Published on Apr 24, 2020 Updated 0 Hours ago

हम फ्रांसीसी लोग, नए कोरोना वायरस के विरुद्ध ‘युद्ध’ लड़ रहे हों. लेकिन, हम अपनी सरकार के ख़िलाफ़ भी जंग लड़ रहे हैं. क्योंकि इस सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए व्यय में कमी कर दी थी.

फ्रांस को कोरोना वायरस की महामारी की डरावनी सच्चाइयों का सामना करना ही होगा

ये बात कोई राज़ नहीं है कि फ्रांस के लोग गर्वीले होते हैं. कई तो उन्हें अहंकारी भी कहते हैं. वो पूरी तरह से तर्क पर यक़ीन करते हैं. कोई भी परिस्थिति हो, फ्रांस के लोगों के पास उसके लिए तर्क हमेशा तैयार रहते हैं. लेकिन कोरोना वायरस की वजह से उत्पन्न हुई महामारी के इस अभूतपूर्व संकट ने फ्रांस के नागरिकों की इस तुनकमिज़ाजी की मौत की घंटी बजा दी है. इस महामारी के कारण, फ्रांस के लोगों के राजनीति को देखने के नज़रिए और इस पर चर्चा के तौर तरीक़ों का भी पूरी तरह से बदल जाए. हम इस समय जिस दुविधा के शिकार हैं, उससे एक बात तो बिल्कुल साफ होती जा रही है कि हम लोग आज संकट के जिस दलदल में फंसे हैं, ये हमारा ख़ुद का बनाया हुआ है. इसकी ज़मीन हमने पिछले पंद्रह वर्षों में लिए गए अपने फ़ैसलों से तैयार की है. और इन्हीं फ़ैसलों के कारण आज हर फ्रांसीसी नागरिक की ज़िंदगी पर ख़तरा मंडरा रहा है. इसकी वजह ये है कि हम पिछले पंद्रह वर्षों से एक उदारवादी वैश्विक व्यवस्था की वक़ालत करते आए हैं.

फ्रांस का मानना था कि इस वायरस का प्रकोप, चीन के तेज़ी से आधुनिकता की ओर दौड़ लगाने के ख़ास चीनी तरीक़े का नतीजा है. क्योंकि चीन, को आधुनिकता की ऐसी जल्दी पड़ी है कि वो इसकी रेस के लिए ज़रूरी सुरक्षा उपाय नहीं अपना रहा है

हमें ज़्यादा पता है

फ्रांस के लोग लंबे समय तक ये मानते रहे थे कि कोविड-19 महामारी चीन तक ही केवल सीमित है. या फिर बहुत होगा, तो ये वायरस भी सार्स की तरह एशियाई देशों में फैलेगा. फ्रांस का मानना था कि इस वायरस का प्रकोप, चीन के तेज़ी से आधुनिकता की ओर दौड़ लगाने के ख़ास चीनी तरीक़े का नतीजा है. क्योंकि चीन, को आधुनिकता की ऐसी जल्दी पड़ी है कि वो इसकी रेस के लिए ज़रूरी सुरक्षा उपाय नहीं अपना रहा है. इसीलिए फ्रांस की जनता ने इस महामारी को शुरू में गंभीरता से नहीं लिया. फ्रांस की सरकार को सिर्फ़ वुहान में रह रहे अपने 800 लोगों की चिंता थी. और चूंकि फ्रांस की सरकार उस समय अन्य विवादों में फंसी हुई थी, तो उसने कोरोना वायरस की महामारी को लेकर आंख मूंदने के विकल्प को आसान बनाया. फ्रांस की सरकार इसे सार्स (SARS), H1N1 फ्लू या मर्स (MERS) जैसा वायरस समझा और अपनी जनता को ये भरोसा दिलाया कि ये फ्रांस की ज़मीन से बहुत दूर है. कम से कम जनवरी के आख़िरी दिनों तक (बल्कि इसके बाद तक) फ्रांस के अधिकतर विशेषज्ञ, जिनमें फ्रांस के मशहूर अस्पतालों के बड़े बड़े प्रोफ़ेसर भी शामिल थे, वो ये मान रहे थे कि ये नया कोरोना वायरस सार्स से भी कम घातक वाला होगा. लिहाज़ा इसे कोई अहमियत देने की ज़रूरत नहीं है. फ्रांस की राजधानी पेरिस के मशहूर बिशट क्लॉड बर्नार्ड अस्पताल की संक्रामक रोग इकाई के प्रमुख डॉक्टर यज़्डानपनेह ने बताया कि फ्रांस में नए कोरोना वायरस की महामारी के फ्रांस या किसी अन्य यूरोपीय देश में फैलने की आशंका बेहद कम है.

इस संकट से निपटने में चीन ने शुरुआत से ही गड़बड़ियां की थीं. हालांकि, इसके कारण अभी भी स्पष्ट नहीं हैं. लेकिन, चीन के अधिकारियों के शुरुआती कुप्रबंधन के कारण, नए कोरोना वायरस की महामारी का जो संकट पहले चीन तक सीमित था, वो चीन के नए वर्ष के जश्न के साथ वैश्विक संकट बन गया. क्योंकि, चीन के अधिकारियों ने हूबे और अन्य प्रभावित क्षेत्रों से हज़ारों लोगों को नए चंद्र वर्ष का जश्न मनाने के लिए दूसरे देशों की यात्रा करने की इजाज़त दे दी थी. वुहान शहर को 23 जनवरी को जाकर लॉकडाउन करने का फ़ैसला किया गया. और उस समय तक जिसे विदेश यात्रा पर जाना था, वो पहले ही वुहान से जा चुका था. फ्रांस में इस महामारी से जिस व्यक्ति की जान सबसे पहले गई थी वो चीन का एक नागरिक था, जो 16 जनवरी को चीन से फ्रांस पहुंचा था. इस वायरस के कारण दुनियाभर की स्वास्थ्य व्यवस्था और अर्थव्यवस्था पर जितना बुरा असर देखने को मिल रहा है. उससे इस महामारी से जुड़ी जानकारी को छुपाने और इससे निपटने की बेहद धीमी प्रक्रिया की निरपेक्षता से विश्लेषण करने की आवश्यकता होगी.

जब फ्रांस में इस वायरस से पहले व्यक्ति की मौत हुई थी, उसी समय ये महामारी पूरी दुनिया में फैलनी शुरू हुई थी. फ्रांस पहला यूरोपीय देश था, जो कोरोना वायरस की महामारी का शिकार हुआ था. 24 जनवरी को यहां तीन लोगों में संक्रमण की पुष्टि हुई थी. इसमें चीनी मूल का एक फ्रांसीसी नागरिक था, जो हाल ही में चीन के वुहान शहर से लौटा था

जब फ्रांस में इस वायरस से पहले व्यक्ति की मौत हुई थी, उसी समय ये महामारी पूरी दुनिया में फैलनी शुरू हुई थी. फ्रांस पहला यूरोपीय देश था, जो कोरोना वायरस की महामारी का शिकार हुआ था. 24 जनवरी को यहां तीन लोगों में संक्रमण की पुष्टि हुई थी. इसमें चीनी मूल का एक फ्रांसीसी नागरिक था, जो हाल ही में चीन के वुहान शहर से लौटा था. इसके अलावा चीनी सैलानियों का एक जोड़ा था, जो वुहान से फ्रांस आया था. इनमें से एक की फ्रांस पहुंचने के एक हफ़्ते बाद मौत हो गई थी. अगर, चीन की सरकार हूबे और चीन से विदेश जाने वाली हर उड़ान को रोकने का फ़ैसला उसी वक़्त लेते (न कि एक हफ़्ते बाद), तो क्या आज दुनिया में कोरोना वायरस की महामारी का वो स्वरूप शायद नहीं होता, जैसा हम आज देख रहे हैं? जैसा कि फ्रांस की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री एनेस बुज़िन ने हाल ही में कहा था कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और उनकी सरकार को इस महामारी से सार्वजनिक स्वास्थ्य को ख़तरे का अंदाज़ा बहुत अच्छे से था. लेकिन, सरकार ने उस समय सोचा कि अभी से प्रतिबंधात्मक क़दम उठाने की फ्रांस की अर्थव्यवस्था को भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी. फ्रांस में चीन से हर साल क़रीब बीस लाख लोग आते हैं. जो दुनिया भर से फ्रांस घूमने आने वाले लोगों का क़रीब सात प्रतिशत है. फ्रांस की सरकार पर्यटन से जिन देशों से अच्छी आमदनी का लक्ष्य रखती है, उसमें चीन प्रमुख है. मज़े की बात है कि फ्रांस में जिस नेता ने सबसे पहले चीन से आने वाली हर उड़ान पर प्रतिबंध लगाने की बात की थी, वो थीं चीन की कट्टर दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली की अध्यक्ष मैरी ले पां थीं.

फ्रांस में कोरोना वायरस के प्रकोप से लड़ने के तरीक़े को लेकर दूसरा विवाद, देश में होने वाले स्थानीय निकाय के चुनावों की समय सारिणी को लेकर था. पूर्व स्वास्थ्य मंत्री एनेस बुज़िन, जो कि ख़ुद भी एक डॉक्टर हैं, ने फ्रांस के ल मॉन्द अख़बार को दिए इंटरव्यू में सरकार पर बेहद कड़े शब्दों में हमला बोला था. एनेस बुज़िन ने 11 जनवरी को दिए इस इंटरव्यू में ही कह दिया था कि उन्होंने राष्ट्रपति मैक्रों को इस नए वायरस के संभावित ख़तरे के बढ़ने के बारे में आगाह कर दिया था. साथ ही उन्होंने फ्रांस के राष्ट्रपति से ये भी गुज़ारिश की थी कि वो देश में होने वाले स्थानीय निकाय के चुनावों को स्थगित कर दें. हालांकि,स्पष्ट है कि एनिस, राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को ये क़दम उठाने के लिए राज़ी करने में असफल रही थीं. साक्ष्य बताते हैं कि फ्रांस में कोरोना वायरस के कई मरीज़ ऐसे थे, जिनमें वोट डालने के लिए जाने के कुछ दिनों बाद इसके संक्रमण के लक्षण दिखे थे. ज़ाहिर है इस नए संक्रामक वायरस के प्रकोप और इससे निपटने की तैयारी को लेकर फ्रांस की सरकार द्वारा किए गए सारे आकलन ग़लत थे. इसकी एक वजह शायद ये भी थी कि उस वक़्त फ्रांस के मीडिया का भी पूरा ध्यान चुनाव अभियान पर ही था. और साथ ही साथ उस समय फ्रेंच मीडिया में राष्ट्रपति मैक्रों के एक क़रीबी सलाहकार बेंजामिन ग्रिवाऊ के सेक्स स्कैंडल को लेकर भी अधिक शोर मचा रहा था. राष्ट्रपति के कार्यालय एलिसी पैलेस की ओर से वायरस के प्रकोप को लेकर ग़लत आकलन के लिए वजह ये बताई गई कि सरकार का पूरा ज़ोर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को जारी रखने पर था.

इसके अलावा, जिन अधिकारियों और नेताओं को नए कोरोना वायरस के प्रकोप को लेकर बोलने की ज़िम्मेदारी दी गई थी. वो भी इस बारे में मिले-जुले और कई बार विरोधाभासी बयान देते रहे. इससे कई बुनियादी उपायों को भी लागू करने को बार बार टाला जाता रहा. और ये सिलसिला मार्च महीने की शुरुआत तक जारी रहा था. उदाहरण के लिए सरकार के प्रवक्ता साइबेथ एनदियाये ने इस संकट की भयावाहता को कम करके बताने का प्रासस किया. उन्होंने कहा कि जितने लोग इस समय कोरोना वायरस से संक्रमित हैं, उससे कहीं अधिक लोग हर साल सीज़नल फ्लू से प्रभावित होते हैं. हालांकि, बाद में उसी हफ़्ते में साइबेथ ने माना कि सरकार महामारी को लेकर जारी एलर्ट को सर्वाधिक स्तर पर ले जाने पर विचार कर रही है. जिसके बाद यात्राओं पर प्रतिबंध और सार्वजनिक कार्यक्रमों पर पाबंदी लगाई गई. इसी गफ़लत के कारण फ्रांस की सरकार अपने नागरिकों को आगाह करने के संदेश में भी विरोधाभास देती रही. इसी कारण से फ्रांस की आम जनता का सरकारी व्यवस्था और सत्ताधारी वर्ग पर से विश्वास ही उठ गया. हाल ही में हुए एक सर्वे में ये बात सामने आई कि केवल 33 फ्रांसीसी नागरिकों को इस बात का भरोसा है कि कोरोना वायरस की महामारी से निपटनने के लिए सरकार की तैयारी पूरी है. फ्रांस में 12 मार्च को जाकर पहले चरण के सख़्त क़दमों की घोषणा की गई थी. इसमें स्कूल बंद करने का फ़ैसला भी शामिल था. इस बीच फ्रांस के लोग अपने सामाजिक बर्ताव को सीमित करने और घरों में बंद रहने की तैयारी कर रहे थे. वो घर में खाने पीने के सामान और दवाओं को जमा कर रहे थे. फ्रांस के कई सुपर मार्केट में तो सामान ख़रीदने को लेकर झगड़ों के मंज़र भी दिखाई दिए. इसके अलावा मास्क चोरी होने और हैंड सैनिटाइज़र की कालाबाज़ारी से लेकर उन्हें ऊंची क़ीमतों पर बेचने तक की घटनाएं भी सामने आईं.

हम युद्ध लड़ रहे हैं

15 मार्च को स्थानीय निकाय के चुनावों का पहला चरण पूरा होने के बाद जाकर फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अपना वो महान भाषण दिया, जिसकी बाद में बड़ी चर्चा हुई. इस भाषण में मैक्रों ने एलान किया कि फ्रांस इस समय युद्ध लड़ रहा है. फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने कहा कि, ‘दुश्मन यहीं है. मगर वो दिखता नहीं है. वो पकड़ में नहीं आता और तेज़ी से अपना विस्तार भी कर रहा है.’ पर, फ्रांसीसी राष्ट्रपति से ये पूछा जाना चाहिए कि क्या इस दुश्मन ने थोड़ी देर ठहर कर फ्रांस के नागरिकों को वोट करने का अवसर प्रदान किया था?

फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने अपने भाषण में कहा था कि, ‘कोई भी फ्रांसीसी पुरुष या फ्रांसीसी महिला, संसाधनों से विहीन नहीं रहेगा.’ उन्होंने ये भी कहा था कि कामगारों को टैक्स में रियायत दी जाएगी. बेरोज़गार हुए लोगों को बेरोज़गारी भत्ता दिया जाएगा. तनख़्वाह वाली नौकरियों का संरक्षण किया जाएगा

हो सकता है कि हम फ्रांसीसी लोग, नए कोरोना वायरस के विरुद्ध ‘युद्ध’ लड़ रहे हों. लेकिन, हम अपनी सरकार के ख़िलाफ़ भी जंग लड़ रहे हैं. क्योंकि इस सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए व्यय में कमी कर दी थी. पिछले बीस वर्षों में देश में अस्पताल की बेड की संख्या में एक लाख की गिरावट आई है. हमारी लड़ाई अपने देश की कॉरपोरेट व्यवस्था के ख़िलाफ़ भी है (जो प्रयोगशालाओं के बीच प्रतिद्वंदिता को स्वीकार नहीं करता). ऐसे में डॉक्टर राउल द्वारा कोरोना वायरस से संक्रमित कुछ मरीज़ों पर हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन का तजुर्बा करने पर छिड़ी बहस बेमानी है. यहां तक कि हम ख़ुद अपने ख़िलाफ़ भी जंग लड़ रहे हैं. क्योंकि हमारे अंदर एक मूलभूत अनुशासन बनाए रखने का भी भाव नहीं है. लोग खुले में सूरज की धूप का आनंद लेने में इतने मशगूल थे कि इससे फ्रांस में वायरस का प्रकोप और बढ़ गया. और इसके भयावाह नतीजे सामने आए.

इस समय फ्रांस की जनता, अपनी संघीय सरकार की ओर बड़ी उम्मीदों से ताक रही है. उसे उम्मीद है कि केंद्रीय सरकार इस संकट से जूझ रही है. क्योंकि इस संकट से निपटना सरकार की ही ज़िम्मेदारी है. इस युद्ध में फ्रांस के सभी संसाधनों का इस्तेमाल ख़ास फ्रांसीसी तरीक़े से किया जा सकता है, ताकि इस वायरस के संक्रमण में विस्फोटक वृद्धि को रोका जा सके. इसके लिए सरकार की तरफ़ से भारी मात्रा में पैसा ख़र्च करके सामाजिक कल्याण के काम किए जाने चाहिए. साथ ही मज़दूरों और अन्य कामगारों की सुरक्षा के अन्य उपाय (जैसे कि टैक्सी का भाड़ा और होटल का बिल भरना चाहिए, ताकि स्वास्थ्य कर्मी अस्पतालों के क़रीब रह सकें) भी करने चाहिए. इस समय फ्रांस में लॉकडाउन को लागू करने के लिए एक लाख से अधिक अधिकारियों को तैनात किया गया है. फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने अपने भाषण में कहा था कि, ‘कोई भी फ्रांसीसी पुरुष या फ्रांसीसी महिला, संसाधनों से विहीन नहीं रहेगा.’ उन्होंने ये भी कहा था कि कामगारों को टैक्स में रियायत दी जाएगी. बेरोज़गार हुए लोगों को बेरोज़गारी भत्ता दिया जाएगा. तनख़्वाह वाली नौकरियों का संरक्षण किया जाएगा. फ्रांस की जनता ने इन क़दमों के लिए अपनी सरकार के पक्ष में ख़ूब तालियां बजाईं. इस समय राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की लोकप्रियता की रेटिंग 51 प्रतिशत से ज़्यादा है. फिर भी सरकार की कार्यक्षमता पर सवाल उठ रहे हैं. फ्रांस ने पिछले कई दशकों से अपने यहां जिस सामाजिक लोकतांत्रिक प्रशासनिक व्यवस्था को बढ़ावा दिया है, पाला पोसा है, क्या वो इस संकट से देश को उबार पाने में पर्याप्त रूप से सक्षम है?

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