पिछले दशक के दौरान मुक्त व्यापार को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. यह आलोचना काफी हद तक इसकी सामाजिक-आर्थिक समानता देने में असमर्थता के कारण हुई. इस व्यापार की आलोचना, मज़दूरी पाने वालों द्वारा झेले गए आर्थिक नुकसान के लिए की गई क्योंकि इसने औद्योगिक उत्पादन को नए स्थानों पर ले जाने के लिए बढ़ावा दिया था. अमीरों के धन में बढ़ोतरी करने के लिए भी इसकी आलोचना समान रूप से की गई, ख़ास कर ऐसे लोग जो पूंजी और ज्ञान के मालिक रहे और जो वैश्विक उत्पादन का प्रबंधन किया करते हैं. वैश्विक व्यापार और आर्थिक उदारीकरण की स्याह हक़ीकत तब और ज़्यादा दुनिया के सामने आई जब विश्व भर में कोरोना महामारी ने तबाही मचाई, जब सरकारों द्वारा लोगों की आसान आवाजाही को संक्रमण का सबसे बड़ा स्रोत माना गया.
विश्व व्यापार को अपनी गिरती हुई साख को बचाने और उदार पहचान अख़्तियार करने की ज़रूरत है. इस ज़रूरत ने कारोबारी नीति निर्माताओं को उन अवधारणाओं को इज़ाद करने के लिए मज़बूर किया है जो स्पष्ट तौर पर जनकल्याणकारी हों और ग्रीन ट्रेड का विकास इसी एज़ेंडे को हासिल करने की कोशिश है.
विश्व व्यापार को अपनी गिरती हुई साख को बचाने और उदार पहचान अख़्तियार करने की ज़रूरत है. इस ज़रूरत ने कारोबारी नीति निर्माताओं को उन अवधारणाओं को इज़ाद करने के लिए मज़बूर किया है जो स्पष्ट तौर पर जनकल्याणकारी हों और ग्रीन ट्रेड का विकास इसी एज़ेंडे को हासिल करने की कोशिश है. साल 2022 में वैश्विक पर्यावरण के लक्ष्यों के साथ व्यापारिक नीतियों को मिलाकर आगे बढ़ना सभी मुल्कों की प्राथमिकता होगी. टिकाऊ विकास के लिए वैश्विक और क्षेत्रीय कारोबारी नीतियों को विकसित करने में काफी ऊर्जा और संसाधन का इस्तेमाल किया जाएगा, जिसमें कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को कम करना और साफ तथा पर्यावरण के नज़दीक तकनीक को बढ़ावा देना शामिल होगा.
बहुपक्षीय कोशिशें
अगर कोरोना महामारी में तेजी आने की वजह से 30 नवंबर 2021 को होने वाले विश्व व्यापार संगठन की 12 वें मंत्री स्तर का सम्मेलन (एमसी 12) रद्द नहीं होता तो दुनिया के सामने क्लाइमेट चेंज की समस्या से सामना करने के लिए एक बहुआयामी परियोजना अभी तक सामने होती. इस तरह की परियोजना को बढ़ावा देना निहायत ज़रूरी था, ख़ासकर तब जबकि 2021 में शिखर सम्मेलनों के दौरान G7 और G20 समूहों द्वारा पर्यावरण के अनुकूल व्यापार को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर लगातार जोर दिया गया था. पर्यावरण के हिसाब से व्यापार नतीजे दें इसकी ज़रूरत तब और आन पड़ी जब कॉप 26 सम्मेलन के स्पष्ट परिणाम दुनिया के सामने आए.
ग्रीन एज़ेंडा के जरिए व्यापार के परिणाम पर्यावरण के मुताबिक सामने आएं इसमें अभी काफी वक्त लगेगा क्योंकि इस अवधारणा को ही अभी तोड़ने में काफी वक़्त लग सकता है कि यह आर्थिक और सामाजिक समानता को प्रभावित करता है.
इस तरह की परियोजना को बढ़ावा देना निहायत ज़रूरी था, ख़ासकर तब जबकि 2021 में शिखर सम्मेलनों के दौरान G7 और G20 समूहों द्वारा पर्यावरण के अनुकूल व्यापार को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर लगातार जोर दिया गया था. पर्यावरण के हिसाब से व्यापार नतीजे दें इसकी ज़रूरत तब और आन पड़ी जब कॉप 26 सम्मेलन के स्पष्ट परिणाम दुनिया के सामने आए.
एमसी 12 के लगातार अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होने और जलवायु के अनुकूल वैश्विक व्यापार एजेंडा को तैयार करने का मौका खो देने के बाद भी – विश्व व्यापार संगठन – वैश्विक हरित व्यापार के लिए प्रतिबद्ध है. यह सदस्यों के बीच होने वाले विचार-विमर्श को बढ़ावा देकर बहुपक्षीय व्यापार के मूल में पर्यावरण के मुद्दे को शामिल करने की कोशिशों से साफ है और साथ ही प्लास्टिक प्रदूषण, जीवाश्म ईंधन सब्सिडी, और स्थिरता की बहुपक्षीय पहलों पर आधारित है.
कॉप 26 द्वारा प्राप्त नतीजों को व्यापार के साथ शामिल करने के लिए बहुपक्षीय कोशिशें, जैसे उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों तक पहुंचना और अनुकूलन को आसान बनाना, व्यापार नीति चर्चाओं में भी शामिल किया जाना चाहिए. मुक्त व्यापार समझौतों(एफटीए) को लेकर दुनिया भर में चर्चा हो रही है और इससे पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन की चिंताओं को अपने दायरे में लाने की कोशिशें भी हो रही हैं.
व्यापार चर्चाओं के केंद्र में जलवायु को लाना और ग्रीन ट्रेड एज़ेंडे को सुनिश्चित करने के प्रयास व्यापार नीतियों को लेकर एक अलग तरह की चुनौती पेश करने जा रहे हैं. यह अपरिहार्य है, क्योंकि पारंपरिक रूप से व्यापार नीति और जलवायु को लेकर कार्रवाई आपस में ख़ास हैं. जिन चीजों को ख़ारिज़ किया जा सकता है उन्हें नज़रअंदाज़ करने के बाद व्यापार नीति विनियमों को समायोजित किए जाने की आवश्यकता है, जिससे अधिक नीतिगत दुविधाएं पैदा हो रही हैं.
ये दुविधाएं भारत जैसे बड़े विकासशील देशों के लिए ज़्यादा होंगी. भारत कई हिस्सेदारों के साथ व्यापक एफटीए वार्ता में जु़ड़े देश का एक प्रासंगिक उदाहरण है, जिनमें से कई एफटीए में लगाए जा रहे ‘ पर्यावरण के अनुकूल ‘ व्यापार नीतियों पर जोर देंगे. हालांकि, भारत दूसरों को उपकृत कर सके यह कठिन हो सकता है.
हालांकि, ये दुविधाएं भारत जैसे बड़े विकासशील देशों के लिए ज़्यादा होंगी. भारत कई हिस्सेदारों के साथ व्यापक एफटीए वार्ता में जु़ड़े देश का एक प्रासंगिक उदाहरण है, जिनमें से कई एफटीए में लगाए जा रहे ‘ पर्यावरण के अनुकूल ‘ व्यापार नीतियों पर जोर देंगे. हालांकि, भारत दूसरों को उपकृत कर सके यह कठिन हो सकता है.
यूरोपीय संघ के प्रस्तावित कार्बन-सीमा समायोजन तंत्र
यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ भारत की जारी एफटीए वार्ता इन प्रतियोगिताओं का सामना कर सकती है. यूरोपीय संघ के प्रस्तावित कार्बन-सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम), यूरोपीय संघ में कार्बन-आधारित आयात पर ‘ कार्बन की कीमतें ‘ या उच्च दर के पक्ष में है, जो भारत और कई अन्य विकासशील देशों के लिए स्वीकार करना मुश्किल होगा. संयुक्त राष्ट्र के अध्ययनों से पता चलता है कि भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका द्वारा ईयू को होने वाले धातु के निर्यात में कटौती होगी – लोहा, इस्पात और एल्यूमीनियम – क्योंकि ईयू सीबीएएम को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.
ग्रीन ट्रेड एज़ेंडे को कार्बन-प्रधान उत्पादों की सीमा पार गतिविधियों को हतोत्साहित करने की ज़रूरत है, जबकि जलवायु के अनुकूल उत्पादों के अधिक प्रवाह को बढ़ावा देना आवश्यक है लेकिन ऐसे एज़ेंडे, जिनमें उनके इन बिल्ट अपील के बावजूद, व्यापार फ्रेमवर्क के तहत बढ़ावा देने की ज़रूरत है. ज़बर्दस्ती अमल में लाने की प्रक्रिया के चलते फिर से असंतुलित नतीजे देने वाले व्यापार को जन्म देगा.
जलवायु के अनुकूल उत्पादों के अधिक प्रवाह को बढ़ावा देना आवश्यक है लेकिन ऐसे एज़ेंडे, जिनमें उनके इन बिल्ट अपील के बावजूद, व्यापार फ्रेमवर्क के तहत बढ़ावा देने की ज़रूरत है. ज़बर्दस्ती अमल में लाने की प्रक्रिया के चलते फिर से असंतुलित नतीजे देने वाले व्यापार को जन्म देगा.
भारत और कई विकासशील देशों के लिए, ग्रीन ट्रेड एज़ेंडा को बढ़ावा देने के फायदे का आकलन रोज़गार के नुकसान की कथित लागत, कम आय और इस्पात और परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों जैसे कार्बन-प्रधान क्षेत्रों के कामगारों और उत्पादकों के विस्थापन के मुकाबले किया जाना चाहिए क्योंकि इसके निर्यात में निश्चित रूप से कमी दर्ज़ की जाएगी
जैसा कि इस तरह के व्यापार-चर्चा में बार-बार उल्लेख किया गया है, ‘ वन साइज़ फिट ऑल ‘ नियामक दृष्टिकोण को आगे बढ़ाना अनुपयोगी हो सकता है. जब तक सभी देश और व्यापारिक चर्चाओं में जलवायु के अनुकूल व्यापार जिससे सभी को फायदा और किसी को नुकसान नहीं पहुंचाने की नीतियों को बढ़ावा नहीं दिया जाता है तब तक व्यापार वार्ता में पारस्परिक रूप से स्वीकार्य निष्कर्ष तक पहुंचना काफी कठिन होगा. इसके अतिरिक्त व्यापार और पर्यावरण चर्चा में नियामक अप्रोच को बढ़ावा देना , जो सभी सदस्य देशों को बहुत ज़्यादा आज़ादी नहीं देता है, उससे अविश्वास बढ़ेगा और वैश्विक पर्यावरण लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में बाधा पहुंचेगी.
जैसे कि पूरी दुनिया नए साल 2022 में प्रवेश कर चुकी है और व्यापार पहले से कहीं अधिक मानवीय और समावेशी रूख़ अपना चुका है, तो यह एक मौका है जबकि वैश्विक क्लाइमेट चेंज के एज़ेंडे को मज़बूती दी जा सके. हालांकि तुरंत किसी नतीजे पर पहुंचने का लालच इससे जुड़ी तमाम संभावनाओं को ख़तरे में डाल सकता है. ग्रीन ट्रेड एज़ेंडा को बढ़ावा देने के लिए संवेदनशील और सोच समझ कर बनाई गई रणनीतियों में समय लग सकता है लेकिन इसे लेकर इंतज़ार करना मुनासिब होगा.
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