चीन और सउदी अरब के शुरूआती समर्थन के बावजूद वित्तीय कार्यवाही कार्यदल (फाइलेंशियल एक्शन टास्क फोर्स — एफएटीएफ) द्वारा हाल में लिया गया यह निर्णय अप्रत्याशित नहीं था जिसके तहत पाकिस्तान को चेतावनी दी गई है कि आने वाले मई महीने तक आतंकवाद से निपटने की अपनी कार्ययोजना पेश करे नहीं तो उसे ‘ग्रे यां ब्लैक लिस्ट’ में डाल दिया जाएगा। वास्तव में इस चेतावनी के बीज पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में अपने भाषण से बो दिए थे। उन्होंने ऐसा संदेश दिया कि मानों इस वैश्विक संगठन को सूचित कर रहे हैं कि पाकिस्तान अधिकृत तौर पर आतंकवादी संगठनों को समर्थन देता है।
जनरल जावेद बाजवा ने इस भाषण में खुलकर कहा कि जहां उनके देश,सेना और आईएसआई का सवाल है तो वे आतंकवादियों को दो श्रेणियों में रखते हैं — ‘अच्छे’ और ‘बुरे’। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान खुद ‘बुरे’ आतंकवादियों का शिकार है; उनका इशारा अगानिस्तान से उभर रह आतंकवाद की ओर था। यह दिलचस्प है कि जिनका वे समर्थन करते हैं, वे अच्छे आतंकवादी हें और जो उन पर हमला करते हैं वे बुरे आतंकवादी हैं।
बिना भारत का नाम लिए पाकिस्तानी जनरल ने कहा कि इस्लामाबाद ‘अच्छे आतंकवाद’ को समर्थन देता है अगर वह किसी दमनकारी देश के खिलाफ है। जनराल बाजवा के विचार में कश्मीर में भारत की दमनकारी भूमिका है। इस प्रकार उन्होंने स्वीकार कर लिया कि वे भारत और अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकवादी समूहों को समर्थन देते हैं क्योंकि अफगानिस्तान को हमेशा पाकिस्तान अपनी बपौती मानता रहा है और उसे वहां अपनी कठपुतली सरकार के अलावा कोई और शासन स्वीकार नहीं है।
जहां ज्यादातर विश्लेषक मानते हैं, इस संदर्भ में इशारा केवल भारत की ओर था लेकिन पाकिस्तान द्वारा जिस प्रकार तालिबान और हक्कानी नेटवर्क को शरण दी गई है उससे कुछ और संकेत मिलते हैं।
जनरल बाजवा ने अपने देश की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के संदर्भ में नेशनल एक्शन प्लान का हवाला दिया। उन्होंने इसे पाकिस्तान की ओर से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में ‘प्रमुख संदेश’ का दर्जा दिया। यहां उन्होंने उल्लेख किया कि हाल ही में एक फतवा जारी हुआ है जिसे आत्मघाती हमलों और जेहाद पर प्रतिबंध लगाने की बात की है। पर इस फतवे का कोई लाभ नहीं हुआ। आत्मघाती हमलावरों के दस्ते अभी भी भारत और अफगानिस्तान में सक्रिय हैं। यह फतवा केवल दुनिया के लिए दिखावा था कि पाकिस्तान कार्रवाई कर रहा है।अपने भाषण में उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अफगानिस्तान में जेहादी आंदोलन पैदा करने वाला पाकिस्तान ही है।
पर इस फतवे का कोई लाभ नहीं हुआ। आत्मघाती हमलावरों के दस्ते अभी भी भारत और अफगानिस्तान में सक्रिय हैं।
उन्होंने दुनिया के नेताओं को यह भी संदेश दिया कि निकट भविष्य में पाकिस्तान की जमीन से आतंकवाद समाप्त नहीं होने वाला है। उन्होंने कहाए “बड़ी संख्या में लोग कट्टरता के शिकार हैं, हथियारबंद हैं तथा राजनीतिक व वैचारिक नजरएि से सशक्त हैंं। हमें वे नापसंद हैं केवल इसीलिए हम उन्हें यूं ही समाप्त नहीं कर सकते हैं। यह बात समझ लीजिए कि जो हमने 40 सालों तक बोया अब वही काट रहे हैं। इसलिए पाकिस्तान की सरजमीं से आतंकवाद के अभिशाप को हटाने में कुछ समय तो लगेगा।” एफएटीएफ की बैठक से ठीक पहले यह एक अधिकारिक स्वीकारोक्ति थी जिसके अनुसार जब तक पाकिस्तान पर बहुत ज्यादा दबाव नहीं डाला जाएगा तब तक वह नहीं बदलेगा।
इस भाषण ने कई तथ्यों का खुलासा किया और आतंकी समूहों को पाकिस्तान के अधिकारिक समर्थन को भी सबके सामने रखा लेकिन कई मुद्दे अनुत्तरित रह गए। पहला, इस क्षेत्र में सभी देश उन आतंकवादियों का मुकाबला कर रहे हैं जो पाकिस्तान के नागरिक हैं। भारत उन पाक आधारित आतंकवादी समूहों का मुकाबला कर रहा है जिसके अधिकतर सदस्य पाकिस्तानी हैं। पाकिस्तान खुद भी अफगानिस्तान आधारित आतंकवादी समूहों का मुकाबला कर रहा है। इन समूहों के सदस्य भी अफगानी यां भारतीय नहीं बल्कि वे पाकिस्तानी हैं जिन्हें पाक सेना ने अलग-थलग कर दिया था।
इसी तरहं बलूच लिबरेशन फ्रंट के सदस्य भी पाकिसन के अपने नागरिक हैं। यहां तक कि अफगानिस्तानी तालिबान के प्रमुख नेता भी पाकिस्तानी हैं। इस तरहं इस पूरे क्षेत्र में जिन आतंकवादी समूहों ने आतंक फैला रखा है, उसके सदस्य केवलमात्र एक ही देश पाकिस्तान से हैं। इसलिए भारत ने पाकिस्तान को ‘टेररिस्तान’ का नाम देकर कुछ गलत नहीं किया है।
अगर पाकिस्तान वाकई अपनी जमीन से आतंकवाद को राकेने का लेकर गंभीर है तो उसे सबसे पहले आतंकवाद की फैक्टरी बन चुके एन मदरसों को बंद करना चाहिए जहां बच्चों को ब्रेनवॉश कर आतंकवादी बनाया जा रहा है। जब तक यह कदम पाकिस्तान नहीं उठाता ऐसे भ्रमित आतंकवादियों पर रोक लगाना संभव नहीं है। अफगान शरणार्थियों यां किसी अन्य देश यां समुदाय पर आरोप लगाने से कोई फायदा नहीं होगा जब तक ये कदम नहीं उठाए जाएंगे।
इसके बाद पाकिस्तान को अगली कार्रवाई करते हुए उन लोगों को ठंडे बस्ते में डालना चाहिए जो जो पैसा इकट्ठा करते हैं और स्थानीय चोरउचक्कों की भर्ती कर उन्हें आतंकवादी बना कर चारे की तरहं इस्तेमाल करते हैं। कश्मीर में इन दिनों ऐसे ही आतंकवादी सक्रिय हैं। इन कदमों को उठाए बिना जमीन पर स्थिति में सुधार नहीं आ पाएगा।
पाकिस्तानी सत्ता के अंदरूनी हलकों ने कभी यह नहीं समझा कि आतंकवादी समूहों को समर्थन देने से विवाद नहीं सलझाए जा सकते हैं, खासकर भारत और अफगानिस्तान के साथ जुड़े विवाद।
पाकिस्तानी सत्ता के अंदरूनी हलकों ने कभी यह नहीं समझा कि आतंकवादी समूहों को समर्थन देने से विवाद नहीं सलझाए जा सकते हैं, खासकर भारत और अफगानिस्तान के साथ जुड़े विवाद। भारत कभी पाकिस्तान से बातचीत शुरू नहीं करेगा और पाकिस्तान कभी भारत को उतना कमजोर नहीं कर पाएगा जितना उसका लक्ष्य है; न ही कमीर में कोई बगावत होने वाली है। अफगानिस्तान के मामले में भी ऐसा ही है। अमेरिकी और अफगान सरकार बातचीन के लिए उत्सुक तो हैं पर रक्षात्मक मुद्रा में आकर वे कभी बात नहीं करेंगी। उलटे इससे पाकिस्तान के साथ उनका तनाव बढ़ेगा, पाकिस्तान पर दबाव भी बढ़ेगा और उसके अलग-थलग होने की प्रक्रिया में भी तेजी आएगी जिसके संकेत वर्तमान में साफ दिख रहे हैं।
इसके अलावा इस तरहं की हरकतों से हथियारों की दौड़ को बढ़ावा मिलता है। इससे पाकिस्तान को मजबूरन अपनी आर्थिक क्षमता से बाहर जाकर परंपरागत हथियारों का जखीरा बढ़ाने तथा परमाणु हथियारों पर संसाधन खर्च करने होंगे। इससे उसकी अर्थव्यवस्था, जो विदेशी कर्ज के बोझ तले दबी है और जहां नागरिकों के पास आम सुविधाएं नहीं हैं, और ज्यादा गहरे कर्ज के दुष्चक्र में फंस जाएगी।
अंतत: अगर किसी देश का लहू बहेगा तो वह पाकिस्तान होगा क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय दबाव पड़ते ही ये आतंकवादी समूह पाकिस्तान को निशाना बना सकते हें। पाकिस्तान के इन दावों को अंतराष्ट्रीय स्तर पर कभी मान्यता नहीं मिलेगी कि आतंवादी समूहों के सदस्य भारत और अफगानिस्तान से हैं। क्योंकि यह सबको पता है कि ये सब पाकिस्तानी नागरिक हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का गुस्सा स्पष्ट था जब पाकिस्तान को एफएटीएफ द्वारा ग्रे लिस्ट में डालने की बात हुई थी। इसमें पाकिस्तानी सेना प्रमुख की टिप्पणी का कितना असर था यह तो पता नहीं पर जिस तरहं स आतंकवादी समूहों को सरकारी प्रश्रय देने को पाकिस्तान की अधिकृत नीति करार दिया, इसने अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को एफएटीएफ द्वारा कार्रवाई करने पर मजबूर किया होगा। अब पाकिस्तान के पास अपनी कार्ययोजना देने के लिए तीन महीने हैं। अगर वह इस योजना को देने में असफल रहा तो उसे ‘ग्रे लिस्ट’ में डाल दिया जाएगा।
पाकिस्तान सचेत है कि उसके वायदे उस समय खोखले साबित हो जाते हैं जब संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित वैश्विक आतंकवादी उसके यहां बेखौफ घूमते हैं, तकरीरें करते हैं और आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन देने के लिए अपनी गतिविधियां बेरोकटोक चलाते हैं। पाक सेना प्रमुख के आश्वासनों के बावजूद वह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के आक्रोश के निशाने पर है। चीन उसका एकमात्र खैरख्वाह बना रह सकता है। पर जब तक वह कार्रवाई नहीं करता, उस पर खतरा है कि वह दुनिया में अलग-थलग पड़ जाएगा।
किसी देश में नागरिक और सैन्य शासन में यही अंतर होता है। नागरिक सरकार लोगों के विकास और शांति के बारे में सोचती है जबकि सेना के जनरल लड़ना जानते हैं विकास करना नहीं। वे केवल बाहरी आक्रमणों को रोकने और आंतरिक विरोध के दमन पर ध्यान देते हैं। पाकिस्तानी सेना को वहां की जनता की परवाह नहीं क्योंकि सत्ता के सारे धागे उसकी के हाथ में हैं लेकिन इसका खामियाजा वहां की सरकार को भुगतना पड़ता है।
एफएटीएफ की ओर से चेतावनी पहला कदम है। अगर दुनिया दक्षिण एशियामें शांति चाहती है तो ऐसे और कदम उठाने होंगे। वास्तविकता ये है कि पाकिस्तान जितना ‘अच्छे बनाम बुरे’ आतंकवादी की नीति पर चलेगा, वहां उतनी ज्यादा अस्थिरता रहेगी, जबकि बाकी देश उसे देख रहे होंगे। पाकिस्तान ने अपने यहां जो सांप पाले हैं वे अंतत: उसे खुद निशाने पर लेंगे ही। उसे चाहिए कि एफएटीएफ की चेतावनी को गंभीरता से ले उस पर अमल करे, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।
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