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Published on Jun 24, 2023 Updated 0 Hours ago

प्रधानमंत्री मोदी का अमेरिका दौरा, भारत के साथ अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों की बुनियाद को मज़बूत करने के साथ साथ, तमाम क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के दरवाज़े खोलने वाला है.

एक दूसरे की आर्थिक क्षमताओं का इस्तेमाल: प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे का दोनों देशों के आर्थिक संबंधों पर क्या असर पड़ेगा?

पिछले दो वर्षों के दौरान, भारत और अमेरिका के व्यापारिक संबंधों ने काफ़ी रफ़्तार पकड़ी है. अब इसके पीछे कोविड-19 महामारी का हाथ था या नहीं, इस बात पर बहस हो सकती है. लेकिन, तरक़्क़ी का ये दौर महामारी के असर से उबरती हुई दुनिया के साथ साथ चला है. वित्त वर्ष 2021-22 से अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार बन गया है. उसने कुल व्यापार मूल्य के मामले में चीन और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) जैसे भारत के पारंपरिक व्यापारिक साझीदारों को पीछे छोड़ दिया है. वित्त वर्ष 2020-21 में भारत और अमेरिका के बीच 80.51 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था, जो वित्त वर्ष 2021-22 में बढ़कर 1195 अरब डॉलर पहुंच गया. यानी एक साल में दोनों देशों के आपसी व्यापार में 48.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के मोटे अनुमान के मुताबिक़, वित्त वर्ष 2022-23 में भी दोनों देशों के व्यापार में बढ़ोत्तरी की ये रफ़्तार बनी रही है और इसमें 7.65 फ़ीसद की बढ़ोत्तरी हुई है. भारत जिन गिने चुने बड़े देशों के साथ सरप्लस व्यापार (आयात से ज़्यादा निर्यात) करता है, उनमें अमेरिका के साथ उसका सरप्लस सबसे ज़्यादा है.

चित्र 1: वित्त वर्ष 2021-22 में भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझीदार (अरब डॉलर में)

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इस तरह निर्यात, आयात और ट्रेड सरप्लस के मामले में अमेरिका के साथ भारत का सामानों का व्यापार, लगातार हर क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है, जिसे हम चित्र 2 में स्पष्ट रूप से देख सकते हैं.

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इसके अलावा, वित्त वर्ष 202-21 के दौरान, भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी 81.72 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. इस दौरान 17.94 अरब डॉलर के योगदान के साथ अमेरिका, भारत में दूसरा सबसे बड़ा FDI निवेशक बनकर उभरा है. यहां इस बात पर ध्यान देना दिलचस्प होगा कि ये सारी उपलब्धियां उस वक़्त हो रही हैं, जब China+1 (C+1) रणनीति के उभार के साथ, वैश्विक व्यापार के मंज़र में बहुत बड़े बदलाव हो रहे हैं. आज जब कारोबारी अपने निर्माण और उत्पादन के स्रोत के लिए विविधता लाते हुए चीन पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता को कम कर रहे हैं, तो C+1 की रणनीति में उनकी दिलचस्पी बढ़ती जा रही है. इस नज़रिए के तहत, चीन के अलावा भारत जैसे देशों में उत्पादन के वैकल्पिक केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं, जिससे चीन पर बहुत अधिक केंद्रित आपूर्ति श्रृंखलों के जोखिमों को कम करने के साथ साथ, नए और उभरते हुए बाज़ारों तक पहुंच के रास्ते बनाए जा सकें.

चीन+1 का माहौल और भारत-अमेरिका के व्यापार के लिए संभावनाएं

भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक संबंध ऐसे वक़्त में गहरे हो रहे हैं, जब वैश्विक बाज़ार अपने उत्पादन केंद्रों को चीन से हटाकर, उसके आस-पास के दूसरे उभरते बाज़ारों में ले जाने की कोशिश कर रहे हैं. इन दोनों बातों का मेल इस बात का स्पष्ट इशारा देता है कि C+1 रणनीति ने भारत के लिए कितने अच्छे अवसर उपलब्ध कराए हैं. अपने ग्राहकों के विशाल बाज़ार, हुनरमंदर कामगारों और निवेशक के लिए मुफ़ीद नीतियों के कारण भारत, निर्माण और सेवा के क्षेत्रों में विदेशी निवेशकों के लिए एक आकर्षक विकल्प के तौर पर उभरा है. इससे, अमेरिका जैसे बड़े साझीदारों के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों को और भी मज़बूती मिलेगी.

अमेरिका, भारत के सर्विसेज़ के निर्यात का एक बड़ा बाज़ार रहा है. और अब C+1 रणनीति के उभरते हुए माहौल से इन व्यापारिक अवसरों को और भी बढ़ावा मिलेगा. 

C+1 की रणनीति से भारत और अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों को बहुत बड़ा फ़ायदा होने वाला है. उत्पादन की सुविधाओं और आपूर्ति श्रृंखलाओं को भारत स्थानांतरित करने में दोनों ही देशों के लिए संभावनाओं के अभूतपूर्व अवसर दिखते हैं. मीडिया की ख़बरों के मुताबिक़, अपने विदेशी मिशनों के माध्यम से सरकार ने क़रीब 1000 ऐसी अमेरिकी कंपनियों से संपर्क साधा है, जो अपना निर्माण केंद्र चीन से हटाना चाहते हैं. भारत, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा उद्योग और ऑटोमोटिव जैसे तमाम क्षेत्रों में अपनी क्षमताओं का इस्तेमाल उन अमेरिकी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए कर सकता है, जो अपना कारोबार चीन से हटाकर कहीं और ले जाना चाहते हैं. इसके साथ साथ, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी भारत की महत्वाकांक्षी परियोजनाएं, अमेरिका के घरेलू उत्पादन और निर्माण को मज़बूती देने की कोशिशों से मेल खाती हैं. इनसे दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग के लिए एक मज़बूत बुनियाद मिलेगी.

इसके अलावा, अमेरिका और भारत के बीच ये तालमेल वस्तुओं के व्यापार से भी आगे जाता है. IT आउटसोर्सिंग, सॉफ्टवेयर डेवेलपमेंट और बिज़नेस प्रॉसेस मैनेजमेंट जैसी सेवाएं, भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय व्यापार का अभिन्न अंग रही हैं. अमेरिका, भारत के सर्विसेज़ के निर्यात का एक बड़ा बाज़ार रहा है. और अब C+1 रणनीति के उभरते हुए माहौल से इन व्यापारिक अवसरों को और भी बढ़ावा मिलेगा. एक दूसरे की पूरक शक्तियों और इनोवेशन पर ध्यान केंद्रित करने के साझा प्रयासों के ज़रिए, भारत और और अमेरिका सेवा क्षेत्र में भी और नज़दीकी संबंध क़ायम कर सकते हैं, जिससे दोनों ही देशों में प्रगति और नौकरियों में बढ़ोत्तरी के नए अवसर पैदा होंगे.

भारत और अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों का विस्तार भविष्य के लिए काफ़ी संभावनाओं से भरा है. आज जब अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार बनकर उभर रहा है, तो दोनों देशों के आर्थिक संबंध और मज़बूत होने तय हैं. चीन+1 के मंज़र की वजह से जो अवसर पैदा हुए हैं, उनके साथ साथ तमाम क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग मिलकर, दोनों ही देशों के लिए लाभकारी व्यापारिक संबंधों की आधारशिला रखेंगे.

प्रधानमंत्री के दौरे का एक और अहम पहलू नवीनीकरण योग्य ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग का है. भारत और अमेरिका दोनों ही जलवायु परिवर्तन से निपटने और टिकाऊ भविष्य केक लिए ज़रूरी बदलाव लाने को प्राथमिकता देने की अहमियत समझते हैं.

हालांकि, विकास की इस गति को टिकाऊ बनाने के लिए कुछ चुनौतियों का समाधान खोजना होगा. व्यापार में बाधाएं, बौद्धिक संपदा के अधिकार, नियमों में तालमेल और बाज़ार तक पहुंच जैसे मुद्दों का समाधान सकारात्मक वार्ताओं और संवाद के ज़रिए निकाला जाना चाहिए. एक संतुलित और निष्पक्ष व्यापारिक माहौल से भरोसा और विश्वास जगेगा, जिससे कारोबार जगत उपलप्ध अवसरों का लाभ उठा सकेगा.

भारत अमेरिका के बीच व्यापार को मज़बूत बनाना: प्रधानमंत्री मोदी का अमेरिका दौरा

इन परिस्थितियों में प्रधानमंत्री मोदी का मौजूदा अमेरिका दौरा, भारत और अमेरिका के व्यापारिक संबंधों के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है. ये दौरा मौजूदा साझेदारियों को मज़बूत बनाने और सहयोग के नए अवसरों की स्थापना के लिए एक मंच का काम करने वाला है. प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी नेताओं के बीच बातचीत में तक़नीकी सहयोग, स्वास्थ्य, शिक्षा, रक्षा संबंध और नवीनीकरण योग्य ऊर्जा जैसे मुख्य क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किए जाने की उम्मीद है.

तक़नीकी क्षेत्र में, भारत और अमेरिका में खूब फल-फूल रहा तक़नीकी इकोसिस्टम है, और दोनों ही देश इनोवेशन के मामले में अगुवा हैं. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI), साइबर सुरक्षा और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों में सहयोग से इस साझेदारी को और भी मज़बूत बनाया जा सकता है. इससे साझा अनुसंधान एवं विकास की गतिविधियां, तकनीक का लेन-देन और निवेश के प्रवाह और मुक़ाबला कर पाने की क्षमता में वृद्धि हो सकती है. तक़नीकी क्षेत्र के इन आविष्कारों और ख़ूब तरक़्क़ी कर रहे डिजिटल इकॉनमी के क्षेत्र का लाभ उठाया जा सकता है. इसके अलावा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में (सस्ती स्वास्थ्य सेवा और दवाओं के मामले में) और शिक्षा (दोनों देशों के शिक्षण संस्थानों के बीच आपस में और रिसर्च के काम में) भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक सहयोग के सेक्टर में भी काफ़ी सहयोग बढ़ सकता है.

रक्षा सहयोग, भारत और अमेरिका के रिश्तों का आधार रहा है. दोनों देशों के बीच रक्षा व्यापार में काफ़ी वृद्धि होती देखी जा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दौरा, रक्षा संबंधों को और गहरा बनाने का अवसर प्रदान करता है. इसमें रक्षा उपकरणों की ख़रीद, साझा युद्ध अभ्यास और तकनीक का लेन-देन शामिल है. भारत और अमेरिका के बीच 31 प्रीडेटर ड्रोन ख़रीद का समझौता होने की संभावना है- ऐसे सहयोग न केवल रक्षा क्षमताओं में इज़ाफ़ा करते हैं, बल्कि साझा उद्यमों और दूसरे तरीक़ों से आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देते हैं. 

प्रधानमंत्री के दौरे का एक और अहम पहलू नवीनीकरण योग्य ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग का है. भारत और अमेरिका दोनों ही जलवायु परिवर्तन से निपटने और टिकाऊ भविष्य केक लिए ज़रूरी बदलाव लाने को प्राथमिकता देने की अहमियत समझते हैं. नवीनीकरण योग्य ऊर्जा क्षेत्र में अनुसंधान, विकास, मिलकर उत्पादन और उनके इस्तेमाल के क्षेत्र में साझा प्रयास, काफ़ी कारोबारी अवसर पैदा कर सकते हैं और पर्यावरण के साझा लक्ष्य प्राप्त करने में मददगार साबित हो सकते हैं. हरित परिवर्तन को आगे बढ़ाने के लिए, स्वच्छ ईंधन की परियोजनाओं में निवेश, तकनीक का आदान-प्रदान और ज्ञान को साझा करने जैसे क़दम उठाए जा सकते हैं.

निश्चित रूप से भारत और अमेरिका दोनों ही देशों के लिए भू-राजनीतिक और आर्थिक नज़रिए से टकराव का स्रोत चीन ही है. लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी का अमेरिका दौरान इस बात को मज़बूती देने वाला है कि द्विपक्षीय संवाद के साथ साथ बहुपक्षीय मंचों पर बातचीत के भी दोनों देशों के लिए फ़ायदेमंद नतीजे निकलने आवश्यक हैं. एक तरफ़ तो भारत के निर्यात को अमेरिका की शक्ल में एक तैयार बाज़ार मिलता है, जो मोटे तौर पर ‘खपत वाली अर्थव्यवस्था’ (यानी ऐसी अर्थव्यवस्था जिसकी ख़रीदने की क्षमता और खपत करने की क्षमता और आदत बहुत अधिक हो) है. वहीं दूसरी ओर, अमेरिका की अर्थव्यवस्था को भारत में सस्ती मज़दूरी और प्रचुर मात्रा में खपाने के लिए बाज़ार उपलब्ध होता है, जिसमें काफ़ी संभावनाएं हैं. भारत की आबादी वाली बढ़त सस्ते हुनरमंद कामगारों की शक्ल में दिखती है, जहां मज़दूरी की लागत चीन की तुलना में केवल दस प्रतिशत है. वहीं दूसरी तरफ़, भारत के भौतिक मूलभूत ढांचे में पिछले कुछ वर्षों के दौरान किए गए बड़े पैमाने पर बदलाव ने कारोबार करने की लागत को काफ़ी कम कर दिया है.

बाइडेन प्रशासन द्वारा की गई आर्थिक पहल हिंद प्रशांत आर्थिक फोरम (IPEF) में भारत समेत 14 संस्थापक देश शामिल हैं. अगर इस मंच को एक क्षेत्रीय व्यापार समझौते की रूप-रेखा में बदला जा सके, तो ये मंच भारत के लिए एक बड़ा मौक़ा उपलब्ध कराता है.

बाइडेन प्रशासन द्वारा की गई आर्थिक पहल हिंद प्रशांत आर्थिक फोरम (IPEF) में भारत समेत 14 संस्थापक देश शामिल हैं. अगर इस मंच को एक क्षेत्रीय व्यापार समझौते की रूप-रेखा में बदला जा सके, तो ये मंच भारत के लिए एक बड़ा मौक़ा उपलब्ध कराता है. इसके दो कारण हैं: पहला, इस मंच में चीन शामिल नहीं है तो ये चीन से मुक्त क्षेत्रीय व्यापार समझौता होगा; दूसरा, अगर ये लागू हो जाता है, तो इससे भारत के उस नुक़सान की भरपाई हो जाएगी, जो उसके रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकॉनमिक पार्टनरशिप (RCEP) से अलग होने की वजह से हुआ था. RCEP के बारे में अक्सर ये कहा जाता है कि इससे अपने MSME सेक्टर को नए बाज़ारों तक पहुंच बनाने देने का मौक़ा भारत के हाथ से निकल गया.

हमने इस लेख में जिन विषयों की चर्चा की, उससे व्यापार और निवेश के रूप में अमेरिका और भारत के बीच एक दूसरे के आर्थिक पूरक की भूमिका साफ़ तौर पर नज़र आती है. चीन+1 के माहौल की वजह से जो अवसर पैदा हुए हैं, उनका लाभ उठाते हुए और संतुलित एवं निरपेक्ष व्यापारिक माहौल को पोषित करके, दोनों देश एक ताक़तवर साझेदारी विकसित कर सकते हैं, जिससे आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी और उनके व्यापक सामरिक हितों को भी मज़बूती मिलेगी. प्रधानमंत्री मोदी के दौरे के साथ ही भारत और अमेरिका के रिश्तों का नया अध्याय शुरू हुआ है. अब दो बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच ख़ूब फलते फूलते व्यापारिक संबंध का माहौल बिल्कुल तैयार है. 

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Authors

Debosmita Sarkar

Debosmita Sarkar

Debosmita Sarkar is an Associate Fellow with the SDGs and Inclusive Growth programme at the Centre for New Economic Diplomacy at Observer Research Foundation, India. Her ...

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Nilanjan Ghosh

Nilanjan Ghosh

Dr Nilanjan Ghosh is Vice President – Development Studies at the Observer Research Foundation (ORF) in India, and is also in charge of the Foundation’s ...

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