Author : Soumya Bhowmick

Expert Speak Raisina Debates
Published on May 22, 2023 Updated 28 Days ago

आज भारत अपनी आत्मरक्षा क्षमताओं का आधुनिकीकरण कर रहा है, और रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बन रहा है. इससे आने वाले वक़्त में वो वैश्विक रक्षा उद्योग का एक अहम खिलाड़ी बन जाएगा.

पोखरण II से ‘मेक इन इंडिया’ तक: भारत के आर्थिक आयाम और रक्षा क्षमताएं

ये लेख हमारी सीरीज़, पोखरण के 25 साल: भारत के एटमी सफ़र की समीक्षा, का एक हिस्सा है.


मई 1998 में भारत ने राजस्थान के पोखरण परीक्षण रेंज में एक के बाद एक परमाणु परीक्षण किए थे, जो देश के परमाणु कार्यक्रम में मील का एक अहम पत्थर साबित हुए थे. हालांकि, भारत के इस एटमी टेस्ट यानी ‘ऑपरेशन शक्ति’ (पोखरण II) के पीछे सामरिक और सुरक्षा संबंधी चिंताएं थीं. लेकिन, इनके काफ़ी अहम आर्थिक प्रभाव भी देखने को मिले थे. भारत को फ़ौरी तौर पर परीक्षण करने की क़ीमत भी चुकानी पड़ी थी और उनसे देश को दूरगामी लाभ भी मिले थे.

परमाणु परीक्षण करने के बाद भारत पर कई देशों ने आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे. अमेरिका, कनाडा, जापान, जर्मनी और स्वीडन के अलावा कई और देशों ने भी भारत पर पाबंदियां लगाई थीं.

परमाणु परीक्षण करने के बाद भारत पर कई देशों ने आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे. अमेरिका, कनाडा, जापान, जर्मनी और स्वीडन के अलावा कई और देशों ने भी भारत पर पाबंदियां लगाई थीं. इन प्रतिबंधों के चलते भारत में विदेशी निवेश में कमी (देखें चित्र 1) आ गई थी और देश के आर्थिक विकास की दर भी धीमी पड़ गई थी. 1997 की तुलना में भारत की विकास दर काफ़ी कम पड़ गई थी. जिससे भारत में प्रत्यक्ष और पोर्टफोलियो दोनों तरह के निवेश कम हो गए थे. इसके अलावा, मई 1998 के बाद भारत द्वारा बाहरी कारोबारी ऋण प्राप्त करने में भी काफ़ी गिरावट दर्ज की गई थी.

चित्र 1: भारत में विदेशी निवेश, अप्रैल 1997- सितंबर 1998 में (करोड़ अमेरिकी डॉलर में)

Source: Morrow and Carriere (1999); Data from the Centre for Monitoring the Indian Economy (CMIE)

इन प्रतिबंधों ने उच्च तक़नीक तक भारत की पहुंच को भी प्रभावित किया था, क्योंकि बहुत से देश एक परमाणु शक्ति से लैस देश को संवेदनशील तकनीक देने के अनिच्छुक थे. अमेरिका से विदेशी सहायता क़ानून के तहत मिलने वाली मदद रुकने के कारण 1998 में भारत को 5.13 करोड़ डॉलर की मदद नहीं मिल सकी थी. इसमें आर्थिक विकास के लिए 1.2 करोड़ डॉलर और हाउसिंग गारंटी कार्यक्रम के मद में मिलने वाली 90 लाख डॉलर की रक़म शामिल थी. इसके अलावा ग्रीनहाउस गैस कार्यक्रम के लिए मिलने वाले 60 लाख डॉलर और प्रजनन स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए मिलने वाली सहायता भी रोक दी गई थी.

शुरुआती झटकों के बावुजूद भारत कुछ घरेलू उपायों और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की सहायता से इन प्रतिबंधों के आर्थिक असर को कम करने में सफल रहा था. भारत सरकार ने कुछ आर्थिक सुधार कार्यक्रम लागू किए थे. इनमें विदेशी निवेश का उदारीकरण, व्यापारिक बाधाओं में कमी करना और उद्योगों को सरकारी नियंत्रण से आज़ाद करने जैसे क़दम शामिल थे. इसके अलावा भारत ने एक सक्रिय विदेश नीति भी अपनाई और विकासशील देशों से अपना संपर्क बढ़ाने के साथ साथ रूस, चीन और यूरोपीय संघ जैसी बड़ी ताक़तों से भी अपने रिश्ते मज़बूत किए.

परमाणु परीक्षणों ने भारत के रक्षा उद्योग और तकनीकी क्षमताओं पर सीधा असर डाला था. परमाणु हथियारों का सफ़ल परीक्षण करके भारत ने दुनिया को अपनी स्वदेशी तकनीकी क्षमता दिखाई. इससे देश के वैज्ञानिक समुदाय का हौसला बढ़ा और देश की रक्षा तैयारियों को भी मज़बूती मिली. हालांकि, परमाणु कार्यक्रम की भारी क़ीमत और अन्य देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने वित्तीय स्थिति पर काफ़ी बोझ डाल दिया था, जिससे रक्षा क्षेत्र में किया जाने वाला ख़र्च कम करना पड़ा. इसके बाद भी, भारत के एटमी धमाकों ने देश के रक्षाय उद्योग को उत्प्रेरित किया, क्योंकि परमाणु कार्यक्रम के लिए नई तकनीकें और उत्पाद विकसित किए गए. माना जाता है कि आज भारत के पास 150-200 परमाणु बम हैं, जिससे वो दुनिया की बड़ी एटमी ताक़तों में शुमार होता है. इसके अलावा, इन तकनीकों और उत्पादों का असैन्य उपयोग भी हो रहा है, जिससे परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष तकनीक और उच्च प्रदर्शन वाली कंप्यूटिंग को बढ़ावा मिला है.

भारत की बढ़ी हुई रक्षा क्षमताओं ने उसकी आर्थिक कूटनीति के प्रयासों को काफ़ी बढ़ा दिया है. मिसाल के तौर पर, अन्य देशों के साथ भारत के सहयोग में देश का रक्षा उद्योग काफ़ी महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गया है.

पोखरण में एटमी धमाकों ने भारत द्वारा रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने में काफ़ी अहम भूमिका अदा की है. 2014 में भारत ने ‘मेक इन इंडिया’ की पहल शुरू की थी. इसका मुख्य मक़सद अपनी रक्षा क्षमताओं को सुधारना और विदेशी तकनीक पर निर्भरता को कम करना था. इसके नतीजे में भारत सरकार ने रक्षा ख़रीद की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए कई क़दम उठाए हैं और लाइसेंस हासिल करने में लगने वाला वक़्त भी काफ़ी घटा दिया है. इससे विदेशी कंपनियों के लिए भारत में निर्माण की इकाइयां लगाना आसान हो गया है. इससे भारत के रक्षा क्षेत्र में निवेश की कई संभावनाएं पैदा हुई हैं, जिससे भारत को आधुनिक तकनीक हासिल करने के साथ साथ व्यापार और निवेश बढ़ाने में भी मदद मिली है. इसके अलावा, पोखरण परीक्षणों के बाद शुरू किया गया रक्षा क्षेत्र का आधुनिकीकरण भी नई रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है.

‘मेक इन इंडिया’ के तहत भारत सरकार ने रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र को आत्मनिर्भर भारत पहल में प्राथमिकता वाले सेक्टर का दर्जा दिया है. इसमें स्वदेशी निर्माण के मूलभूत ढांचे की स्थापना और रिसर्च एवं विकास के इकोसिस्टम की स्थापना करना शामिल है. इस वक़्त भारत रक्षा क्षेत्र में व्यय के मामले में दुनिया का तीसरा बड़ा देश है. देश की GDP में रक्षा बजट की हिस्सेदारी 2.15 प्रतिशत है. पिछले एक दशक के दौरान (Figre 2 देखें) भारत का रक्षा बजट हर साल नौ प्रतिशत की दर से बढ़ा है. भारत सरकार ने 2025 तक सेवा रक्षा और अंतरिक्ष उद्योग का टर्नओवर 25 अरब डॉलर और इसके उत्पादों और सेवाओं के 5 अरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य रखा है. इसके साथ साथ, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में डिफेंस इंडस्ट्री के दो कॉरिडोर स्थापित किए गए है, और वित्त वर्ष 2022-23 में भारत क रक्षा क्षेत्र का निर्यात अब तक के रिकॉर्ड स्तर यानी दो अरब डॉलर तक पहुंच गया है, जो 2016-17 की तुलना में दस गुना अधिक है.

चित्र 2: भारत का रक्षा बजट, 2010-11 से 2020-21 तक (करोड़ रुपयों में)

[caption id="attachment_122009" align="aligncenter" width="660"] Source: The Times of India[/caption]

भारत की बढ़ी हुई रक्षा क्षमताओं ने उसकी आर्थिक कूटनीति के प्रयासों को काफ़ी बढ़ा दिया है. मिसाल के तौर पर, अन्य देशों के साथ भारत के सहयोग में देश का रक्षा उद्योग काफ़ी महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गया है. आज भारत कई देशों के साथ तकनीक के आदान-प्रदान, साझा उत्पादन और सैन्य हथियारों का मिलकर उत्पाद कर रहा है. उदाहरण के तौर पर, ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइलों के विकास में रूस के साथ भारत की साझेदारी ने भारत के रक्षा उद्योग को काफ़ी मज़बूती दी है और इससे इन मिसाइलों के अन्य देशों के निर्यात और साझा उत्पादन के अवसर भी खुल रहे हैं. अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि 2025 तक भारत और रूस की इस साझा परियोजना को 5 अरब डॉलर तक के ऑर्डर मिल जाएंगे. इसी तरह, अमेरिका के साथ भारत की रक्षा साझेदारी से रक्षा उपकरणों का मिलकर विकास और उत्पादन करने के रास्ते खुले हैं. इससे न केवल भारत को अपने रक्षा क्षेत्र का आधुनिकीकरण करने में मदद मिली है, बल्कि दोनों ही देशों में नए कारोबार और रोज़गार के अवसर पैदा करने में भी सहायता प्राप्त हुई है.

एटमी सेक्टर में भारत की क़ाबिलियत ने संभावित दुश्मनों को दूर रखने का भी काम किया है, जिससे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को भी ताक़त मिली है. इसके अलावा, भारत के परमाणु हथियारों के कार्यक्रम ने उसकी सामरिक हैसियत में भी इज़ाफ़ा किया है, जिससे भारत को अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की हिफ़ाज़त करने में मदद मिली है. जहां मेक इन इंडिया की पहल, आत्मनिर्भरता और अपनी तकनीक विकसित करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, वहीं इसके ज़रिए वो अपने दूरगामी सामरिक और आर्थिक लक्ष्य भी प्राप्त कर रहा है; पोखरण परमाणु परीक्षण की विरासत, वैश्विक मंच पर एक बड़ा खिलाड़ी बनने के लिए भारत की दृढ़ इच्छा को जताता है. आज जब भारत अपनी रक्षा क्षमताओं का आधुनिकीकरण कर रहा है और रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन रहा है, तो आने वाले समय में वो अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करेगा और वैश्विक रक्षा उद्योग का बड़ा खिलाड़ी भी बनेगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.