Author : Amruta Ponkshe

Published on Mar 28, 2024 Updated 0 Hours ago

भारत में जैसे-जैसे लॉकडाउन की बंदिशें ख़त्म हो रही हैं, वैसे वैसे मोटर व्हीकल एक्ट में किए गए संशोधनों से हुए लाभ ख़त्म होते दिख रहे हैं. धीरे-धीरे हम उस दिशा में बढ़ रहे हैं, जहां घने बसे शहरों की व्यस्त सड़कों पर हादसों में मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है

भारत में तेज़ी से बढ़तीं सड़क हादसों की घटनाएं

कहा जा रहा है कि कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए देशभर में जो लॉकडाउन लगाया गया था, उससे सड़क हादसों में लगभग बीस हज़ार लोगों की जान जाने से बचायी गईं. अप्रैल से लेकर जून 2020 तक सड़क हादसों में 20 हज़ार 732 लोगों की मौत हुई. जबकि, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा सड़क सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट की कमेटी को हर तिमाही में उपलब्ध कराए जाने वाले आंकड़ों के अनुसार पिछले साल अप्रैल से जून के बीच 41 हज़ार 32 लोगों की सड़क हादसों में जान चली गई थी.

सिर्फ़ वर्ष 2019 में सड़क दुर्घटनाओं के कारण एक लाख 49 हज़ार, 68 लोगों की मौत हुई थी. और सड़क हादसों में चार लाख 52 हज़ार 242 लोग घायल भी हुए थे. वहीं, 1 सितंबर 2020 तक घातक कोरोना वायरस 65 हज़ार 288 लोगों की जान ले चुका था. और ये तादाद बढ़ ही रही है. इस महामारी ने हमारे देश की स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र से जुड़ी तमाम कमियों को उजागर किया है. और इसके कारण भारत सरकार मजबूर हुई है कि वो स्वास्थ्य व्यवस्था में सुविधाओं की कमियों को दूर करने की कोशिश करे.

मोटर व्हीकल एक्ट में किया गया संशोधन 1 सितंबर 2019 से लागू हुआ था. इसका मक़सद, देश में सड़क पर यातायात को सुरक्षित बनाना और सड़क हादसों में लोगों की मौत की संख्या को कम करना था. लेकिन, अब जैसे-जैसे भारत में लॉकडाउन से अनलॉक की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है, तो साफ़ दिख रहा है कि मोटर व्हीकल एक्ट का नया स्वरूप लागू होने से मिले फ़ायदे कम होते जा रहे हैं.

मोटर व्हीकल एक्ट में किया गया संशोधन 1 सितंबर 2019 से लागू हुआ था. इसका मक़सद, देश में सड़क पर यातायात को सुरक्षित बनाना और सड़क हादसों में लोगों की मौत की संख्या को कम करना था. लेकिन, अब जैसे-जैसे भारत में लॉकडाउन से अनलॉक की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है, तो साफ़ दिख रहा है कि मोटर व्हीकल एक्ट का नया स्वरूप लागू होने से मिले फ़ायदे कम होते जा रहे हैं. देश अब उसी अवस्था की ओर बढ़ रहा है, जब भीड़-भाड़ वाले शहरों की व्यस्त सड़कों पर हादसों की तादाद अधिक हुआ करती थी. जैसे-जैसे शहरों के भीतर, दो शहरों के बीच और राज्यों के बीच परिवहन और यातायात दोबारा तेज़ हो रहा है. लॉकडाउन की पाबंदियां हटाई जा रही हैं, तो सड़क हादसों की संख्या और उनसे होने वाली मौत के आंकड़े बढ़ रहे हैं. कोविड-19 से हमारा संघर्ष तो जारी ही है. सड़क हादसों और इनसे मौत की संख्या बढ़ने की कई वजहें हो सकती हैं. बदली हुई परिस्थितियों में, इस बात को स्वीकार करना और मोटर व्हीकल एक्ट के प्रमुख प्रावधानों की नए सिरे से समीक्षा करना ज़रूरी हो गया है. जिससे कि सभी के लिए सड़क यातायात को सुरक्षित बनाया जा सके. आइए मोटर व्हीकल एक्ट के उन प्रावधानों पर एक नज़र डालते हैं, जिन्हें तुरंत दुरुस्त किए जाने की ज़रूरत है.

  1. सार्वजनिक परिवहन को दोबारा सामान्य करने के लिए आधेअधूरे उपाय किए गएइससे सड़कों पर निजी वाहनों की तादाद बढ़ी.

अनलॉक-4: ट्रेन सेवाएं अभी नहीं शुरू की गईं.

केंद्र सरकार ने अनलॉक-3 के एलान के साथ साथ ये भी कहा था कि कोविड-19 के चलते सामान और लोगों के अंतरराज्यीय परिवहन पर लगी तमाम तरह की पाबंदियां हटा ली जाएंगी. और, अब यातायात पर लगे ये प्रतिबंध केवल कंटेनमेंट ज़ोन में लागू होंगे. इसके बाद जब केंद्र और राज्यों की सरकारों ने अनलॉक-4 की गाइडलाइन्स जारी कीं, तो यातायात और परिवहन पर लगी कुछ और पाबंदियां भी हटा ली गईं. इसके बाद भारत के कारोबारी सेक्टर ने भी आर्थिक गतिविधियों को चरणबद्ध तरीक़े से शुरू करने का एक एक्शन प्लान पेश किया. लेकिन, अभी भी लंबी दूरी की आवाजाही, स्थानीय और यहां तक कि कई शहरों में तो मेट्रो सेवाएं भी नहीं शुरू की गईं. इसीलिए, जो लोग कहीं आने जाने के लिए सार्वजनिक परिवहन पर निर्भर हुआ करते थे, वो सार्वजनिक परिवहन के साधन उपलब्ध न होने से निजी वाहन का प्रयोग करने को मजबूर हैं. इसके अलावा, अभी अधिकतर ट्रेन सेवाएं अभी शुरू नहीं की गई हैं. इससे लोगों को आवाजाही में काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

यातायात के पर्याप्त संसाधन न होने के कारण, भारत के शहरों और महानगरों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था इस समय पूरी तरह से नगरीय बस सेवाओं के भरोसे है. ज़्यादातर शहरों की बसें पुरानी हो चुकी हैं. और उन्हें जब शहरों की मेट्रो या लोकल ट्रेन सेवाओं का सहारा भी नहीं मिल पा रहा है.

बस से परिवहन: बहुत कम उपलब्धता और भारी भीड़ की समस्या

यातायात के पर्याप्त संसाधन न होने के कारण, भारत के शहरों और महानगरों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था इस समय पूरी तरह से नगरीय बस सेवाओं के भरोसे है. ज़्यादातर शहरों की बसें पुरानी हो चुकी हैं. और उन्हें जब शहरों की मेट्रो या लोकल ट्रेन सेवाओं का सहारा भी नहीं मिल पा रहा है. तो, केवल इन पुरानी पड़ती बसों के माध्यम से शहरों में सार्वजनिक यातायात को संचालित कर पाना बेहद मुश्किल हो रहा है. ख़ासतौर से जब लोगों को इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग के उपायों का पालन करना हो. लेकिन, बसों में इतनी भीड़ हो जा रही है कि सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन संभव नहीं हो पा रहा है. दिल्ली, पुणे, नागपुर और मुंबई में किए गए अध्ययनों में ये बात सामने आई है. कुछ स्टडी में तो ये भी कहा गया है कि शहरों की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए हमें इस समय सड़कों पर उतर रही बसों के मुक़ाबले, 24 गुना अधिक बसों की ज़रूरत है. बसों की कम संख्या के चलते कोविड-19 के दौर में भी सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन नहीं हो पा रहा है. इससे कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ने का ख़तरा मंडरा रहा है.

सार्वजनिक परिवहन को करारा झटका: कारों और बाइक की बिक्री में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा

सार्वजनिक परिवहन की इन कमियों के कारण ही यातायात को लेकर नागरिकों के बर्ताव में परिवर्तन देखा जा रहा है. आज लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बजाय निजी गाड़ियों से चलने को तरज़ीह दे रहे हैं. क्योंकि, सार्वजनिक परिवहन के दौरान संक्रमण का भी डर है. और शहरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधाओं की भारी कमी है. इसीलिए, मई 2020 से नई और पुरानी दोनों तरह की कारों व दोपहिया वाहनों की बिक्री में बढ़ोत्तरी हो रही है.

  1. गैर मोटर परिवहन की ओर बढ़ते क़दमट्रैफिक में इज़ाफ़े की आशंका और पैदल चलने वालों/बाइक सवारों के बीच टक्कर की आशंका बढ़ी

केंद्र सरकार के आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने राज्य सरकारों को गाइडलाइन जारी की हैं कि वो कोविड-19 के कारण उत्पन्न परिस्थितियों से निपटने के लिए नॉन मोटोराइज़्ड ट्रांसपोर्ट (NMT) पर ध्यान केंद्रित करें. जैसे कि साइकिल और पैदल यातायात. जिससे कि शहरों में आवाजाही को सुचारू किया जा सके. लेकिन, NMT पर ध्यान केंद्रित करने, सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की कमियों के चलते, सड़कों पर निजी गाड़ियों की बढ़ती संख्या के चलते सड़क सुरक्षा के लिए जोखिम और बढ़ गया है.

साइकिल्स4चेंज: एक स्वागत योग्य चुनौती

हाल ही में स्मार्ट सिटी मिशन के तहत Cycles4Change नाम से अभियान शुरू किया गया है. इसके तहत भारतीय शहरों में कोविड-19 की महामारी से से निपटने के लिए साइकिलिंग को बढ़ावा देने की कोशिश की जा रही है. इसके अलावा गाड़ियों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम करके आर्थिक तरक़्क़ी को दोबारा शुरू करने के लिए शहरों में हरित ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने का भी प्रयास किया जा रहा है. कई शहरों में पहले से ही साइकिल से सफर को बढ़ावा देने की योजना पर काम चल रहा है. लोगों के बीच साइकिल चलाने की आदत को प्रोत्साहन देने की योजनाएं कई अलाभकारी संस्थाओं जैसे कि, साइकिल मेयर ने भी शुरू की हैं.

गाड़ी से चलने वालों की मानसिकता बदलने की ज़रूरत है

अब जबकि शहरों के प्रशासन द्वारा साइकिल सवार और पैदल चलने वालों को दोबारा इस दिशा में आगे बढ़ने का प्रोत्साहन दिया जा रहा है. तो, ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि गाड़ी चलाने वाले भी अपनी सोच में बदलाव करें, ताकि NMT यूज़र (बिना मोटर चालित वाहनों से चलने वालों) का स्वागत किया जाए. सड़कों के साथ बाइक लेन और फुट पाथ की भी योजनाएं बनानी होंगी. इनसे सख़्ती से लागू करना होगा और इनके संचालन में भी नियमों का पूरी तरह से पालन होना चाहिए. इसके लिए इस बात को ध्यान में रखना होगा कि हमारे देश में सड़कों का इस्तेमाल करने वाले अधिकतर लोगों के पास अपनी कार नहीं है. गाड़ी मालिकों का पैदल और साइकिल सवारों के प्रति क्या रवैया रहता है, इसे लेकर हाल के वर्षों में हमारे यहां कोई अध्ययन नहीं किया गया है. लेकिन, इससे पहले की गई स्टडी और मीडिया रिपोर्ट्स से साफ पता चलता है कि साइकिल सवारों को ये गाड़ी मालिक बहुत अच्छी नज़र से नहीं देखते. और वक़्तों में साइकिल सवार, अक्सर बड़ी गाड़ियों जैसे कि ट्रकों से टकरा जाने का ख़तरा रहता है. जिससे साइकिल सवारों को चोट पहुंचने का डर होता है.

साइकिल लेन और सड़क सुरक्षा

ये बात बिल्कुल सच है कि भारत के शहरों में पर्याप्त मात्रा में साइकिल लेन और पैदल चलने वालों की व्यवस्था नहीं है. सड़कों में इससे संबंधित बुनियादी ढांचे की भारी कमी है. लेकिन, गाड़ियों की लेन और पैदल व साइकिल सवारों की लेन को अलग-अलग कर देने भर से काम नहीं चलने वाला. सिर्फ़ इसी से साइकिल सवारों और पैदल चलने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो सकेगी. हमें अपने ड्राइविंग कल्चर को भी नए सिरे से ढालना होगा. सभी तरह के मोटर वाहनों के परिवहन को लेकर नई नीतियां बनानी होंगी. इसकी शुरुआत दोपहिया गाड़ियों, जिसमें मोटरसाइकिल, स्कूटर और अब ई-स्कूटर व अन्य गाड़ियां शामिल हैं. दुनिया के अन्य देशों में जहां भारी मात्रा में मोटर व्हीकल चलते हैं, वहां पर साइकिल सवारों के साथ हादसे होने की बड़ी वजह, मोटर गाड़ियां चलाने वालों का साइकिल वालों के प्रति ख़राब रवैया होती है. अब जबकि कोविड-19 के बाद के दौर में भारत हरित परिवहन को बढ़ावा देकर आर्थिक प्रगति की रफ़्तार दोबारा पाने की कोशिश कर रहा है, तो हमें बिना मोटर गाड़ियों के चलने वालों के प्रति मोटर गाड़ी वालों की सोच को बदलना होगा. NMT यात्रियों के हित में ख़ास सड़क संस्कृति को बढ़ावा देना होगा.

ड्राइविंग के मौजूदा बर्ताव: सड़क को लेकर भयंकर सोच और रोड रेज

भारत के क़रीब 100 शहरों में किए गए ‘ड्राइविंग सिटी इंडेक्स’ के सर्वे के अनुसार, मुंबई और कोलकाता सड़क सुरक्षा के मामले में सबसे नीचे हैं. यहां रोड रेड की सबसे भयंकर घटनाएं दर्ज की गई हैं. वर्ष 2010 से 2013 के दौरान पूरे देश में 15 से 29 वर्ष आयु के लोगों की असामयिक मौत के पीछे सड़क दुर्घटना सबसे बड़ी वजह रही थी. वर्ष 2015 में 54 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए लोगों की उम्र 15 से 34 वर्ष के बीच रही थी. सड़क हादसों के कारण अक्सर परिवारों की आमदनी के स्रोत को नुक़सान होता है. रोज़ी रोज़गार छिन जाता है. संबंधित परिवार को आर्थिक दिक़्क़तें होती हैं. और जो लोग सड़क दुर्घटनाओं में बच भी जाते हैं, उनके इलाज में भारी रक़म ख़र्च करनी पड़ती है.

हालांकि, 2019 का मोटर व्हीकल एक्ट सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों को बीमा के ज़रिए आर्थिक मदद उपलब्ध कराता है. लेकिन, इस क़ानून से सड़क हादसों के शिकार लोगों को होने वाली मानसिक क्षति की भरपाई नहीं होती. भारत में रोड रेज की घटनाएं आम तौर पर तेज़ हॉर्न बजाना, अपनी लेन छोड़ कर घुसना, ओवरटेक करना और ग़लत लेन से तेज़ी से गाड़ी निकालना, गाली गलौज और कई बार मार-पीट तक पहुंच जाती हैं. अलग-अलग स्थानों में क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों (RTO) द्वारा किए जाने वाले ड्राइविंग टेस्ट के दौरान लोगों को रोड रेज के बर्ताव के प्रति संवेदनशील होने की ट्रेनिंग नहीं दी जाती. जबकि, हमारे देश में कोरोना वायरस से अधिक लोग रोड रेज की घटनाओं में लोगों की जान जाती है.

अलग-अलग स्थानों में क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों (RTO) द्वारा किए जाने वाले ड्राइविंग टेस्ट के दौरान लोगों को रोड रेज के बर्ताव के प्रति संवेदनशील होने की ट्रेनिंग नहीं दी जाती. जबकि, हमारे देश में कोरोना वायरस से अधिक लोग रोड रेज की घटनाओं में लोगों की जान जाती है.

बिना मोटर गाड़ियों के चलने वाले लोगों पर अधिक ध्यान दिया जाना एक स्वागत योग्य क़दम है. लेकिन, केंद्र, राज्य और शहरी प्रशासन द्वारा ड्राइवरों का प्रशिक्षण और सड़क सुरक्षा को लेकर जागरूकता जैसे क़दमों पर भी ज़ोर दिया जाना ज़रूरी है. जिससे साइकिल सवारों  और पैदल चलने वालों के सड़क पर अधिकार को गाड़ी से चलने वाले लोग स्वीकार करेंगे. इसके अलावा साइकिल सवारों और पैदल चलने वालों को भी सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा. हेल्मेट, सुरक्षा के उपकरण, अंधेरे में साइकिलों में हेड और टेल लैम्प की अनिवार्यता और पैदल चलने वालों के उछल कूद करने खिलाफ सख़्त नियम बनाए जाने चाहिए. आज मोटर वाहन के बिना चलने वालों को भी सड़क सुरक्षा से संबंधित क़ानूनों और नियमों के दायरे में लाए जाने की ज़रूरत है. इसी तरह साइकिल सवारों और पैदल चलने वालों के अधिकारों के संरक्षण के लिए भी नियम बनाए जाने की ज़रूरत है. और ये नियम भारत की सड़कों की अनूठी व्यवस्था के हिसाब से ढाले जाने चाहिए. साथ साथ वाहन चालकों के लिए बनाए गए नियम क़ायदों को भी मज़बूत करना होगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.