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सऊदी अरब व चीन के अतिरिक्त मालदीव ने भारत की ओर भी अपना झुकाव दिखया है, आर्थिक कूटनीति की इन परतों के पीछे क्या है।
आर्थिक कूटनीति के मोर्चे पर आक्रामक रुख अपनाते हुए राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने चीन की सहायता से माले अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे में दूसरे रनवे (विमान पट्टी) के निर्माण कार्य की नींव रखने के दौरान सऊदी अरब के साथ 10 अरब डॉलर का भारी-भरकम समझौता भी किया है। वहीं, मालदीव सरकार ने इससे भी पहले दिसंबर में हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में अपनी समुद्री सीमा के निकट अवस्थित भारत के साथ 100 मिलियन डॉलर का ‘मुद्रा अदला-बदली’ समझौता किया था, ताकि निकट भविष्य में किसी भी संभावित विदेशी मुद्रा संकट के असर को कम किया जा सके।
सऊदी अरब के साथ समझौता ‘फ्रेंच रिवेरिया’ की तर्ज पर ‘फाफू प्रवाल द्वीप (अटॉल)’ पर अनगिनत विकास के उद्देश्य से किया गया है और इस पर मार्च में शाह सलमान की यात्रा के दौरान हस्ताक्षर होने की उम्मीद है। मालदीव के किसी क्षेत्र की बिक्री किए जाने की संभावना, जैसा कि आरोप विपक्षी एमडीपी ने लगाया है, से साफ इनकार करते हुए यामीन ने कहा, “यदि इसके परिणाम सकारात्मक रहे तो ‘फाफू प्रवाल द्वीप’ पर कुछ ऐसा खास नजर आएगा जो किसी भी अन्य चीज की तुलना में मालदीव को दुनिया के मानचित्र पर और भी ज्यादा साहसिक ढंग से प्रस्तुत करेगा।”
फाफू परियोजना पर काम एसईजेड कानून के तहत शुरू किया जाएगा और यह ‘फ्रेंच रिवेरिया की मिश्रित विकास परियोजनाओं’ के समान ही होगा, जो फ्रांस के भूमध्यसागरीय तटीय क्षेत्र में अवस्थित है और जिसमें बेहद छोटा सा देश मोनाको भी शामिल है। इस परियोजना में “अंतरराष्ट्रीय समुद्री खेल, मिश्रित विकास, आवासीय उच्चस्तरीय विकास, कई पर्यटक रिजॉर्ट, तरह-तरह के अनगिनत हवाई अड्डे’ और अन्य उद्योग शामिल होंगे।” यह जानकारी मालदीव्स इंडिपेंडेंट ने यामीन के हवाले से दी है।
वेब जर्नल ने यामीन के हवाले से कहा है कि “परियोजना का ठेका विशेष आर्थिक जोन (एसईजेड) से जुड़ी नीति के अंतर्गत दिया जाएगा, जिसमें व्यापक निवेश करने पर नियामकीय एवं कर प्रोत्साहन देने की पेशकश की गई है।” लंबी अवधि वाले पट्टे (लीज) के मौजूदा चलन से अलग हटकर संसद ने वर्ष 2015 में यानी यामीन के सत्ता में आने के दो साल बाद एक विशेष कानून पारित किया, जिसमें 1 अरब डॉलर से ज्यादा के विदेशी निवेश के लिए फ्रीहोल्ड की सुविधा दी गई है। इस संदर्भ में यामीन ने घोषणा करते हुए कहा, “इन परियोजनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं मिलने पर किसी को भी, विशेष रूप से वरिष्ठ राजनेताओं को चिंतित नहीं होना चाहिए।”
यह सऊदी अरब के शाह के रूप में सलमान की पहली यात्रा है और युवराज (क्राउन प्रिंस) के रूप में कुछ समय पहले किए गए आधिकारिक दौरे के बाद उनकी दूसरी यात्रा है। सऊदी अरब के मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक, वर्तमान यात्रा के दौरान वह इंडोनेशिया, मलेशिया एवं जापान के साथ-साथ नि:संदेह चीन की भी यात्रा करेंगे जिसका उद्देश्य निवेश को बढ़ावा देना है। जैसा कि ज्ञात है, यामीन के अधीन मालदीव दो अप्रत्याशित क्षेत्रीय शक्तियों से अपनी निकटता बढ़ाता रहा है। इनमें से एक सऊदी अरब है, जो इस्लामी शक्ति का गढ़ है और दूसरा संशयवादी कम्युनिस्ट चीन है।
यह भी पहली बार नहीं है कि मालदीव ने समस्त प्रवाल द्वीपों के लिए फ्रीहोल्ड या लंबी अवधि वाले पट्टे पर विचार किया है। जब एमडीपी के राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद सत्ता में थे (2008-2012), तो चीन की ओर से इस आशय का प्रस्ताव आया था। सिद्धांत रूप में, नशीद सरकार इससे सहमत नहीं थी, लेकिन फरवरी 2012 में राष्ट्रपति पद से तय समय से पहले ही उनके हट जाने के परिणामस्वरूप यह सब खत्म हो गया।
बताया जाता है कि पड़ोस में सुरक्षा को लेकर भारत की अपेक्षित चिंताएं भी नशीद सरकार द्वारा चीन के प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ाने के मुख्य कारणों में शामिल थीं। क्या इसका मतलब यही है कि चीन के बजाय सऊदी अरब को यह कार्य सौंपना भारत के साथ-साथ संभवतः अन्य पड़ोसी श्रीलंका की ओर से भी किसी स्पष्ट आलोचना का मुंह बंद करने का यामीन का तरीका है? सऊदी अरब के प्रवेश की आलोचना करते हुए एमडीपी ने विशेष रूप से भारत को आगाह करते हुए कहा है कि इससे पूरे क्षेत्र में काफी आसानी से अर्थात वहाबी विचारधारा का प्रचार-प्रसार किए जाने का खतरा है।
शाह सलमान के दौरे से ठीक पहले यामीन ने माले अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे में 400 मिलियन डॉलर के दूसरे रनवे पर काम का शुभारंभ भी कर दिया। यामीन की सरकार द्वारा भारत के प्रमुख बुनियादी ढांचागत ग्रुप जीएमआर को वर्ष 2010 के निर्माण-सह-रियायती अनुबंध को रद्द करने के एवज में 140 मिलियन डॉलर के मुआवजे का भुगतान करने के बाद ही यह कार्य शुरू किया गया। जीएमआर ग्रुप दूसरे रनवे का निर्माण करने के भी खिलाफ था। यामीन ने अब कहा है कि जीएमआर अनुबंध के विपरीत, जिसके तहत मालदीव का पैसा एक विदेशी निवेशक को दिया गया था, उनकी सरकार अब “मालदीव लोगों के लाभ के लिए नई पूंजी बनाने” पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
जैसा कि ज्ञात है, चीन पहले से ही मालदीव के पहले बड़े समुद्र-पुल का वित्तपोषण एवं निर्माण कर रहा है, जो राजधानी माले को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा द्वीप हुलुले से जोड़ेगा। स्थानीय मीडिया ने चीन के राजदूत वांग फुकांग के हवाले से कहा है कि उनका देश समुद्र-पुल परियोजना को एक वाणिज्यिक उद्यम के बजाय एक सामाजिक सेवा के रूप में देखता है। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देश उन अन्य परियोजनाओं पर भी काम शुरू करेंगे जिन पर वर्ष 2014 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मालदीव यात्रा के दौरान सहमति जताई गई थी।
विडंबना यह है कि जीएमआर को 140 मिलियन डॉलर का भुगतान करते समय यामीन प्रशासन ने मुद्रा अदला-बदली सुविधा के रूप में भारत से 100 मिलियन डॉलर प्राप्त कर लिए थे। व्यावहारिक दृष्टि से तकनीकी विवरण के अलावा, इसका अर्थ यह हो सकता है कि मालदीव ने एक भारतीय ऋणदाता को भुगतान करने के लिए भारत से ऋण या ऋण रेखा प्राप्त कर ली। उधर, वैकल्पिक रूप से यह तर्क दिया जा सकता है कि ऋणदाताओं को भुगतान करने के लिए मालदीव को भारतीय या किसी और से पैसे उधार लेने की जरूरत थी और ऐसे में सऊदी अरब/चीन से एफडीआई की प्राप्ति बेहतर आर्थिक समझदारी प्रतीत हुई, चाहे संप्रभुता और क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर इसका कुछ भी असर क्यों न पड़ता हो।
इससे पहले दोनों देशों के बीच कुछ इसी तरह का मुद्रा लेन-देन तब हुआ था जब जीएमआर विवाद अपने चरम पर पहुंच गया था और मालदीव ने बकाया ऋण के मद में सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय स्टेट बैंक को 50 मिलियन डॉलर का भुगतान किया था। लगभग उसी समय मालदीव में भारतीय प्रवासी कामगारों की समस्याएं और उत्पीड़न भी द्विपक्षीय कूटनीति के तहत एक अहम मुद्दा बन गया था। इसी तरह नशीद के सत्ता से हटते ही प्रवाल द्वीपों (अटॉल) वाले देश में घरेलू राजनीतिक समस्याएं भी शुरू हो गई थीं।
आर्थिक कूटनीति के मोर्चे पर वर्तमान घटनाक्रमों के साथ-साथ यामीन के मालदीव ने सिविल सेवा अधिकारियों को प्रशिक्षण और कौशल-उन्नयन के लिए पाकिस्तान भेजा है। इससे पहले, मालदीव ने ब्रिटेन की ओर से सुरक्षा कर्मियों के लिए आतंकवाद रोधी प्रशिक्षण को स्वीकार कर लिया था। इसी तरह फरवरी 2017 में मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल (एमएनडीएफ) ने अमेरिकी प्रशांत कमान के कर्मियों से माले में जीवन रक्षक आपातकालीन चिकित्सा प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
उसी दौरान जिनेवा में यूएनएचआरसी के सत्र में मालदीव के विदेश मंत्री मोहम्मद असीम ने इजरायल को फिलिस्तीन क्षेत्र से हटने को कहा। यह मांग यामीन के नेतृत्व में सरकार की सख्त नीति के अनुरूप थी। इससे पहले नशीद के नेतृत्व में मालदीव ने बीच का रास्ता अपनाने की कोशिश की थी। हालांकि, यह हमेशा सफल नहीं रही।
विदेश में यामीन की आर्थिक कूटनीति, जो उनकी विदेश नीति के केंद्र में थी और जिसे उन्होंने राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के महज दो माह बाद ही जनवरी 2014 में राष्ट्रपति के रूप में पेश किया था, कुछ हद तक संपर्क बढ़ाने और कुछ हद तक प्रतिरोध व्यक्त करने की रही है। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत सार्वजनिक रूप से अथवा सभी हितधारकों के साथ निजी बातचीत में उसकी मौजूदा रणनीति और युक्तियों पर कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है।
अपने देश में एवं उसके इर्द-गिर्द यामीन का राजनीतिक एजेंडा अत्यधिक विकास से प्रेरित या चालित प्रतीत होता है, जैसा कि उनके विरक्त सौतेले भाई और पूर्ववर्ती मौमून अब्दुल गयूम का एजेंडा था। उनके खेमे ने यह आशा व्यक्त की है और यह निष्कर्ष निकाला है कि अकेले इसी की बदौलत नवंबर, 2018 में फिर से उनका निर्वाचन सुनिश्चित हो जाएगा। इस बारे में और ज्यादा साफ तस्वीर राष्ट्रव्यापी स्थानीय परिषद चुनावों में उभर कर सामने आ सकती है, जिनका समय बदल कर अब अप्रैल 2017 कर दिया गया है।
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N. Sathiya Moorthy is a policy analyst and commentator based in Chennai.
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