शिया बाओलोंग को महत्वपूर्ण हांगकांग और मकाउ मामलों के कार्यालय का प्रभारी बनाया गया जो चीन और उसके विशेष प्रशासनिक क्षेत्रों के बीच की एक कड़ी है.
लगता है चीन में सत्ता के केंद्र में सहायक का काम सबसे अभिशप्त है. सत्ता की रेस में आगे चढ़ने वाले लोग सीसीपी के नेता की नज़रों से क्यों गिर जाते हैं, ये अभी तक रहस्य बना हुआ है. इसकी वजह का पता लगाने के लिए हम कुछ कारणों के विश्लेषण से शुरुआत कर सकते हैं. ये वो कारण हैं जो सत्ता में लंबे समय तक बरकरार रखते हैं. अपनी किताब ‘फ्रॉम द सॉयल’ में फी सियाओटोंग चीन के समाज में गुआंक्सी की धारणा का महत्व परिभाषित करते हैं. गुआंक्सी का मतलब संपर्क है.
ताक़तवर गुआंक्सी नेटवर्क को बढ़ाना पद पर बने रहने में कुछ हद तक मददगार है. डेंग के उत्तराधिकारी जियांग ज़ेमिन अपने गुरु के निधन के बाद आगे बढ़े और 2002 में पद छोड़ने के बाद भी वरीयता में दूसरे नंबर पर बने रहे. इसकी वजह शायद सीसीपी में उनके द्वारा संबंधों को बनाए रखने की उनकी कला रही.
ऐसा समाज जो मेल-जोल और लोगों की विश्वसनीयता पर आधारित हो वहां गुआंक्सी नेटवर्क सामाजिक पूंजी हैं. फी कहते हैं कि चीन के समाज में संबंध उसी तरह हैं जैसे किसी तालाब में पानी फेंकने के बाद तरंगें उत्पन्न होती हैं जिसमें हर तरंग एक व्यक्ति पर केंद्रित होती है. ये उदाहरण सीसीपी के सत्ताधारी वर्ग को परिभाषित करने के लिए ठीक है जहां गुआंक्सी संरक्षण की प्रणाली और साझा हितों के ज़रिए स्थापित की जाती है.
2012 में रिश्वतखोरी की जांच करने वाली एजेंसी- केंद्रीय अनुशासन निरीक्षण आयोग- ने वांग किशान की देख-रेख में मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न का सहारा लेकर और लंबे समय तक हिरासत में रखकर सीसीपी के अधिकारियों से रिश्वत के मामलों में आरोप कबूलवाए. कहा जाता है कि 2012-2016 के बीच क़रीब 158 वरिष्ठ अधिकारियों ने अपनी जान दे दी. मजबूर होकर शी को एलान करना पड़ा कि वो इस पद्धति को ख़त्म कर रहे हैं. शायद वांग किशान ने कुछ ताक़तवर गुआंक्सी नेटवर्क को अपने ख़िलाफ़ कर लिया.
बदले हुए नियमों के तहत राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के लिए पांच-पांच साल के दो कार्यकाल की सीमा ख़त्म कर दी गई है. लोकतंत्र में चुनाव सार्वजनिक पद पर आने का एक ज़रिया होता है लेकिन एक पार्टी वाले देश में सत्ता संघर्ष बड़े पद पर कब्ज़ा करने का एकमात्र रास्ता है. इसी वजह से डेंग के ज़माने में सामूहिक नेतृत्व का सिद्धांत और राष्ट्रपति पद के कार्यकाल की सीमा निर्धारित की गई थी. अगले कुछ महीनों में ये तय हो जाएगा कि वांग 2022 के बाद अपने पद पर बने रहते हैं या नहीं.
लगता है कि ताक़तवर गुआंक्सी नेटवर्क को बढ़ाना पद पर बने रहने में कुछ हद तक मददगार है. डेंग के उत्तराधिकारी जियांग ज़ेमिन अपने गुरु के निधन के बाद आगे बढ़े और 2002 में पद छोड़ने के बाद भी वरीयता में दूसरे नंबर पर बने रहे. इसकी वजह शायद सीसीपी में उनके द्वारा संबंधों को बनाए रखने की उनकी कला रही. 50 के दशक से लेकर 80 के दशक तक वो प्रांतीय राजनीति में सक्रिय रहे और बाद में सन 2000 के क़रीब तक राष्ट्रीय राजनीति में उनकी सक्रियता बनी रही. जियांग से पहले सीसीपी के महासचिव झाओ ज़ियांग उतने ख़ुशक़िस्मत नहीं थे और उनके तेज़ी से आगे बढ़ने के कारण शायद संरक्षण पर रोक लग गई. झाओ को सिचुआन की राजनीति से बाहर कर दिया गया जहां उन्होंने गुप्त तरीक़े से प्राइवेट खेती की शुरुआत की थी और जो कामयाबी की कहानी बन गई. 1977 से 1980 के बीच तीन साल में झाओ ने बतौर प्रधानमंत्री राष्ट्रीय मंच पर अपनी पहचान छोड़ी लेकिन डेंग का साथ छूटने के बाद वे कामयाब नहीं हो पाए.
संक्षेप में कहें तो एक व्यक्ति की सत्ता के आतंक का अनुभव करने और ग्रेट लीप फॉरवर्ड और सांस्कृतिक क्रांति की वजह से इसके नुक़सानदेह असर के कारण 80 के दशक में सीसीपी ने पांच साल के दो कार्यकाल की सीमा और बड़े नेताओं के लिए रिटायरमेंट की उम्र निर्धारित की. सीसीपी की तरफ़ से राष्ट्रपति के कार्यकाल की सीमा हटाने के बाद चीन फिर से एक व्यक्ति के शासन की तरफ़ आ गया है. 2012-13 में जब सत्ता चौथी पीढ़ी से पांचवीं पीढ़ी के हाथ में गई थी तो ये पहला मौक़ा था जब बदलाव बिना किसी मज़बूत नेता के असर के बिना हुआ. चीन ने इस बदलाव से पहले साज़िशों के दौर को महसूस किया जब भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से “दावेदार” बो शिलाई को पीछे हटना पड़ा और शी जिनपिंग लंबे वक़्त तक सार्वजनिक जीवन से दूर रहे, यहां तक कि अमेरिका की तत्कालीन विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के साथ प्रस्तावित बैठक को भी रद्द कर दिया.
शी का दूसरा कार्यकाल 2022 में ख़त्म हो रहा है और ऐसी कोई बाध्यता नहीं है कि वो अपने पद से हटेंगे. अगर 2012-13 में सत्ता का बदलाव कोई संकेत है तो आने वाले दिनों में शह-मात का खेल दिख सकता है. लेकिन जो देखा जाना बाक़ी है वो है व्यवस्थित राजनीतिक उत्तराधिकार ख़त्म होने का चीन पर क्या असर होगा.
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Kalpit A Mankikar is a Fellow with Strategic Studies programme and is based out of ORFs Delhi centre. His research focusses on China specifically looking ...
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