Author : Manoj Joshi

Published on Feb 26, 2020 Updated 0 Hours ago

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण से देखें तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस यात्रा का सबसे बड़ा परिणाम उनकी खुद की और भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाना था.

दुनिया को दिशा देने वाली दोस्ती

जबसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने घोषणा की कि भारत और अमेरिका ‘स्वाभाविक सहयोगी’ हैं, तब से दोनों देश धीरे-धीरे और व्यवस्थित ढंग से अपने संबंधों को आगे बढ़ा रहे हैं. यही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को अहमदाबाद में दोहराई, जब उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका न केवल ‘स्वाभाविक सहयोगी’ हैं, बल्कि उनका सहयोग और संबंध 21वीं सदी में दुनिया की दिशा तय करेगा. मंगलवार को दोनों देशों ने घोषणा की कि उनका संबंध समग्र वैश्विक सामरिक भागीदारी के स्तर तक बढ़ाया जाएगा.

मंगलवार को नई दिल्ली में आधिकारिक स्तर की वार्ता के बाद अपनी टिप्पणी में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ‘स्वतंत्र और संतुलित हिंद-प्रशांत क्षेत्र’ और ‘व्यापक व्यापार सौदे’ के लिए भारत के साथ मिलकर काम करने की बात कही. यह देखते हुए कि तीन साल पहले उनके सत्ता संभालने के बाद से भारत को अमेरिकी निर्यात 60 फीसदी तक बढ़ गया है, उन्होंने व्यापक व्यापार समझौते पर दोनों देशों द्वारा की गई जबर्दस्त प्रगति को रेखांकित किया. सोमवार को अहमदाबाद स्थित मोटेरा स्टेडियम में अपने संबोधन में ट्रंप ने भारत की विविधता और बहुसंस्कृतिवाद की प्रशंसा की, लेकिन जबर्दस्ती, धमकी और आक्रामकता के जरिये दबाव बनाने की कोशिश नहीं की. वह चाहते हैं कि भारत अमेरिका का प्रमुख रक्षा साझेदार बने. उन्होंने कहा कि ‘एक साथ मिलकर हम अपनी संप्रभुता और सुरक्षा की रक्षा करेंगे तथा स्वतंत्र व मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र की रक्षा करेंगे.’ मंगलवार को दोनों देशों ने तीन अरब डॉलर के रक्षा सौदे पर हस्ताक्षर किए. सोमवार को राष्ट्रपति ट्रंप ने घोषणा की कि ‘अमेरिका इस दुनिया के सबसे अच्छे और सबसे अधिक घातक सैन्य उपकरणों में कुछ भारत को देने के लिए तत्पर है.’

अमेरिका जानता है कि वह भारत से क्या चाहता है — चीन के खिलाफ एक प्रतिरोधी शक्ति.

यह मानना गलत होगा कि भारत ने ट्रंप की यात्रा का दिखावा करने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. 24 एमएच-60आर बहुउपयोगी हेलिकॉप्टर (2.12 अरब डॉलर) और छह अपाचे हेलिकॉप्टर (7.96 करोड़ डॉलर) की खरीदारी हमारी नौसेना और वायुसेना के लिए बेहद जरूरी है. इस समय भारतीय युद्धपोत इन हेलिकॉप्टरों द्वारा प्रदान की जाने वाली पनडुब्बी रोधी क्षमता के अभाव में पनडुब्बी खतरे से खुद को प्रभावी ढंग से बचाने में असमर्थ है. भारत और अमेरिकी रक्षा संबंध अचानक तेजी से विकसित नहीं हुआ है, जिसने अमेरिका को 1954 में पाकिस्तान को अपने खेमे में लेते या 1972 में चीन-अमेरिका के बीच सौहार्द विकसित होते देखा है. राष्ट्रपति क्लिंटन की यात्रा से लेकर डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा तक दो दशक बीत चुके हैं. धीमी प्रक्रिया इस तथ्य से भी स्पष्ट है कि भारत ने 2002 में जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इन्फोर्मेशन एग्रीमेंट (जीएसओएमआईए) पर हस्ताक्षर किए और चार में से तीसरे बुनियादी समझौते कम्युनिकेशंस ऐंड इन्फोर्मेशन सिक्योरिटी मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (सीओएमसीएएसए) पर हस्ताक्षर 2018 में हुए.

बीच में दोनों देशों ने 2005 के भारत-अमेरिकी परमाणु समझौते के माध्यम से रणनीतिक संबंधों की दिशा में एक निर्णायक बदलाव किया, जिसके जरिये अमेरिका उन पाबंदियों को हटाने में सक्षम था, जो भारत के साथ उसे सामरिक समझौते करने से रोकते थे. यह ट्रंप प्रशासन ही था, जिसके कार्यकाल में और चाहे कुछ भी हो, इसमें तेजी आई है. उन्हीं के कार्यकाल में सीओएमसीएएसए पर हस्ताक्षर किए गए, भारत को एक प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में नामित किया गया, और रणनीतिक व्यापार प्राधिकरण-1 (एसटीए-1) का ओहदा प्रदान किया गया, जो उच्च तकनीकी व्यापार के लिए मार्ग प्रशस्त करता है. हाल ही में दोनों देशों ने औद्योगिक सुरक्षा अनुबंध पर हस्ताक्षर किए, जो अमेरिकी और भारतीय कंपनियों के बीच सहयोग को बढ़ावा देगा. अमेरिका जानता है कि वह भारत से क्या चाहता है — चीन के खिलाफ एक प्रतिरोधी शक्ति. आकार, अवस्थिति और आर्थिक क्षमता के लिहाज से भारत एशिया का एकमात्र ऐसा देश है, जो बीजिंग विरोधी गठबंधन को नेतृत्व दे सकता है. तथ्य यह है कि भारत का चीन के साथ सीमा विवाद है और बीजिंग की पाकिस्तान के साथ दोस्ती को खत्म करना भारत के लिए तािर्कक है. लेकिन नई दिल्ली वास्तव में क्या चाहती है, यह स्पष्ट नहीं है. भारत के पास किसी तरह के स्पष्ट रोडमैप का अभाव है, ताकि वह दुनिया के प्रमुख शक्तिशाली देश अमेरिका द्वारा उसे दी जा रही तवज्जो का लाभ उठा सके.

भारत और अमेरिका के भू-राजनीतिक हित समान नहीं है, जो पाकिस्तान, ईरान और रूस के साथ भारत के संबंधों से स्पष्ट है.

हमें यह भी समझने की आवश्यकता है कि भारत और अमेरिका के भू-राजनीतिक हित समान नहीं है, जो पाकिस्तान, ईरान और रूस के साथ भारत के संबंधों से स्पष्ट है. अपनी साख के लिए ट्रंप ने अहमदाबाद में सोमवार को काफी हद तक ठीक ही कहा कि पाकिस्तान के साथ उनके संबंध बहुत अच्छे हैं. और वह उम्मीद करते थे कि भारत के साथ अमेरिका के संबंधों में प्रगति दक्षिण एशिया के सभी देशों के बीच भविष्य में सद्भाव और व्यापक स्थिरता पैदा करेगी. संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस की अपनी टिप्पणी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ‘कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवाद’ से अपने नागरिकों को बचाने के लिए दोनों देशों की प्रतिबद्धता को दोहराया. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ‘अमेरिका पाकिस्तान के साथ सकारात्मक तरीके से काम कर रहा है, ताकि पाकिस्तान की धरती से सक्रिय आतंकवादियों का मुकाबला किया जा सके.’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण से देखें, तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस यात्रा का सबसे बड़ा परिणाम उनकी खुद की और भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाना था. इसमें कोई संदेह नहीं है कि ट्रंप की यात्रा का कार्यकाल और मोदी के प्रति उनकी स्पष्ट पसंदगी तीसरे देशों से निपटने में भारत की सहायता करेगी. मेजबान होने के नाते इस बड़े कार्यक्रम में प्रधामंत्री मोदी की केंद्रीयता को लेकर कभी कोई संदेह नहीं था. यहां तक कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जिन्होंने आगरा में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का स्वागत किया, तुरंत ही कैमरामैन के लेंस से गायब हो गए. जहां तक विपक्षी नेताओं की बात है, वे इस पूरे परिदृश्य से अनुपस्थित रहे, कुछ अपनी इच्छा से और कुछ मजबूरीवश.

लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान दिल्ली में जो दंगे भड़के, उस पर जरूर गौर किया जाएगा. सरकार अगर यह सोचेगी कि यह किसी साजिश का परिणाम था, तो वह खुद को नासमझ ही बनाएगी. सरकार की अपनी विभाजनकारी और बहिष्करण की नीतियों ने इस आग को भड़काया है और आप यह निश्चित रूप से मान सकते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को इसके बारे में जानकारी दी गई होगी. यह ‘आश्चर्यजनक प्रगति, लोकतंत्र का चमत्कार और असाधारण विविधता’ वाले देश के रूप में भारत के प्रति उनकी अपनी टिप्पणी के खिलाफ जाता है. उन्होंने भारतीय संस्कृति की जीवंतता में योगदान देने वाले मुस्लिमों और अन्य समुदायों का दो बार जिक्र करके इस पर जोर दिया था.


यह लेख मूलरूप से अमर उजाला में छपी थी.

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