Author : Harsh V. Pant

Published on Apr 03, 2020 Updated 0 Hours ago

आज दुनिया के एकमात्र महा-स्वाभाविक संगठन का आदर्श बुरी तरह से खत्म होता लगता है, क्योंकि यूरोपीय संघ के सदस्य देश अपने स्वयं की राष्ट्रीय सहूलियत के लिए पीछे हट गए हैं.

दांव पर है यूरोपीय आदर्शवाद

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भले ही यह बता रहा हो कि यूरोप में कोविड-19 के प्रकोप में स्थिरता आने के संकेत मिल रहे हैं, लेकिन तीस हजार से ज्यादा मौतों के साथ यूरोप इस महामारी का केंद्र बना हुआ है. इसी सप्ताह की शुरुआत में डब्ल्यूएचओ में स्वास्थ्य आपात स्थिति के प्रमुख माइक रयान ने कहा था कि इटली और स्पेन चरम पर पहुंच रहे हैं, लेकिन हमें बड़ी उम्मीद है कि अब यूरोपीय लॉकडाउन अपना फल देना शुरू कर देगा. हालांकि उनका यह कहना असलियत कम और उम्मीद ज्यादा है. अभी यह महज उम्मीद है कि इस महामारी की चपेट में आए दुनिया के सबसे अमीर हिस्सों में चीजें नियंत्रण में आने लगी हैं.

यूरोपीय संघ के अधिकांश क्षेत्रीय नेताओं में इस संकट की घड़ी में बचाव की अलग-अलग पहल करने की होड़-सी मची है. चिकित्सा के क्षेत्र में दुनिया के कुछ सबसे अमीर देशों की कमजोरियां उजागर हो गई हैं

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी भी अन्य संकट के विपरीत यूरोप में कोरोना वायरस से जो विनाश हुआ है, वह इस महाद्वीप और यूरोपीय संघ (ईयू) के लिए एक अवसर होना चाहिए था, ताकि क्षेत्रीय एकजुटता दिखाई जा सके. एक अवसर था, जब यूरोप के एकीकरण को प्रभावी बनाने और लाभ लेने की स्थिति बनती, लेकिन इसकी बजाय अपनी-अपनी राष्ट्रीय सीमाओं के भीतर ही यूरोप के राष्ट्र अपने-अपने कदम उठा रहे हैं. महामारी के खिलाफ कोई सुसंगत क्षेत्रीय पहल करने में यूरोपीय संघ की शायद ही कोई भूमिका रही है. यूरोपीय संघ के अधिकांश क्षेत्रीय नेताओं में इस संकट की घड़ी में बचाव की अलग-अलग पहल करने की होड़-सी मची है. चिकित्सा के क्षेत्र में दुनिया के कुछ सबसे अमीर देशों की कमजोरियां उजागर हो गई हैं.

कोरोना से जंग में संपूर्ण यूरोप की ओर से दुनिया को शायद ही कोई मिली-जुली कार्रवाई देखने को मिली है. यूरोप की राष्ट्रीय सरकारों ने अपनी-अपनी सीमाओं को बंद करके कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण के निर्णय लिए हैं. कभी जो लोग दक्षिणपंथी लोक-लुभावन भावनाओं को भड़काने का काम करते थे, आज उन्हीं के नेतृत्व में यूरोप के राष्ट्र चल रहे हैं. हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बन, महामारी के लिए ‘विदेशियों’ को दोष देने वाले पहले नेताओं में एक हैं. उनका यह दावा यूरोप में एक बड़ी प्रवृत्ति का लक्षण हो सकता है. इस प्रवृत्ति की वजह से ही उस यूरोपीय उद्यम के भविष्य को लेकर बड़े सवाल खड़े होने लगे हैं, जो यूरोप में बाहरी लोगों को आजादी या अवसर देने पर आधारित है. यूरोपीय परियोजना के लक्ष्य डगमगाने लगे हैं.

यूरोपीय राष्ट्रों में चल रही व्यापक भू-राजनीति भी यूरोपीय संघ के भविष्य पर कुछ गंभीर सवाल उठाने लगी है. पिछले महीने इटली के विदेश मंत्री लुइगी डि माइओ ने सार्वजनिक रूप से चीन की प्रशंसा कर दी थी, जब कोरोना वायरस से लड़ने में मदद करने के लिए चिकित्सा उपकरणों और डॉक्टरों के साथ चीन से एक विमान इटली पहुंचा

आर्थिक दृष्टि से भी अगर देखें, तो यूरोपीय परियोजना को अपनी कुछ मौलिक मान्यताओं को भूलना पड़ा है. अभी यूरोपीय आयोग को कोरोना वायरस से लड़ने के लिए संघ के सदस्य देशों को विशेष प्रावधान के तहत रियायत देनी पड़ी है, ताकि वे अभी बडे़ घाटे की चिंता न करते हुए महामारी से लड़ने में धन खर्च कर सकें. यह एक आपातकालीन आर्थिक उपाय है, जिसका उपयोग यूरोपीय संघ के इतिहास में पहली बार किया गया है. यूरोप के देश अत्यधिक ऋण लेकर भी इस संकट से उबर आएंगे, पर उनका ऐसा करना यूरोपीय संघ के विखंडन को बढ़ा सकता है.

यूरोपीय राष्ट्रों में चल रही व्यापक भू-राजनीति भी यूरोपीय संघ के भविष्य पर कुछ गंभीर सवाल उठाने लगी है. पिछले महीने इटली के विदेश मंत्री लुइगी डि माइओ ने सार्वजनिक रूप से चीन की प्रशंसा कर दी थी, जब कोरोना वायरस से लड़ने में मदद करने के लिए चिकित्सा उपकरणों और डॉक्टरों के साथ चीन से एक विमान इटली पहुंचा. उन्होंने उन यूरोपीय राष्ट्रों के रवैये के प्रति अपनी नाराज़गी भी खुलकर व्यक्त की, जिन्होंने सिर्फ ज़बानी मदद की पेशकश की थी. उन्होंने कह दिया, कई विदेश मंत्रियों ने एकजुटता की पेशकश की थी और कहा था कि हम मदद के हाथ आगे बढ़ाना चाहते हैं, लेकिन आज शाम मैं आपको दिखाना चाहता हूं कि चीन से प्राथमिक सहायता पहुंच गई है.

इस बीच सर्बियाई राष्ट्रपति अलेक्जेंडर वूसिक ने तो यूरोपीय संघ को मानो निर्वस्त्र ही कर दिया. उन्होंने कहा कि यूरोपीय एकजुटता नदारद है, यह महज़ एक कागज़ी परीकथा है. वुसिक ने लगे हाथ यह भी घोषणा कर दी कि उन्होंने अपने ‘भाई और दोस्त’ शी जिनपिंग को पत्र लिखा है, उनसे चिकित्सकीय सहायता मांगी है, क्योंकि इस वक्त चीन ही अकेला ऐसा देश है, जो हमारी मदद कर सकता है.

कुछ यूरोपीय देशों का ऐसा रवैया फ्रांस जैसे देशों के विपरीत है. इन दिनों संकट की घड़ी में भी फ्रांस जैसे देश यह आकलन कर रहे हैं कि चीन पर यूरोपीय संघ की निर्भरता संघ को नुकसान पहुंचाने की दिशा में काम कर रही है. फ्रांसीसी वित्त मंत्री, ब्रूनो ले मायेर ने देशों के बीच टूटी हुई आपूर्ति शृंखलाओं को फिर से जोड़ने की जरूरत बताई है, ताकि राष्ट्रों की स्वतंत्रता और संप्रभुता को फायदा हो. आज इस संकट के समय चीन के उस शुरुआती रवैये के कारण भी व्यापक असंतोष है, जिससे यह संकट इतना बढ़ गया है. स्पेन, चेक गणराज्य और नीदरलैंड जैसे देश चीन से आए कोरोना वायरस के दोषपूर्ण टेस्ट किट लौटाने को मजबूर हुए हैं.

एक पक्ष यह भी है कि अमेरिका के बाद यूरोपीय संघ आज चीन का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है, दुनिया की दिग्गज आर्थिक शक्तियों के बीच कितना अलगाव हो सकता है, इसकी भी अपनी सीमाएं हैं. इसके अलावा यह तथ्य यूरोपीय संघ के भी संज्ञान में होगा कि महामारी से पैदा संकट थम जाए और उसके बाद यूरोप के लिए आर्थिक सुधार प्राथमिकता बन जाएं, तब भी चीन को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.

द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद से यूरोपीय संघ दुनिया में इस बात की एक मिसाल रहा है कि राष्ट्र परस्पर लड़ाने वाले अपने हितों को कैसे दूर कर सकते हैं और सामूहिक रूप से समग्र क्षेत्रीय इच्छाओं के अनुरूप कैसे काम कर सकते हैं. लेकिन आज दुनिया के एकमात्र महा-स्वाभाविक संगठन का आदर्श बुरी तरह से खत्म होता लगता है, क्योंकि यूरोपीय संघ के सदस्य देश अपने स्वयं की राष्ट्रीय सहूलियत के लिए पीछे हट गए हैं. वैसे कोरोना वायरस की महामारी फैलने के पहले से ही यूरोपीय आदर्शवाद मर रहा था. यह ताजा संकट उस आदर्शवाद की बहाली को नामुमकिन न सही, तो पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल तो बना ही देगा.


यह लेख मूल रूप से हिंदुस्तान अखबार में प्रकाशित हो चुका है.

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