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भारत को एक पारिवारिक स्वास्थ्य पहचान पत्र (आईडी) के विचार को अपना लेना चाहिए जो कि सभी नागरिकों तक स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े फ़ायदे पहुंचाने में मदद कर सकता है.
2030 तक हर किसी की क़ानूनी रूप से पहचान संयुक्त राष्ट्र (यूएन) सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी 16.9) का एक रणनीतिक उद्देश्य है. क़ानूनी पहचान न केवल सेवाओं और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि एक मौलिक अधिकार भी है. 2021 तक भारत के लगभग 95 प्रतिशत नागरिकों के पास आधार कार्ड था, इस तरह ये दुनिया की सबसे बड़ी पहचान पत्र की परियोजना बन गई है. भारत सरकार ने कुछ समय पहले आयुष्मान भारत हेल्थ अकाउंट (आभा) की शुरुआत की है जो कि नागरिकों के लिए एक विशेष स्वास्थ्य पहचान पत्र है. इसके साथ किसी व्यक्ति के निजी स्वास्थ्य रिकॉर्ड को जोड़ने का प्रावधान है. विशेष स्वास्थ्य पहचान पत्र की धारणा कोई नई चीज़ नहीं है. ऑस्ट्रेलिया, ताइवान, थाईलैंड, दक्षिण कोरिया और केन्या कुछ ऐसे देश हैं जहां इसे लागू किया जा चुका है. लेकिन पारिवारिक स्वास्थ्य पहचान पत्र का आइडिया नया है और ये अभी भी विकसित हो रहा है. दुनिया में कुछ ही देश ऐसे हैं जो इस आइडिया पर काम कर रहे हैं.
विशेष स्वास्थ्य पहचान पत्र की धारणा कोई नई चीज़ नहीं है. ऑस्ट्रेलिया, ताइवान, थाईलैंड, दक्षिण कोरिया और केन्या कुछ ऐसे देश हैं जहां इसे लागू किया जा चुका है. लेकिन पारिवारिक स्वास्थ्य पहचान पत्र का आइडिया नया है और ये अभी भी विकसित हो रहा है. दुनिया में कुछ ही देश ऐसे हैं जो इस आइडिया पर काम कर रहे हैं.
ऐतिहासिक तौर पर देखें तो इस तरह के कार्यक्रमों ने परिवारों/समुदायों से जुड़े सही लाभार्थियों तक लक्षित हस्तांतरण में चुनौतियों का सामना किया है. प्रमाणीकरण और सत्यापन का कोई सिस्टम नहीं होने की वजह से एक सामान्य चुनौती ये बनी रही है कि कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से या तो कोई छूट जाता रहा है या एक ही लाभार्थी का नाम कई बार आ जाता है. ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां एक ही परिवार के लाभार्थियों ने अलग-अलग पहचान पत्रों का इस्तेमाल करके सेवाओं को हासिल किया है, जिसकी वजह से दूसरे लोगों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है. इसका गंभीर असर समाज के कल्याण और विकास पर पड़ता है. एक सर्वव्यापी (यूनिवर्सल) पारिवारिक पहचान पत्र, जिसको एक मज़बूत डाटा और निजता के ढांचे का समर्थन हासिल हो, लाभार्थियों की पहचान को आसान बना सकता है, डाटा की समानता, सत्यापन और दूसरी जगह पर भी सेवाओं को लेना सुनिश्चित कर सकता है. इस तरह असरदायक ढंग से सेवा दी जा सकती है.
भारत के कुछ राज्य पारिवारिक पहचान पत्र की धारणा पर काम कर रहे हैं. कर्नाटक सरकार ने कुटुंब की शुरुआत की है जो कि एक पारिवारिक पहचान पत्र आधारित पात्रता प्रबंधन प्रणाली है. इसी तरह हरियाणा सरकार ने 2019 में परिवार पहचान पत्र की शुरुआत की है जिसका उद्देश्य हरियाणा के सभी परिवारों के लिए प्रमाणिक, सत्यापित और विश्वसनीय डाटाबेस तैयार करना है. पारिवारिक पहचान पत्रों के ये उदाहरण सेवाओं को पहुंचाने के दृष्टिकोण से हैं. लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से एक पारिवारिक पहचान पत्र को बेहद बारीकी से समझने की आवश्यकता है क्योंकि इसके व्यापक परिणाम होते हैं. उदाहरण के लिए, सामाजिक, वित्तीय और स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जय) के तहत परिवार की पात्रता और शामिल होने का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण साबित होगी. इसके परिणामस्वरूप एक यूनिवर्सल पारिवारिक पहचान पत्र, जिसमें सबसे ज़्यादा ज़रूरी जानकारी हो, सरकार की पहल के हिसाब से व्यापक बदलाव वाला होगा.
कर्नाटक सरकार ने कुटुंब की शुरुआत की है जो कि एक पारिवारिक पहचान पत्र आधारित पात्रता प्रबंधन प्रणाली है. इसी तरह हरियाणा सरकार ने 2019 में परिवार पहचान पत्र की शुरुआत की है जिसका उद्देश्य हरियाणा के सभी परिवारों के लिए प्रमाणिक, सत्यापित और विश्वसनीय डाटाबेस तैयार करना है. पारिवारिक पहचान पत्रों के ये उदाहरण सेवाओं को पहुंचाने के दृष्टिकोण से हैं.
किसी व्यक्ति के विकास के लिए परिवार सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थान है क्योंकि परिवार जुड़े होने या जन्म के माध्यम से उस व्यक्ति का लालन-पालन करता है. साथ ही परिवार अपने सदस्यों के विकास के लिए साझा संसाधनों को आपस में बांटता है. किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पारिवारिक स्तर का असर तीन मुख्य स्रोतों से प्राप्त होता है- आनुवंशिकी (जेनेटिक्स), साझा भौतिक परिवेश, और सामाजिक परिवेश. इसके परिणामस्वरूप, पारिवारिक पहचान पत्र में उन पारिवारिक स्तर के विवरणों को हासिल करना महत्वपूर्ण है जिसका किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर असर हो सकता है. उदाहरण के लिए, पारिवारिक इतिहास की वजह से किसी व्यक्ति को विशेष वंशागत स्थायी बीमारियों जैसे कि मधुमेह (डायबिटीज़) और उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) होने की आशंका की आसानी से पहचान हो सकती है.
पारिवारिक पहचान पत्र की धारणा का, ख़ास तौर पर स्वास्थ्य के लिए, कई देशों में अलग-अलग ढंग से पहले से ही प्रयोग चल रहा है. अमेरिका में हेल्थ इंफॉर्मेशन नॉलेजबेस एक विशेष पारिवारिक स्वास्थ्य पहचान पत्र संख्या की देखरेख करता है जो कि प्रत्येक परिवार के सदस्य के विशेष पहचान पत्र से जुड़ी हुई है. पारिवारिक पहचान पत्र का इस्तेमाल मुख्य रूप से डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाई, जिसके लिए इलेक्ट्रॉनिक प्रिसक्रिप्शन जारी किया जाता है, को लेकर परिवारों के डाटा को स्टोर करने के लिए किया जाता है. दूसरी तरफ़ कनाडा के प्रांत मैनिटोबा ने स्वास्थ्य बीमा की सेवा को लोगों तक पहुंचाने का काम आसान बनाने के लिए मैनिटोबा हेल्थ इंश्योरेंस रजिस्ट्री को लागू किया है. इसमें एक पारिवारिक पहचान पत्र का इस्तेमाल किया गया है जिसे REGNO (रजिस्ट्रेशन नंबर) कहा गया है. REGNO नंबर को पहली बार 1966 में एक परिवार के लिए स्वैच्छिक बीमा रजिस्ट्री के तौर पर इस्तेमाल किया गया था, लेकिन इसे संशोधित करके किसी परिवार के वार्ड का सदस्य बनते ही डिफॉल्ट रजिस्ट्रेशन बना दिया गया. लोगों के द्वारा ख़ुद रजिस्ट्री में अपडेट कराने के अलावा मैनिटोबा हेल्थ अपनी इंश्योरेंस रजिस्ट्री को अपडेट करने के लिए दूसरे तरीक़ों का इस्तेमाल भी करती है जैसे कि प्रमुख सांख्यिकी (जन्म और मृत्यु) के आंकड़े, नगरपालिका ऑडिट, और जनसंख्या रिपोर्ट. मैनिटोबा के सिस्टम को मज़बूत डाटा संरक्षण की रूप-रेखा का समर्थन मिलता है जो किसी व्यक्ति के डाटा को उजागर नहीं करता है. मैनिटोबा का सिस्टम किसी निवासी के विवरण को सुरक्षित रखने के लिए कोड और पैटर्न का इस्तेमाल करता है लेकिन समय के साथ एजेंसी को व्यक्तिगत स्तर के जुड़ाव को निर्धारित करने की अनुमति भी देता है.
पारिवारिक पहचान पत्र आसान सेवाओं के अलावा किसी व्यक्ति के लिए संपूर्ण स्वास्थ्य की देखभाल का अनुभव प्रदान करने में बहुत ज़्यादा संभावना पेश करता है. उदाहरण के लिए, उन परिवारों और परिवार के सदस्यों के लिए रोग निरोधी उपाय तैयार करना जिन्हें संक्रामक बीमारी जैसे कि कालाज़ार, टीबी, हेपटाइटिस, इत्यादि होने का जोख़िम है.
पारिवारिक पहचान पत्र आसान सेवाओं के अलावा किसी व्यक्ति के लिए संपूर्ण स्वास्थ्य की देखभाल का अनुभव प्रदान करने में बहुत ज़्यादा संभावना पेश करता है. उदाहरण के लिए, उन परिवारों और परिवार के सदस्यों के लिए रोग निरोधी उपाय तैयार करना जिन्हें संक्रामक बीमारी जैसे कि कालाज़ार, टीबी, हेपटाइटिस, इत्यादि होने का जोख़िम है. ये कोविड-19 जैसी महामारी के दौर में विशेष तौर पर महत्वपूर्ण है जहां पारिवार स्तर के कुल स्वास्थ्य आंकड़ों का इस्तेमाल करके कमज़ोर समूहों (जिन्हें दिल की बीमारी, डायबिटीज़, इत्यादि का ख़तरा है) की पहचान की जा सकती है.
स्वास्थ्य पर आधारित एक पारिवारिक पहचान पत्र जटिल हो सकता है और इसके लिए ज़िम्मेदारी से मज़बूत उपायों की ज़रूरत है. जैसे-जैसे डिजिटल गवर्नेंस के लिए ज़ोर लगाने की रफ़्तार तेज़ हो रही है, वैसे-वैसे नीति-निर्माताओं के लिए बहुत ज़्यादा अवसर बन रहे हैं कि वो कुछ मौलिक विचारों के इर्द-गिर्द सोच सकें और एक समावेशी, नैतिक प्रणाली बना सकें.
शादी, माता-पिता और बच्चों के बीच संबंध, गोद लेना और दूसरे क़ानूनी मान्यता प्राप्त संबध किसी भी परिवार के लिए बुनियाद हैं. लेकिन सरकार अलग-अलग उद्देश्यों के लिए कई तरह की परिभाषाओं का इस्तेमाल करती है. कुटुंब योजना के तहत कर्नाटक सरकार ने परिवार की परिभाषा को लोगों के ऊपर छोड़ दिया है, इसमें शामिल होने के लिए कुछ निर्धारित न्यूनतम कसौटी और शर्तें हैं. इसी तरह जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत भारत की जनगणना में तय ‘कुटंब’ की परिभाषा के आधार पर परिवार को निर्धारित किया जाता है. परिवार की स्थापित परिभाषा की अनुपस्थिति में किसी परिवार की पहचान करने में सभी कार्यक्रमों के दौरान गड़बड़ियां होती हैं. जब बात ख़ास तौर पर स्वास्थ्य की आती है तो ये महत्वपूर्ण है कि परिवार की परिभाषा में सभी तरह के संबंधों को शामिल किया जाए और किसी व्यक्ति के एक जगह से दूसरी जगह जाने के आधार पर बदलते संबंधों का भी ध्यान रखा जाए. इसके अलावा किसी परिवार में बंटवारे, मौत की वजह से किसी सदस्य की कमी, इत्यादि पर भी नज़र हो.
जब बात ख़ास तौर पर स्वास्थ्य की आती है तो ये महत्वपूर्ण है कि परिवार की परिभाषा में सभी तरह के संबंधों को शामिल किया जाए और किसी व्यक्ति के एक जगह से दूसरी जगह जाने के आधार पर बदलते संबंधों का भी ध्यान रखा जाए.
अमेरिका और यूरोप के देशों ने ऐसे नियम-क़ानून बनाये हैं जिनसे डिजिटल हेल्थ के मामले में डाटा की निजता की सुरक्षा होती है जैसे कि हिपा (HIPAA) और ईयू डाटा संरक्षण नियमन जो इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ डाटा समेत व्यक्तिगत डाटा की सुरक्षा के लिए नीतियों और प्रक्रिया की रूप-रेखा के बारे में बताते हैं. भारत में व्यक्तिगत डाटा संरक्षण बिल 2019 और स्वास्थ्य देखभाल में डिजिटल सूचना सुरक्षा अधिनियम 2018 जैसे उपाय हैं लेकिन इन्हें अभी तक क़ानूनी रूप से पारित नहीं किया गया है. बड़े पैमाने पर पहचान का अभियान शुरू करने से पहले डाटा संरक्षण के मामले में एक मज़बूत क़ानूनी और नियामक रूप-रेखा अनिवार्य है. इस रूप-रेखा को डाटा जमा करने एवं उसे साझा करने, डाटाबेस के भंडारण एवं सुरक्षा, व्यक्तिगत मंज़ूरी एवं नियंत्रण की व्यवस्था, और पहचान व्यक्त नहीं करने के लिए नियमों पर ज़ोर देने की आवश्यकता है. एक व्यापक डाटा संरक्षण व्यवस्था की अनुपस्थिति में निजता भंग होने और डाटा के दुरुपयोग का ख़तरा भरोसा कम कर सकता है, एक व्यक्ति की संप्रभुता को जोखिम में डाल सकता है और कमज़ोर लोगों को ख़तरे में डाल सकता है.
सेंटर फॉर डिजीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार परिवार के स्वास्थ्य का विवरण किसी परिवार में स्वास्थ्य की स्थिति का एक रिकॉर्ड है. रिश्तेदारों के बीच बीमारी के पैटर्न को ध्यान से देखकर स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े लोग इस बात की पहचान कर सकते हैं कि किसी व्यक्ति, परिवार के सदस्य, या आने वाली पीढ़ी के लोगों पर कोई ख़ास बीमारी होने का ख़तरा ज़्यादा है या नहीं. पारिवारिक स्वास्थ्य के रिकॉर्ड को पारिवारिक पहचान पत्र से जोड़ा जा सकता है. इस पारिवारिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड में टाइप 2 डायबिटीज़, कैंसर, इत्यादि जैसी बीमारियों की पहचान के लिए परिवार के सदस्यों की कुछ आनुवंशिक बीमारियों के डाटा को रखा जाएगा और उनसे बचाव के लिए देखभाल की जाएगी. डाटा और निजता की चिंताओं, ख़ास तौर पर परिवार के सदस्यों के बीच डाटा के आदान-प्रदान की चिंता, का व्यवस्थित ढंग से समाधान करना होगा.
ये हो सकता है कि डिजिटल सभी चुनौतियों का समाधान नहीं हो लेकिन अच्छी तरह तैयार, नैतिक शासन व्यवस्था की रूप-रेखा स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े हस्तक्षेप के लाभों को बढ़ा सकती है और इस प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव कर सकती है.
महामारी ने ये दिखाया है कि डिजिटल स्वास्थ्य समाधान से सेवाओं की गुणवत्ता और सेवाओं तक पहुंच बढ़ सकती है. ये हो सकता है कि डिजिटल सभी चुनौतियों का समाधान नहीं हो लेकिन अच्छी तरह तैयार, नैतिक शासन व्यवस्था की रूप-रेखा स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े हस्तक्षेप के लाभों को बढ़ा सकती है और इस प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव कर सकती है. पारिवारिक पहचान पत्र का आइडिया नया नहीं है लेकिन एकीकृत डिजिटल मिशन की इच्छा के साथ भारत ऐसी स्थिति में है कि वो ज़्यादा संपूर्ण, नैतिक प्रणाली के मार्ग का नेतृत्व करे.
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Surbhi is a development professional with experience across water sanitation education and digital health. Currently she is working as a Project Lead with theInternational Innovation ...
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Tanya Sinha is a Project Associate at the International Innovation Corps currently working in the digital health space. She is a development professional whose interests ...
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