Author : Kashish Parpiani

Published on Dec 05, 2020 Updated 0 Hours ago

यूरोपीय घटनाक्रम को एक बड़े फलक पर देखें, तो ट्रंप द्वारा पैदा की गई 'रुकावटें' और ऐसे फ़ैसले जिसके ज़रिए उन्होंने आमूलचूल बदलाव लाने की कोशिश की, और जो अब ट्रान्स-अटलांटिक संबंधों के विश्लेषण पर पूरी तरह से हावी हैं, बहुत संभव है कि अंततः इतिहास में मात्र फुटनोट बन कर रह जाएं.

यूरोप में अमेरिका के साथ तालमेल उम्मीद से कहीं अधिक मज़बूत है

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ट्रांसअटलांटिक मामलों में पारंपरिक संबंधों को दरकिनार कर, लीक से हटकर कार्रवाई करने में, यूरोप को लेकर उनकी बयानबाज़ी हावी रही है. इसके तहत उन्होंने, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के अंतर्गत, यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ अमेरिका के आर्थिक संबंधों में संतुलन की मांग की. हालांकि, अनुभवजन्य साक्ष्य (Empirical evidence) यह दिखाता है कि इन बातों को लेकर ट्रंप का रिकॉर्ड वास्तव में मिश्रित रहा है. इसमें कुछ उल्लेखनीय नीति-स्तरीय उपलब्धियां और ऐसे विवाद भी शामिल हैं जो उनके कार्यकाल से पहले के हैं.

व्यापार को लेकर, ट्रंप प्रशासन द्वारा आयातित स्टील और एल्यूमीनियम पर टैरिफ़ यानी कर, लागू करने के बाद और यूरोप द्वारा जवाबी कार्रवाई के रूप में अपने स्तर पर इस तरह के दूसरे टैरिफ़ लगाए जाने के साथ, तनाव का अगला महत्वपूर्ण बिंदु साल 2019 में आया. अमेरिका ने, विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) द्वारा वाशिंगटन को 7.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक के यूरोपीय निर्यात पर कार्रवाई करने की अनुमति दिए जाने के बाद, यूरोपीय विमानों, शराब, चीज़ (पनीर) और अन्य उत्पादों पर कर लगाया. यह 16 साल पुराने एक विवाद की जवाब कार्रवाई के रूप में था, जिसके तहत अमेरिका ने यूरोप पर ‘एयरबस’ को रियायत दिए जाने का आरोप लगाया था.

यूरोप द्वारा चार बिलियन अमेरिकी डॉलर के अमेरिकी उत्पादों पर कर लगाने का मामला तब सामने आया जब, विश्व व्यापार संगठन ने यूरोप द्वारा साल 2005 में बोइंग को दी गई सब्सिडी पर सवाल उठाते हुए दर्ज की गई शिकायत पर फ़ैसला सुनाया था. 

इसी तरह, यूरोप द्वारा चार बिलियन अमेरिकी डॉलर के अमेरिकी उत्पादों पर कर लगाने का मामला तब सामने आया जब, विश्व व्यापार संगठन ने यूरोप द्वारा साल 2005 में बोइंग को दी गई सब्सिडी पर सवाल उठाते हुए दर्ज की गई शिकायत पर फ़ैसला सुनाया था. इस तरह के कई मसलों के अलावा, जो ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने से पहले के थे, तनाव ज़्यादातर बयानबाज़ी के स्तर तक ही सीमित रहा और दोनों पक्षों ने साल 2020 में दो दशकों में पहली बार ड्यूटी शुल्क में कटौती की घोषणा भी की.

इसी तरह, सामूहिक सुरक्षा के मुद्दे को लेकर, ट्रंप ने नाटो के सदस्यों के बीच ‘बोझ’ के समान बंटवारे की कमी के ख़िलाफ़ लामबंदी की. हालांकि, उनके बड़बोलेपन को अगर एक तरफ रखें तो उनके पिछले दो पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों ने भी लगातार, नाटो रक्षा खर्च में वृद्धि की बात कही थी, यहां तक कि बराक ओबामा ने यूरोपीय लोगों को “मुफ़्त सवार” तक कह दिया था.

यूरोपीय नेताओं ने अमेरिका की विश्वसनीयता पर खुले तौर पर सवाल उठाते हुए, एक सक्रिय यूरोपीय विदेश नीति के लिए तर्क दिया है. 

इसके अलावा, ट्रंप के दृष्टिकोण को संबल प्रदान करते हुए, नाटो के उन सदस्यों की संख्य़ा, जो अपने सकल घरेलू उत्पाद का दो प्रतिशत रक्षा पर खर्च करने की प्रवृत्ति रखते हैं, साल 2014 में तीन के मुक़ाबले अब 10 हो गई है. इसके अलावा, ट्रंप प्रशासन ने सामूहिक सुरक्षा का समर्थन करते हुए, अटलांटिक आधारित, ‘यूएस सेकेंड फ्लीट’ को दोबारा स्थापित किए जाने और सेना की तैयारी से जुड़ी, ‘फोर थर्टीज़’ जैसी परिचालन संबंधी पहल के अलावा, ‘थ्री सीज़ इनिशिएटिव’ जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से, क्षेत्रीय क्षमता-निर्माण का भी समर्थन किया.

विश्वसनीयता पर सवाल

फिर भी, ट्रान्स-अटलांटिक संबंधों को आदर्श परिस्थितियों के आइने से देखते हुए इस आधार पर ट्रंप के रिकॉर्ड की आलोचना जारी रही है, न केवल पहले से चले आ रहे विवादों को नज़रअंदाज़ करते हुए, बल्कि हालिया नीतिगत लाभों को भी पूरी तरह से अनदेखा करते हुए. इसने एक उत्प्रेरक के रूप में इस मुद्दे को प्रभावित किया है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक से अधिक रूप में यूरोपीय “रणनीतिक स्वायत्तता” पाने के लिए आवाज़ बुलंद हुई है. यूरोपीय नेताओं ने अमेरिका की विश्वसनीयता पर खुले तौर पर सवाल उठाते हुए, एक सक्रिय यूरोपीय विदेश नीति के लिए तर्क दिया है. इसके तहत उन्होंने कहा कि, “वह युग जिसमें हम दूसरों पर पूरी तरह भरोसा कर सकते थे”; “वह सुरक्षा जिसके पीछे यूरोप फल-फूल सकता था, अब गायब हो गई है”; और, “उन्हें [ट्रंप को] इस बात के लिए धन्यवाद है कि हमने सभी तरह के भ्रमों से अब छुटकारा पा लिया है”.

यह चीनी निवेशकों द्वारा ऐसे अधिग्रहणों के ख़िलाफ़ रखवाली करने से संबंधित फ़ैसला है, जो यूरोपीय कंपनियों को अधिकृत कर, चीनी एकाधिकार कायम करने की मंशा को निरस्त करता है.

हालांकि, शुरुआत में ट्रंप द्वारा की गई कार्रवाई तक सीमित यह संबोधन, यूरोप द्वारा ईरान को लेकर ट्रांस-अटलांटिक हस्तक्षेप (आईएनएसटीईएक्स- INSTEX जैसे उपायों के माध्यम से) के चलते, अपने हितों से ध्यान बंटने जैसे मुद्दों के परिप्रेक्ष्य में, अब यूरोप द्वारा मुख़र रूप में अपने हितों की बात करने और यूरोपीय संगठनों द्वारा तेज़ी से अपना चरित्र धारण करने की ओर बढ़ रहा है.

यूरोप में एजेंडा तय किए जाने को लेकर लंबे समय से जारी असंगति को संबोधित करते हुए, विदेश नीति के मुद्दों पर सदस्य राज्यों के बीच एकमत की ज़रूरत को खत्म करने पर विचार-विमर्श चल रहा है और यह माना जा रहा है कि इसे “योग्य बहुमत” (qualified majority) के पक्ष में तय माना जाए. यह एक अखिल यूरोपीय रुख़ को लेकर महत्वपूर्ण हो सकता है, उदाहरण के लिए, इंडो-पैसिफिक को लेकर समूचे यूरोप का रवैया. इसके अलावा, लंबे समय से चीन को केवल आर्थिक दृष्टिकोण से देखने के बाद, यूरोपीय संघ ने, अपने हितों और मूल्यों का बचाव करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण तैयार करने के तहत, चीन को अब “प्रणालीगत प्रतिद्वंद्वी” (systemic rival) के रूप में माना है. यह चीनी निवेशकों द्वारा ऐसे अधिग्रहणों के ख़िलाफ़ रखवाली करने से संबंधित फ़ैसला है, जो यूरोपीय कंपनियों को अधिकृत कर, चीनी एकाधिकार कायम करने की मंशा को निरस्त करता है. इसके अलावा यह कार्रवाई, सर्विलांस से जुड़ी प्रौद्योगिकी के निर्यात को सीमित करने के प्रस्तावों से भी खुलकर सामने आई है, जो चीन के डिजिटल अधिनायकवाद को बढ़ाने में मदद करता है.

इसलिए, यूरोपीय घटनाक्रम को एक बड़े फलक पर देखें, तो ट्रंप द्वारा पैदा की गई ‘रुकावटें’ और ऐसे फ़ैसले जिनके ज़रिए उन्होंने आमूलचूल बदलाव लाने की कोशिश की, और जो अब ट्रांस-अटलांटिक संबंधों के विश्लेषण पर पूरी तरह से हावी हैं, बहुत संभव है कि अंततः इतिहास में मात्र फुटनोट बन कर रह जाएं.

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