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Published on Mar 04, 2023 Updated 0 Hours ago

डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं की व्यापक सार्वजनिक उपयोगिता और उनपर निर्भरता बढ़ती जा रही है. ऐसे में हमारे हाथों में प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों और प्रौद्योगिकी को संचालित करने वालों पर नियंत्रण और संतुलन क़ायम करने की शक्ति होनी बेहद ज़रूरी है.

डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं (पब्लिक गुड्स) के नियमन के सुनहरे नियम

ये लेख हमारी श्रृंखला रायसीना एडिट 2023 का हिस्सा है.


दुनिया भर की सरकारें प्रौद्योगिकी के नियमन से जुड़े सवालों से जूझ रही हैं. हाल के वर्षों में प्रौद्योगिकी नीति, विधेयक, नियमन और रणनीतियों का विस्तार हुआ है. ऑस्ट्रेलिया की नेशनल यूनिवर्सिटी के टेक पॉलिसी एटलस से भी ऐसा ख़ुलासा हुआ है. सरकारों द्वारा इस ओर लगातार बढ़ाया गया ध्यान एक ज़रूरी और स्वागतयोग्य घटनाक्रम है. 

दरअसल, जब सरकारें प्रौद्योगिकी का नियमन करती हैं, तब वो अपने समाज के भविष्य को आकार देती हैं. प्रौद्योगिकी नियमन सिर्फ़ तकनीकी क़वायद नहीं है. इसके साथ आर्थिक विकास, सुरक्षा, समानता, मानव अधिकार और स्वायत्ता के बुनियादी सवाल भी जुड़े होते हैं. बहरहाल, सार्वजनिक डिजिटल वस्तुओं (DPGs) के नियमन का भार उठाते वक़्त सरकारों के लिए सतर्कतापूर्वक सोचविचार करना ख़ासतौर से अहम हो जाता है. बिजली और पानी की तरह DPGs भी सार्वजनिक बुनियादी ढांचे का अंग हैं, जिसपर समाज की निर्भरता लगातार बढ़ती जा रही है. 

प्रौद्योगिकी नियमन सिर्फ़ तकनीकी क़वायद नहीं है. इसके साथ आर्थिक विकास, सुरक्षा, समानता, मानव अधिकार और स्वायत्ता के बुनियादी सवाल भी जुड़े होते हैं.

इस सिलसिले में हम सबसे व्यापक स्वरूप वाले 2 DPGs पर ग़ौर कर सकते हैं: डिजिटल पहचान और डिजिटिल भुगतान से जुड़ा बुनियादी ढांचा. बिलकुल बुनियादी तौर पर ये हमारी पहचान तय करने और हमारे द्वारा ख़रीदी गई चीज़ों के बदले भुगतान करने के औज़ार हैं. हालांकि दोनों कई पेचीदा सवाल भी खड़े करते हैं: मसलन हमारे द्वारा तैयार की जा रही सूचनाओं के पूरे संग्रह का भंडारण कैसे होता है और उन्हें सरकारों और निजी क्षेत्र को कैसे उपलब्ध कराया जाता है. 

DPGs की तकनीकी संरचना और उनपर लागू होने वाले वैधानिक ढांचों के हिसाब से लोकतांत्रिक शासन के आधारभूत सिद्धांतों को या तो मज़बूती दी जा सकती है या उन्हें कमज़ोर किया जा सकता है. इस प्रक्रिया से आर्थिक वृद्धि को रफ़्तार दी जा सकती है या उसमें रुकावट डाली जा सकती है. इसी तरह इनसे मानव अधिकारों को बढ़ावा दिया जा सकता है या उनमें कटौती की जा सकती है. प्रौद्योगिकियों द्वारा DPGs की संरचना तैयार करने की क़वायदों और सरकारों द्वारा उनके नियमन के तौर-तरीक़ों से आगे चलकर हमारे सजीव अनुभव प्रभावित होते हैं. इनमें ऑनलाइन और ऑफ़लाइन, दोनों तरह के तजुर्बे शामिल हैं. 

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव समेत कई लोग DPGs को वैश्विक विकास को बढ़ावा देने और सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ज़रूरी समझते हैं. 

DPGs, संसार के देशों को विकास से जुड़ी अपनी छलांग को और ऊंचा मुकाम देने में मदद करते हैं. डिजिटल पहचान और सार्वभौमिक भुगतान बुनियादी ढांचे का मिला-जुला आग़ाज़ इस कड़ी में एक ग़ौर करने लायक़ घटना है.

DPGs, संसार के देशों को विकास से जुड़ी अपनी छलांग को और ऊंचा मुकाम देने में मदद करते हैं. डिजिटल पहचान और सार्वभौमिक भुगतान बुनियादी ढांचे का मिला-जुला आग़ाज़ इस कड़ी में एक ग़ौर करने लायक़ घटना है. महज़ 9 वर्षों (2008-2017) में भारत की कुल आबादी में बैंक खाताधारकों का हिस्सा 27 प्रतिशत से बढ़कर 80 प्रतिशत तक पहुंच गया. इससे इस पूरी प्रक्रिया में ज़बरदस्त रफ़्तार आ गई. बैंक फ़ॉर इंटरनेशनल सैटलमेंट्स के आकलन के मुताबिक पारंपरिक ज़रियों से ऐसी कामयाबी हासिल करने में 47 वर्षो का समय लग सकता था. 

यही वजह है कि ख़ासतौर से अल्पविकसित और विकासशील देशों में लगातार DPGs की शुरुआत की जा रही है. इसमें कोई ताज्जुब भी नहीं है. हालांकि ऐसे प्रसार के मद्देनज़र शुरुआती दौर से ही DPGs की तकनीकी संरचना और नियमन के बारे में पूरी तरह से जागरूक रहना आवश्यक है. ऐसी सटीक क़वायद से भविष्य की उस दुनिया को आकार दिया जा सकता है जिसमें हम सभी निवास करना चाहते हैं. इस दिशा में नाकामायाबी, हमारे संसार को तमाम मुसीबतों में डाल सकती है. 

DPGs 21वीं सदी का आधारभूत और नाज़ुक बुनियादी ढांचा है. ऐसे में इनकी बेहतरीन संरचना और कारगर नियमन कैसे सुनिश्चित होगा?

जैसा कि शरद शर्मा और हेनरी वर्डिएर ने दर्शाया है, यूरोपीय संघ जैसे न्यायिक क्षेत्राधिकार बेहतर प्रौद्योगिकी को आकार देने के लिए नियमन पर निर्भर करते हैं. उधर, भारत जैसे कई अन्य क्षेत्राधिकारों में बेहतर प्रौद्योगिकी तैयार करने के लिए निरंतर DPGs का सहारा लिया जा रहा है. हमें लगता है कि ये दोनों ही तरीक़े ज़रूरी हैं.

1990 और 2000 के दशकों में तकनीकी-काल्पनिकवाद की पहली लहर से हम ये सबक़ सीखा चुके हैं कि प्रौद्योगिकीय संरचना को पूरी तरह से तकनीकी विशेषज्ञों के हवाले नहीं किया जा सकता. हालांकि इतिहास हमें समान रूप से ये दिखाता है कि नियमन से जुड़ी क़वायदों को तकनीकी विकास के साथ क़दम से क़दम मिलाने में भारी जद्दोजहद का सामना करना पड़ता है. ख़ासतौर से DPGs के संदर्भ में बेहतरीन संरचना वाली प्रौद्योगिकी और प्रौद्योगिकी के नियमन की चाक-चौबंद व्यवस्था की दरकार है. 

प्रौद्योगिकी की बेहतरीन संरचना के संदर्भ में डिजिटल सार्वजनिक वस्तु गठजोड़ ने एक DPG मानक तैयार किया है. ये DPGs की संरचना और क्रियान्वयन का मार्गदर्शन करने वाले तकनीकी मानदंड हैं. अनेक किरदारों वाली इस पहल में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष समेत कई अन्य संस्थाएं शामिल हैं. ये मानक “ओपन-सोर्स सॉफ़्टवेयर, ओपन डेटा, ओपन AI मॉडल्स, ओपन स्टैंडर्ड्स और ओपन कंटेंट” के लिए ज़रूरी सुविधाएं मुहैया कराते हैं.

हालांकि, DPGs के नियमन के संदर्भ में काफ़ी कम मार्गदर्शन मौजूद है. आम तौर पर यही माना जाता है कि इसपर नियमन संरचना के मौजूदा सिद्धांत ही लागू होते हैं. हालांकि प्रौद्योगिकी से जुड़ी नियामक संरचना तैयार करते वक़्त अक्सर “तत्काल” “कुछ करने” पर ज़ोर दिया जाता है. नतीजतन इस क़वायद से सामने आने वाले क़ानूनों में उदारवादी लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांत नदारद रहते हैं. अगर हम एक सकारात्मक भविष्य को आकार देने के प्रति गंभीर हैं तो हमें इस रुझान को सुधारना होगा. इस लेख में DPGs के नियमन से जुड़ी क़वायदों का जनहित से तालमेल सुनिश्चित करने के लिए तीन सुनहरे नियम सामने रखे गए हैं.

  1. पारदर्शिता: DPG को संचालित करने वाले तमाम नियम और क़ानून सार्वजनिक होने चाहिए. क़ानून के ज़रिए DPGs पर निगरानी रखने का अधिकार हासिल कर चुकी सरकार को हर साल इससे जुड़े डेटा का प्रकाशन करना चाहिए. इसमें इस बात का ब्योरा होना चाहिए कि इन अधिकारों का कैसे, कितनी बार और किनके ख़िलाफ़ प्रयोग किया गया. 
  2. समीक्षा का अधिकार: DPGs पर लागू क़ानून या नियमन से प्राधिकृत होकर किए जाने वाले शक्ति के किसी भी प्रयोग के ख़िलाफ़ स्वतंत्र अपील तंत्र की व्यवस्था और परिपाटी होनी चाहिए. इसके ज़रिए वो लोग या व्यक्ति (जिनके ख़िलाफ़ अधिकारों का प्रयोग किया गया) ऐसी कार्रवाई की समीक्षा की अर्ज़ी दे सकेंगे. ‘स्वतंत्र’ का मतलब है अधिकार का प्रयोग करने वाली इकाई और तत्कालीन सरकार से स्वतंत्र निकाय, जो आम तौर पर कोई न्यायिक संस्था हो सकती है. 
  3. जवाबदेही: DPGs पर लागू वैधानिक या नियामक शक्तियों के रोज़मर्रा के इस्तेमाल पर स्वतंत्र रूप से निगरानी की व्यवस्था होनी चाहिए. पर्यवेक्षण करने वाले स्वतंत्र निकाय के पास निरीक्षण से जुड़ी अपनी गतिविधि को अंजाम देने के लिए पर्याप्त संसाधन होने चाहिए.   

इन सुनहरे नियमों के साथ-साथ टेक पॉलिसी डिज़ाइन के 8 सिद्धांत, नीतिगत संरचना निर्माण प्रक्रिया से जुड़े पहलुओं की विशिष्टताओं को संपूर्ण संदर्भ देने में मदद करते हैं. इन सिद्धांतों में समानता, पारस्परिकता और दक्षता शामिल हैं. इस कड़ी में हम तकनीकी नीति निर्माताओं को बेस्ट प्रैक्टिस टेक पॉलिसी डिज़ाइन प्रॉसेस की भी सिफ़ारिश करते हैं. 

जिस तरह हमारे पास राजनेताओं पर नियंत्रण और संतुलन रखने की शक्ति मौजूद है उसी तरह प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों और उनके द्वारा तैयार की जाने वाली प्रौद्योगिकी पर भी हमें नियंत्रण और संतुलन के अधिकार ज़रूर मिलने चाहिए.

जिस तरह हमारे पास राजनेताओं पर नियंत्रण और संतुलन रखने की शक्ति मौजूद है उसी तरह प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों और उनके द्वारा तैयार की जाने वाली प्रौद्योगिकी पर भी हमें नियंत्रण और संतुलन के अधिकार ज़रूर मिलने चाहिए. DPGs की व्यापक सार्वजनिक उपयोगिता और उनपर हमारी निर्भरता लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे में नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था ख़ासतौर से अहम हो जाती है. डिजिटल युग में सरकारों, उद्योग जगत और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों के हाथों में ज़बरदस्त शक्ति संग्रहित हो गई है. इनमें से हरेक को जवाबदेह बनाने के लिए ओपन DPGs और प्रभावी नियमन शक्तिशाली औज़ार हैं. ये हमारी (हम सभी की) ज़िम्मेदारी है कि हम अपने हितों में इन औज़ारों का सक्रियता से प्रयोग करने की शक्ति की पुरज़ोर मांग उठाएं.

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