Published on Mar 17, 2020 Updated 0 Hours ago

आज भारतीय रेल की परिसंपत्तियों की उत्पादकता की समीक्षा करना समय की मांग है.

संपत्तियों का उत्पादन बढ़ाकर ही मुमकिन है भारतीय रेल की वित्तीय हालत में सुधार!

भारतीय रेल इस समय (वित्तीय वर्ष 2019-20) अपने वित्तीय संसाधनों के प्रबंधन के भयंकर संकट से जूझ रही है. दिसंबर 2019 की मासिक मूल्यांकन रिपोर्ट कहती है कि रेलवे के राजस्व में 240 अरब रुपयों की गिरावट आ गई है. इसी के साथ रेलवे का कार्यकारी व्यय दिसंबर 2019 तक पहले ही तीन प्रतिशत से अधिक बढ़ चुका था. ऐसा लग रहा है कि इस वित्तीय वर्ष में रेलवे अपने कार्य निष्पादन अनुपात के 95 प्रतिशत के तय लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रहेगी. इस बात की पुष्टि रेलवे के उच्च स्तरीय प्रबंधन के लोग भी कर चुके हैं. भारतीय रेल का ऑपरेटिंग रेशियो वर्ष 2018-18 में 98.4 प्रतिशत था. जो एक दशक में सबसे ख़राब अनुपात था. इस वर्ष का ऑपरेटिंग रेशियो भी बेहद बुरे स्तर यानी लगभग 110 प्रतिशत के आस-पास मंडरा रहा है. इसका अर्थ ये है कि हर सौ रुपए को कमाने के लिए भारतीय रेल 110 रुपए ख़र्च कर रही है.

पारंपरिक रूप से रेलवे अपनी माल ढुलाई का भाड़ा बढ़ाकर ही यात्री किराए का बोझ उठाती आई है. आज भारतीय रेलवे में माल ढुलाई का भाड़ा दुनिया में सबसे महंगा है. इसका नतीजा ये हुआ है कि भारतीय रेल के हाथ से माल ढोने का कारोबार भी निकल रहा है

तालिका 1: भारतीय रेल वित्तीय स्थिति (2014-15 से 2018-19)
साल कुल कार्य व्यय (INR अरबों) सकल यातायात रसीदें
(INR बिलियन)
शुद्ध राजस्व प्राप्तियां
(INR बिलियन)
2014-15 1,429.96 1,567.11 168.38
2015-16 1,478.36 1,643.34 192.28
2016-17 1,590.30 1,652.92 49.13
2017-18 1,758.34 1,787.25 16.65
2018-19 1,847.80 1,899.06 37.73

सारणी स्रोत- भारतीय रेलवे की ईयर बुक (2015-16, 2017-18, 2018-19)

छठें वेतन आयोग (2006) और सातवें वेतन आयोग (2016) लागू करने के बोझ की वजह से साल दर साल, भारतीय रेल की राजस्व सरप्लस कमाने की क्षमता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है. भारतीय रेलवे में क़रीब 12.7 लाख कर्मचारी काम करते हैं और इसके पंद्रह लाख पेंशनधारी हैं. इन्हें तनख़्वाह और पेंशन के तौर पर हर साल रेलवे को क़रीब 1344 और 500 अरब रुपए क्रमश: देने पड़ते हैं. मौजूदा और पूर्व कर्मचारियों को भुगतान करने के कारण भारतीय रेल का रिज़र्व फंड घटता जा रहा है. इसीलिए आज भारतीय रेल को अपना अंदरूनी रिज़र्व फंड विकसित करने की अभूतपूर्व आवश्यकता है. पारंपरिक रूप से रेलवे अपनी माल ढुलाई का भाड़ा बढ़ाकर ही यात्री किराए का बोझ उठाती आई है. आज भारतीय रेलवे में माल ढुलाई का भाड़ा दुनिया में सबसे महंगा है. इसका नतीजा ये हुआ है कि भारतीय रेल के हाथ से माल ढोने का कारोबार भी निकल रहा है. क्योंकि आज सड़क के ज़रिए माल ढुलाई, रेलवे के मुक़ाबले सस्ती पड़ रही है. इसलिए ज़्यादातर लोग रेलवे के बजाय सड़क परिवहन को तरज़ीह दे रहे हैं. साथ ही साथ भारतीय रेल के एसी में यात्रा करने वाले धनाढ्य यात्री भी इसके स्थान पर विमान यात्रा को तरज़ीह दे रहे हैं. इसीलिए पिछले कुछ वर्षों से भारतीय रेल के यात्री एवं माल परिवहन में वृद्धि बेहद सीमित स्तर पर ही हो रही है.

वहीं, दूसरी तरफ़ भारतीय रेल पिछले कई वर्षों से नियमित रूप से पूंजी निवेश करके अपनी संपत्ति का विस्तार कर रही है. इस दिशा में भारतीय रेल का कुल निवेश वित्तीय वर्ष 2018-19 में 5736.42 रुपए था. जबकि यही व्यय 2014-15 में 3678.58 अरब रुपए था. वर्ष 2020-21 में रेलवे का पूंजीगत व्यय 16.1 अरब रुपए रहने का अनुमान है. इस धन को रेलवे आम तौर पर अपना रॉलिंग स्टॉक बढ़ाने यानी इंजन, यात्री डिब्बे और माल ढुलाई के लिए वैगन ख़रीदने जैसे संपत्ति निर्माण के कार्य में व्यय करती है. इसके अलावा नई रेलवे लाइनें बिछाने, रेलवे लाइन के दोहरीकरण, विद्युतीकरण जैसे कार्यों में भी पूंजी व्यय किया जाता है. अब ऐसी उम्मीद की जा रही है कि रेलवे का ये जो पूंजी निवेश हो रहा है, इसके नतीजे यातायात में वृद्धि और परिवहन से उत्पादकता बढ़ने के रूप में दिखने लगेंगे.

भारतीय रेल का अधिकतर पूंजी निवेश नई लाइनें बिछाने और पहले से मौजूद रेलवे लाइन के दोहरीकरण में जाता है. रूट के दोहरीकरण के प्रोजेक्ट उन लाइनों पर ज़्यादा शुरू किए जाते हैं, जहां ये साबित हो चुका होता है कि रेलवे की क्षमता में कमी है. और इसके विस्तार से रेलवे ट्रैफिक बढ़ाया जा सकता है. जब भी लाइन के दोहरीकरण का कोई प्रोजेक्ट पूरा होता है, तो इससे, उस रूट रेलवे के ट्रैफ़िक पर दबाव कम होना चाहिए. जिससे रेलवे की सेवाएं बेहतर हों. सफर में समय कम लगे और ग्राहकों की संतुष्टि का स्तर बेहतर हो. इसी तरह नई लाइनों का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद से यात्री और माल ढुलाई के ट्रैफिक में भी वृद्धि होनी चाहिए.

भारतीय रेल के पूंजीगत व्यय का एक और बड़ा हिस्सा रॉलिंग स्टॉक के निर्माण में ख़र्च होता है. यानी इसे रेलवे अपने लिए इंजन, यात्री डिब्बे और माल ढुलाई के वैगन बनाने में ख़र्च करती है. परिवहन की उत्पादकता बढ़ाने के लिए भारतीय रेल ज़्यादा हॉर्स पावर वाले इंजन बना भी रही है और उन्हें बाहर से ख़रीद भी रही है. ज़्यादा वज़न ढोने वाले वैगन और बेहतर यात्री कोच बनाए जा रहे हैं. ताकि अधिक माल ढुलाई और यात्री परिवहन हो सके. लाभ कमाने के लिए भारतीय रेलवे को अपने इंजनों, मालवाहक और यात्री डिब्बों की पूरी क्षमता का उपयोग करना चाहिए. इससे प्रति किलोमीटर यातायात की सघनता बढ़ेगी.

लेकिन, ऐसा लगता है कि रेलवे की उत्पादकता बढ़ नहीं रही है. क़रीब चार दशक बाद, भारतीय रेल में माल ढुलाई स्थिर ही है. इन सामानों (जिन्हें लीड कहते हैं) की ढुलाई की औसत दूरी भी घट रही है. इससे भी रेलवे की आमदनी का क्षय हो रहा है. साथ ही साथ यात्री परिवहन उम्मीद के मुताबिक़ नहीं बढ़ रहा है. इससे ये पता चलता है कि भारतीय रेल का अधिकतर पूंजी निवेश, अपेक्षा के मुताबिक़, नए संसाधनों की उत्पादकता बढ़ाने में असफल रहा है. बल्कि रेलवे की उत्पादकता घट रही है.

भारतीय रेल का अधिकतर पूंजी निवेश नई लाइनें बिछाने और पहले से मौजूद रेलवे लाइन के दोहरीकरण में जाता है. रूट के दोहरीकरण के प्रोजेक्ट उन लाइनों पर ज़्यादा शुरू किए जाते हैं, जहां ये साबित हो चुका होता है कि रेलवे की क्षमता में कमी है. और इसके विस्तार से रेलवे ट्रैफिक बढ़ाया जा सकता है

इसलिए आज भारतीय रेलवे के लिए ये बेहद आवश्यक हो गया है कि वो अपने संसाधनों की उत्पादकता बढ़ाने पर ध्यान दे. इनके संदर्भ में कुछ संकेतक यह बताने के लिए प्रासंगिक हैं कि भारतीय रेलवे की संपत्तियां कितनी कुशलता से कार्य निष्पादन कर रही हैं. ये संकेतक माल ढुलाई से जुड़े हुए हैं. क्योंकि भारतीय रेलवे की आमदनी का मुख्य स्रोत माल ढुलाई ही है. पहला प्रमुख संकेतक है वैगन टर्न एराउंड (WTR) यानी मालवाहक डिब्बों में माल भरने और ढोने के बीच कितना फ़र्क़ होता है. वो कितने समय तक ख़ाली खड़े रहते हैं. इसे मापकर रेलवे के रॉलिंग स्टॉक के परिवहन और रेलवे ट्रांसपोर्ट की मांग का आकलन किया जाता है. इनमें से किसी में भी गिरावट का अर्थ होता है कि वैगन टर्न एराउंड बढ़ जाता है. इससे माल ढुलाई से आमदनी कम हो जाती है. जैसा कि हम दूसरी सारणी के माध्यम से समझ सकते हैं कि वैगन टर्न एराउंड पिछले कई वर्षों से पांच दिन के आस-पास ही मंडरा रहा है.

कार्यकुशलता मापने का एक और सूचकांक भी काफ़ी महत्वपूर्ण है. और ये है नेट टन किलोमीटर्स (NTKMs)प्रति वैग/प्रति दिन. इससे ये पता चलता है कि मालगाड़ियों के डिब्बों का कितनी अच्छी तरह प्रयोग हो रहा है. क्योंकि इस सूचकांक में ढोए गए नेट टन वज़न को ही गिना जाता है. इसलिए ख़ाली वैगन कितने किलोमीटर चला, इसे जोड़ देने पर ये पैमाना कमज़ोर हो जाता है. ये इकाई यह प्रतिबिंबित करती है कि किसी वैगन की चलायमान ट्रैफिक में कितनी क्षमता का प्रयोग किया गया. इसमें न केवल मालगाड़ियों के डिब्बों की गति का आकलन होता है. बल्कि हर वैगन के प्रति किलोमीटर और हर वैगन पर कितना बोझ है इसका भी आकलन किया जाता है. चूंकि माल ढुलाई का भाड़ा टन प्रति किलोमीटर के आधार पर तय होता है. इसलिए ये पैमाना इस बात का अच्छा संकेतक होता है कि किसी व्यवस्था से कितनी आमदनी हो रही है. जैसा कि सारणी दो से स्पष्ट है कि ये सूचकांक साफ़ इशारा कर रहा है कि मौजूदा व्यवस्था पर बोझ बढ़ रहा है.

कार्यक्षमता का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण सूचकांक ये है कि एनटीकेएम प्रति इंजन/प्रति घंटे कितना प्रयोग किया गया. इसमें वैगन की कार्यकुशलता और इंजन की कार्यकुशलता दोनों को मिलाकर मापा जाता है. जिसका सीधा संबंध भारतीय रेल की लाभप्रदता से है. कोई भी इंजन भारतीय रेल की सबसे महंगी चल संपत्ति होता है. इस पैमाने में बढ़ोत्तरी का मतलब ये होता है कि भारतीय रेल अपने इस रॉलिंग स्टॉक का अच्छे से इस्तेमाल कर रही है. चूंकि, इनसे ट्रेन की पटरियों पर गाड़ियों की सघनता बढ़ती है. पर, आख़िर में एनटीकेएम प्रति इंजन/प्रति घंटे में होने वाली कोई भी वृद्धि ये दर्शाती है कि मुनाफ़े का मार्जिन बढ़ा है. लेकिन सारणी दो से यह पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि इस पैमाने पर भी रेलवे के लाभ में लगातार गिरावट दर्ज़ की जा रही है.

तालिका 2: भारतीय रेलवे के लिए एसेट उत्पादकता पैरामीटर (2014-15 से 2018-19)
साल लीड (किमी) वैगन टर्न-राउंड (दिन) * NTKM / वैगन दिन NTKM / इंजन घंटे
2014-15 622 4.98 8113 18,605
2015-16 594 5.18 7510 17,507
2016-17 561 5.32 7359 16,337
2017-18 598 5.21 7,405 17,474
2018-19 605 5.00 7747 16,571

*कम वैगन टर्न अराउंड के नतीजों का मतलब है उत्पादकता अच्छी है.

स्रोत- भारतीय रेल की ईयर बुक 2015-16, 2017-18, 2018-19

भारतीय रेलवे को उन कारणों का पता लगाना होगा कि इन सूचकांकों में गिरावट क्यों आ रही है. फिर वो ऐसी रणनीति बनाए ताकि उत्पादकता के इन सूचकांकों में ये गिरावट, वृद्धि में परिवर्तित हो. रेलवे के लिए आगे की प्रक्रिया का एक सुझाव ये हो सकता है कि वो पिछले चार वर्षों में किए गए यातायात के कार्यों की एक सूची बनाए. इनमें से सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं, रेलवे लाइनों का दोहरीकरण, क्योंकि इन प्रोजेक्ट के पूरा होने से किसी भी रूट की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है. ऐसे में भारतीय रेल को चाहिए कि वो लाइनों के दोहरीकरण और नई लाइनों के प्रोजेक्ट पर विशेष तौर पर ध्यान दिया जाए. क्योंकि फिलहाल ये प्रोजेक्ट टुकड़ों में पूरे किए जा रहे हैं. भारत में रेलवे लाइनों के दोहरीकरण और नई लाइनें बिछाने के कई ऐसे प्रोजेक्ट हैं जिनका हर साल कोई एक हिस्सा पूरा किया जाता है. न कि पूरे रूट का कार्य एक साथ पूरा किया जाए. इसका नतीजा ये होता है कि किसी भी रूट पर रेलगाड़ियों की भीड़ के ख़ास बिंदु, दोहरीकरण के साथ आगे सरकते जाते हैं. इस चुनौती का समाधान करके इसका लाभ उचित तरीक़े से उठाया जा सकता है.

इसके अतिरिक्त सिग्नल सिस्टम में सुधार करके, किसी रूट का विद्युतीकरण करके और रेलवे लाइनों पर क्रॉसिंग ख़त्म करने से भी काफ़ी राहत मिलेगी और किसी भी रूट पर गाड़ियों की रफ़्तार में तुरंत वृद्धि की जा सकेगी. इन सभी कार्यों की एकीकृत समीक्षा का घोषित सुधारों से मिलान किया जाना चाहिए, ताकि किसी भी रूट की कार्यक्षमता का सही आकलन हो सके.

ज़्यादा हॉर्स पावर ताक़त और बेहतर तकनीक वाले इंजन, मालगाड़ियों और यात्री गाड़ियों के लिए आधुनिकतम डिब्बे और ऐसे कोच जो सौ किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से दौड़ सकते हैं, उन्हें रेलवे को अपने सिस्टम में शामिल करना होगा. अधिक रफ़्तार के साथ हर तरह की ट्रेन के रनिंग टाइम की योजना भी फिर से बनानी होगी, ताकि उनकी गति बढ़ाई जा सके. इससे भविष्य में नई रेलगाड़ियां चलाने के लिए रेलवे के नेटवर्क की क्षमता में और वृद्धि की जा सकेगी. पिछले कई दशकों से यात्री गाड़ियों और मालगाड़ियों की औसत रफ़्तार में कोई वृद्धि नहीं हुई है.

भारतीय रेल की क्षमताओं में जो भारी निवेश हो रहा है, उसे इसके मालवाहन के कारोबार के विस्तार का समर्थन मिलना चाहिए. क्योंकि यही रेलवे की अंदरूनी राजस्व की आमदनी का मुख्य स्रोत है. अगर ये अपेक्षित राहत ज़मीनी स्तर पर नहीं मिलती है, तो इसकी जांच होनी चाहिए कि रेलवे में निवेश की योजनाएं कैसे बनाई जा रही हैं. फिर अगर कोई कमी पायी जाती है तो उन्हें दूर किया जाना चाहिए. हर रेलवे ज़ोन को चाहिए कि वो अपनी परिसंपत्तियों की उत्पादकता का परीक्षण और समीक्षा करे ताकि उत्पादकता के सूचकांकों में आ रही गिरावट के कारणों का पता लगाया जा सके.

इस समय भारतीय रेल के पास माल वहन की कार्यकारी समय सारिणी ही नहीं है. अगर इसे लागू किया जाए तो इससे रेलवे को अपने नेटवर्क पर गाड़ियां चलाने की योजना बनाने में मदद मिलेगी. एक अन्य चुनौतीपूर्ण मोर्चा, भारतीय रेल को चलाने वाले कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ाना है. इंजन के जो ड्राइवर, नई तकनीक वाले इंजन (बिजली और डीज़ल दोनों इंजन) चलाते हैं, उन्हें उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. ताकि उनकी उत्पादकता का बेहतर इस्तेमाल हो सके.

आज भारतीय रेल की परिसंपत्तियों की उत्पादकता की समीक्षा करना समय की मांग है. ताकि वो अपने अंदरूनी रिज़र्व फंड को बढ़ा सके. सभी उपयोगी पूंजी निवेश, रेलवे के सिस्टम की क्षमताओं को बढ़ाने में प्रयुक्त किए जाने चाहिए, ताकि वो अधिक यातायात का बोझ उठा सकें. इससे रेलवे की सिस्टम की कार्यकुशलता एवं प्रवाह क्षमता में एकीकृत वृद्धि होगी.

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