Author : Sukrit Kumar

Published on Sep 04, 2019 Updated 0 Hours ago

अमेरिका, रूस, चीन और विश्व के प्रमुख महाशक्तियों को चाहिए कि वो किसी भी तरह की अस्थिरता पैदा कर सकने वाली गतिविधियों से बचे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हथियारों के नियंत्रण स्थापित करने के लिए एक मिला-जुला रास्ता निकालने पर सहमति बनाने पर ज़ोर दें. 

शीत युद्ध दौर की परमाणु निरस्त्रीकरण संधि ख़त्म!

वैश्विक सुरक्षा के लिहाज़ से डोनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से सबसे बड़ी घटना के रूप में किसी एक घटना को समझना मुश्किल है. फिर वो चाहे ईरान परमाणु समझौते से ख़ुद को एकाएक बाहर निकलना की बात हो जिसके बाद से ईरान अपने यूरेनियम को और संवर्धित करने में लग गया या फिर किम जोन उन के साथ हुए बैठक के बाद जानबूझकर ऐसे ताने देना कि जिससे उत्तर कोरिया अपने परमाणु कार्यक्रमों का और अधिक विकास कर सके या फिर जलवायु-परिवर्तन से अमेरिका की ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ना हो और रूस के साथ संबंधों को तनावग्रस्त करना या फ़िर चीन के साथ व्यापार युद्ध की शुरुआत करने की हो और अभी हाल ही में आईएनएफ़ संधि से बाहर निकलना हो.

लेकिन, इन सभी घटनाक्रमों के बीच अगर एक ऐसी घटना की पहचान करनी हो जो दीर्घकालिक रूप से सबसे अधिक विनाशकारी परिणाम दे सकती है तो वो रूस के साथ इंटरमीडिएट न्यूक्लियर फ़ोर्सेस एग्रीमेंट से बाहर निकलने का ट्रंप का विचारहीन और ग़ैरज़िम्मेदाराना रुख़ है.

इन सब के बावजूद पिछले 2 अगस्त 2019 को अमेरिका ने औपचारिक रूप से रूस के साथ हुए ऐतिहासिक संधि इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फ़ोर्सेस (INF) से खुद को अलग होने की प्रक्रिया शुरू कर दी. INF संधि का पतन, शीत युद्ध काल की दूसरी प्रमुख शस्त्र नियंत्रण संधि थी जो 2001 में एंटी बैलिस्टिक मिसाइल संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा तोड़ा जा रहा है इसके बाद एकमात्र सशस्त्र नियंत्रण संधि ‘न्यू स्टार्ट’ वह भी फरवरी 2021 में समाप्त होने के कगार पर है.

मौजूदा दौर में ख़राब होते अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा वातावरण में ऐसे निरस्त्रीकरण समझौतों के वजूद पर ख़तरा मंडरा रहा है जिन पर अब से पहले के दौर में हथियारों के नियंत्रण के लिए लंबे वार्ता के बाद से सहमति बनी हुई थी.

मौजूदा दौर में ख़राब होते अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा वातावरण में ऐसे निरस्त्रीकरण समझौतों के वजूद पर ख़तरा मंडरा रहा है जिन पर अब से पहले के दौर में हथियारों के नियंत्रण के लिए लंबे वार्ता के बाद से सहमति बनी हुई थी.

1987 के इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फ़ोर्सेस (INF) संधि, अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा लंबे समय के सार्थक बातचीत के बाद हस्ताक्षर किया गया था. यह संधि शस्त्र नियंत्रण के क्षेत्र में इतिहास में किए गए सबसे सफलतम और दूरगामी परिणाम वाली संधि थी. इस संधि के अंतर्गत 500 किलोमीटर से 5,500 किलोमीटर की दूरी वाली धरातल पर तैनात किए गए परमाणु मिसाइलों को ख़त्म करना और यूरोप में मध्यम दूरी तक मार करने वाले हथियारों को नष्ट करने का प्रावधान था. इस संधि के फलस्वरूप अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा 2,692 छोटी और मध्यवर्ती श्रेणी की मिसाइलों को नष्ट कर दिया गया था जिसमे सोवियत संघ ने 1,446 मिसाइलें उसमें 654 एसएस — 20 शामिल हैं, जबकि संयुक्त राज्य के 846 मिसाइलों को नष्ट कर दिया गया था जो एक दूसरे के ख़िलाफ़ तैनात किए गए थे. इस संधि से शीत युद्ध के परमाणु हथियारों की दौड़ को समाप्त करने में मदद मिला था.

हालांकि, ट्रंप के इस कदम से शस्त्र नियंत्रण के भविष्य पर प्रश्न खड़ा होता है. लेकिन ट्रंप ने जब इस संधि से बाहर निकालते हुए वो रूस के मिसाइल 9M729 का हवाला दिया तो उसके साथ ही साथ उन्होंने चीन को भी ज़िम्मेदार ठहराया. ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या हथियारों के दौड़ को रोकने के लिए शस्त्र नियंत्रण की कोई नई संधि बनाई जाएगी? क्या संधि से जुड़े पक्ष बातचीत के लिए तैयार होते हैं?

राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के आईएनएफ़ संधि से हटे हुए अभी 1 महीने भी नहीं हुए कि अमेरिकी सेना ने भूमि आधारित क्रूज़ मिसाइल का परीक्षण कर दुनिया को इस संधि के बारे में अपने कड़े रुख़ को प्रदर्शित किया.

राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के आईएनएफ़ संधि से हटे हुए अभी 1 महीने भी नहीं हुए कि अमेरिकी सेना ने भूमि आधारित क्रूज़ मिसाइल का परीक्षण कर दुनिया को इस संधि के बारे में अपने कड़े रुख़ को प्रदर्शित किया.

यह मिसाइल सैन निकोलस द्वीप पर एक लांचर से विस्फोट करके किया गया किया, जो लॉस एंजिल्स, कैलिफ़ोर्निया के तट से एक नौसैनिक परीक्षण स्थल और प्रशांत महासागर के ऊपर 310 मील से अधिक दूरी तक फैला हुआ है. इस मिसाइल के परीक्षण से प्राप्त सूचनाओं को एकत्रित कर अमेरिकी रक्षा विभाग भविष्य में मध्यवर्ती श्रेणी की क्षमताओं के विकास में इसका उपयोग कर सकती है.

अमेरिका के मिसाइल परीक्षण करने के लगभग तीन सप्ताह बाद रूस ने भी बीते मंगलवार को एक छोटी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया. दरअसल, रूस के इस कदम के पीछे अमेरिका द्वारा पिछले महीने क्रूज़ मिसाइल परीक्षण के प्रतिशोधात्मक प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है.

क्षेत्र में चीन के अधिक मुखर उदय ने पारंपरिक अमेरिकी सहयोगियों जैसे ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को चिंतित कर दिया है, और दक्षिण चीन सागर में बीजिंग के कार्यों ने रणनीतिक जलमार्ग पर प्रतिस्पर्धात्मक दावों, नेवीगेशन की स्वतंत्रता के साथ पड़ोसियों को चिंतित कर दिया है.

रक्षा विश्लेषकों ने लंबे समय से कहा है कि चीन की भूमि आधारित मध्यवर्ती श्रेणी की मिसाइलों के बड़े शस्त्रागार का उद्देश्य मुख्य रूप से ताइवान की मोर्चाबंदी करना है, गुआम द्वीप के साथ-साथ अमेरिका के अन्य प्रमुख ठिकानों को लक्षित करना है. इसके अलावा अमेरिकी नौसेना को इस क्षेत्र तक आने से रोकना है.

इसके लिए चीन ने अपना उन्नत DF-26 इंटरमीडिएट-रेंज बैलिस्टिक मिसाइल जो पारंपरिक और परमाणु वारहेड दोनों को नष्ट करने, तेज़ी से जवाबी कार्रवाई करने और DF-21D, जिसे विमान वाहक का मुक़ाबला करने के लिए बनाया गया है.

इस तरह के हथियारों के विकास से चीन अपना क्षेत्रीय दबदबा क़ायम करने के साथ-साथ अपनी महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों और हाइपरसोनिक ग्लाइड हथियारों को अमेरिकी महाद्वीपीय पर हमला करने की अपनी क्षमता को बढ़ा रहा है.

अमेरिका, रूस, चीन और विश्व के प्रमुख महाशक्तियों को चाहिए कि वो किसी भी तरह की अस्थिरता पैदा कर सकने वाली गतिविधियों से बचे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हथियारों के नियंत्रण स्थापित करने के लिए एक मिला-जुला रास्ता निकालने पर सहमति बनाने पर ज़ोर दें.

इसके साथ ही साथ रूस और अमेरिका दोनों ही देश न्यू स्टार्ट संधि की समय सीमा बढ़ाने पर ध्यान दें और शस्त्र नियंत्रण के दीगर उपायों के बारे में बातचीत शुरू कर दें.

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