Published on Sep 30, 2019 Updated 0 Hours ago

नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में आख़िरकार आर्थिक विकास एक प्राथमिकता बना है. और इस संवाद में कारोबारी तबक़ा सबसे अहम किरदार बन गया है.

निर्मला सीतारमण के टैक्स में दो कटौतियों के ऐलान से जगीं चार उम्मीदें!

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने टैक्स में बदलाव के जो ऐलान किए हैं, वो नई सरकार के पहले आर्थिक क़दम हैं. इन क़दमों का लक्ष्य उन लोगों की चिंताएं दूर करना है, जो पैसे निवेश करते हैं, नई कंपनियां खोलते हैं, रोज़गार पैदा करते हैं, विकास दर बढ़ाते हैं, संपत्ति का अर्जन करते हैं. कुल मिला कर, वित्तमंत्री ने पिछले हफ़्ते जो ऐलान किए हैं, उनका मक़सद आंत्रेप्रेन्योर यानी कारोबार का जोख़िम लेने वालों की चिंताओं को दूर करने की कोशिश है. सरकार को ये क़दम उठाने में काफ़ी वक़्त लग गया. सरकार ने समाजवादी सरोकारों और नैतिक मगर दिवालिया हो चुके उच्च स्तर के मापदंडों को पीछे छोड़ कर, आख़िर में कॉरपोरेट टैक्स में कटौती की है. ये मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला ऐसा आर्थिक क़दम था, जिसने आर्थिक विकास के लिए सबसे अहम लोगों, पर सबसे गहरा असर डाला. हम सरकार और ख़ास तौर से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के इस क्रांतिकारी बदलाव का स्वागत करते हैं. हालांकि, अभी भी विकास दर बढ़ाने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है. लेकिन, इन क़दमों से ये ज़ाहिर होता है कि तेज़ गति से आर्थिक विकास का शोर केवल सियासी बयानबाज़ी नहीं है, बल्कि अब ये सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है. ये सरकार अब सिर्फ़ बयानबाज़ी के बजाय एक्शन पर भी ज़ोर दे रही है. नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में आख़िरकार आर्थिक विकास एक प्राथमिकता बना है. और इस संवाद में कारोबारी तबक़ा सबसे अहम किरदार बन गया है.

कुल मिलाकर कहें तो, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने टैक्स की दरों में जिन बदलावों की घोषणा की है उनमें से दो बदलाव अहम हैं, जो कंपनियों को फ़ायदा पहुंचाएंगे. सरकार ने ये परिवर्तन कर क़ानून (संशोधन) अध्यादेश 2019 के तहत किए हैं. पहली बात तो ये कि निर्माण क्षेत्र में निवेशकों को आकर्षित करने के लिए 1 अक्टूबर 2019 से पहले रजिस्टर कराई गई कंपनियों के लिए टैक्स की दर घटा कर 15 प्रतिशत कर दी गई है. ये क्षेत्र देश में सबसे ज़्यादा लोगों को रोज़गार देता है और रोज़गार सृजन में अहम भूमिका निभाता है. इन कंपनियों ने अगर 31 मार्च 2023 से पहले उत्पादन शुरू कर दिया, तो उन्हें ये टैक्स रियायत मिलेगी. असल टैक्स की दर 17.01 प्रतिशत होगी. इन कंपनियों को अब मिनिमम ऑल्टरनेटिव टैक्स यानी MAT को नहीं अदा करना होगा. नॉर्थ ब्लॉक यानी वित्त मंत्रालय के हिसाब से सरकार के इस क़दम से निवेशकों का हौसला बढ़ेगा.

आज जो निवेशक इस टैक्स छूट का लाभ लेना चाहेंगे, उन्हें केवल 42 महीनों के अंदर अपनी कंपनी में उत्पादन शुरू करना होगा. इसके लिए उन्हें पूंजी जुटानी होगी, काबिललोगों को नौकरी पर रखना होगा.

लेकिन, केवल टैक्स रियायतों से ही कारोबारी फ़ैसले नहीं लिए जाते हैं. आज जो निवेशक इस टैक्स छूट का लाभ लेना चाहेंगे, उन्हें केवल 42 महीनों के अंदर अपनी कंपनी में उत्पादन शुरू करना होगा. इसके लिए उन्हें पूंजी जुटानी होगी, काबिललोगों को नौकरी पर रखना होगा. उत्पादों की नई परिकल्पना कर के उन्हें बाज़ार तक पहुंचाना होगा. इस दौरान इन कंपनियों को सरकार के तमाम नियम क़ायदों का भी पालन करना होगा. इसी प्रक्रिया में भारत में कारोबार की सबसे बड़ी चुनौती खड़ी होती है. और वो है नौकरशाही. हमेशा अपना फ़ायदा देखने वाली नौकरशाही से कारोबार के लिए क़ानूनी प्रक्रिया के तहत इज़ाजत लेना बहुत मुश्किल काम है. फिर उसके लिए जो निर्माण कार्य करना होगा उसमें पानी की सुविधा भी हो और सुरक्षा के मानकों का भी कारोबारियों को पालन करना होगा. ये एक बड़ी चुनौती बनी रहेगी. आज भ्रष्टाचार की निगरानी मुश्किल है. लेकिन ये तय है कि इसमें इज़ाफा होगा. ख़ासतौर से उस वक़्त जब उद्योगपति नया धंधा शुरू करना चाहेंगे. इसलिए कारोबारियों को इन नियमों की वजह से देर होती है, तो उन्हें और रियायत दी जानी चाहिए. इसके लिए राज्यों की सरकारों को भी अपने यहां की प्रक्रिया को आसान बनाना होगा. वो एक-एक विभाग से इसकी शुरुआत कर सकते हैं.

दूसरी बात ये कि मौजूदा घरेलू कंपनियों की राह आसान बनाने के लिए सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स को घटा कर 22 प्रतिशत कर दिया है. उन्हें ये फ़ायदा तब मिलेगा, जब वो सरकार से टैक्स की दूसरी रियायतें नहीं लेंगे. सरचार्ज और सेस मिलाकर कॉरपोरेट टैक्स 25.17 प्रतिशत बैठता है. और इन कारोबारियों को मिनिमम ऑल्टरनेटिव टैक्स यानी MAT फिर नहीं देना होगा. लेकिन, टैक्स रियायतें देने वाला जो मौजूदा सिस्टम है, उसे छोड़ पाना कारोबारियों के लिए आसान नहीं होगा. निर्मला सीतारमण का अध्यादेश इस परेशानी को ध्यान में रखते हुए, इन कंपनियों को घटे हुए टैक्स की दरों का फ़ायदा उठाने का विकल्प मुहैया कराता है. उन्हें ये फ़ायदा टैक्स हॉलिडे और पुरानी रियायतों की मियाद ख़त्म हो जाने के बाद मिलेगा. इस दौरान इन कंपनियों को पहले की 18.5 प्रतिशत की दर के बजाय 15 प्रतिशत की दर से MAT अदा करना होगा.

आगे की तरफ़ देखें, तो इन टैक्स रियायतों से चार उम्मीदें जगी हैं. पहली तो ये है कि मंदी का ये दौर टैक्स के रेट घटने से जल्द ख़त्म होगा. हालांकि ऐसा कुछ नहीं होने वाला. याद रखिए कि किसी भी कंपनी को नया उत्पादन करने में वक़्त लगता है. और राह में रुकावटें खड़ी करने के नौकरशाही के इतिहास को देखें तो, बहुत से कारोबारी ऐसे होंगे, जो टैक्स छूट का लाभ लेने के लिए 42 महीने में उत्पादन शुरू करने की शर्त शायद न पूरी कर पाएं. बहुत से बहुत ये होगा कि इस दौरान हम कंपनियों की तरफ़ से निवेश करने के बड़े एलानों का शोर सुन सकते हैं. वहीं, दूसरी तरफ़ मौजूदा टैक्स दाताओं को नई टैक्स रियायतें हासिल करने के लिए मौजूदा टैक्स रियायत सिस्टम को पीछे छोड़ने में वक़्त लगेगा. हालांकि, इन तमाम हालातों के बावजूद, अगर सब कुछ सही रहा तो, ये टैक्स नीति, मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के अगले चार सालों के दौरान और बेहतर हो कर दिखने की उम्मीद है.

जब सभी टैक्स रियायतें और प्रोत्साहन ख़त्म हो जाएंगे, तो सरकार को चाहिए कि वो टैक्स की दरों को घटाए और इसे देने वालों का दायरा बढ़ाये. इस दौरान, अमीर किसानों को भी इनकम टैक्स के दायरे में लाया जाना चाहिए.

दूसरी बात ये कि इन रियायतों के ऐलान से डायरेक्ट टैक्स कोड यानी प्रत्यक्ष कर की नियमावली की उम्मीद जगती है. ये अध्यादेश उस दिशा में उठा गया पहला क़दम है. प्रत्यक्ष करों की एक सरल व्यवस्था, जिस में रियायतों और प्रोत्साहन जैसा कुछ नहीं होगा, वो देश के लिए मुफ़ीद होगा. इसे इनकम टैक्स के व्यक्तिगत स्तर पर भी लागू किया जाना चाहिए. इस टैक्स कोड के पीछे की धारणा ये होनी चाहिए कि अगर कोई आमदनी होती है, तो उस पर टैक्स देना होगा. जब सभी टैक्स रियायतें और प्रोत्साहन ख़त्म हो जाएंगे, तो सरकार को चाहिए कि वो टैक्स की दरों को घटाए और इसे देने वालों का दायरा बढ़ाये. इस दौरान, अमीर किसानों को भी इनकम टैक्स के दायरे में लाया जाना चाहिए. हम ने देखा है कि ये सरकार कड़े फ़ैसले ले सकती है. जैसे कि नोटबंदी, बालाकोट एयरस्ट्राइक या फिर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फ़ैसले इसकी मिसाल हैं. तो, ऐसे में डायरेक्ट टैक्स कोड लाकर अमीर किसानों से इनकम टैक्स लेना मुमकिन है. ऐसे में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को चाहिए कि वो कॉरपोरेट सेक्टर को दी गई हालिया रियायतों से अपने पक्ष में बने माहौल को हाथ से न जाने दें. वित्तमंत्री को चाहिए कि वो डायरेक्ट टैक्स कोड की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ें.

तीसरी बात ये कि सरकार के इन ऐलानों से शेयर बाज़ार की उम्मीदें आसमान पर पहुंच गई हैं. निर्मला सीतारमण के ऐलान के बाद सेंसेक्स में आया 2000 अंकों का उछाल कुछ ज़्यादा ही ख़ुशी दिखाने वाला था. हो सकता है कि बाज़ार के निवेशक केवल इस बात का फ़ायदा उठा रहे हों कि आख़िरकार मौजूदा सरकार अर्थव्यवस्था को गंभीरता से ले रही है. अगर ये दांव नेक नीयती पर है और शेयर बाज़ार को ये उम्मीद है कि निवेश पर अगले चार सालों में अच्छा मुनाफ़ा मिलेगा, तो फिर सेंसेक्स की ये ख़ुशी ठीक है. लेकिन, अगर बाज़ार ने ये उम्मीद लगा ली है कि अगली तिमाही में हालात अच्छे हो जाएंगे, तो फिर बाज़ार जिस तेज़ी से चढ़ा है, उतनी ही तेज़ी से गिरेगा भी. सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आख़िर कितने लोग भारत में लंबे समय के लिए निवेश करते हैं. क्योंकि तमाम दिक़्क़तों के बावजूद भारत की विकास दर के लिए माहौल अच्छा है. हालांकि ऐसे लोगों का मुक़ाबला उनसे है, जो अगली तिमाही से ही गुड न्यूज़ की उम्मीद लगाए बैठे हैं.

नीतियों में नियमित रूप से बदलाव के अनुभव को देखते हुए, अगर हम ये सोचें कि निवेशक भारत की तरक़्क़ी को देख कर पैसे लगाएंगे, तो ये उम्मीद बेमानी है. सरकार को कारोबारियों और निवेशकों को को बार-बार ये भरोसा दिलाना होगा कि फलां नीति ऐसी ही बनी रहेगी. इस में बदलाव नहीं होगा.

और, चौथी बात ये कि सरकार के ऐलान से टैक्स के वैश्वीकरण की उम्मीद जगी है. सरकार का कॉरपोरेट टैक्स को 35 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत करना टैक्स दरों में बहुत बड़ी छूट है. एक त्वरित फ़ैसले से भारत ने ख़ुद को 20 सबसे ज़्यादा टैक्स वसूली वाले देशों की क़तार से अलग कर लिया है. इन देशों में संयुक्त अरब अमीरात में 55 प्रतिशत, कोमोरन में 50 फ़ीसद, पुएर्तो रिको में 39 फ़ीसद, सूरीनाम में 36 प्रतिशत टैक्स वसूला जाता है. अब भारत चाड, कॉन्गो, इक्वेटोरियल गिनी, गिनी, किरीबाती, माल्टा, सेंट मार्टेन, सूडान और ज़ाम्बिया वाली क़तार में है. भारत में 25 प्रतिशत कॉरपोरट टैक्स, विश्व के औसत 23 प्रतिशत के क़रीब ही है. आज जबकि तमाम देशों में निवेश हासिल करने की होड़ लगी है, ऐसे में टैक्स की दरों में कटौती का अपना अहम रोल है. भारत को भी इस चुनौती से मुक़ाबला करते हुए अपने टैक्स की दरों में ज़रूरी रियायतें देनी ही होंगी.

अगर ये सरकार अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए टैक्स में रियायत जैसी मरहम पट्टी से आगे की सोच रही है, तो सरकार को कारोबारियों की उस अपेक्षा को पूरा करना होगा, जो नीति निर्धारण से जुड़ी हुई है और एक नियमितता चाहती है. नीतियों में नियमित रूप से बदलाव के अनुभव को देखते हुए, अगर हम ये सोचें कि निवेशक भारत की तरक़्क़ी को देख कर पैसे लगाएंगे, तो ये उम्मीद बेमानी है. सरकार को कारोबारियों और निवेशकों को को बार-बार ये भरोसा दिलाना होगा कि फलां नीति ऐसी ही बनी रहेगी. इस में बदलाव नहीं होगा. हमें लगता है कि सरकार ऐसा आश्वासन नहीं दे सकती और न ही देगी. जिस तरह इस सरकार ने बजट में सरचार्ज और सेस को बना कर रखा है, उससे ऐसा लगता है कि आने वाले समय में इन का दायरा और बढ़ाया जाएगा. जबकि सरकार टैक्स की दरों को स्थिर बनाए रखेगी. ये टैक्स वसूली में हेरा-फेरी है. टैक्स रियायतों के ऐलान के बाद अगले क़दम के रूप में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को चाहिए कि वो सभी सरचार्ज और सेस को ख़त्म करें. जिस तरह सरकार ने 1 लाख 45 हज़ार की टैक्स छूट दी है. वैसे ही चाहिए कि सेस और सरचार्ज से वसूले जाने वाले 10 हज़ार करोड़ रुपयों का नुक़सान भी उठाया जा सकता है. इससे सरकार को टैक्स से होने वाली कमाई में कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है. लेकिन, अगर सरचार्ज और सेस हटाए जाते हैं, तो इससे टैक्स की दरें स्पष्ट होंगी. ऐसा होने पर भारत को 5 ख़रब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना पूरा करने में काफ़ी मदद मिलेगी.

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